Tuesday, 30 August 2022

'साइकिल' पर केंद्रित गोलेन्द्र पटेल की सात कविताएँ


'साइकिल' पर केंद्रित गोलेन्द्र पटेल की सात कविताएँ :-

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1).


चलना

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कहते हैं कि हाथी को हर चीज दुगुनी दिखाई देती है

इसलिए अँधेरे में उससे नहीं डरता हूँ

डरता हूँ तो केवल कुत्तों से

जो सदियों से आदमी को डरा रहे हैं और

खुद डर डरकर डगर में भोंक रहे हैं


अँधेरे की एक खासियत यह है कि इसमें चिंतन का चक्का  

उजाले की अपेक्षा तेज चलता है

जैसे कि मेरी सोच की साइकिल चल रही है


सामने से आती हुई गाड़ी की रोशनी

गति को कम कर रही है और

उबड़खाबड़ गढ्ढा ढेला पत्थर अद्धा

सबके सब जीवन के हैंडिल को लड़खड़ा रहे हैं

पर पहुँचने की ज़िद पैडिल मार रही है


शीघ्र गंतव्य तक पहुँचना तय है

चालक हूँ चलना मेरा धर्म है


पुरनिया कहते हैं कि चलने से ही चलती है दुनिया

सो मैं चल रहा हूँ!


रचना : 16-11-2021



2).


साइकिल और सम्भावना

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मेडगाड और घंटी विहीन

साइकिल के टायर पुराने

रिंग जर्जर

और ट्यू में कई चकतियाँ लगी हैं

गद्दी की हालत ख़राब

फिर भी क्लियर पर बैठी पकी उम्र

तुम्हें उम्मीद है

कि पैडिल पहुँचाएगी

अंतिम पड़ाव तक

इसके चैन से सम्भावना है

कि लम्बी यात्रा

हैंडिल की दिशा में करेगी देह

इसके प्रति मन में स्नेह है

ऊब और उदासी की ढलान पर

उगे सूरज का गेह है


साइकिल सीखते हुए बच्चे

सिर्फ़ चलाने की कला नहीं सीखते हैं

वे सीखते हैं कैंची मारते समय

सही दिशा में चलना

वे सीखते हैं चौराहे पर ठहरना


उनकी साइकिल स्वप्न में चलती हुई

पटकथा है गुज़रे ज़वाने की

जिसमें जितनी व्यथा है

उतनी ही कथा है अपनी

राह खोज रही है ज़िन्दगी

यथा और तथा की गली से गुज़रती हुई स्मृति

इतिहास में प्रवेश कर रही है

धूल झाड़ती हुई

वहाँ उसके इंतज़ार में 

कोई सवारी खड़ी है

जो विचार-विमर्श के लिए

अड़ी है अनवरत संवाद

उसके हाथों में हराने की घड़ी है


भूख की भाषा में भुजा से

एक पाँव पर पीड़ा की जीत

बड़ी है पेट के पथिक

प्रिय मजदूर!

संसद की सड़क पर

साइकिल चोरी का दुख अधिक है!!


रचना : 30-08-2022



3).


बल्टहरा

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गाय-भैंस का मेद

दूह रही है दिल्ली 


दुदहड़ा के बल्टे में

आधा दूध है, आधा पानी


दुःख है सफेद

आह! गिर रही है

छत की सिल्ली


साइकिल की गद्दी

चिकोटी काट रही है

सत्ता के सेतु पर


आँखों से छलक रहा है आँसू

माथे से टपक रहा है श्रम


जम रही है दर्द की दही

भूख हृदय की हाँदी में चला रही है सानी


लीटर-पउआ की परिभाषा

उसकी पीड़ा की पहचान है

जो रो रहे हैं बछरू-बछिया पड़वा-पड़िया

वे भी बल्टहरा की नजर में इंसान हैं


असल में इंसान होना 

अपनी मनुष्यता का स्वामी होना है


जो है कि चौपायों के पास है

इंसानियत की शक्ति

और मालिक के प्रति अथाह भक्ति


इसीलिए मालिक कभी पुचकार कर दुहता है

तो कभी फटकार कर

कभी पिटता है बाँस के फरट्ठे से

तो कभी प्यार करता है अपने बच्चे की तरह


पालतू जानवर की जिज्ञासा है

कि क्या आजाद होकर 

किसी का खेत रौंदना

प्रजातंत्र का पगहा तोड़ देना है

या खूँटे को कबार लेना है


काटा काटती हुई काकी कह रही है

कि डेमोक्रेसी की डोरी में फाँसी गयी बाल्टी

अक्सर कुएँ में गिर जाती है


पर पुल को पार करके

सड़क के किनारे सुस्ता रहा है बल्टहरा


उसके पास है उसकी करुण कहानी

जिसे वह बोल बोलकर पढ़ रहा है

और अन्य सुन रहे हैं 

लीटर के भाव ,भीड़ से दूर 

बहुत दूर जा रही है हवा के विरुद्ध 

उसकी आवाज़।


रचना : 19-09-2021



4).


