Saturday, 18 April 2020

अंधविश्वास और नायक संस्कृति से बना जनमानस : साहित्य में


अंधविश्वास और नायक संस्कृति से बना जनमानस-
     भारत में आम जनता के दो पहलू हैं जिनसे उसकी मानसिक संरचनाएं संचालित होती हैं,पहली संरचना है उसके पुराने विश्वास और अंधविश्वास,दूसरी संरचना है उसका नायक प्रेम। इसमें सिर्फ नायक ही नायक है, इसमें न देशप्रेम आता है और जनता के प्रति प्रेम आता है। आम जनता लंबे समय से नायक मोह की शिकार है।अंधविश्वास और नायकप्रेम का यह संबंध उसके हरेक व्यक्ति के फैसले को निर्धारित और प्रभावित करता है।बहुत कम लोग हैं जो इन दोनों से पूरी तरह मुक्त हैं। यह बीमारी वाम से लेकर दक्षिण तक फैली हुई है।इन दोनों फिनोमिना को हिन्दी सिनेमा और विज्ञापनों ने खाद-पानी दिया है।नायकप्रेम और अंधविश्वास को यथार्थ में परखने की आम जनता कोशिश ही नहीं करती,यह मान लिया गया है,प्रचार में जो दिख रहा है वह सही है।जो दिखाया जा रहा है,वह इसलिए दिखाया जा रहा है ,क्योंकि सच है या उसमें सच का अंश है। मसलन् ,यह कहा गया कि नेहरू-इंदिरा तो मुसलमानों और औरतों के हितैषी थे, लेकिन तथ्य इसकी पुष्टि नहीं करते,यह भी कहा गया कि पंचवर्षीय योजनाओं से गरीबी खत्म हुई ,तथ्य इसकी भी पुष्टि नहीं करते, इसी तरह पीएम मोदी ने कहा कि सबके अच्छे दिन आएंगे, लेकिन तथ्य हस दावे की भी पुष्टि नहीं करते। उनका वायदा था हर साल 2 करोड़ लोगों को रोजगार दूंगा।लेकिन यथार्थ में हर साल दो करोड़ नौकरियां खत्म हुई हैं विगत चार सालों में इसलिए नायकप्रेम और उसके पक्ष में किए गए प्रौपेगैंडा को यथार्थ पर परखने की जरूरत है।हमने एक चीज नोटिस की है नायकप्रेम और अंधविश्वास इन दो का प्रचार सबसे अधिक आम जनता हजम करती है।ये दो चीजें आज भी सबसे जल्दी दिलो-दिमाग को सीधे प्रभावित करती हैं। आमतौर इन दोनों फिनोमिना के साथ किसी न किसी रूप में पापुलिज्म काम करता है।किसी न किसी तरह का इल्युजन काम करता है।खासतौर पर युवाओं और औरतों पर इन दोनों के प्रचार का दैनंदिन जीवन में गहरा असर होता है। उनको ही खासतौर पर निशाना बनाया जाता है।यह माना जाता है कि असली नायक वह है जो जनता के मनोभावों को व्यक्त करे। इस तरह की अभिव्यंजनाओं को देखकर ही आम जनता उम्मीद लगाए बैठी रहती है कि हो सकता है नायक आगे कुछ करे, इंतजार करो जरूर कुछ करेगा,नायक के कदमों पर उसकी अगाध आस्था होती है।वह यह मानकर चलती है नायक में तो हमारी इच्छाएं-आकाक्षाएं निवास करती हैं।त्रासदी यह कि अपने इस विभ्रम के बाहर निकलकर जनता कभी यथार्थ को देखने को तैयार नहीं होती।
  जब हम नायक को देखते हैं तो उसे एक मिथ की तरह देखते हैं।उसे दिवा- स्वप्न की तरह देखते हैं।इस रूप में देखते हैं कि वह जो कह रहा है उसे जरूर लागू करेगा।लेकिन यहीं पर उस नायक की त्रासदी निहित है, उसका अंत निहित है।क्योंकि आम जनता मिथ के बाहर नजर डालने के लिए तैयार ही नहीं है।वह हमेशा प्रचार की रोशनी में नायक को देखती है और प्रचार ही उसे वैध बनाता है, उसकी बातों को वैध बनाता है।वह मिथ और प्रचार के बाहर यदि यथार्थ की कसौटी,अपने आसपास के जीवन यथार्थ में जाकर यदि नायक के कहे की मीमांसा करे तो तस्वीर एकदम भिन्न नजर आएगी।