देह विमर्श
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स्त्री ढ़ोती है
गर्भ में सृष्टि
परिवार का पुरुषत्व
धरती का सारा सूख देना चाहते हैं
एक कविता
जो बंजर जमीन और सूखी नदी की है
सतीत्व के संकेत
©गोलेन्द्र पटेल
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जब
स्त्री ढ़ोती है
गर्भ में सृष्टि
तब
परिवार का पुरुषत्व
उसे श्रद्धा के पलकों पर
धर
धरती का सारा सूख देना चाहते हैं
घर।।
एक कविता
जो बंजर जमीन और सूखी नदी की है
समय की समिक्षा शरीर-विमर्श
सतीत्व के संकेत
सत्य को भूल
उसे बांझ की संज्ञा दी।...
©गोलेन्द्र पटेल
【लम्बी कविता "कवि के भीतर स्त्री"से】
मो.नं. : 8429249326
ईमेल : corojivi@gmail.com


Good
ReplyDeleteNivN
Very nice