कोरोना और सच की महत्ता -
सच बोलना अपराध हो गया है।सिर्फ राज्य स्वीकृत बातें ही बोल सकते हैं।इससे पता चलता है जिंदगी का अब स्वतंत्र अस्तित्व खतरे में है। इस ऑरवेलियन नियंत्रित छली समाज व्यवस्था की ट्रंप ने शुरूआत कर दी और धीरे धीरे वे लोग इस रास्ते पर चल निकले हैं जो ट्रंप के यार हैं।छल और नियंत्रण के नए शासन का आरंभ सूत्र है कोरोना के इलाज के बाद जारी होने वाला स्वास्थ्य प्रमाण पत्र। अमेरिका में यह आवाज उठी है अपने चुने गए नुमाइंदों को जनता अपना संरक्षक न समझे।वे जनता के हितों और अधिकारों के संरक्षक नहीं हैं।खासकर पश्चिम में तो ऐसा कोई संरक्षक नहीं है।
ट्रंप प्रशासन ने कोरोना संक्रमण से पीड़ितों के लिए कोविद-19 इम्युनिटी सर्टीफिकेट प्रमाण पत्र जारी करने का प्रस्ताव जारी किया है। मसलन् जिनका कोरोना टेस्ट लिया गया और वे जब रिकवर कर लेते हैं तो उनको एक प्रमाणपत्र दिया जाता है कि वे स्वस्थ हैं उनके शरीर में कोरोना के कोई लक्षण अब नहीं हैं।जिससे वे नौकरी पर लौट सकें।यह प्रमाण पत्र अमेरिका का ‘‘नेशनल इंस्टूट्यूट ऑफ हेल्थ एंड फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन’’ जारी करेगा।
इस प्रमाणपत्र को लेकर अनेक सवाल उठ खड़े हुए हैं।यह प्रमाणपत्र सबको जरूरी होगा।इससे जनता की मुश्किलें बढ़ेंगी। इस तरह के प्रमाणपत्र को लेकर कोरोना के नेगेटिव और पॉजिटिव मरीजों की संख्या और उनके रजिस्ट्रेशन को लेकर विवाद होगा।उनकी सही संख्या को लेकर मेनीपुलेशन शुरू हो चुका है।कोरोना के टेस्ट को लेकर जो असल समस्या है वह यह कि इसके सही टेस्ट करने के लेकर गंभीर सवाल उठ खड़े हुए हैं।इसके टेस्ट के लिए पीड़ित मनुष्य के शरीर से छोटा सा टीशू का अंश लिया जाता है।उसको विश्लेषण के लिए विस्तारित करते हैं।लेकिन इस प्रक्रिया में यह बताना मुश्किल होता है कि यह वायरस शरीर में कहां कहां फैल गया है।इससे भी अधिक खतरनाक है जबरिया टॉक्सिंग वैक्सीनेशन और उसके बाद दिया जाने वाला प्रमाण पत्र।इस तरह का वैक्सीनेशन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।अनिवार्य वैक्सीनेशन और उसके जरिए कोरोना मुक्त प्रमाणपत्र मुश्किलभरा काम है। यह भी कहा जा रहा है कोरोना के टेस्ट के लिए जो किट इस्तेमाल हो रहे हैं वे अधिक भरोसेमंद नहीं हैं। अमेरिका में ये किट बेहतर प्रिफ़ॉर्म नहीं कर रहे।अभी तक विज्ञानसम्मत कोई टेस्ट कोरोना के लिए सामने नहीं आया है।अब कहा जा रहा है सब लोग टेस्ट कराओ और वैक्सीनेशन लो।सभी लोगों के लिए यह नियम खतरनाक है।
अब सारी दुनिया में कोरोना को लेकर वैक्सीनेशन कराने की मुहिम सामने आई है। इसकी क्रोनोलॉजी समझने की कोशिश करें-
कोविद-19 के लिए ‘‘कॉयलेशन फॉर प्रिपेयर्डनेस इन्नोवेसन( सीइपीआई) नामक संगठन का विश्व आर्थिक मंच डावोस, बिल एवं मेलिंडा गेटस फाउंडेशन के प्रायोजन में गठन किया गया है। इस क्रम देखें-
-- सन् 2019 में कोव वैक्सीन की डावोस आर्थिक मंच के सम्मेलन में घोषणा की जाती है।इसके एक सप्ताह बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन 30 जनवरी को विश्व स्वास्थ्य आपातकाल घोषित करता है। यह आपातकाल ऐसे समय घोषित किया जाता है जब चीन के बाहर कन्फर्म केस मात्र 150 थे, इनमें अमेरिका में 6 केस थे।इसके बाद 11 मार्च को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे महामारी घोषित कर दिया।सीइटल में मार्च 18 को पहला टेस्ट होता है जिसमें मानवीय स्वयंसेवक भी शिरकत करते हैं।सारी दुनिया में सीइपीआई के तहत प्राइवेट-पब्लिक पार्टनरशिप में वैक्सीनेशन की मुहिम चलाने की अपील की जाती है। यह संगठन इस मामले में अपना वर्चस्व बनाए रखना चाहता है,इस काम में ‘‘इननोविओ’’ और क्विंसलैंड विश्वविद्यालय आस्ट्रेलिया एक पार्टनरशिप पर साइन करते हैं। उल्लेखनीय है इन दोनों के बीच एक साझा समझौते के तहत पहले से काम चल रहा है।हमारे कुछ मित्र जो आस्ट्रेलिया भक्त हैं वे इस समझौते से अनभिज्ञ हैं और इसके पीछे कार्यरत राजनीतिक-आर्थिक शक्तियों की अनदेखी कर रहे हैं।इन्नोविओ और क्लींसलैंड विश्वविद्यालय के साझे काम को 23 जनवरी को सीइपीआई एक बयान जारी करके पुष्ट करती है।साथ ही कहती है कि उसने इस काम में मॉडर्ना और आईएनसी कंपनियों के साथ यूएस नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इंफेक्टीयस डिजीज को भी इस गठबंधन में शामिल किया है।इन सबके नेतृत्व में अमेरिका में फीयर और पेनिक अभियान चलाया गया है। यह कैम्पेन मौसमी फ्लू के खिलाफ चलाए गए प्रचार अभियान से दस गुना अधिक है।
