Friday, 27 March 2020



खेतिहर खेत से
खोट-खाट बथुआ
लाया घर!
चीर-चार चूरऽ चुल्हे पर
चीख-चाख कहा हुआ
साग!
आओ बच्चों जाग
साग-भात खाने
काग!
आ गया मुरेड़ पर
और आ रहा सुआ
बाग-बात गाने
ताप आग
कपकपी भगाने
चुल्हे के पास
गौरैया पहले से ही आई है
कुछ चावल चूर्ण चुन पाई है
जब तुम्हें गया था जगाने
अब देखो कौआ कटोरी का भात
जुठार न दे कितना करीब रूका है
आज पीने का पानी जुठार चुका है
भावी भोज्यपदार्थों के अगणनीय अंग
माड़ में सने साग-भात को मूली के संग
खाने में बहुत मस्त लग रहा है : पिताजी
इस पके हुए साग में क्या है?
वत्स! इसमें कुछ खास घास :
बथुआ-पालक सरसों के पत्तें हैं
परन्तु बथुआ का औसत अधिक है
क्योंकि इसे आइरन पूर्ति औषधि रूप में
आपको खिलाना और खुद खाना चाहता हूँ
लिवर-त्रिदोष-भूख-मलमूत्र जैसी त्रुटि आदि में
प्रमुख प्रख्यात संजीवनी जड़ी-बूटी है : बथुआ
पेशाब रोग के लिए मील का पत्थर सिद्ध हुआ
आधुनिक आयुर्वेद विज्ञान के नव संधान से
पता चला लाल वाला अधिक लाभदाई है
जिसे माता सीता ने लव-कूश के जन्म से पूर्व
वनवास के वक्त वाल्मीकि के आश्रम में खाई थी
वही बथुआ चील कहलाई और औरतों के लिए
अद्भुत पीलिया रोग नाशक औषधीय आशीर्वाद
बह्मा ने दिया बथुआ को , एक अन्य किंवदंती है
कि गेहूँ और जौ के बुआ को , एक खेत में
शंकर ने पार्वती के कहने पर कृषक चेत में
बथुए का महत्व भेज कहा यह है एक साग
जिसे मैं स्वयं खाता हूँ इस घास का अनुराग
अद्भुत है जो ऊँच कुली या सूत है बाग-बाग
होते इसका शाक खाकर वे धन्य हैं मूर्धन्य हैं
उनका स्वास्थ्य-मस्तिष्कीय और जो अन्य हैं
जीवन के सत्य का रहस्य संन्यासी के वन्य हैं
पुत्रों अब पानी पी लो हाथ-मुँह धोकर
कल पुनः बथुआ लाऊँगा हर्षित होकर
पूर्णकथा सुनाऊँगा भूख का रोटी पोकर
रचना : ०९-०१-२०२०
-गोलेन्द्र पटेल

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