कैंची और काल

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सब कुछ खोना

काली रात का रोना

अनायास सार्थक तुकबंदी का होना

अनंत पीड़ा का पचना

मौत के मुँह से बचना

फिर यह कहना कि

कैंची साइकिल सीखने की उम्र में कविता रचना

हर किसी के लिए हैरानी की बात थी -------


स्मृति के सागर में सीप का चमकना

चिंतन की चिरई का चहकना है

और नदी में नाव का डूबना 

उम्र के पड़ाव पर पहाड़ से लुढ़कना है


प्रत्येक प्रहार में काल की लात थी


बचपन से बूढ़ापे तक कैंची

चलाती रही चेतना

ताकि कटता रहे सफ़र


और जीवन के अंत में घर

पहुँचकर -------


चिरनिद्रा में

मैं कैसे सो जाऊँ!


रचना : 18-12-2021



5).


बाल वाला

(बचपन लौट आया कुछ क्षण के लिए)

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डमरू की ध्वनि सुन

हर घर के

बच्चे दौड़ते हैं

गली में


मैं सोचता हूँ

शायद मदारी है

पर तत्क्षण 

बाँसुरी के बदले 

सुनाई देती है

बेसुरा

सीटी की प्रतियोगिता

या 

कहूँ कनकोंचनी

आवाज


सिर्फ़

बाल दो , सामान लो

हमें सीटी दो

हमें गुब्बारा

हमें यह दो

हमें वह


औरतें खोजती हैं

मुक्कियों में खोसी गयी 

मुठ्ठी भर

खोपड़ी का झड़ा बाल

कच्ची उम्रें

साइकिल को घेर रखी हैं


कोई बच्चा ले कर आया

मूड़न का बाल 

बालों का सबसे लघु व्यापारी बोला

वर्जिन हेयर चाहिए

(8 इंच से बड़े बाल)

कोई चिरपरिचित 

पूछी क्या है हाल

एक आलपीन दो

और एक फूलना


वह दे कर तो चला गया

पर

मैं खिड़की से देखता रहा

पचपन में

कुछ क्षण के लिए

अपना लौटा हुआ

बचपन!


रचना : 19-02-2021



6).


साइकिल से सम्मानित

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मैं साइकिल से सम्मानित होने जा रहा हूँ शहर


हवा झकझोर रही है

मन को

ओहाव पर ओहाव 

आती हुई बारिश

तन को

भीगो रही है

लेकिन फिर भी मैं अपनी इच्छाओं के विरुद्ध

आ गया - बनारस!


गुरुवर! लौटना चाहता हूँ मैं

घर नहीं

उजास के उर में

जहाँ कोई उफान नहीं है

कोई तूफान नहीं है


बस

उम्मीद ही उम्मीद है 

हर उम्र के लिए!


आँखों की बरसात

मार रही है लात

एक बूढ़ी दादी गिर गयी हैं 

संसद की पक्की सड़क पर

उन्हें उठा रही है मेरी कविता


कीचड़ लग गया 

उनकी खादी के कुरते में

उनकी लय लड़खड़ा रही है

लोग हँस रहे हैं

तीन टाँगों वाली माँ पर


उसके हालात से हहरा गये हैं

वे शब्द

जो उसकी संवेदना को प्रकट करना चाहते हैं

हम सबके बीच।


रचना : 15-09-2021



7).


साइकिल पर शब्द

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सड़क पर अचानक सृजन करना

आत्मा के साँचे में अनुभूति को धरना है


रुक नहीं रही है बारिश

लावारिस की तरह खड़ी है साइकिल

और खड़े-खड़े दोनों पैर अगिया रहे हैं मेरे


समय के शब्द सवारी करना चाहते हैं

मेरी साइकिल की 

जिसके चक्कों के वृत्ताकार गति में प्रगति है


जहाँ जीवन के छंद 

मात्रा की यात्रा में गड़बड़ा रहे हैं

मतलब दिमाग से कोसों दूर मति है!


रचना : 27-08-2021

नाम : गोलेन्द्र पटेल

🙏संपर्क :

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