जॉन हॉपकिंस इंस्टट्यूट के अनुसार यह एक तथ्य है कि कोरोना के इलाज का बेहद सिम्पल है।सिर्फ उसमें रिकवरी की समस्याओं को जोड़ देना ही पर्याप्त होता। लेकिन टीवी चैनलों की हेडलाइन निरंतर पेनिक क्रिएट करती रही हैं।मीडिया के उन्माद प्रचार के जरिए कोरोना के बारे में विज्ञानसम्मत राय के प्रचार पर कम ध्यान दिया गया।
कोरोना का सत्य वह है जो बीमारी या संक्रमण के रूप में है।दूसरा अघोषित सत्य यह है कि कोरोना के कारण विश्वव्यापी लॉकडाउन चल रहा है। इसके कारण बेकारी,दिवालियापन,भयानक गरीबी और अभाव पैदा हुआ है। इससे अमीरों और भ्रष्टनेताओं को लाभ हो रहा है। छोटे-मंझोले पूंजी के धंधे चौपट हो गए हैं।सिर्फ बड़ी पूंजी के धंधे बचे हैं।पूंजी का केन्द्रीकरण बढा है।यह एक तरह ने बायोलॉजिकल नयी विश्व व्यवस्था की शुरूआत है।इसने मानवीय अधिकारों, जीने अधिकारों और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को पूरी तरह तबाह कर दिया है।अनेक देशों में आपातकाल और मार्शल लॉ लागू किया जा चुका है।
असल में जब झूठ को सत्य में बदल दिया जाए तो आप पीछे सत्य की ओर नहीं लौट सकते। इसलिए कोरोना से लड़ने साथ झूठ से लड़ना सबसे बड़ी
चुनौती है। हर स्तर पर झूठ का खेल चल रहा है।
मानसिक स्वास्थ्य को गहराई से प्रभावित कर सकता है कोविड-19
इंसानी पहलू - श्यामल मजूमदार / April 12, 2020
ट्रंप प्रशासन ने कोरोना संक्रमण से पीड़ितों के लिए कोविद-19 इम्युनिटी सर्टीफिकेट प्रमाण पत्र जारी करने का प्रस्ताव जारी किया है। मसलन् जिनका कोरोना टेस्ट लिया गया और वे जब रिकवर कर लेते हैं तो उनको एक प्रमाणपत्र दिया जाता है कि वे स्वस्थ हैं उनके शरीर में कोरोना के कोई लक्षण अब नहीं हैं।जिससे वे नौकरी पर लौट सकें।यह प्रमाण पत्र अमेरिका का ‘‘नेशनल इंस्टूट्यूट ऑफ हेल्थ एंड फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन’’ जारी करेगा।
इस प्रमाणपत्र को लेकर अनेक सवाल उठ खड़े हुए हैं।यह प्रमाणपत्र सबको जरूरी होगा।इससे जनता की मुश्किलें बढ़ेंगी। इस तरह के प्रमाणपत्र को लेकर कोरोना के नेगेटिव और पॉजिटिव मरीजों की संख्या और उनके रजिस्ट्रेशन को लेकर विवाद होगा।उनकी सही संख्या को लेकर मेनीपुलेशन शुरू हो चुका है।कोरोना के टेस्ट को लेकर जो असल समस्या है वह यह कि इसके सही टेस्ट करने के लेकर गंभीर सवाल उठ खड़े हुए हैं।इसके टेस्ट के लिए पीड़ित मनुष्य के शरीर से छोटा सा टीशू का अंश लिया जाता है।उसको विश्लेषण के लिए विस्तारित करते हैं।लेकिन इस प्रक्रिया में यह बताना मुश्किल होता है कि यह वायरस शरीर में कहां कहां फैल गया है।इससे भी अधिक खतरनाक है जबरिया टॉक्सिंग वैक्सीनेशन और उसके बाद दिया जाने वाला प्रमाण पत्र।इस तरह का वैक्सीनेशन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।अनिवार्य वैक्सीनेशन और उसके जरिए कोरोना मुक्त प्रमाणपत्र मुश्किलभरा काम है। यह भी कहा जा रहा है कोरोना के टेस्ट के लिए जो किट इस्तेमाल हो रहे हैं वे अधिक भरोसेमंद नहीं हैं। अमेरिका में ये किट बेहतर प्रिफ़ॉर्म नहीं कर रहे।अभी तक विज्ञानसम्मत कोई टेस्ट कोरोना के लिए सामने नहीं आया है।अब कहा जा रहा है सब लोग टेस्ट कराओ और वैक्सीनेशन लो।सभी लोगों के लिए यह नियम खतरनाक है।
अब सारी दुनिया में कोरोना को लेकर वैक्सीनेशन कराने की मुहिम सामने आई है। इसकी क्रोनोलॉजी समझने की कोशिश करें-
कोविद-19 के लिए ‘‘कॉयलेशन फॉर प्रिपेयर्डनेस इन्नोवेसन( सीइपीआई) नामक संगठन का विश्व आर्थिक मंच डावोस, बिल एवं मेलिंडा गेटस फाउंडेशन के प्रायोजन में गठन किया गया है। इस क्रम देखें-
