Friday, 27 March 2020

हे नदी!
प्यासी नदी
समुद्र की
पूज्य पुत्री
लक्ष्य
से लदी!

एक बूंद
उछाल
नीम के
ऊपर
सदी
के त्रासदी!

ध्वनि के
ध्वज तरंग
वात के
बात को
सुनकर

दुःखी
अनंत में
लहरफहर
हर शहर
हर नगर
हर डगर
धर कर
पदी पदी
चली नदी!

शून्य से
प्रसार में
द्वीप से
संसार में
झरे पत्तें
पेड़ के नीचे
नहीं

सड़क पर
जा लगा
रहे हैं नारे
जैसे टकरा
दूर्गंध-सुगंध
गीत गा
रहे हैं किनारे!

और अकेली
नदी नालों के
विरुद्ध आवाज़
देती कोयल को
जो रोज
संसद सदन के
आँगन में
कौओं के शब्दगान
के विरुद्ध राष्ट्रगान
के साथ गाती है
दर्द का दर्शन!

जिसमें प्रमुख
हैं गंङ्गा-यमुना
का दिव्यदृश्य
टट्टी-सी पानी
मुगलों की रानी
पहले हुई कानी
अब हो गई है
दृष्टिहीन

गाँधी का चश्मा
कब लगायेगी
दिल्ली
राजनीति के
रजाई पर
सोने से पहले
केवल एक बार
पूछ रही हैं
कर्षित नदियाँ!
रचना
-गोलेन्द्र पटेल





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