किन्नर पर केंद्रित आठ कविताएँ : गोलेन्द्र पटेल
कविता में किन्नर
प्रिय दोस्त!
न स्त्री
न पुरुष
न ही अर्द्धनारीश्वर हो तुम
तुम कविता में किन्नर हो
यानी थर्ड जेंडर
___ ट्रांसजेंडर
लफ़ंगों की भाषा में हिजड़ा
तुम्हारा गात
गोया गम का पिंजड़ा
पर तुम मुझे पसंद हो!...
इस सृष्टि में
तुम्हारी ताली
कुदृष्टि के लिए
गाली है
तुम भी उसी कोख से उत्पन्न हुए हो
जिससे मैं
तुम देश की संतान हो
मेरे दोस्त!
रचना : 20-12-2022
2).ट्रांसजेंडर संतान का दुःख!
क्या कोई रोक पाया है कभी
आँखों से पकी पीड़ा का टपकना
माथे पर श्रम की बूँद का अंकुरित होना
देह में दर्द का खिलना
फिर कैसे रोक पायेगा
कभी कोई
ट्रांसजेंडर संतान का दुःख!
सुख में
पत्थर पर उग जाती है प्रसन्नता
जैसे
रेत में रोती हुई दूब ;
जहाँ मर्द और औरत के बीच
नदी
किन्नर का संचित
आँसू है
जो अपने आप में धाँसू है!
रचना : 21-12-2022
3).
किन्नर-कथा
अस्तित्व की तलाश में शिखंडी
अपनी आत्मा को तब तक तपाया
जब तक कि भीष्म
शरशय्या पर सो नहीं गये
मगर याद रहे
साधना के समय स्त्री रूप में था वह
तप के बाद हुआ पुरुष
उसने अर्द्धनारीश्वर रूप की नहीं
शंकर की तपस्या की
तुम भी कर रहे हो, दोस्त!
लेकिन तुम किन्नर हो
काश कि तुम्हारी प्रार्थना भी
सुनते शिव!
तुम्हारी व्यथा की कथा
शायद नंदी के कानों में कहने से
शीघ्र सुन लें वे!
तुम जब भी ट्रेनों में या चौराहों पर
या किसी के द्वार पर
तालियाँ बजाते हुए
दिखते हो
तुम्हारे होंठों पर होते हैं
सोहर
मंगल गीत
शुभकामना के स्वर
जबकि तुम भीतर से बहुत दुखी होते हो
और बाहर से बहुत प्रसन्न
तुम अपने चेहरे पर इतनी प्राकृतिक प्रसन्नता
कैसे उगा लेते हो?
क्या है इसका राज़?
आज
मेरी कलम निस्तब्ध पड़ी है
मन के द्वार पर
एक ट्रांसजेंडर मित्र की स्मृति खड़ी है
जो इस करुणामयी कविता में
किन्नर-कथा को इन्नर की तरह
परोस चुकी है!
रचना : 21-12-2022
4).
हिजड़ों की फ़ौज़
बचपन से
सुनता आ रहा हूँ मैं
कि हिजड़ों की फ़ौज़ से
जंग
जीती नहीं जाती है
जंग जीती जाती है
हौसलों से!
रचना : 21-12-2022
5).
किन्नर
कंठ से नहीं, कोख से फूटे
शब्द ने पूछा
कि
इस धरती पर
उसकी जगह कहाँ है?
जो फूल
क्लीव है
वसंत का मौसम है
मगर रंगों का आयतन कम हो गया है
गंध गायब हो गयी है
भाषा से
हवा में केवल
किन्नर, मौगा, हिजड़ा, छक्का, थर्ड जेंडर
___ ट्रांसजेंडर जैसे दर्दनाक
संबोधन हैं
ये कैसे उपवन हैं?
जहाँ सुनने वाला न पुरुष है
न स्त्री है
इन दोनों से भिन्न है!
रचना : 22-12-2022
6).
