Tuesday, 14 January 2025

'असहमति' सहमति से अधिक रचनात्मक है (सर्वश्रेष्ठ संपादक कौन हैं?)

 

“हमारे समय का संपादक होना, भाषा में ही नहीं, बल्कि भूमि पर भी मनुष्य होना है।

अच्छा संपादक होने के लिए किसी लेख, किताब या सामग्री को सुधारने और बेहतर बनाने में सक्षम होना ही काफ़ी नहीं है, बल्कि एक श्रेष्ठ मनुष्य होना ज़रूरी है, क्योंकि एक अच्छा संपादक न केवल व्याकरण और शैली पर ध्यान देता है, बल्कि लेख की भावनात्मक गहराई, संवेदनात्मक संदर्भ और उद्देश्य को भी समझता है। वह लेखन की गुणवत्ता को सुधारने में कुशल होने के साथ-साथ सृजनात्मकता, सूझबूझ और सटीकता के साथ काम करता है। वह रचनाकार के विचारों को स्पष्ट और प्रभावी तरीके से पाठकों तक पहुँचाता है। वह रचनाकारों के साथ सहयोग करके उनके विचारों को सही दिशा में मार्गदर्शन करता है।

श्रेष्ठ मनुष्य ही त्रिकालदर्शी होते हैं। त्रिकालदर्शी संपादक केवल वर्तमान के संदर्भ में नहीं, बल्कि भविष्य की दिशा और विकास को समझते हुए अपने संपादन निर्णयों को लेते हैं। वे न केवल सामग्री की गुणवत्ता और प्रस्तुति पर ध्यान देते हैं, बल्कि यह भी सोचते हैं कि इस सामग्री का प्रभाव भविष्य में क्या हो सकता है और इसे किस तरह से व्यापक और दीर्घकालिक दृष्टिकोण से बेहतर किया जा सकता है, क्योंकि वे मौजूदा समय के साथ-साथ भविष्य की संभावनाओं को भी समझते हैं। एक बेहतरीन संपादक रचनाकार को बेहतर दिशा और संरचना देने के लिए सुझाव देता है।

निःसंदेह हिंदी में सम्यक दृष्टि वाले सहृदय संपादक बहुत कम हैं! 

हमें वे संपादक कत्तई पसंद नहीं हैं, जो उन युवा स्वरों को प्रकाशित नहीं करते हैं, जो हाशिये की आवाज़ हैं, जिनके घरों में कोई कवि, लेखक, संपादक, प्रकाशक, प्रोफेसर, शिक्षक नहीं हैं। जिनके लिए कोई यह कहने वाला नहीं है कि यह 'युवा स्वर' हमारी जाति, धर्म, घर-परिवार, ज़िला-जवार से है, अपना है, इसमें अपार संभावनाएं हैं!

जो भी संपादक जाति-धर्म-भाषा निरपेक्ष हैं, परिवारवाद और मित्रवाद से अधिक मानवतावाद के करीब हैं, वे हमें पसंद हैं, क्योंकि वे हाशिये की रचनाधर्मिता को प्रकाशित करते हैं, निखारते हैं।

हमारे जैसों को जो छापते हैं, वही हमारी नज़रों में सर्वश्रेष्ठ संपादक हैं, हमारा प्रिय संपादक हैं, हमारे हीरो हैं। शेष संपादकों के लिए निराला ने 'सरोज स्मृति' में 'निरानंद' विशेषण का प्रयोग किया है, लेकिन हम उनके लिए 'निकृष्ट' विशेषण प्रयोग करते हैं।

जो मेरे प्रिय कथाकार हैं, लेकिन अप्रिय संपादक भी हैं, हमने उनके बारे में सुना है कि वे सबको नहीं छापते हैं, वे जिसे छाप देते हैं, वे स्थापित हो जाते हैं, वे इस भ्रम में हैं! 

ख़ैर, उन्होंने न हमें छापा है, न ही हमारे जैसे किसी और को, शायद इसलिए हम स्थापित नहीं हुए, लेकिन वे यह मानते हैं कि हम अपने समय के 'सजग स्वर' हैं! 

'असहमति' सहमति से अधिक रचनात्मक है, पर परास्नातक के दौरान जब हमने फ़ेसबुक पर उनकी संपादकीय के संदर्भ में टिप्पणी की थी, तो हमारे शुभचिंतक शिक्षकों ने पोस्ट डिलीट करवा दी थी। बहरहाल, जिस दिन वे हमारी पृष्ठभूमि के किसी 'युवा स्वर' को छापेंगे, उस दिन वे हमारे प्रिय संपादक हो जायेंगे। धन्यवाद!”―गोलेन्द्र पटेल

क्या मायावती और चंद्रशेखर आजाद अंबेडकरवादी हैं?

जो बौद्ध नहीं हैं, वो अंबेडकरवादी नहीं हैं।  __________________________________________ हम नगीना सांसद मा० श्री चंद्रशेखर आजाद जी को ही नहीं...