Friday, 5 September 2025

विद्यालय से विश्वविद्यालय तक गुरु-शिष्य

विद्यालय से विश्वविद्यालय तक की मेरी यात्रा में, निस्संदेह मेरे सुपरहीरो मेरे शिक्षक ही रहे हैं, लेकिन ज़्यादातर आदरणीय शिक्षक ही मिले, अनुकरणीय कुछ गिने चुने ही हैं! उनमें से एक हैं गुरुवर श्री मुमताज़ अहमद जी।


इस स्मृति-विहीन समय में लगभग 12–13 वर्षों बाद रामनगर (वाराणसी) के एक सम्मान समारोह में गुरुवर श्री मुमताज़ अहमद जी से अचानक भेंट हुई। संयोग इतना अद्भुत कि उसी कार्यक्रम में गुरुवर्य की भी अपने गुरु से लगभग 40 वर्षों बाद मुलाकात हुई। यह क्षण अवर्णनीय रूप से सुखद रहा।

गुरुवर मुमताज़ अहमद जी 7वीं–8वीं कक्षा में मेरे कक्षाध्यापक रहे, पर आज भी गाँव में मेरी पहचान उनके शिष्य के रूप में ही होती है।
सच कहूँ तो आज तक मुझे इनके जैसा कोई और शिक्षक मिला ही नहीं, जिसके नाम से मेरी पहचान गाँव में गूँज उठे।

सभी प्रिय शिक्षकों एवं शिक्षिकाओं को 'शिक्षक दिवस' की हार्दिक बधाई एवं अनंत शुभकामनायें सह सादर प्रणाम।🙏

__________________________________________

युवा कवि गोलेन्द्र पटेल की तीन कविताएं :-

1).

*शिल्पकार की ललकार : ज्ञान और श्रम के दीपक*
                         —गोलेन्द्र पटेल


अंधकार टिक नहीं सकता,
जब ज्ञान का दीपक जलता है।
गुरु वह शक्ति हैं
जो आँखों में तर्क का उजाला भरते हैं,
मनुष्य को अंधविश्वास की बेड़ियों से
मुक्त कराते हैं।

गुरु वह नहीं
जो आस्था का बोझ लादें,
बल्कि वही हैं
जो विज्ञान की कसौटी पर
हर तथ्य को परखना सिखाते हैं
और निर्भीकता से
सही-गलत का निर्णय कराते हैं।

वे चरित्र गढ़ते हैं
जैसे संगतराश पत्थर से आकृति निकालता है।
कठिन चट्टानों से
वे भविष्य का आकार तराशते हैं,
सिखाते हैं कि संघर्ष ही
मनुष्य की पहचान है,
और श्रम से बड़ा कोई देवता नहीं।

वे मिट्टी की तरह लचीला बनाते हैं,
कुम्हार की तरह भविष्य का चाक घुमाते हैं।
बताते हैं कि मानवता का सबसे बड़ा दीपक
ज्ञान और श्रम से जलता है,
न कि किसी चमत्कार से।

शिक्षक राष्ट्र के निर्माता हैं—
वे किताबों से अधिक
सोचने का विज्ञान पढ़ाते हैं,
आलोचना का साहस जगाते हैं,
नई पीढ़ी को तैयार करते हैं
ताकि वह अंधकार से टकराकर
भविष्य का सूरज गढ़ सके।

उनकी वाणी प्रेरणा का प्रवाह है,
उनका श्रम सामाजिक परिवर्तन का औजार।
वे सिखाते हैं:
मनुष्य ही इतिहास का असली शिल्पकार है
और समाज वही आगे बढ़ता है
जहाँ ज्ञान और श्रम को
समान सम्मान मिलता है।

अंधेरे की चट्टान पर हथौड़े की हर चोट
विज्ञान की धार बन जाती है—
न देवता, न मंत्र,
बस तर्क की छेनी
जो अज्ञान को चीरती है।

मिट्टी के लोथड़े से वे भविष्य गढ़ते हैं,
कुम्हार की तरह,
पर चाक उनका क्रांति का चक्र है।
बाजार की बाढ़ और नकली चमक के बीच
वे धरती को मजबूत बनाते हैं,
उपयोगी और अटूट।

चुनौतियाँ उनके लिए रुकावट नहीं—
वे ईंधन हैं।
समाज की दरारों को भरते हैं,
चरित्र की नींव डालते हैं,
सोच को आलोचना की आग में पकाते हैं
ताकि निकले प्रगति का सूरज
बिना किसी छाया के।

