Friday, 27 March 2020




गांधी द्वारा हिंदी कविता को अभय व कर्म तत्परता का मंत्र मिला :प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल

केंद्रीय हिमालयी संस्कृति शिक्षण संस्थान,दाहुँग,अरुणांचल प्रदेश  के तत्वावधान में छठें सोना गोन्तसे रिनपोचे स्मृति व्याख्यानमाला के अंतर्गत पहला व्याख्यान ' गांधी व हिंदी कविता' पर केंद्रित रहा जिसके मुख्य वक्ता बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के आचार्य प्रो श्रीप्रकाश शुक्ल थे।अध्यक्षता गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय के  प्रो. संजीव दुबे ने की।

मुख्य वक्तव्य देते हुए प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल ने कहा कि हिंदी कविता पर बुद्ध के बाद गांधी का प्रभाव सर्वाधिक रहा है।बुद्ध के चिंतन के भीतर से संत कवि आये और संत कवियों के भीतर से गांधी की वैचारिक निर्मिति होती है।गांधी के अभय,अहिंसा व कर्म  की भावना ने हिंदी कविता को सर्वाधिक प्रभावित किया।प्रो शुक्ल ने गांधी जीवन की प्रमुख विशेषताओं को रेखांकित करते हुए अहिंसा के आत्मबल व करुणा की सामाजिकता को महत्वपूर्ण बताया जिससे हिंदी कविता में नव जागरण की चेतना का निर्माण हो सका।गांधी ने बाहर से साम्राज्यवाद व भीतर से सामंतवाद की जैसी आलोचना की उससे हिंदी कविता गहरे स्तर पर प्रभावित हुई।
अपने डेढ़ घंटे के वक्तव्य में प्रो शुक्ल ने गांधी व कविता के रिश्तों की व्याख्या करते तीन चरण की बात की।यथार्थ में गांधी ,कल्पना में गांधी व अवसाद में गांधी।पहले चरण में मैथिली शरण गुप्त,माखनलाल चतुर्वेदी व सोहनलाल द्विवेदी की विस्तार से चर्चा की।दूसरे चरण में छ्यावाद के निराला,पंत व महादेवी की कविताओं के माध्यम से हिंदी कविता के विद्रोही स्वरूप व गांधी के महत्व की पहचान की।तीसरे चरण में रघुवीर सहाय व मुक्तिबोध की कविताओं के माध्यम से गांधी आदर्शों के टूटन व निराशा की व्याख्या करते प्रो शुक्ल ने गांधी के सपनों के साकार न होने की बात की जिससे हिंदी कविता में निराशा का दौर शुरू होता है।
अंत में प्रो शुक्ल ने कहा कि गांधी ने अपने चरखा,खादी व कर्म तत्परता से सामाजिक बंजरता को समाप्त करने की अनथक कोशिश की जिससे हिंदी कविता समाज सजग हुई।इस अवसर पर भवानी प्रसाद मिश्र की 'गांधी पंचशती' और सोहनलाल द्विवेदी की पुस्तक 'गांध्ययन' की चर्चा करते हुये गांधी के ऐश्वर्य व दिव्यता की शिनाख्त की और आगाह किया कि गांधी के बहाने कर्म तत्परता पर बात करने की जरूरत है न कि उन्हें मसीहा बनाने की।

अध्यक्षीय वक्तव्य में प्रो संजीव दुबे ने कहा कि गांधी जी ने सत्य को जिस तरह धर्म से जोड़ा वह हिंदी कविता को गहरे प्रभावित किया क्योंकि इसके माध्यम से हिंदी कविता में अंतिम जन की बात शुरू हुई।महात्मा गांधी ने देश की गुलाम जनता को अपनी संस्कृति और दार्शनिक परंपराओं पर अभिमान करना सिखाया था। उन्होंने भारती चिंतन से प्रेरणा लेकर जिन सिद्धांतों को प्रस्तावित किया उनका आचरण करते हुए अपने जीवन को सत्य के प्रयोग करार दिया।प्रो दुबे ने आगे कहा कि  यह महज संयोग नहीं कि जैसी समन्वयकारी भूमिका मध्यकाल में तुलसी दास ने निभाई थी ठीक वैसा ही समन्वयकारी आध्यात्मिक चिंतन बापू ने भी प्रस्तुत किया। अपनी आत्मकथा में तुलसीदास को प्रसंगानुकूल उद्धृत करना यह बताता है कि वे तुलसीदास से कितने प्रभावित थे।

कार्यक्रम में स्वागत वक्तव्य संस्थान के निदेशक डॉ गुरमीत दोरजी ने दिया।धन्यवाद ज्ञापन डॉ आकाश शाह  ने दिया।संचालन डॉ सागर ने किया।अतिथियों का परिचय कार्यक्रम संयोजक डॉ जितेंद्र कुमार तिवारी ने दिया।
इस अवसर पर भोट बौद्ध दर्शन के आचार्य गेशे नवांग वांगदू,गेशे थुपतेन जुग्ने,गेशे केसांग छोपेल,गेशे थुप्तेन फुन्छो,संस्कृत के प्राध्यापक डॉक्टर राम गोपाल उपाध्याय, भौतिकी के सहायक आचार्य डॉक्टर धर्मेन्द्र कुमार, राजनीति विज्ञान के श्री केमो पादु,अंग्रेज़ी के सहायक आचार्य डॉक्टर मानस प्रतिम बोरा, सुश्री पेमा डोल्मा आदि ने अपनी जिज्ञासा और उपस्थिति से कार्यक्रम में सक्रिय भूमिका निभाई।

(प्रस्तुति:डॉ जितेंद कुमार तिवारी-कार्यक्रम संयोजक,केंद्रीय हिमालयी शिक्षण संस्थान,दाहुँग,अरुणांचल)
(16/01/2020)

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