किन्नर पर कविता
संसद की सड़क पर
माँसपेशियों की मीठी महक ने कहा
कि वे न नारी हैं न नर!
उधर
एक कोई स्वर स्वयं को गाता आ रहा है
कोई समय सुनता जा रहा है उनको
कोई गमी उनकी गज़ल बन रही है
लेकिन उनकी लयबद्ध तालियाँ
मंगल के गीत हैं
उनके आँसू की आवाज़
सरसराहट में स्वप्न के संगीत हैं
वे सदियों से गाए जा रहे हैं
अपनी मानवीय स्मृति
इस धरती के लिए!
इधर
मैंने ट्रांसजेंडर साथियों से बातचीत करते हुए
महसूस किया है कि
लंबी हिचकियों के बीच
हृदय में हुलास मारता है दुःख
हड्डियाँ चरमरा जाती हैं
और उनकी देह
उन्हें दर्द का गेह मालूम होती है
धूप, हवा और पानी प्रतिकूल हैं
पर अपनी पीड़ा
वे गूँथते जाएंगे अपनी धुन के धागे पर
अभिशप्त जीवन के लिए
जहाँ उनमें एक उम्मीद है
कि ऊसर में उनकी आत्मकथा उगेगी
जो चुप्पी के समाजशास्त्र का सप्रसंग व्याख्या करेगी
आह! आत्मा के अक्षर
इतिहास के पन्नों पर अच्छे लग रहे हैं!
मेरे दोस्त!
यह सोहर में स्याह संवेदना व्यक्त करने का समय है
और तुम चुप हो
तुमसे दोस्ती है तुम हो इसलिए यह
किन्नर पर कविता है
जैसे कोई ठूँठ पेड़ सिर्फ़ इसलिए है
क्योंकि पंक्षियों की उड़ान भरने में
उसकी अहम भूमिका है!
रचना : 22-12-2022
7).
तीसरा समाज
भले ही भारत-भूमि
आदिकाल से तमाम जातियों की रही है
किन्तु ;
आज मैंने
दलित, आदिवासी, वृद्ध, विकलांग
व किन्नर पर काम करते हुए
पाया कि
साहित्य में एक तीसरा समाज है!
रचना : 22-12-2022
8).
किन्नर पर केंद्रित किताब
आज सुबह-सुबह कोयल की कूक नहीं
किसी हिजड़े के हृदय की हूक सुनी है मैंने
इन दिनों मैं पढ़ रहा हूँ
किन्नर पर केंद्रित किताब
अक्षरों के नीचे दबे दर्द को देख रहा हूँ मैं
सुना मैंने कई चैनलों पर ट्रांसजेंडरों के इंटरव्यू
शक़ हुआ उन पर
लिखे गये विमर्शों को लेकर
जहाँ ज़िन्दगी जिज्ञासा बन गयी
अँधेरे को चीरती चेतना
पेड़ का नहीं,
प्रसव पीड़ा का तना है
जो समंदर के शोक में सरिता की संवेदना है
वर्तमान के विमर्श यह नहीं देख रहे कि
उसमें समकालीन सच कितना है!
उनमें बस कागज़ पर उतने की होड़ लगी है
कोई आहत आत्मा आधी रात जगी है
अब जब कवि हवा में कुछ शब्द उछालते हैं
आलोचक उसे कविता कहते हैं
ऐसे में मतलब समझ ही गये
कि मैं कहना क्या चाहता हूँ
उनके दुःख में दुखी होना चाहता हूँ मैं
गीत की भाषा में रोना चाहता हूँ
ताकि वे सुन सकें
जिन तक चिखना-चिल्लाना-गुर्राना
जैसी क्रियाएँ नहीं पहुँचती हैं
उनके अस्तित्व की आवाज़ें
रोक दी जाती हैं
जो तीसरे समाज के नागरिक हैं!