वे मार्गदर्शक ही नहीं, क्रांतिकारी हैं—
ज्ञान की लहरें फैलाते हैं,
जहाँ हर बच्चा नेता बने,
बंधन टूटें, विचार उड़ान भरें,
और राष्ट्र की एकता
वैज्ञानिक चेतना से गढ़ी जाए।

नहीं दोहराव, बस धारदार स्वर—
वे व्यक्तिगत विकास की आग जगाते हैं,
समस्या-समाधान की तलवार थमाते हैं
और पुकारते हैं:
“उठो, तराशो अपना कल,
क्योंकि शिक्षक नहीं रुकते,
क्रांति अनवरत चलती है।”
★★★


2).

*क्रांति का आलोक : गुरु–शिष्य, शिक्षा और मुक्ति*
                            —गोलेन्द्र पटेल


गुरु सिर्फ़ ज्योति नहीं,
वह मशाल है—
जो अँधेरे चीरती है,
सदियों की गुलामी तोड़ती है,
जाति की जंजीरें गलाती है।

शिक्षक केवल पाठ का व्यापारी नहीं,
वह भविष्य का शिल्पकार है—
जहाँ दलित–बहुजन की संतानें
गुलाम नहीं, शेर कहलाती हैं,
समानता की दहाड़ से गूँज उठती हैं।

गुरु वह है
जो परंपराओं की कैद को तोड़े,
स्वतंत्रता का मन्त्र दे,
तर्क का दीपक जलाए
और कहे—
“मनुष्य बनो, स्वाधीन बनो।”

शिक्षा—
काग़ज़ी डिग्री नहीं,
संघर्ष का शस्त्र है,
आत्मसम्मान का घोष है,
अंधविश्वास और ब्राह्मणवादी जाल
तोड़ने का तीखा हथियार है।

जब फुले ने पहला स्कूल खोला,
तो वह सिर्फ़ अक्षरज्ञान नहीं,
जाति की दीवार गिरा रहे थे।
सावित्रीबाई पर कीचड़ फेंका गया,
पर वही कीचड़ बहुजन चेतना की मिट्टी बना,
क्रांति के फूल खिला गया।

अंबेडकर ने कहा—
“शिक्षा शेरनी का दूध है।”
हाँ, गुरु वही है
जो शिष्य के भीतर शेर जगाए,
गुलामी की आदत मारे,
सिंहनाद करना सिखाए।

विद्यालय अगर सिर्फ़ किताबों तक सीमित है,
तो अधूरा है।
विश्वविद्यालय अगर केवल डिग्रियाँ बाँटे,
तो निरर्थक है।
सच्चा शिक्षालय वही है—
जहाँ आलोचना जन्म ले,
सोचने का साहस पनपे,
“क्यों?” और “कैसे?”
हर पाठ का हिस्सा बनें।

विद्यार्थी—
अनुशासन का गुलाम नहीं,
अन्याय का सबसे पहला प्रतिरोधक है।
गुरु–शिष्य परंपरा झूठ है,
जब तक गुरु शिष्य को
जाति–धर्म की कैद से मुक्त कर
मनुष्यत्व का पाठ न पढ़ाए।

सच्चा शिक्षक वही है
जो सिखाए—
“संविधान तुम्हारा शस्त्र है,
संघर्ष तुम्हारा मार्ग है,
बराबरी तुम्हारा धर्म है।”

ज्ञान—
संस्कृत श्लोकों का संग्रह नहीं,
मज़दूर की पुकार है,
किसान की कराह है,
स्त्री की मुक्ति की ज़िद है,
बहुजन का आत्मबोध है।

गुरु का धर्म है
दलित को ब्राह्मण का शिष्य न बनाना,
बल्कि मनुष्य का स्वामी बनाना।
शिक्षक का धर्म है
वंचित की प्रतिभा पहचानना,
उसे ऊँचाई देना
और कहना—
“भविष्य तेरे हाथ में है।”

आज ज़रूरत है
बुद्ध और कबीर जैसे मार्गदाताओं की,
फुले और सावित्रीबाई जैसे शिक्षकों की,
अंबेडकर और पेरियार जैसे पथप्रदर्शकों की,
जो शिक्षा को शांति-क्रांति का घोषणापत्र बनाएँ।

