1.राजभाषा हिंदी की विशेषताएं
साहित्यिक हिंदी में जहाँ अभिधा, लक्षणा और व्यंजना के माध्यम से अभिव्यक्ति की जाती है। राजभाषा हिंदी में केवल अभिधा का ही प्रयोग होता है।
साहित्यिक हिंदी में एकाधिकार्थता-चाहे शब्द के स्तर पर हो चाहे वाक्य के स्तर पर, काव्य-सौन्दर्य के अनुकूल मगण जाते हैं। इसके विपरीत राजभाषा हिंदी में सदैव एकार्थता ही काम्य होती है।
राजभाषा अपने अपभाषिक शब्दों में भी हिंदी की अन्य प्रयुक्तियों से पूर्णत: भिन्न है। इसकी अधिकांश शब्द संभावना: कार्यालयी प्रयोगों के लिए ही उसके अपने अर्थ में प्रयुक्त होते हैं। जैसे:
आयुक्त = आयुक्त
निविदा = निविदा
विवाचक = मध्यस्थ
आयोग = आयोग
प्रशासककी = प्रशासनिक
मन्त्रमाला = मंत्रालय
उन्मूलन = उन्मूलन
आबंटन = सर्व आदि।
हिंदी में लेखन: समस्रोय घटकों से ही शब्दों की रचना होती है। जैसे संस्कृत शब्द निर्धन + संस्कृत भाव वाचक संज्ञा प्रत्यय = ता ’= निर्धनता। किन्तु अरबी-फारसी शब्द गरीब + ता = गरीबियत। किन्तु अरबी-फ़ासी शब्द गरीब + अरबी-फ़ासी भाव वाचक संज्ञा प्रत्यय 'ई' = गरीबी। हिंदी में न तो निर्धन + ई = निर्धनी बनेगा और न ही गरीब + ता = गरीबियत। लेकिन राजभाषा में काफी सारे शब्द प्रतिकूल भाष्य घटकों से बने है। जैसे:
उपनयन = उप-देने वाला
जिलाधिकारी = कलेक्टर
उपजिला = उप-जिला
अरुद्दीन = बेपर्दा
असत्यन्ते = बिना रुके
अपंजीकृत = अपंजीकृत
मुद्राबन्द = सील
राशन-अधिकारी = राशन-अधिकारी… आदि। अंग्रेजी, फ्रेंच, चीनी, रूसी आदि समृद्ध भाषाओं में एक ही शैली मिलती है, पर राजभाषा हिंदी में एक ही शब्द के लिए कई शब्द हैं। जैसे
कार्यालय -दफ़र - कार्यालय
न्यायालय-अदालत-कोर्ट-कचहरी
शपथ-पत्र-हलफनामा-एफिडेविट
विवाह-विवाह-निकाह आदि।
राजभाषा हिंदी का प्रयोग राजतन्त्र का कोई व्यक्ति करता है जो प्रयोग के समय व्यक्ति न हो कर तंत्र का एक अंग होता है। इसलिए वह वैयक्तिक रूप से कुछ न कहकर निर्वैयक्तिक रूप से कहता है। यही कारण है कि हिंदी की अन्य प्रयुक्तियों में जबकी कतर्ृवाच्य की प्रधानता होती है, राजभाषा हिंदी के कार्यालयी रूप में कर्मवाच्य की प्रधानता होती है। इसमें कथन व्यक्ति-सापेक्ष न होकर व्यक्ति-निरपेक्ष होता है। जैसे: 'सर्वदेश को इंगित किया जाता है', 'कार्यवाही की जाए', 'स्वीकृति दी जा सकती है' आदि।
जहाँ तक 'राजभाषा हिंदी' के क्षेत्र का प्रश्न है, इसके प्रयोग के तीन क्षेत्र हैं: 1. विधायिका, 2. कार्यपालिका और 3. न्यायपालिका। ये राष्ट्र के तीन प्रमुख अंग हैं।
राजभाषा के कार्य क्षेत्रों को अधिक स्पष्ट करते हुए आचार्य देवेन्द्रनाथ शर्मा ने 'राष्ट्रभाषा हिंदी: समस्याएँ और समाधान' में लिखा है: 'राजभाषा का प्रयोग मुख्यत: चार क्षेत्रों में अभिप्रेत है-शासन, विधान, न्यायपालिका और कार्यपालिका। ये चारों में किस भाषा का प्रयोग उसे राजभाषा सगा करते हैं। राजभाषा का यही अभिप्राय और उपयोग है। '
No comments:
Post a Comment