-- सन् 2019 में कोव वैक्सीन की डावोस आर्थिक मंच के सम्मेलन में घोषणा की जाती है।इसके एक सप्ताह बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन 30 जनवरी को विश्व स्वास्थ्य आपातकाल घोषित करता है। यह आपातकाल ऐसे समय घोषित किया जाता है जब चीन के बाहर कन्फर्म केस मात्र 150 थे, इनमें अमेरिका में 6 केस थे।इसके बाद 11 मार्च को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे महामारी घोषित कर दिया।सीइटल में मार्च 18 को पहला टेस्ट होता है जिसमें मानवीय स्वयंसेवक भी शिरकत करते हैं।सारी दुनिया में सीइपीआई के तहत प्राइवेट-पब्लिक पार्टनरशिप में वैक्सीनेशन की मुहिम चलाने की अपील की जाती है। यह संगठन इस मामले में अपना वर्चस्व बनाए रखना चाहता है,इस काम में ‘‘इननोविओ’’ और क्विंसलैंड विश्वविद्यालय आस्ट्रेलिया एक पार्टनरशिप पर साइन करते हैं। उल्लेखनीय है इन दोनों के बीच एक साझा समझौते के तहत पहले से काम चल रहा है।हमारे कुछ मित्र जो आस्ट्रेलिया भक्त हैं वे इस समझौते से अनभिज्ञ हैं और इसके पीछे कार्यरत राजनीतिक-आर्थिक शक्तियों की अनदेखी कर रहे हैं।इन्नोविओ और क्लींसलैंड विश्वविद्यालय के साझे काम को 23 जनवरी को सीइपीआई एक बयान जारी करके पुष्ट करती है।साथ ही कहती है कि उसने इस काम में मॉडर्ना और आईएनसी कंपनियों के साथ यूएस नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इंफेक्टीयस डिजीज को भी इस गठबंधन में शामिल किया है।इन सबके नेतृत्व में अमेरिका में फीयर और पेनिक अभियान चलाया गया है। यह कैम्पेन मौसमी फ्लू के खिलाफ चलाए गए प्रचार अभियान से दस गुना अधिक है।
जॉन हॉपकिंस इंस्टट्यूट के अनुसार यह एक तथ्य है कि कोरोना के इलाज का बेहद सिम्पल है।सिर्फ उसमें रिकवरी की समस्याओं को जोड़ देना ही पर्याप्त होता। लेकिन टीवी चैनलों की हेडलाइन निरंतर पेनिक क्रिएट करती रही हैं।मीडिया के उन्माद प्रचार के जरिए कोरोना के बारे में विज्ञानसम्मत राय के प्रचार पर कम ध्यान दिया गया।
कोरोना का सत्य वह है जो बीमारी या संक्रमण के रूप में है।दूसरा अघोषित सत्य यह है कि कोरोना के कारण विश्वव्यापी लॉकडाउन चल रहा है। इसके कारण बेकारी,दिवालियापन,भयानक गरीबी और अभाव पैदा हुआ है। इससे अमीरों और भ्रष्टनेताओं को लाभ हो रहा है। छोटे-मंझोले पूंजी के धंधे चौपट हो गए हैं।सिर्फ बड़ी पूंजी के धंधे बचे हैं।पूंजी का केन्द्रीकरण बढा है।यह एक तरह ने बायोलॉजिकल नयी विश्व व्यवस्था की शुरूआत है।इसने मानवीय अधिकारों, जीने अधिकारों और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को पूरी तरह तबाह कर दिया है।अनेक देशों में आपातकाल और मार्शल लॉ लागू किया जा चुका है।
असल में जब झूठ को सत्य में बदल दिया जाए तो आप पीछे सत्य की ओर नहीं लौट सकते। इसलिए कोरोना से लड़ने साथ झूठ से लड़ना सबसे बड़ी
चुनौती है। हर स्तर पर झूठ का खेल चल रहा है।
मानसिक स्वास्थ्य को गहराई से प्रभावित कर सकता है कोविड-19
इंसानी पहलू - श्यामल मजूमदार / April 12, 2020
कई लोगों के लिए यह एक अनजानी अनिश्चितता का डर है कि उन्हें कितने दिन तक अपने रोजमर्रा के कामकाज को स्थगित रखना पड़ेगा। कई अन्य को आशंका है कि कहीं वे कोरोनावायरस के संपर्क में न आ जाएं या फिर कहीं यह उनकी वित्तीय हालत को नुकसान न पहुंचाए। परंतु बात केवल इतनी नहीं है। बहुत बड़ी तादाद ऐसे लोगों की भी है जिनको आशंका है कि उनका रोजगार छिन सकता है। इसके बाद एक बड़ी चिंता यह है कि लोगों के वेतन में कटौती हो सकती है।
दुनिया कोविड-19 महामारी से जूझ रही है। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि कोविड-19 संकट ने आर्थिक और वित्तीय अस्थिरता का एक मिश्रण तैयार किया। इसमें दो राय नहीं कि मौजूदा आशंकाएं सच हैं। लोगों के सामान्य जीवन में भारी उथलपुथल उत्पन्न हो गई है। जाहिर है इसका असर लोगों के भावनात्मक स्वास्थ्य पर भी पड़ेगा। उदाहरण के लिए लॉकडाउन के शुरुआती दिनों में लोगों ने घबराहट में किराने की जमकर खरीदारी कर ली। यह इस बात का उदाहरण है कि कैसे अस्थिरता और अनिश्चितता की आशंका में लोग अजीबोगरीब व्यवहार करने लगते हैं। हकीकत में संक्रमित होने का खतरा कई लोगों में ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर की आशंका पैदा कर चुका है।
सबसे बड़ी आशंका यह है कि यह महामारी लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर डाल सकती है। यह कई तरीके से हो सकता है। उदाहरण के लिए घर से काम करना जो शुरुआती दिनों में वरदान प्रतीत हो रहा था वह धीरे-धीरे अरुचिकर प्रतीत होने लगा है। एक आशंका तो यह है कि लगने लगेगा कोई काम है ही नहीं। वहीं दूसरी ओर लोगों में ज्यादा काम करने की प्रवृत्ति पैदा होने लगी है। उन्हें लगने लगा है कि उन्हें लंबे समय तक काम करना चाहिए ताकि वे अपने सहकर्मियों और बॉस को दिखा सकें कि वे काम करते समय दूसरों की तुलना में अधिक उत्पादक रह सकते हैं। जब लोग घर से काम करते हैं और