यह विद्रोह का मन्त्र है,
बहुजन समाज को जगाने वाली चेतावनी—
“शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो।”

गुरु आता है तूफ़ान बनकर,
अविद्या की कालकोठरी फाड़कर
प्रकाश बिखेरता है।
नहीं केवल ज्ञान,
बल्कि विद्रोह की आग और समानता का हथियार सौंपता है।

वह क्रांति का सेनापति है,
भविष्य का शिल्पकार है,
जो दलित बस्तियों में स्कूल खोलता है,
महिलाओं को उड़ान देता है,
हर हाथ में कलम,
हर ज़ुबान में विद्रोह थमाता है।

गुरु–शिष्य का बंधन
पवित्र नहीं, युद्ध का संधि–पत्र है—
जहाँ शिष्य बनता है योद्धा,
गुरुकुल क्रांति का अड्डा होता है,
जहाँ वेदों से नहीं,
संविधान की धाराओं से जीवन बहता है।

विद्यार्थी जीवन—
संघर्ष का मैदान है।
छुआछूत की चोट सहकर,
अनुशासन से संगठित होकर
बहुजन सेनाएँ गढ़ता है।
उसकी निष्ठा सत्ता के प्रति नहीं,
न्याय के प्रति होती है।

विद्यालय की नींव
बराबरी पर टिकनी चाहिए।
विश्वविद्यालय
स्वतंत्रता का किला होना चाहिए।
डिग्री का नहीं,
क्रांति का पुल होना चाहिए—
जहाँ वंचित नेता बनते हैं,
छिपी प्रतिभाएँ ज्वालामुखी बनकर फूटती हैं।

फुले ने स्कूल खोले,
सावित्रीबाई ने आग लगाई,
अंबेडकर ने घोषणा की—
“शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो।”
यही है गुरु–शिष्य की क्रांति का घोषणा–पत्र।

गुरु देवता नहीं,
मानव उत्थान का योद्धा है।
शिक्षक वेतनभोगी नहीं,
समाज का क्रांतिकारी है।
अंबेडकरवादी तीर से
असमानता को भेदता है,
दलित चेतना की आग से
कुरीतियों को जलाता है।

यह कविता नहीं—
विद्रोह का मैनिफेस्टो है।
यह प्रेरणा का स्रोत है
जहाँ हर शिष्य गुरु बनता है।
उठो बहुजन!
शिक्षा की तलवार थामो,
जंजीरें तोड़ो,
समता और न्याय का नया भारत गढ़ो।

बौद्ध नैतिकता से करुणा बहाओ,
वंचित को अधिकार दिलाओ,
गुरु को ईश्वर से ऊपर मानो,
क्योंकि वही अंधकार नहीं,
शोषण से मुक्ति देता है।

क्रांति का आलोक फैलाओ—
हर कक्षा, हर गुरुकुल में।
बहुजन का सूरज उगाओ—
जो कभी न डूबे।
संघर्ष अनंत है,
पर विजय निश्चित है—
शिक्षा से, गुरु से, शिष्य से,
क्रांति से
संतों का सपना साकार करो—
“ऐसा चाहूँ राज मैं,
जहाँ मिलै सबन को अन्न। 
छोट बड़ो सब सम बसै,
रैदास रहै प्रसन्न।”
★★★

3).

*शिक्षक*

—गोलेन्द्र पटेल 

शिक्षा सृष्टि की सबसे महान रोशनी है 

सीखना और सिखाना क्रिया के बीच 
मैं सिर्फ़ और सिर्फ़ एक शिक्षार्थी हूँ
लेकिन कुछ लोग हैं 
कि मुझे शिक्षक समझते हैं

क्योंकि 
भाषा में एक पुरखे कवि* ने अर्ज़ की है,
“प्रत्येक कवि शिक्षक होता है,
मैं चाहता हूँ कि या तो मैं शिक्षक समझा जाऊँ
या कुछ नहीं।”

समझने और समझाने के बीच 
शिक्षक जीवनपर्यंत शिक्षक बना रहता है 
अपने शिक्षार्थी को नया जीवन देते हुए
यह सीख देते हुए 
कि ऐसे सीखो कि जैसे सदैव जीना है 
सफलता का अमृत पीने से पहले 
असफलता का विष पीना है

