गोलेन्द्र पटेल की तीन कविताएँ :-
1).
नव वर्ष का नया राग
वे देश को दुहने के लिए
प्रतिबद्ध हैं
संबद्ध हैं
आबद्ध हैं
मगर मैं प्रतीक्षास्तब्ध हूँ
कि
गर्द है, धुआँ है, सर्द है और
आग है
नव वर्ष का नया राग है
जहाँ पेड़ की फुनगियों पर
उम्मीदें कायम हैं
टूट, ओ पीड़ा के पर्ण
पतझड़
वसंत से पहले आया है
गम के ग्रीटिंग कार्ड में लिखीं नम आँखें
कि नदी, जंगल, पहाड़ और सागर
सुनो, इस दौर में ठौर नहीं है
कौर नहीं है
घर-घर में घुप अँधेरा घूर्ण है
पूर्ण मन चूर्ण है
यह ख़त अपूर्ण है
सूरज लुढ़क गया है
उम्र की ढलान पर और
पृथ्वी डूब रही है
आसमान के संचित आँसू में
लेकिन
युवा उलट कर हो गया वायु
या यह कहूँ
कि उसकी आत्मा का अव्यय
वाह
वह हवा है
जो सरहद के पार जाती है
शुभकामना लेकर!
रचना : 20-12-2022
2).
नया साल का नया स्वर
मैं चाहता हूँ
जीवन के वन में कोयल कूजे
हर घर में
समरसता, सर्वधर्म और समभाव की वाणी गूँजे
मैं चाहता हूँ
हर कवि की कविता में
सरिता लोरी गाए
सागर संगीतबद्ध हो जाए
और धरती की धुन में सनी
आसमान की लय उतर आए
मैं चाहता हूँ
पेड़ फूले-फले
और पहाड़
आदमी के कद से ऊँचा रहे
मैं चाहता हूँ
भाषा में सूप भर धूप
और रूप अमर
सुंदर अक्षर
मैं चाहता हूँ
सृजन के शोर में
नया साल का नया स्वर
मैं चाहता हूँ
खेतों में सूरज उगे
चेतना की चिड़िया
दाना चुगे!
रचना : 30-12-2022
3).
नव वर्ष का हर्ष संघर्ष है!
जनवरी! दिसंबर को पता है
बीतना एक नयी मुबारकबाद का मुहावरा है
उम्मीद की उड़ान भरी हुई
चेतना की चिड़िया
आसुओं की नदी को पार
करती हुई उसमें
अपना चेहरा देखती है
और देखती है सूरज
डूब रहा है
वह निर्निमेष निहारती है
पेड़ों के प्रतिबिंबों को
और महसूस करती है
मछलियों का पहाड़-सा दुःख
लेकिन लहरों के कुछ लम्हे
धारदार स्मृति की पहचान है
गत और आगत के बीच तट पर
हरा-भरा है घाव
सागर के इस छोर से उस छोर तक
जीवन की नाव
पीड़ा की पतवार से खेती हुई
मल्लाहिन
चक्कर लगा रही है
मछलियों की तलाश में
हताश होकर
अपने अस्तित्व का अर्थ
जानना चाह रही है
भँवर बीच
भीतर के जल से
जहाँ नीरव शून्यता में नव वर्ष का हर्ष
असल में अवनि पर स्वप्न का संघर्ष है!
रचना : 01-01-2023
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बहुत सुंदर दोनो कविता
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