समय पर कोई फोन नहीं उठा पाते या ईमेल का जवाब नहीं दे पाते तो सहकर्मियों को ऐसा लग सकता है कि वे काम को गंभीरता से ले भी रहे हैं या नहीं। आम जीवन में तनाव सामान्य बात है। परंतु एक बात जिसने जाने-अनजाने लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर असर डालना शुरू कर दिया है वह यह है कि वैश्विक स्वास्थ्य, आर्थिक और सामाजिक विसंगतियों में नोवेल कोरोनावायरस ने लाखों लोगों को भौतिक रूप से शेष दुनिया से अलग-थलग कर दिया है। भविष्य के अज्ञात भय के साथ मिलकर यह बहुत बड़ी समस्या खड़ी कर सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अधिकारी के मुताबिक शारीरिक दूरी, पृथक्करण के उपाय, स्कूलों और कार्यालयों का बंद होना आदि कदम खासतौर पर चुनौती भरे हैं। क्योंकि ये कदम उन कामों को प्रभावित करते हैं जो हमें पसंद हैं, हमारे साथियों को हमसे दूर करते हैं।
अकेलापन दुनिया के सबसे महत्त्वपूर्ण जोखिमों में से एक है। अब जबकि अनेक लोगों की आजादी से घूमने फिरने की गतिविधियों पर अंकुश लग गया है तो समस्या और बिगड़ गई है। खासतौर पर बुजुर्गों के लिए जिनका सामाजिक जीवन भी सीमित है। यहां डिजिटल युग हमारी सहायता कर सकता है। आखिरकार इससे पहले कभी अपने प्रिय लोगों से जुड़ा रहना इतना आसान नहीं रहा। कम से कम वीडियो कॉल के माध्यम से करीब होने का भ्रम तो होता है। ऐसा लगता है कि हम जिनसे बात कर रहे हैं वे हमारे आसपास हैं।
इस पृथक्करण का लाभ लेने का एक तरीका यह है कि हम उन चीजों की प्राथमिकता तय कर सकते हैं जो हमें पसंद हैं लेकिन जिनके लिए हम अब तक समय नहीं निकाल पा रहे थे। इस एकाकीपन को दूर करने के लिए लोगों को अपने जीवन के उन पहलुओं पर विचार करना चाहिए जिन पर वे अब तक ध्यान नहीं दे पाए थे।
मनोवैज्ञानिक जो सलाह दे रहे हैं उनमें से एक यह है कि कोविड-19 के बारे में कम से कम खबरें देखें, सुनें या पढ़ें क्योंकि वे हमें निराश करती हैं। बस दिन में एक या दो बार इसके बारे में जानकारी जुटाएं। अचानक इस बीमारी के बारे में खबरों की बाढ़ किसी को भी चिंतित कर सकती हैं।
इस समय बच्चों पर ध्यान देना अत्यावश्यक है। बच्चे संवेदनशील हैं और जब वे बड़ों को निराशाजनक ढंग से वायरस के बारे में बात करते देखते हैं तो वे परेशान हो जाते हैं। इसका आगे चलकर उनके मनोविज्ञान पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।
अंत में, अब जबकि कोविड-19 के बाद छंटनी और वेतन कटौती अपरिहार्य है तो ऐसे में कंपनियों को ज्यादा सावधानी बरतनी होगी ताकि वे इससे उपजे तनाव से निपट सकें। इससे निपटने के तरीके को जितना पारदर्शी रखा जाए उतना ही अच्छा। हर कोई इसकी वजह से परिचित है लेकिन सभी चाहते हैं कि उनके साथ सम्मान से और समानुभूति से पेश आया जाए। संस्थान से बाहर जा रहे लोगों के साथ आप जिस तरह का व्यवहार करते हैं, उसे संस्थान के बाकी लोग बहुत गौर से देखते हैं।
कहने का तात्पर्य यह है कि कोरोनावायरस की महामारी से लडऩा और निपटना केवल शारीरिक या स्वास्थ्यगत चुनौती नहीं है बल्कि यह मनोवैज्ञानिक चुनौती भी है।(बिजनेस स्टैंडर्ड)
मजदूर और मालिकों का संकट गहराया-
पहले चरण में तीन हफ्ते के लॉकडाउन की घोषणा की गई थी उसके दो दिन पहले ही 23 मार्च को राष्टï्रीय राजमार्ग पर बेलगाचिया से हावड़ा के बीच लगभग लगभग 200 फैक्टरियां शाम 5 बजे बंद हो गईं। बनारस रोड के साथ लगे छोटे और मझोले कारखानों में कमोबेश देश के दूसरे हिस्से जैसा ही नजारा है। यहां सुरक्षा गार्ड और कतार में खड़े ट्रक नजर आते हैं और यहां से नजदीक रहने वाले कामगार गलियों में बैठे सुस्ता रहे हैं।
एक कलपुर्जे कारखाने में काम करने वाले कर्मचारी जलधर सिंह को लॉकडाउन से पहले के सप्ताहांत में वेतन मिला था। यहां करीब 200-250 लोगों को रोजगार मिला हुआ है लेकिन सवाल यह है कि क्या लॉकडाउन की अवधि के लिए पैसा मिलेगा? यह सवाल सिंह के मन में भी बना हुआ है। एक निर्माण इकाई में ठेके पर काम करने वाले कर्मचारी दीपक मंडल की तुलना में सिंह काफी बेहतर हैं जहां साप्ताहिक आधार पर भुगतान किया जाता है। यह पैसा उसके बैंक खाते में जमा हो गया। मंडल को लॉकडाउन के बाद पहले हफ्ते का भुगतान मिला लेकिन उसके बाद से वह अपने फोन पर भुगतान के लिए बैंक का एसएमएस अलर्ट चेक कर रहे हैं लेकिन कोई संदेश नहीं मिला है।