रचना : 23-12-2022
कवि परिचई :-
नाम : गोलेन्द्र पटेल
उपनाम/उपाधि : 'गोलेंद्र ज्ञान' , 'युवा किसान कवि', 'हिंदी कविता का गोल्डेनबॉय', 'काशी में हिंदी का हीरा', 'आँसू के आशुकवि', 'आर्द्रता की आँच के कवि', 'अग्निधर्मा कवि', 'निराशा में निराकरण के कवि', 'दूसरे धूमिल', 'काव्यानुप्रासाधिराज', 'रूपकराज', 'ऋषि कवि', 'कोरोजयी कवि', 'आलोचना के कवि' एवं 'दिव्यांगसेवी'।
जन्म : 5 अगस्त, 1999 ई.
जन्मस्थान : खजूरगाँव, साहुपुरी, चंदौली, उत्तर प्रदेश।
शिक्षा : बी.ए. (हिंदी प्रतिष्ठा) व एम.ए. (अध्ययनरत), बी.एच.यू.।
भाषा : हिंदी व भोजपुरी।
विधा : कविता, नवगीत, कहानी, निबंध, नाटक, उपन्यास व आलोचना।
माता : उत्तम देवी
पिता : नन्दलाल
पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन :
कविताएँ और आलेख - 'प्राची', 'बहुमत', 'आजकल', 'व्यंग्य कथा', 'साखी', 'वागर्थ', 'काव्य प्रहर', 'प्रेरणा अंशु', 'नव निकष', 'सद्भावना', 'जनसंदेश टाइम्स', 'विजय दर्पण टाइम्स', 'रणभेरी', 'पदचिह्न', 'अग्निधर्मा', 'नेशनल एक्सप्रेस', 'अमर उजाला', 'पुरवाई', 'सुवासित' ,'गौरवशाली भारत' ,'सत्राची' ,'रेवान्त' ,'साहित्य बीकानेर' ,'उदिता' ,'विश्व गाथा' , 'कविता-कानन उ.प्र.' , 'रचनावली', 'जन-आकांक्षा', 'समकालीन त्रिवेणी', 'पाखी', 'सबलोग', 'रचना उत्सव', 'आईडियासिटी', 'नव किरण', 'मानस', 'विश्वरंग संवाद', 'पूर्वांगन' आदि प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रमुखता से प्रकाशित।
विशेष : कोरोनाकालीन कविताओं का संचयन "तिमिर में ज्योति जैसे" (सं. प्रो. अरुण होता) में मेरी दो कविताएँ हैं और "कविता में किसान" (सं. नीरज कुमार मिश्र एवं अमरजीत कौंके) में कविता।
ब्लॉग्स, वेबसाइट और ई-पत्रिकाओं में प्रकाशन :-
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लम्बी कविता : तुम्हारी संतानें सुखी रहें सदैव
प्रसारण : 'राजस्थानी रेडियो', 'द लल्लनटॉप' एवं अन्य यूट्यूब चैनल पर (पाठक : स्वयं संस्थापक)
अनुवाद : नेपाली में कविता अनूदित
काव्यपाठ : अनेक राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय काव्यगोष्ठियों में कविता पाठ।
सम्मान : अंतरराष्ट्रीय काशी घाटवॉक विश्वविद्यालय की ओर से "प्रथम सुब्रह्मण्यम भारती युवा कविता सम्मान - 2021" , "रविशंकर उपाध्याय स्मृति युवा कविता पुरस्कार-2022" और अनेकानेक साहित्यिक संस्थाओं से प्रेरणा प्रशस्तिपत्र प्राप्त हुए हैं।
मॉडरेटर : 'गोलेन्द्र ज्ञान' , 'ई-पत्र' एवं 'कोरोजीवी कविता' ब्लॉग के मॉडरेटर और 'दिव्यांग सेवा संस्थान गोलेन्द्र ज्ञान' के संस्थापक हैं।
संपर्क :
डाक पता - ग्राम-खजूरगाँव, पोस्ट-साहुपुरी, जिला-चंदौली, उत्तर प्रदेश, भारत।
पिन कोड : 221009
व्हाट्सएप नं. : 8429249326
ईमेल : corojivi@gmail.com
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