Saturday, 27 December 2025

गोलेन्द्र : अर्थ, व्युत्पत्ति और वैचारिक विस्तार

गोलेन्द्र : अर्थ, व्युत्पत्ति और वैचारिक विस्तार

भारतीय परम्परा में नामकरण केवल व्यक्ति की पहचान भर नहीं होता, बल्कि वह उसके चरित्र, कर्म, दृष्टि और सामाजिक उत्तरदायित्व का भी संकेतक माना जाता है। नाम के भीतर निहित अर्थ व्यक्ति की चेतना को दिशा देते हैं और उसके जीवन-व्यवहार में प्रतीकात्मक रूप से अभिव्यक्त होते हैं। इसी सांस्कृतिक संदर्भ में ‘गोलेन्द्र’ नाम एक साधारण संज्ञा न होकर एक गहन वैचारिक और दार्शनिक संकल्प के रूप में सामने आता है।

व्युत्पत्तिगत अर्थ

‘गोलेन्द्र’ नाम दो मूल शब्दों—‘गो’ और ‘इन्द्र’—से निर्मित है। संस्कृत परम्परा में ‘गो’ के अर्थ अत्यन्त व्यापक हैं। यह केवल गाय या भौतिक वस्तु तक सीमित नहीं, बल्कि प्रकाश, ज्ञान, पृथ्वी, चेतना और लोक का भी द्योतक है। ‘गो’ जीवनदायिनी ऊर्जा, बौद्धिक आलोक और सामाजिक धरातल—तीनों का प्रतिनिधित्व करता है। वहीं ‘इन्द्र’ का अर्थ है श्रेष्ठ, स्वामी, अधिपति अथवा नेतृत्वकर्ता। वैदिक साहित्य में इन्द्र शक्ति, संरक्षण और नेतृत्व का प्रतीक रहा है।

इस प्रकार ‘गोलेन्द्र’ का मूल अर्थ हुआ—
ज्ञान का अधिपति, प्रकाश का स्वामी या लोकचेतना का नेतृत्वकर्ता।

श्लेष और बहुअर्थकता

‘गोलेन्द्र’ शब्द अपने भीतर श्लेष और बहुअर्थकता भी समेटे हुए है। ‘गो’ को इंद्रियों के अर्थ में ग्रहण किया जाए तो ‘गोलेन्द्र’ का आशय होगा—इंद्रियों पर संयम रखने वाला, अर्थात् आत्मसंयम और विवेक का प्रतीक। वहीं ‘गोल’ को अंतरिक्ष अथवा व्यापकता के अर्थ में देखें तो यह ‘विस्तृत चेतना के स्वामी’ का बोध कराता है। इस प्रकार यह नाम केवल भाषिक नहीं, बल्कि दार्शनिक स्तर पर भी बहुआयामी अर्थ उत्पन्न करता है।

वैचारिक विस्तार

भारतीय दर्शन में नाम का अर्थ कोशीय या व्याकरणिक स्तर पर समाप्त नहीं होता। वह व्यक्ति के वैचारिक और सांस्कृतिक स्वरूप को भी रेखांकित करता है। इसी दृष्टि से ‘गोलेन्द्र’ एक सक्रिय, जागरूक और लोकपक्षधर चेतना का प्रतीक बनकर उभरता है।

‘गोलेन्द्र’ वह है जो ज्ञान की यात्रा में सतत अग्रसर रहता है—एक बोधिसत्व की भाँति, जो स्वयं आलोकित होने के साथ-साथ दूसरों के लिए भी मार्ग प्रकाशित करता है। वह ज्ञाननायक है, जो विचार और विवेक के माध्यम से समाज का नेतृत्व करता है। उसकी चेतना लोक से जुड़ी हुई है; इसलिए वह जनचेतस है—जनमानस की पीड़ा, संघर्ष और आकांक्षाओं को आत्मसात करने वाला।

संघर्ष और सृजन की चेतना

वैचारिक और सामाजिक संघर्ष के स्तर पर ‘गोलेन्द्र’ एक शब्द-योध्दा के रूप में सामने आता है। वह हिंसा या सत्ता के उपकरणों से नहीं, बल्कि विचार और भाषा के माध्यम से अन्याय का प्रतिकार करता है। इस अर्थ में वह विचार-इन्द्र है—विचारों का स्वामी और वैचारिक दिशा-निर्देशक। उसकी वाणी लोकस्वर में रूपांतरित हो जाती है, जिसमें समाज की सामूहिक आवाज प्रतिध्वनित होती है।

काव्यात्मक और साहित्यिक अर्थ

साहित्यिक संदर्भ में ‘गोलेन्द्र’ जनकवि और मानवधर्मी कवि का रूप धारण करता है। उसका रचनाकर्म सत्ता या स्वार्थ के पक्ष में नहीं, बल्कि जनता, मनुष्यता और जीवन-मूल्यों के पक्ष में होता है। वह पीड़ित, उपेक्षित और संघर्षशील समाज की आवाज—अर्थात् जनस्वर और मानवस्वर—को अभिव्यक्ति देता है। इसीलिए उसकी चेतना समाज की चेतना का आधार बनती है और वह चेतनाधार कहलाता है। अंधकारमय समय में वह विचारदीप की भाँति जलता है और समाज को दिशा प्रदान करता है।

लोकसाधना का संकल्प

अंततः ‘गोलेन्द्र’ एक लोकसाधक है—ऐसा व्यक्ति जो अपने वैचारिक और रचनात्मक कर्म को व्यक्तिगत उपलब्धि तक सीमित नहीं रखता, बल्कि लोकहित की साधना में रूपांतरित करता है। उसका जीवन और लेखन सामाजिक उत्तरदायित्व से अनुप्राणित होता है।

निष्कर्ष

इस प्रकार ‘गोलेन्द्र’ केवल एक नाम नहीं, बल्कि
एक दार्शनिक संकल्प,
एक लोकपक्षधर चेतना,
और एक सांस्कृतिक उत्तरदायित्व का प्रतीक है।

यह नाम ज्ञान, प्रकाश, संघर्ष और लोक—इन चारों तत्वों को एक सूत्र में बाँधता है। अपने भीतर यह बोधिसत्व, ज्ञाननायक, लोकप्रकाश, जनचेतस, शब्द-योध्दा, विचार-इन्द्र, लोकस्वर, जनकवि, मानवधर्मी कवि, चेतनाधार और लोकसाधक जैसी अर्थछवियों को समाहित करता है। इसी कारण ‘गोलेन्द्र’ साधारण नाम न होकर अर्थ, विचार और चेतना से सम्पन्न एक विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान बन जाता है।

कोशकार: काव्यानुप्रासाधिराज (पूर्व शिक्षार्थी, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी।/ जनकवि, जनपक्षधर्मी लेखक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक चिंतक)
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