शिक्षक होना 
असल में उदात्त उजाले को उचित दिशा दिखाना है!
★★★

*वर्ड्सवर्थ 
__________________________________________

★★★


रचनाकार: गोलेन्द्र पटेल (पूर्व शिक्षार्थी, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी।/ जनकवि, जनपक्षधर्मी लेखक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक चिंतक)
डाक पता - ग्राम-खजूरगाँव, पोस्ट-साहुपुरी, तहसील-मुगलसराय, जिला-चंदौली, उत्तर प्रदेश, भारत।
पिन कोड : 221009
व्हाट्सएप नं. : 8429249326
ईमेल : corojivi@gmail.com


Thursday, 4 September 2025

गुरु, शिक्षक और शिक्षा : अंधकार से मुक्ति का अंबेडकरवादी घोषणापत्र — गोलेन्द्र पटेल

 गुरु, शिक्षक और शिक्षा : अंधकार से मुक्ति का अंबेडकरवादी घोषणापत्र
—गोलेन्द्र पटेल



भारतीय समाज में "गुरु" और "शिक्षक" की भूमिका सदियों से चर्चा का विषय रही है। पारंपरिक धारणाओं में गुरु को देवताओं से भी ऊँचा स्थान दिया गया, क्योंकि वे अज्ञानता के अंधकार से निकालकर ज्ञान का प्रकाश देते हैं। किंतु प्रश्न यह है कि यह "प्रकाश" किसके हिस्से आया और किसे अंधकार में ही छोड़ दिया गया? किसके लिए गुरुकुलों के द्वार खुले रहे और किसे वहाँ प्रवेश करने से रोका गया? यही प्रश्न आज हमें गुरु-शिष्य परंपरा को अंबेडकरवादी दृष्टि से पुनर्परिभाषित करने के लिए मजबूर करता है।

शिक्षा : दमन से मुक्ति का औज़ार

डॉ. भीमराव अंबेडकर ने शिक्षा को मुक्ति और समानता का सबसे बड़ा हथियार बताया। उनका वाक्य आज भी गूंजता है—
"शिक्षा शेरनी का दूध है, जो पिएगा वही दहाड़ेगा।"
यह दहाड़ केवल व्यक्तिगत उन्नति की नहीं, बल्कि सामूहिक मुक्ति और सामाजिक क्रांति की है। इसलिए गुरु और शिक्षक का असली कर्तव्य केवल पाठ्यपुस्तकें पढ़ाना नहीं, बल्कि शोषित-उत्पीड़ित समाज को अपने पैरों पर खड़ा करना, उनमें आत्मसम्मान जगाना और उन्हें संघर्ष के लिए तैयार करना है।

गुरु-शिष्य परंपरा : आलोचनात्मक पुनर्पाठ

भारतीय परंपरा में गुरु-शिष्य संबंध को पवित्र माना गया, किंतु वास्तविकता यह है कि यह परंपरा जाति और वर्ण की दीवारों में कैद थी। शूद्रों, दलितों और स्त्रियों को ज्ञान से वंचित रखकर इस परंपरा ने सदियों तक अंधकार को ही उनका भाग्य बना दिया।
आज आवश्यकता है कि हम इस परंपरा को पुनर्परिभाषित करें—

गुरु वह है जो शोषण के खिलाफ संघर्ष का रास्ता दिखाए।

शिक्षक वह है जो समाज के वंचित वर्गों में आलोचनात्मक सोच और आत्मविश्वास पैदा करे।

गुरु और शिक्षक की कसौटी यह होनी चाहिए कि वह ज्ञान किसे उपलब्ध करा रहा है और किसे परिवर्तन के लिए तैयार कर रहा है।


अंबेडकरवादी गुरु : ज्ञान और क्रांति का संगम

अंबेडकर ने कहा था— "शिक्षित बनो, संगठित रहो, और संघर्ष करो।" यह केवल नारा नहीं, बल्कि गुरु-शिष्य परंपरा के नए स्वरूप का घोषणापत्र है।

गुरु का कार्य अब केवल शिष्य के चरित्र निर्माण तक सीमित नहीं, बल्कि उसके भीतर अन्याय के खिलाफ लड़ने की चेतना जगाना है।

शिक्षक का कर्तव्य है कि वह छात्र को विज्ञान, तर्क और समानता की दृष्टि से सुसज्जित करे, ताकि वह परंपरा और रूढ़ियों की गुलामी से मुक्त हो सके।


बहुजन महापुरुष और शिक्षा की क्रांति

ज्योतिबा फुले, सावित्रीबाई फुले और बाबासाहेब अंबेडकर जैसे महापुरुषों ने शिक्षा को क्रांति का औज़ार बनाया।