हावड़ा कास्टिंग, मशीन पाट्र्स असेंबल्ड पाट्र्स का केंद्र है और यह देश के साथ दुनिया की जरूरतें पूरी करता है। एक सामान्य गणना के मुताबिक इस क्षेत्र में 400-500 इकाइयों द्वारा 3,000 से 3,500 करोड़ रुपये का वार्षिक निर्यात किया जाएगा। सिंह और मंडल कारोबारी पदानुक्रम में सबसे नीचे हैं लेकिन हावड़ा में लॉकडाउन से फैक्टरी मालिकों को काफी नुकसान हो रहा है। निर्यात ऑर्डर नहीं मिल रहे हैं जिसकी वजह से इन इकाइयों को भारी नुकसान हुआ है।
कैलाश अग्रवाल की कंपनी जेपीके मेटालिक्स मैनहोल कवर बनाती है जिसकी आपूर्ति पश्चिम एशिया, यूरोप और आयरलैंड में की जाती है। अग्रवाल के पास पूरा माल भरा हुआ है और उन्हें डर है कि जब तक लॉकडाउन खत्म होगा तब तक निर्यात के ऑर्डर रद्द कर दिए जाएंगे। उन्हें एक महीने में 15 लाख रुपये का नुकसान हुआ है। जेपीके में करीब 150 अनुबंध वाले संविदा कर्मचारी हैं। ठेकेदार को कर्मचारियों को भुगतान करने के लिए एकमुश्त राशि का भुगतान किया गया है। उन्होंने कहा, 'इसमें उनकी कोई गलती नहीं है।'
भारतीय इंजीनियरिंग निर्यात संवर्धन परिषद के चेयरमैन रवि सहगल ने कहा कि अगर 15 अप्रैल के बाद भी फैक्टरियों में काम शुरू नहीं हुआ तब बड़ी तादाद में निर्यात ऑर्डर रद्द किए जा सकते हैं। सहगल ने कहा, 'चीन, ब्राजील, तुर्की और मैक्सिको ऐसे देश हैं जहां कारोबार प्रभावित नहीं होता। अमेरिका में भी जहां देश में लॉकडाउन है लेकिन उद्योगों में काम चल रहा है। पश्चिम बंगाल निर्यात के लिए विनिर्माण इकाइयों, विशेष रूप से इंजीनियरिंग क्षेत्र में 50 फीसदी उपस्थिति के साथ परिचालन फिर से शुरू करने की अनुमति देकर अगुआई कर सकता है । हावड़ा परीक्षण का केंद्र बन सकता है।'
सहगल ने कहा कि अगर देश का इंजीनियरिंग क्षेत्र जरूरतों को पूरा करने में असफल रहता है तब आपूर्ति ऑर्डर दूसरे देशों को किया जा सकता है। अप्रैल ऐसा समय है जब ज्यादातर खरीदार छह महीने की खरीदारी की योजना बनाते हैं।
फैब्रिकेशन यूनिट दयाल इंजीनियर्स के मालिक एच के शर्मा को उम्मीद नहीं है कि लॉकडाउन हटाए जाने के बाद कारोबार तुरंत सामान्य हो जाएगा। उन्होंने कहा, 'अगले दो से चार महीने काफी उथल-पुथल वाले रहेंगे। यह एक लेन-देन पर आधारित उद्योग है। जब तक पैसा वापस नहीं आ जाता तक तक चीजें आसान नहीं होंगी।' शर्मा दरअसल नकदी प्रवाह का जिक्र कर रहे हैं। दयाल इंजीनियर्स फाउंड्री (ढलाईखाना) के लिए स्पेयर पाट्र्स बनाते हैं जो इस वक्त संकट में हैं। जब तक कोई फाउंड्री भुगतान नहीं करता तब तक दयाल उन वेंडरों को भुगतान नहीं कर सकते हैं जो इलेक्ट्रोड और ऑक्सीजन की आपूर्ति करते हैं। यह एक ऐसा चक्र है जिसे चलते रहने की जरूरत है ।
शर्मा को अब भी अपने मजदूरों का भुगतान करना है। उन्होंने पहले ही खुराकी या दैनिक भत्ता सीधे अपने मजदूरों के खातों में ट्रांसफर किया है। लेकिन जब कारखाने खुलेंगे तब उन्हें उनकी मांग भी पूरी करनी होगी। उन्होंने कहा, 'मुझे पैसे की व्यवस्था करनी होगी नहीं तो वे दूसरी जगह काम करने चले जाएंगे।'
हावड़ा चैंबर ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री (एचसीसीआई) के महासचिव संतोष उपाध्याय ने कहा कि अगर सरकार मदद नहीं करती है तब हावड़ा में ज्यादातर खाते फंसे कर्ज में बदल जाएंगे। एचसीसीआई 1,000 से अधिक कारोबारियों और एमएसएमई सदस्यों का प्रतिनिधित्व करता है और इसने पहले से ही प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर राहत देने की गुहार लगाई है।
मांगी गई राहतों में जीएसटी के देर से दाखिल होने पर ब्याज और दंडशुल्क से छूट देने, पूरे लॉकडाउन अवधि के दौरान दीर्घावधि ऋण और कार्यशील पूंजी ऋण पर बैंकों से ब्याज की कुल छूट जैसी मांग शामिल है। चैंबर चाहता है कि ब्याज दर छह महीने के लिए न्यूनतम छह प्रतिशत तक सीमित रहे और रेलवे बोर्ड तथा सरकारी क्षेत्र के तहत चल रहे संयंत्रों को सुझाव दिया जाए कि मार्च में खरीदे गए सामान पर देर से भुगतान के लिए ब्याज न वसूला जाए।
पिछले 5-6 साल में कामगारों और नकदी की कमी के चलते कम से कम 200 इकाइयां बंद कर दी गईं। हालांकि यहां अब भी लोहा और स्टील इकाइयों में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से करीब दो लाख कामगार जुड़े हुए हैं।(बिजनेस स्टैंडर्ड,15अप्रैल2020)
छिपाने और छल की कला और कोविद-19