असल में नायक के बनाए मिथ और यथार्थ में कैद रहकर वह सब चीजें देखती है इसलिए वह अन्य किस्म के आख्यान,यथार्थ,तर्क आदि को मानने,सुनने को तैयार नहीं होती। हमारा अब तक का मानव सभ्यता का इतिहास इस तरह के नायकप्रेम, नायकबोध और निर्मित यथार्थ के असंख्य आख्यानों से भरा पड़ा है। कायदे से जीवन के यथार्थ की कसौटी पर नायक,विचार और जन -आकांक्षाओं की परीक्षा होनी चाहिए।दैनंदिन जीवन और नायकीय आश्वासनों के बीच में जो बड़ा अंतराल होता है उसे समझने की कोशिश करनी चाहिए। अंधविश्वास और नायकप्रेम में दूसरी चीज है आलोचनात्मक विवेक का अंत। ये दोनों चीजें इसकी हत्या कर देती हैं। अंधविश्वास और नायकप्रेम में डूबा समाज कभी क्रिटिकली सोचता नहीं है। खासकर महा-संकट की अवस्था में तो ये दोनों चीजें और ज्यादा घनीभूत हो जाती हैं।दूसरी बात यह कि इन दोनों के उपभोक्ताओं के संख्याबल के आधार पर मीडिया अपनी राय बनाता है।इन दोनों की ताकत है इमेज प्रेम और छद्म अनुभूतियां।इनमें आम जनता लंबे समय तक बंधी रहती है।दिलचस्प बात यह है कि नायकप्रेम ही नायक की सबसे बड़ी कमजोरी भी है।नायक अपने द्वारा निर्मित मिथ्या संसार पर एक अवधि के बाद विश्वास करने लगता है।यहीं से उसकी असफलता की खबरें आनी शुरू हो जाती हैं।हरेक नायक के साथ कोई न कोई उपसंस्कृति के रूप जुड़े होते हैं और उन रूपों को संतुष्ट करने के लिए वह कुछ न कुछ हरकतें करता रहता है।यहां तक कि अपने अनुयायियों के उपद्रवों को वैधता प्रदान करता है।एक बड़ा परिवर्तन और घटा है कम्युनिकेशन को इन्फॉर्मेशन ने अपदस्थ कर दिया है। पहले हम कम्युनिकेट करते थे,अब कम्युनिकेट नहीं करते बल्कि सूचनाएं लेते और देते हैं।अब हम यथार्थ पर नहीं सूचनाओं पर विश्वास करने लगे हैं।यथार्थ को परखने,उलट-पुलट करके देखने की कोशिश नहीं करते।क्योंकि हम माने बैठे हैं कि हम सही हैं, हमारी सूचनाएं सही हैं,इसलिए यथार्थ को देखने की जरूरत नहीं है। अब हम अनुकरण करते हैं। अनुकरण और इमेजों को ही सच मानते हैं।जबकि ये सच नहीं होतीं।ये दोनों विभ्रम पैदा करती हैं और यथार्थ से दूर ले जाती हैं।यही वो परिदृश्य है जिसमें नए नायक की इमेज,नायकप्रेम और सामाजिक अहंकार पैदा हुआ है।उसने विभिन्न किस्म की प्रतिगामी विचारों और उप-संस्कृति के रूपों और उनके मानने वालों को पाला-पोसा है।फलतःजहां एक ओर हाइपररीयल जनता निर्मित हुई है वहीं दूसरी ओर हाइपररीयल नायक और उसकी संचालन प्रणाली विकसित हुई है।अब हम रीयल और अनरियल में नहीं हाइपररीयल में जी रहे हैं।हाइपर रीयल हमारी संवेदनाओं , भावदशाओं और दैनंदिन तर्कशास्त्र को निर्मित और प्रभावित कर रहा है।
     इसके अलावा छिपाने की कला का बड़े पैमाने पर विकास हुआ है,उसने बंद समाज को और अधिक बंद बनाया है।अनुदार बनाया है।पारदर्शिता घटी है।झूठ बोलने,झूठ में जीने की आदत बढ़ी है।
     ‘भावोन्मत्त’ भाव में तीव्र कम्युनिकेशन की आदत बढ़ी है। हम ठहरकर सोचने और संवाद-विवाद करने को तैयार नहीं हैं। जब तक हम यह सब नहीं करते मुश्किलें आएंगी।
गिरीश मालवीय
आज सुबह एक मित्र ने एक पोस्ट लिखी जिसमे पिछले कुछ दिनों में हुई इंदौर शहर में बड़ी संख्या में मुस्लिम समाज में हुई मौतो के कारण पुछा गया........अब शायद मित्र ने वह पोस्ट हटा ली है इस पोस्ट पर मैने एक छोटा सा जवाब लिखा............
