5 अगस्त, 2025
प्रबुद्ध भारत का आह्वान : बहुजन क्रांति का घोषणापत्र
— गोलेन्द्र पटेल
“हम इतिहास बनाते हैं, पर इतिहासकार हमें मिटा देते हैं।” — डॉ. भीमराव अंबेडकर
भारत का वर्तमान और भविष्य तभी सुरक्षित हो सकता है जब इसका मूलनिवासी बहुजन समाज अपनी अस्मिता, अस्तित्व और अधिकार के लिए जाग्रत होकर संगठित संघर्ष करे। यह संघर्ष केवल सत्ता परिवर्तन का नहीं, बल्कि व्यवस्था परिवर्तन का है। जैसा कि साहेब कांशीराम ने कहा था— “हम सत्ता में भागीदार नहीं, बल्कि हिस्सेदार बनकर रहेंगे।”
आज का बहुजन समाज अपमान, शोषण और वंचना की पीड़ाओं से गुजर रहा है। जल, जंगल, ज़मीन से लेकर शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार तक हर क्षेत्र में ब्राह्मणवादी और पूंजीवादी ताक़तों ने इन्हें हाशिये पर धकेला है। परंतु इतिहास गवाह है कि जब-जब अन्याय अपने चरम पर पहुँचा है, तब-तब बहुजन चेतना ने विद्रोह की मशाल जलाई है।
तथागत बुद्ध ने कहा था— “चरथ भिक्खवे चारिकं, बहुजन हिताय बहुजन सुखाय।” यह धम्म की मूल चेतना थी— समता और करुणा पर आधारित समाज। अशोक ने इसे राजधम्म के रूप में लागू किया। फुले-शाहू-पेरियार ने इसे सामाजिक आंदोलन का रूप दिया। बाबा साहेब ने इसे संविधान में अमर कर दिया।
लेकिन आज विडंबना यह है कि जिन नेताओं और संगठनों ने बहुजन चेतना को आगे ले जाने का दावा किया, वे आरामगाहों और वातानुकूलित गाड़ियों से बाहर निकलना तक पसंद नहीं करते। जनता की पीड़ा पर केवल भाषण और पोस्टर ही रह गए हैं। सवाल उठता है— जब त्याग और बलिदान के लिए कोई तैयार नहीं, तो प्रबुद्ध भारत का निर्माण कैसे होगा?
याद रखिए—
- “मनुस्मृति जला दो, तभी इंसान आज़ाद होगा।” — जोतिबा फुले
- “मनुष्य जन्म से नहीं, कर्म से महान होता है।” — बुद्ध
- “राजनीतिक सत्ता ही सारी सामाजिक समस्याओं की कुँजी है।” — अंबेडकर
इसलिए आज आवश्यकता है एक नये महाआंदोलन की—
एक ऐसा आंदोलन, जो संविधानसम्मत शासन को धरातल पर उतारे।
एक ऐसा आंदोलन, जो जाति और धर्म से ऊपर उठकर बहुजन एकता गढ़े।
एक ऐसा आंदोलन, जो केवल हक़ की मांग न करे, बल्कि न्याय की लड़ाई लड़े।
हमारे पुरखे बिना साधन-संसाधन के पैदल यात्राएँ करके धम्म का प्रचार कर गए। आज हमें भी उसी मार्ग पर चलना होगा। इसीलिए हम “ग्राम ज्ञान संस्थान/ छत्रपति शाहूजी महाराज शोध संस्थान/ खजूरगाँव” के योजना के तहत चंदौली जनपद के कोने-कोने धम्म यात्रा करेंगे, यह यात्रा अन्याय के किलों को चुनौती देगी और बहुजन चेतना का नया महागठबंधन गढ़ेगी।
यह केवल यात्रा नहीं, बल्कि एक जीवित घोषणापत्र है—
- ब्राह्मणवाद, पूंजीवाद और सामंतवाद के विरुद्ध सीधा प्रतिरोध।
- बहुजन समाज की एकता और आत्मसम्मान का शंखनाद।
- और संपूर्ण व्यवस्था परिवर्तन के लिए संघर्ष का व्रत।
“सत्ता यदि अन्यायपूर्ण हो तो उसका प्रतिरोध ही धर्म है।” — भगत सिंह
हम यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि यह संघर्ष किसी जाति, धर्म, भाषा या क्षेत्र के विरुद्ध नहीं, बल्कि उस शोषणकारी मानसिकता के खिलाफ है जिसने बहुजनों को सदियों से गुलाम बनाए रखा। इस संघर्ष का अंतिम लक्ष्य है— प्रबुद्ध भारत का निर्माण।
“हम इतिहास के निर्माता हैं। हमें अपने भाग्य का निर्माण स्वयं करना होगा।” — डॉ. अंबेडकर
नमो बुद्धाय।
जय भीम।
सत्यमेव जयते।
★★★
रचनाकार: गोलेन्द्र पटेल (पूर्व शिक्षार्थी, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी।/ जनकवि, जनपक्षधर्मी लेखक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक चिंतक)
डाक पता - ग्राम-खजूरगाँव, पोस्ट-साहुपुरी, तहसील-मुगलसराय, जिला-चंदौली, उत्तर प्रदेश, भारत।
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