सावित्रीबाई फुले ने पहला विद्यालय खोलकर स्त्रियों और दलितों को शिक्षा का अधिकार दिया। वे असली "जनगुरु" थीं, जिनकी क्रांति आज भी प्रेरणादायक है।

ज्योतिबा फुले ने "सत्यशोधक समाज" के माध्यम से ज्ञान को ब्राह्मणवादी वर्चस्व से मुक्त कर बहुजनों के हाथ में सौंपा।

अंबेडकर ने शिक्षा को केवल व्यक्तिगत सफलता का साधन नहीं माना, बल्कि सामाजिक न्याय और लोकतंत्र की नींव के रूप में स्थापित किया।


शिक्षा : आत्मसम्मान और संघर्ष की धुरी

अंबेडकरवादी दृष्टिकोण स्पष्ट करता है कि शिक्षा का असली उद्देश्य नौकरी पाना या डिग्री अर्जित करना भर नहीं है।

यह आत्मसम्मान जगाने का माध्यम है।

यह वैज्ञानिक दृष्टिकोण और आलोचनात्मक सोच विकसित करने का साधन है।

यह जाति, लिंग और वर्ग आधारित अन्याय को पहचानने और उसके खिलाफ खड़े होने की ताक़त देती है।


आधुनिक शिक्षा व्यवस्था की चुनौतियाँ

आज विश्वविद्यालय और विद्यालय "ज्ञान" तो बाँट रहे हैं, लेकिन यह ज्ञान किसकी सेवा कर रहा है? क्या यह शिक्षा गरीब, दलित, आदिवासी और स्त्रियों को बराबरी दे रही है, या फिर उन्हें बाज़ार और सत्ता का उपकरण बना रही है?
अंबेडकरवादी दृष्टिकोण कहता है कि शिक्षा तभी सार्थक है, जब वह समाज में बराबरी और न्याय को मज़बूत करे, न कि असमानता को और गहरा करे।

घोषणापत्र : नए युग का गुरु-शिष्य संबंध

1. गुरु-शिष्य परंपरा अब केवल श्रद्धा नहीं, बल्कि संघर्ष और परिवर्तन की साझेदारी है।


2. हर शिक्षक का कर्तव्य है कि वह बहुजन बच्चों को मुख्यधारा से जोड़कर उनमें आत्मविश्वास पैदा करे।


3. शिक्षा को बाज़ार और जाति की कैद से मुक्त कर, उसे सामाजिक न्याय की धुरी बनाया जाए।


4. असली गुरु वही है, जो शिष्य को प्रश्न करना सिखाए, न कि अंधविश्वास में झुकना।


5. अंबेडकरवादी शिक्षक वही है, जो "शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो" का जीवन्त उदाहरण बने।



निष्कर्ष

गुरु और शिक्षक का महत्व निर्विवाद है, लेकिन उनकी भूमिका का पुनर्पाठ करना ज़रूरी है। आज हमें ऐसे गुरु चाहिए, जो केवल ज्ञान न दें, बल्कि न्याय और समानता के लिए लड़ने की प्रेरणा दें। ऐसे शिक्षक चाहिए, जो केवल पाठ्यक्रम न पढ़ाएँ, बल्कि बहुजन समाज की चेतना को जगाएँ।
यही अंबेडकरवादी शिक्षा का मार्ग है—
ज्ञान से मुक्ति, शिक्षा से क्रांति और गुरु-शिष्य परंपरा से सामाजिक न्याय की स्थापना।

★★★


रचनाकार: गोलेन्द्र पटेल (पूर्व शिक्षार्थी, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी।/बहुजन कवि, जनपक्षधर्मी लेखक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक चिंतक)
डाक पता - ग्राम-खजूरगाँव, पोस्ट-साहुपुरी, तहसील-मुगलसराय, जिला-चंदौली, उत्तर प्रदेश, भारत।
पिन कोड : 221009
व्हाट्सएप नं. : 8429249326
ईमेल : corojivi@gmail.com


विद्यालय से विश्वविद्यालय तक गुरु-शिष्य

विद्यालय से विश्वविद्यालय तक की मेरी यात्रा में, निस्संदेह मेरे सुपरहीरो मेरे शिक्षक ही रहे हैं, लेकिन ज़्यादातर आदरणीय शिक्षक ही मिले, अनुक...