'एक बड़ा कारण यह भी है कि किसी तरह का ईलाज उपलब्ध नही है शहर के अस्पतालों में, न कोई क्लिनिक खुला है अगर स्वास्थ्य की स्थिति जरा भी बिगड़ती है तो गंभीर होने में देर नही लगती, ओर इलाज न मिलने की दहशत ही आदमी को मार डालती है, कोरोना से भी मृत्यु हो रही है लेकिन सारी मौतें कोरोना से हो रही है यह कहना भी गलत होगा'
इस जवाब से पोस्टकर्ता मित्र आंशिक रूप से सहमत थे लेकिन उनका कहना था कि ऐसी ही कंडीशन तो सभी इंदौर वासियों की हो रही होगी लेकिन इस पर  शहर का मुस्लिम समाज क्यो ख़ामोश है। हाहाकार क्यो नही मच गया शहर में
इस बात पर मैंने Riz Khan को कमेन्ट बॉक्स में आमंत्रित किया......... रिज खान लंबे समय से शहर में पब्लिक हेल्थ सेक्टर में ही कार्यरत है उन्होंने जवाब में जो लिखा वो आप सब को एक बार पढना चाहिए.......
गिरीश भाई शुक्रिया... यह समझे हम एक बड़े विकट समय से गुज़र रहे हे... जिस तरह से क्वारानटिन के एरिए बढ रहे हे... अगर हर रोज़ 2000 लोगो के कम से कम  कोरोना 19 का जाँच नही हुई तो जेसा मैने अपनी पोस्ट मे लिखा था मेरे डाटा एनालिसिस की जो क्षमता हे वह हार जाए... जो मेरा अनुमान हे वह झुठा हो जाए... में झुठा हो जाऊ... पता है यह में क्यो लिख रहा हूँ... इसलिए भाई कि अगर हम गलती से इसकी चपेट मे आ गए तो उस समय तक महामारी फेल चुकी होगी...  सामाजिक रिश्तों के ताने बाने अभी ही टूट चुके हे लोग शवयात्राओ मे नही जा रहे हे... मेरे खुद के घर के मेनगेट पर ताला लग चुका हे... न कोई बाहर जा रहा हे न कोई अन्दर आने के लिए अलाव हे... दुध पीना सब्जी खाना छोड़ चुके हे... यह व्यवस्था 3 माह तक चला लेंगे एक ज्वाइंट परिवार मे करीब 60 सदस्य हे...  लेकिन उसके बाद??? अगले हफ्ते अम्मी की बी पी की दवा खत्म है उसका कोई जुगाड नही हो पा रहा हे...