इस समय एक लाख बीस हजार के करीब डोमेन हैं। इनसे आम लोग कोरोना संबंधी सूचनाओं के लिए आ-जा रहे हैं। इनमें अनेक पोर्टेल के मालिक ठगई कर रहे हैं, छल कर रहे हैं।अनेक किस्म के घोटाले हो रहे हैं।मसलन्, मास्क,कर्ज,बेकारी,वेक्सीन,क्योर आदि को लेकर जबर्दस्त धंधा चल रहा है।अनेक कंपनियों ने तो कुछ खास पदबंधों की खोज के जरिए उनके पोर्टेल में प्रवेश करने वालों पर पाबंदी लगा दी है।इसके बावजूद सोशलमीडिया में मिस-इन्फॉरेमेशन का प्रवाह जारी है।सारी कंपनियां जानती हैं लेकिन अभी तक मिस इन्फॉर्मेशन का प्रवाह रोकने में वे असमर्थ रहे हैं।
उल्लेखनीय है फेसबक,गूगल,यू ट्यूब,माइक्रोसॉफ्ट, ट्विटर आदि कंपनियों ने मार्च के मध्य में एक साझा बयान जारी किया था जिसमें कोविद-19 से संघर्ष करने वायदा किया गया।यह एक चलताऊ किस्म का साझा बयान था जो इन कंपनियों ने दिया था। इस बयान में मिस इन्फॉर्मेशन से लड़ने और प्रामाणिक सूचनाएं देने का वायदा किया गया था।लेकिन अभी तक ये कंपनियां अपने इस वायदे का पालन नहीं कर पायी हैं।बल्कि इस बीच में उलटा हुआ है।कोरोना से लड़ने के नाम पर अंट-शंट दवाओं के नाम विभिन्न तथाकथित शोधपत्रों में गूगल में प्रकाशित हो रहे हैं। एक ही उदाहरण काफी होगा।
इंटरनेट पर विशेषज्ञों के एकदल ने ‘‘कोरोना वायरस क्योर’’ के तहत गूगल पर सर्च किया तो पाया कि वहां अनेक तथाकथित शोधपत्र भ्रमण कर रहे हैं लोग बड़ी संख्या में पढ़ रहे हैं और उनकी गलत-सलत सूचनाओं का दुरूपयोग कर रहे हैं। ये पत्र ट्विटर पर भी सर्कुलेट किये जा रहे हैं। इसी तरह का एक शोधपत्र तकनीकी व्यवसायी एलॉन मास्क ने गूगल डॉकूमेंटस में साझा किया । कहा गया यह वैज्ञानिक रिसर्च पेपर है।इसे स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय के कैलीफॉर्निया स्थित स्कूल ऑफ मेडीसिन में कार्यरत वैज्ञानिक सलाहकार ने तैयार किया है। इस पेपर के इंटरनेट पर प्रकाशित होते ही दूसरे ही दिन फॉक्स टीवी चैनल ने इस पेपर के आधार फीचर बनाया और कहा कि कोरोना से बचने की दवा है ‘‘हाइड्रोक्सीक्लोरो क्वीन’’। इस दवा से कोरोना 100फीसदी खत्म हो जाएगा।इसी तरह फ्रांस से एक लघु शोधपत्र सामने या जिसमें दावा किया गया कि ‘‘क्वीनाइन’’ और ‘‘ टॉनिक वाटर’’ और ‘‘मलेरिया ड्रग’’को इंटरनेट पर खोजने वालों की बाढ़ आ गयी।देखते ही देखते बाजार में ये दवाएं और प्रोडक्ट हाथों हाथ बिक गए। इसका अर्थ है इंटरनेट पर जो लिखा जा रहा है उसे जनता पढ़ रही है।सुन रही है।
फॉक्स टीवी चैनल से कार्यक्रम आने के बाद स्टैंनफोर्ड विश्वविद्यालय ने बयान देकर कहा कि फॉक्स ने जिस व्यक्ति को हमसे जोड़कर पेश किया है उसका हमसे कोई संबंध नहीं है और वह व्यक्ति उनके विश्वविद्यालय के किसी रिसर्च कार्यक्रम में शामिल नहीं रहा है।इस घटना के बाद ट्विटर पर भयानक तूफान आ गया,बड़ी संख्या में डाक्टरों और वैज्ञानिकों ने इस तरह के डिस इनफॉर्मेशन कैम्पेन की आलोचना की।लोगों ने यहां तक लिखा कि इस दवा की अचानक कमी हो गयी और इस दवा को डाक्टर की सलाह के बिना लेने से यह शरीर को नुकसान पहुँचा सकती है।इस तूफान के बाद ट्विटर ने निर्णय लिया और ‘‘हाइड्रोक्सीक्लोरो क्वीन’’ दवा से संबंधित सैंकड़ों ट्विट हटा दिए। ये सारे ट्विट दक्षिणपंथियों के थे। वे लोग मिस इनफॉर्मेशन फैलाकर जश्न मना रहे थे। जो जश्न मना रहे थे उनमें फॉक्स चैनल की हॉस्ट लोरा इनग्राहम,डोनाल्ड ट्रंप के एटॉर्नी रूड़ी गुईलियानी और कंजरवेटिव पंडित चार्ली के नाम खासतौर पर उल्लेखनीय हैं। इसके बाद ट्रंप ने इस दवा को लेकर जमकर उत्साह दिखाया.इससे बाजार में केमिस्टों से लेकर पीएम मोदी तक इसका दवाब देखा गया।इससे एक बात पता चलती है कि विज्ञान के बारे में मिस इनफॉर्मेशन फैलाया जाए तो उससे कितने व्यापक स्तर पर नुकसान हो सकता है।इस घटना ने वैज्ञानिकों पर भी दवाब बनाया कि वे कोरोना के लिए दवा न बनाएं।इस तरह के माहौल से राजनेताओं का कोई खास नुकसान नहीं हुआ लेकिन आम जनता और विज्ञान की क्षति जरूर हुई है।
किसी भी खुले और स्वतंत्र समाज पर थोपे गए देश,जनता के दिमाग का मेनीपुलेशऩ और अग्राह्य को ग्राह्य कराने की प्रवृत्ति बेहद खतरनाक है। कोरोना के महासंकट काल में यही सब हो रहा है।बड़े पैमाने पर कोरोना की सच्चाई छिपायी जा रही है।मरीजों की संख्या,नामकरण,मृत्यु,बड़े स्केल पर जनता की निगरानी,असहमति व्यक्त करने पर हमले या पाबंदी,जबरिया कोरेंटाइन या फिर वैक्सीन लगाने की कोशिश आदि चीजें सामने आ रही हैं।यह एक तरह से जनता के नॉर्मल जीवन को नियंत्रित करने की कोशिश है।इस दौर में
