गुरु!
दुनिया में ऐसा है कि
ऐसा कुछ भी नहीं।
गाँव से शुरू हो
दिल्ली से दर्द तक की यात्रा
दर्शन का दरज़ी कर रहा है
चुपचाप धूप छाँह सहते हुए
क्योंकि एक छाता का दाम एक वोट है
जो उसके पास है पर उसके भूख के पास नहीं।
राशनकार्ड लिए लाईन में लगे लोग
पेट में बज रहे नगाड़े के धुन से
खुले आँखों में नींद के विरुद्ध
जागो और जगाओ का शंखनाद कर रहे हैं
खादी को सीने वाला धागा
आज कर्षित कृषक का कफन सी रहा है।
कर्ज़ के कड़ाही में पका दूधमुँही का भात
एक कौआ खा ; पसा माँड़ भी पी रहा है
दूसरा लालकिले के मुंडेर पर बैठा चिल्ला रहा है
मैं माँड़ नहीं पीता मुझे चाय चाहिए चाय चाय चाय।
जिन्दगी के स्टेशन पर एक पुत्र
पिता के शांति के लिए चाय देता है
एक प्यासे को अंदेखा कर
जो घड़े में कंकड़ डाल रहा है।
-गोलेन्द्र पटेल 【बीएचयू】
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