यह जो 134 लोग मरे हे उन सब का पोस्टमार्टम होना चाहिए था... नही हुआ... इनमे से कोरोना पाज़ेटिव को - कर दै बाकी सब तो कुत्ते से खराब मोत मरे हे... (मुझे माफ करना इस शब्द के लिए) मरीज़ गम्भीर होने पर रिश्तेदार एक हास्पिटल से दुसरे ओर फिर 5 हास्पिटल तक लेकर गए हे ओर मरीज़ो ने रास्ते में, रिश्तेदारों की गोद मै हास्पिटल के मेन गेट तक मे पहुँच कर इलाज के अभाव मे दम तोड़ा हे... हास्पिटलस ने मरीज़ो को एडमिट ही नही किया ओर भगा रहे हे...  इसमे भी सबसे ज़्यादा दर्द नाक डिलीवरी की महिलाए  जिसके हम 8000 देते हे ओर आपरेशन कै 18000... खुद मेरी भांजी को उन 4  बडे हास्पिटलस ने मना कर दिया एडमिट करने से जिनके मेनेजर मालिको से खास संबंध हे... एक हास्पिटल ने किया आपरेशन करना पड़ेगा खान साब 65000 लगेगे दवा गोली अलग से... 18000 वाला आपरेशन का 65000... सोचिए एक गरीब मरीज़ होती तो क्या होता उसका... एक बार फिर यह जो मरे हे पोस्ट मार्टम हूआ नही मृत्यु का कारण अज्ञात??? इनकी अंतिम क्रिया मे सारा परिवार शामिल हूआ अगर उनमे से 10 भी कोरोना पॉजेटिव थे यदि तो इस शहर का ईश्वर अल्लाह ही निगहबान है...
क्या वास्तव मे हम डर से मर रहे हे ? !
हमारे शहर मे हर रोज़ 6-8 मरीज़ो कै दिल के बायपास इतने ही ब्रेन के ओर ढेरो एमरजैंसी आपरेशन होते हे... अब नही हो रहे हे, लोगो को समय पर इलाज के लिए डाक्टर उपलब्ध नही हे... डायबिटीज़ बी.पी. केन्सर, प्रोस्टेट व युरो लाजी, कार्डियोलाजी व जीवनरक्षक दवाइया जो मरीज़ हर रोज़ ले रहे हे वह सब दवाइया, दवा बाज़ार तक  मे भी नही मिल रही हे...
ओर आप कहते हे लोग डर से मर रहे हे यह शर्मनाक बयान हे... आपको नही लिखना चाहिए यह शोभा नही देता हे... कई लोग जो दिन रात आपके साथ उठते बेठते हंसते खिलखिला कर अट्ठाहास लगाते हे... वह अन्दर से कइ बार बीमार होते हे ओर दिन भर मे 8-10 गोलियो के सहारै अपनी ज़िन्दगी की गाड़ी चलाकर अपने को समाज के सामने खुश दिखाने की कोशिश करते हे...
इसलिए जब आप यह बोल रहे हे कि लोग "डर" से मर रहे है तो आप उनकी बे-इज़्ज़ती कर रहे हे!!! बन्द करिए यह बोलना... वह समय पर "उचित इलाज" ओर दवाइयो के अभाव मे मर रहे हे............
कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन के दौरान मध्य प्रदेश के भिंड जिले में गरीब महिलाओं को प्रधानमंत्री जनधन योजना से 500 रुपये लेना महंगा पड़ गया. पुलिस ने सोशल डिस्टेंसिंग का उल्लंघन करने पर 39 गरीब महिलाओं को जेल में बंद कर दिया.
इतना ही नहीं, पुलिस ने महिलाओं पर धारा 151 के तहत कार्रवाई भी की. लिहाजा इन महिलाओं को 4 घंटे जेल में गुजारना पड़ा. इन महिलाओं को 10-10 हजार रुपये के मुचलके पर एसडीएम कोर्ट से जमानत मिलने के बाद छोड़ा गया. इस कार्रवाई के दौरान पुलिस की भी लापरवाही सामने आई और पुलिस ने खुद सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं किया.
कोरोना पर फुल कवरेज के लि‍ए यहां क्ल‍िक करें
दूसरों को सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराने वाली पुलिस ने इन 39 महिलाओं को हिरासत में लेकर एक ही वाहन में भरकर ले गई. इसके बाद इन महिलाओं को अस्थायी जेल में बंद कर दिया गया.
कोरोना कमांडोज़ का हौसला बढ़ाएं और उन्हें शुक्रिया कहें...
