Thursday, 22 December 2022

किन्नर पर केंद्रित कविताएँ | कविता में किन्नर | ट्रांसजेंडर संतान का दुःख! | किन्नर-कथा | हिजड़ों की फ़ौज़ | किन्नर | किन्नर पर कविता : गोलेन्द्र पटेल

किन्नर पर केंद्रित छह कविताएँ : गोलेन्द्र पटेल



1).


कविता में किन्नर


प्रिय दोस्त!

न स्त्री

न पुरुष

न ही अर्द्धनारीश्वर हो तुम


तुम कविता में किन्नर हो

यानी थर्ड जेंडर

___ ट्रांसजेंडर

लफ़ंगों की भाषा में हिजड़ा

तुम्हारा गात

गोया गम का पिंजड़ा

पर तुम मुझे पसंद हो!...


इस सृष्टि में

तुम्हारी ताली

कुदृष्टि के लिए

गाली है

तुम भी उसी कोख से उत्पन्न हुए हो

जिससे मैं

तुम देश की संतान हो

मेरे दोस्त!

                    रचना : 20-12-2022

2).


ट्रांसजेंडर संतान का दुःख!


क्या कोई रोक पाया है कभी

आँखों से पकी पीड़ा का टपकना

माथे पर श्रम की बूँद का अंकुरित होना

देह में दर्द का खिलना

फिर कैसे रोक पायेगा

कभी कोई

ट्रांसजेंडर संतान का दुःख!


सुख में

पत्थर पर उग जाती है प्रसन्नता

जैसे 

रेत में रोती हुई दूब ;

जहाँ मर्द और औरत के बीच

नदी

किन्नर का संचित

आँसू है

जो अपने आप में धाँसू है!

                         रचना : 21-12-2022

3).


किन्नर-कथा


अस्तित्व की तलाश में शिखंडी

अपनी आत्मा को तब तक तपाया

जब तक कि भीष्म 

शरशय्या पर सो नहीं गये


मगर याद रहे

साधना के समय स्त्री रूप में था वह

तप के बाद हुआ पुरुष


उसने अर्द्धनारीश्वर रूप की नहीं

शंकर की तपस्या की

तुम भी कर रहे हो, दोस्त!

लेकिन तुम किन्नर हो

काश कि तुम्हारी प्रार्थना भी 

सुनते शिव!


तुम्हारी व्यथा की कथा

शायद नंदी के कानों में कहने से

शीघ्र सुन लें वे!


तुम जब भी ट्रेनों में या चौराहों पर

या किसी के द्वार पर

तालियाँ बजाते हुए

दिखते हो

तुम्हारे होंठों पर होते हैं

सोहर

मंगल गीत

शुभकामना के स्वर


जबकि तुम भीतर से बहुत दुखी होते हो

और बाहर से बहुत प्रसन्न

तुम अपने चेहरे पर इतनी प्राकृतिक प्रसन्नता

कैसे उगा लेते हो?

क्या है इसका राज़?

आज

मेरी कलम निस्तब्ध पड़ी है

मन के द्वार पर 

एक ट्रांसजेंडर मित्र की स्मृति खड़ी है


जो इस करुणामयी कविता में 

किन्नर-कथा को इन्नर की तरह 

परोस चुकी है!

रचना : 21-12-2022 


4).


हिजड़ों की फ़ौज़


बचपन से

सुनता आ रहा हूँ मैं

कि हिजड़ों की फ़ौज़ से

जंग 

जीती नहीं जाती है


जंग जीती जाती है

हौसलों से!

रचना : 21-12-2022

 5). 


किन्नर


कंठ से नहीं, कोख से फूटे

शब्द ने पूछा 

कि

इस धरती पर

उसकी जगह कहाँ है?

जो फूल

क्लीव है


वसंत का मौसम है

मगर रंगों का आयतन कम हो गया है

गंध गायब हो गयी है

भाषा से


हवा में केवल

किन्नर, मौगा, हिजड़ा, छक्का, थर्ड जेंडर

___ ट्रांसजेंडर जैसे दर्दनाक

संबोधन हैं

ये कैसे उपवन हैं?


जहाँ सुनने वाला न पुरुष है

न स्त्री है

इन दोनों से भिन्न है!

रचना : 22-12-2022 


6).


किन्नर पर कविता


संसद की सड़क पर 

माँसपेशियों की मीठी महक ने कहा

कि वे न नारी हैं न नर!


उधर

एक कोई स्वर स्वयं को गाता आ रहा है

कोई समय सुनता जा रहा है उनको

कोई गमी उनकी गज़ल बन रही है

लेकिन उनकी लयबद्ध तालियाँ

मंगल के गीत हैं

उनके आँसू की आवाज़

सरसराहट में स्वप्न के संगीत हैं

वे सदियों से गाए जा रहे हैं

अपनी मानवीय स्मृति

इस धरती के लिए!


इधर

मैंने ट्रांसजेंडर साथियों से बातचीत करते हुए

महसूस किया है कि

लंबी हिचकियों के बीच

हृदय में हुलास मारता है दुःख

हड्डियाँ चरमरा जाती हैं 

और उनकी देह

उन्हें दर्द का गेह मालूम होती है


धूप, हवा और पानी प्रतिकूल हैं

पर अपनी पीड़ा

वे गूँथते जाएंगे अपनी धुन के धागे पर

अभिशप्त जीवन के लिए


जहाँ उनमें एक उम्मीद है

कि ऊसर में उनकी आत्मकथा उगेगी

जो चुप्पी के समाजशास्त्र का सप्रसंग व्याख्या करेगी


आह! आत्मा के अक्षर 

इतिहास के पन्नों पर अच्छे लग रहे हैं!


मेरे दोस्त!

यह सोहर में स्याह संवेदना व्यक्त करने का समय है

और तुम चुप हो


तुमसे दोस्ती है तुम हो इसलिए यह 

किन्नर पर कविता है 

जैसे कोई ठूँठ पेड़ सिर्फ़ इसलिए है

क्योंकि पंक्षियों की उड़ान भरने में

उसकी अहम भूमिका है! 

रचना : 22-12-2022

कवि : गोलेन्द्र पटेल 

संपर्क :

डाक पता - ग्राम-खजूरगाँव, पोस्ट-साहुपुरी, जिला-चंदौली, उत्तर प्रदेश, भारत।

पिन कोड : 221009

व्हाट्सएप नं. : 8429249326

ईमेल : corojivi@gmail.com




No comments:

Post a Comment

जनविमुख व्यवस्था के प्रति गहरे असंतोष के कवि हैं संतोष पटेल

  जनविमुख व्यवस्था के प्रति गहरे असंतोष के कवि हैं संतोष पटेल  साहित्य वह कला है, जो मानव अनुभव, भावनाओं, विचारों और जीवन के विभिन्न पहलुओं ...