Friday, 27 March 2020





एकांत में नहीं एकांत
सुबह और शाम समझ रहे हैं
बस बेवजह बैठी बुलबुल
बाँस पर बैठी कोयल का स्वर सून रही है
अपने स्वर में उसके दर्द को साधने हेतु
धनकूटनी लंबे चोच में चावल लीए आई
कबूतर के बच्चों के मुख में डालने हेतु
पर वह अपने चोंच पर विचार कर कही
वाह रे विधाता! यह कैसा मुख?
इन अनाथ चूजों को भोजन भी नहीं करा सकती।
उसके मित्र बगुले को देख बच्चे चाँ चाँ चिल्लाने लगे
कोयल का स्वर भंग हुआ
बुलबुल बोली सखी कपोत बच्चे भूखे हैं
हाँ जीजी पर खिलाऊँ क्या?
कल संसदभवन में गई थी पर
वहाँ कोई किड़ा मकोड़ा नहीं मिला
आज आपके पास बड़ी आश लेकर आई हूँ
आप हमारे मुहल्ले की स्वर नेता है
हमारा किड़ाकार्ड गुम हो गया है
महोदया! मुझे दो दाना अन्न दो
मेरा और मेरे बच्चों का वोट अपने नाम करो।
भावी चुनाव नजदीक है आकाश में बिजली चुप है
बाज़ के भय से इंद्र स्वर्ग के सेनापतियों से कहते हैं
इस वर्ष का चुनाव पृथ्वी पर नहीं भूख के जमीन पर है
बुलबुल के गुप्तचर ने संदेशा लाया कि एक दोपाया
जो गंगा की सड़ा पानी पी बिमार पड़ा है एकांत
बाज़ का पूजनीय गगनगंगा गंदा होती जा रही है
उसी का जल और दो मटर के दानें दे कृतार्थ की
भूखी कपोत के दो भूखे बच्चों के आँत को।
-गोलेन्द्र पटेल
मो.नं.8429249326

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