कोरोना वायरस को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन की वजह से लोगों का कामकाज ठप हो गया है और गरीबों को खाने के लाले पड़ रहे हैं. इसी के चलते सरकार ने गरीब लोगों के खाते में 500 रुपये डाले हैं, जिसे निकालने के लिए बैंक के बाहर एक लंबी लाइन लग गई.
लॉकडाउन के उल्लंघन की जानकारी जब पुलिस को लगी, तो पुलिस फौरन पहुंची और इन महिलाओं को समझाया कि वो सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें. लेकिन ये महिलाएं नहीं मानीं. फिर इन पर एक्शन लिया और इनको हिरासत में ले लिया.(आजतक )
भाजपा के साइबर सैल  की पोल खोल-2 -
पिछले कई दिनों से सोशल मीडिया में एक मैसेज वायरल किया जा रहा है। इसमें लिखा है- ‘आज रात 12 बजे से देशभर में डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट लागू हो चुका है। इसके बाद सरकारी विभागों को छोड़कर अन्य कोई भी नागरिक कोरोनावायरस से संबंधित किसी भी तरह की जानकारी शेयर नहीं कर सकेगा। ऐसा करने पर कानूनी कार्रवाई होगी। वायरल मैसेज में वॉट्सऐप ग्रुप एडमिंस को भी सलाह दी गई है कि वे यह मैसेज अपने ग्रुप में फॉरवर्ड कर दें।’ इस मैसेज के साथ ही न्यूज वेबसाइट लॉइव लॉ की लिंक भी वायरल की गई है। लाइव लॉ ने खुद अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से इस वायरल दावे का खंडन किया है। वेबसाइट की तरफ से किए गए ट्वीट में लिखा है कि लाइव लॉ की रिपोर्ट के साथ एक फेक मैसेज वॉट्सऐप ग्रुप में वायरल किया जा रहा है। कृपया इसे साझा न करें।
दरअसल यह पूरा मामला तब शुरू हुआ, जब केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील करते हुए कहा कि कोविड-19 से जुड़ी किसी भी खबर को प्रकाशित, प्रचारित या टेलीकास्ट करने के पहले पुष्टि की अनिवार्यता की जाए। सरकार द्वारा उपलब्ध करवाए गए मैकेनिज्म में दावों की पड़ताल के बाद ही कोविड-19 से जुड़ी कोई भी जानकारी प्रचारित-प्रसारित हो।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने 31 मार्च को इस संबंध में कहा, ‘महामारी के बारे में स्वतंत्र चर्चा में हस्तक्षेप करने का हमारा इरादा नहीं है, लेकिन मीडिया को घटनाक्रम की जानकारी आधिकारिक पुष्टि के बाद प्रकाशित-प्रचारित किए जाने के निर्देश हैं।’ सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस एसए बोबडे और जस्टिस एल नागेश्वर राव की पीठ ने पाया, ‘लॉकडाउन के दौरान शहरों में काम करने वाले मजदूरों की बड़ी संख्या में फेक न्यूज के चलते घबराहट पैदा हुई कि लॉकडाउन तीन महीने से ज्यादा समय तक जारी रहेगा। जिन्होंने इस तरह की खबरों पर यकीन किया, उन लोगों के लिए माइग्रेशन (प्रवासन) अनकही पीड़ा बन गया। इस प्रक्रिया में कुछ ने अपना जीवन खो दिया। इसलिए हमारे लिए यह संभव नहीं है कि इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट या सोशल मीडिया द्वारा फर्जी खबरों को नजरअंदाज किया जाए।’ हालांकि कोर्ट ने ऐसा कोई निर्देश जारी नहीं किया है जो कोविड-19 से जुड़ी जानकारी साझा करने पर रोक लगाता हो। कोर्ट ने फर्जी खबरों पर चितां जरूर जताई है साथ ही मीडिया को रिपोर्टिंग में ज्यादा सावधानी बरतने के निर्देश दिए हैं।