उल्लेखनीय है फेसबक,गूगल,यू ट्यूब,माइक्रोसॉफ्ट, ट्विटर आदि कंपनियों ने मार्च के मध्य में एक साझा बयान जारी किया था जिसमें कोविद-19 से संघर्ष करने वायदा किया गया।यह एक चलताऊ किस्म का साझा बयान था जो इन कंपनियों ने दिया था। इस बयान में मिस इन्फॉर्मेशन से लड़ने और प्रामाणिक सूचनाएं देने का वायदा किया गया था।लेकिन अभी तक ये कंपनियां अपने इस वायदे का पालन नहीं कर पायी हैं।बल्कि इस बीच में उलटा हुआ है।कोरोना से लड़ने के नाम पर अंट-शंट दवाओं के नाम विभिन्न तथाकथित शोधपत्रों में गूगल में प्रकाशित हो रहे हैं। एक ही उदाहरण काफी होगा।
इंटरनेट पर विशेषज्ञों के एकदल ने ‘‘कोरोना वायरस क्योर’’ के तहत गूगल पर सर्च किया तो पाया कि वहां अनेक तथाकथित शोधपत्र भ्रमण कर रहे हैं लोग बड़ी संख्या में पढ़ रहे हैं और उनकी गलत-सलत सूचनाओं का दुरूपयोग कर रहे हैं। ये पत्र ट्विटर पर भी सर्कुलेट किये जा रहे हैं। इसी तरह का एक शोधपत्र तकनीकी व्यवसायी एलॉन मास्क ने गूगल डॉकूमेंटस में साझा किया । कहा गया यह वैज्ञानिक रिसर्च पेपर है।इसे स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय के कैलीफॉर्निया स्थित स्कूल ऑफ मेडीसिन में कार्यरत वैज्ञानिक सलाहकार ने तैयार किया है। इस पेपर के इंटरनेट पर प्रकाशित होते ही दूसरे ही दिन फॉक्स टीवी चैनल ने इस पेपर के आधार फीचर बनाया और कहा कि कोरोना से बचने की दवा है ‘‘हाइड्रोक्सीक्लोरो क्वीन’’। इस दवा से कोरोना 100फीसदी खत्म हो जाएगा।इसी तरह फ्रांस से एक लघु शोधपत्र सामने या जिसमें दावा किया गया कि ‘‘क्वीनाइन’’ और ‘‘ टॉनिक वाटर’’ और ‘‘मलेरिया ड्रग’’को इंटरनेट पर खोजने वालों की बाढ़ आ गयी।देखते ही देखते बाजार में ये दवाएं और प्रोडक्ट हाथों हाथ बिक गए। इसका अर्थ है इंटरनेट पर जो लिखा जा रहा है उसे जनता पढ़ रही है।सुन रही है।
फॉक्स टीवी चैनल से कार्यक्रम आने के बाद स्टैंनफोर्ड विश्वविद्यालय ने बयान देकर कहा कि फॉक्स ने जिस व्यक्ति को हमसे जोड़कर पेश किया है उसका हमसे कोई संबंध नहीं है और वह व्यक्ति उनके विश्वविद्यालय के किसी रिसर्च कार्यक्रम में शामिल नहीं रहा है।इस घटना के बाद ट्विटर पर भयानक तूफान आ गया,बड़ी संख्या में डाक्टरों और वैज्ञानिकों ने इस तरह के डिस इनफॉर्मेशन कैम्पेन की आलोचना की।लोगों ने यहां तक लिखा कि इस दवा की अचानक कमी हो गयी और इस दवा को डाक्टर की सलाह के बिना लेने से यह शरीर को नुकसान पहुँचा सकती है।इस तूफान के बाद ट्विटर ने निर्णय लिया और ‘‘हाइड्रोक्सीक्लोरो क्वीन’’ दवा से संबंधित सैंकड़ों ट्विट हटा दिए। ये सारे ट्विट दक्षिणपंथियों के थे। वे लोग मिस इनफॉर्मेशन फैलाकर जश्न मना रहे थे। जो जश्न मना रहे थे उनमें फॉक्स चैनल की हॉस्ट लोरा इनग्राहम,डोनाल्ड ट्रंप के एटॉर्नी रूड़ी गुईलियानी और कंजरवेटिव पंडित चार्ली के नाम खासतौर पर उल्लेखनीय हैं। इसके बाद ट्रंप ने इस दवा को लेकर जमकर उत्साह दिखाया.इससे बाजार में केमिस्टों से लेकर पीएम मोदी तक इसका दवाब देखा गया।इससे एक बात पता चलती है कि विज्ञान के बारे में मिस इनफॉर्मेशन फैलाया जाए तो उससे कितने व्यापक स्तर पर नुकसान हो सकता है।इस घटना ने वैज्ञानिकों पर भी दवाब बनाया कि वे कोरोना के लिए दवा न बनाएं।इस तरह के माहौल से राजनेताओं का कोई खास नुकसान नहीं हुआ लेकिन आम जनता और विज्ञान की क्षति जरूर हुई है।
किसी भी खुले और स्वतंत्र समाज पर थोपे गए देश,जनता के दिमाग का मेनीपुलेशऩ और अग्राह्य को ग्राह्य कराने की प्रवृत्ति बेहद खतरनाक है। कोरोना के महासंकट काल में यही सब हो रहा है।बड़े पैमाने पर कोरोना की सच्चाई छिपायी जा रही है।मरीजों की संख्या,नामकरण,मृत्यु,बड़े स्केल पर जनता की निगरानी,असहमति व्यक्त करने पर हमले या पाबंदी,जबरिया कोरेंटाइन या फिर वैक्सीन लगाने की कोशिश आदि चीजें सामने आ रही हैं।यह एक तरह से जनता के नॉर्मल जीवन को नियंत्रित करने की कोशिश है।इस दौर में
कोरोना त्रासदी-2-
पुलिस के मुताबिक 30 वर्षीय मुकेश बिहार के गया जिले के बारा गांव का रहने वाला था। गुरूग्राम सेक्टर-53 में बनी झुग्गियों में परिवार के साथ रहता था। वह सफेदी का काम करता था। मृतक की पत्नी पूनम ने बताया काम नहीं होने के कारण उनके पास रुपये नहीं थे। इसी कारण वह कारण काफी परेशान रहता था।
फोन बेचकर लाया था राशन
पूनम ने बताया कि गुरुवार को मुकेश में ढाई हजार में अपना फोन बेचा था। उन रुपये से वह खाने की आटा, दाल सहित राशन लेकर आया था। इसके अलावा गर्मी से बचने के लिए पंखा भी लेकर आया। 400 रुपये पत्नी को दिए थे। उसके बाद वह झुग्गी में जाकर लेट गया। उसके दो लड़के और दो लड़कियां बाहर खेल रही थीं, जबकि पत्नी पूनम पास में ही रहने वाले पिता के पास गई थी। ऐसे में गुरुवार दोपहर को झुग्गी में फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली।
पूनम ने बताया कि गुरुवार को मुकेश में ढाई हजार में अपना फोन बेचा था। उन रुपये से वह खाने की आटा, दाल सहित राशन लेकर आया था। इसके अलावा गर्मी से बचने के लिए पंखा भी लेकर आया। 400 रुपये पत्नी को दिए थे। उसके बाद वह झुग्गी में जाकर लेट गया। उसके दो लड़के और दो लड़कियां बाहर खेल रही थीं, जबकि पत्नी पूनम पास में ही रहने वाले पिता के पास गई थी। ऐसे में गुरुवार दोपहर को झुग्गी में फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली।
रुपये जुटाकर दाह संस्कार
मुकेश ससुर उमेश का पैर टूटा हुआ है। वह चल फिर नहीं पा रहा है। उन्होंने बताया कि मुकेश कई दुकानों से राशन का सामान उधार लेकर आता था और रुपये आने पर चुकाता था। अब दुकानदार भी उधार सामान नहीं दे रहा था। परिवार आर्थिक तंगी से गुजर रहा था। उन्होंने बताया दाह संस्कार के लिए भी रुपये नहीं थे। झुग्गियों मे रहने वालों ने रुपये एकत्रित किए और उसके बाद दाह संस्कार किया।(दैनिक हिन्दुस्तान)
मुकेश ससुर उमेश का पैर टूटा हुआ है। वह चल फिर नहीं पा रहा है। उन्होंने बताया कि मुकेश कई दुकानों से राशन का सामान उधार लेकर आता था और रुपये आने पर चुकाता था। अब दुकानदार भी उधार सामान नहीं दे रहा था। परिवार आर्थिक तंगी से गुजर रहा था। उन्होंने बताया दाह संस्कार के लिए भी रुपये नहीं थे। झुग्गियों मे रहने वालों ने रुपये एकत्रित किए और उसके बाद दाह संस्कार किया।(दैनिक हिन्दुस्तान)
कोरोना त्रासदी-1-
शुक्रवार को सालारपुर ब्लाक के गांव मोहदीन नगर की राशन गांव निवासी शमीम बानो (40 वर्ष) पत्नी मैकू अली एक किलोमीटर चलकर प्रहलादपुर में राशन की दुकान पर चावल लेने पहुंची थी। तीन घंटे तक शमीम धूप में लाइन में लगे रहने के कारण बेहोश होकर गिर पड़ी। सूचना पर पहुंचे परिजन उसे लेकर कुंवरगांव पहुंचे। यहां डाक्टर ने महिला को बदायूं रेफर कर दिया लेकिन रास्ते में ही उसने दम तोड़ दिया।
ये है मोदी सरकार के मजदूर विरोधी चरित्र की आने वाली झलक
रेल मंत्रालय लॉकडाउन के चलते होने वाले घाटे को पाटने के लिए 13 लाख से अधिक अधिकारियों व कर्मचारियों के वेतन और भत्ते पर कैंची चलाने की योजना बना रहा है। इसके तहत टीए, डीए सहित ओवर टाइम ड्यूटी के भत्तों को समाप्त किया जाएगा।
रेल ड्राइवर-गार्ड को ट्रेन चलाने पर प्रति किलोमीटर के हिसाब से मिलने वाला भत्ता भी नहीं दिया जाएगा। रेलवे का तर्क है कि ड्यूटी करने के लिए कर्मचारियों को भत्ता क्यों दिया जाए। रेलवे पहले ही गंभीर आर्थिक तंगी से गुजर रही है। लॉकडाउन से हालत ओर पतली हो गई है। इसे देखते हुए ओवर टाइम ड्यूटी के लिए मिलने वाले भत्ते में 50% कटौती करने की जरूरत है।
35 फीसदी तक वेतन कम: मेल-एक्सप्रेस के ड्राइवर-गार्ड को 500 किलामीटर पर मिलने वाले 530 रुपये भत्ते में 50% कमी का सुझाव है। रेलकर्मियों के वेतन में छह माह तक कैंची चलाने की सिफारिश की गई है। इसमें 10 फीसदी से 35 फीसदी तक की कटौती की जाएगी।
50% की कटौती संभव: यात्रा, मरीज देखभाल, किलोमीटर समेत नॉन प्रैक्ट्रिस भत्ता में एक वर्ष तक 50% कटौती होनी चाहिए। कर्मचारी एक महीने ऑफिस नहीं आता है तो परिवहन भत्ता सौ फीसदी कटे। बच्चों के पढ़ाई भत्ता के लिए 28 हजार मिलते हैं। इसकी समीक्षा होगी।(दैनिक हिन्दुस्तान)
कोरोना का प्रत्युत्तर.....गोलेन्द्र पटेल!
50% की कटौती संभव: यात्रा, मरीज देखभाल, किलोमीटर समेत नॉन प्रैक्ट्रिस भत्ता में एक वर्ष तक 50% कटौती होनी चाहिए। कर्मचारी एक महीने ऑफिस नहीं आता है तो परिवहन भत्ता सौ फीसदी कटे। बच्चों के पढ़ाई भत्ता के लिए 28 हजार मिलते हैं। इसकी समीक्षा होगी।(दैनिक हिन्दुस्तान)
कोरोना का प्रत्युत्तर.....गोलेन्द्र पटेल!
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