कोरोना से संबंधित मैसेज शेयर न करने से संबंधित जानकारी की पुष्टि के लिए हमने भोपाल रेंज के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक उपेंद्र जैन से बात की। उन्होंने बताया कि सिर्फ कोरोना नहीं, बल्कि किसी भी तरह की भ्रामक जानकारी वायरल कर यदि भय का माहौल बनाया जाता है या आपसी सौहार्द बिगाड़ा जाता है तो पुलिस ऐसे व्यक्ति के खिलाफ एक्शन ले सकती है। उन्होंने कहा कि बिना पुष्टि के किसी भी जानकारी को वॉट्सऐप या किसी दूसरे प्लेटफॉर्म पर शेयर नहीं किया जाना चाहिए।
भारत सरकार के पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी) ने भी वायरल दावे का खंडन करते हुए ट्वीट किया कि, सरकार द्वारा कोविड-19 को लेकर किसी भी तरह की जानकारी शेयर करने पर रोक लगाने का दावा करने वाला मैसेज फर्जी है।
मुसलमानों के खिलाफ चल रहे असत्य अभियान को बेनकाब करो-3-
सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है। इसमें मुस्लिमों का एक समूह बर्तनों को चाटते हुए दिख रहा है। दावा है कि कोरोनावायरस को फैलाने के लिए ऐसा किया जा रहा है। हमारी पड़ताल में वायरल दावा झूठा निकला। कई यूजर्स इस वीडियो को दिल्ली के निजामुद्दीन का बता रहे हैं। निजामुद्दीन को हॉटस्पॉट के तौर पर चिन्हित किया गया है। यहीं तब्लीगी जमात के ढेरों लोग कोरोना पॉजिटिव मिले हैं।
रिवर्स सर्चिंग में पता चला कि वायरल वीडियो जुलाई 2018 का है। सर्चिंग में वायरल वीडियो हमें वीमो पर मिला। इसमें दी गई जानकारी के मुताबिक, वीडियो में दिख रहे लोग दाउदी बोहरा हैं जो बर्तनों में कुछ भी जूठा न छूटे इस मकसद से बर्तनों को साफ कर रहे थे। इसमें ये जानकारी भी दी गई कि, ऐसा दाऊदी बोहरा समुदाय के सर्वोच्च धर्मगुरू सैयदना मुफ़द्दल सैफ़ुद्दीन के आदेश पर किया गया था।
मुसलमानों के खिलाफ चल रहे असत्य अभियान को बेनकाब करो   -2-
कोरोनावायरस को लेकर कई अफवाहें सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं। इनकी सच्चाई भी लगातार सामने लाई जा रही है। अब न्यूज एजेंसी एएनआई द्वारा दी गई जानकारी को नोएडा के गौतम बुद्ध नगर के डीसीपी ने गलत बताया है। न्यूज एजेंसी 'एएनआई ने 7 अप्रैल को गौतम बुद्ध नगर के डीसीपी संकल्प शर्मा का हवाला देते हुए ट्वीट किया था कि, नोएडा के हरौला के सेक्टर 5 में जो तबलीगी जमात के सदस्यों के संपर्क में आए थे, उन्हें क्वारेंटाइन कर दिया गया है।'
न्यूज एजेंसी के इस ट्विट को एएनआई की एडिटर स्मिता प्रकाश ने भी ट्विट करते हुए लिखा था कि नोएडा में सुरक्षित रहें।
अब इस दावे को डीसीपी नोएडा द्वारा ही झूठा बताया गया है। डीसीपी नोएडा ने अपने आधिकारिक ट्वीटर हैंडल से एएनआई को टैग करते हुए लिखा कि,' ऐसे लोग जो कोरोना पॉजिटिव के संपर्क में आए थे, उन्हें निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार क्वारेंटाइन किया गया। तब्लीगी जमात का जिक्र नहीं था। आप गलत हवाला देते हुए फर्जी खबरें फैला रहे हैं।'
https://www.youtube.com/channel/UCcfTgcf0LR5be5x7pdqb5AA

1 comment:

जनविमुख व्यवस्था के प्रति गहरे असंतोष के कवि हैं संतोष पटेल

  जनविमुख व्यवस्था के प्रति गहरे असंतोष के कवि हैं संतोष पटेल  साहित्य वह कला है, जो मानव अनुभव, भावनाओं, विचारों और जीवन के विभिन्न पहलुओं ...