"कबीरदास" पर प्रमुख साहित्याचार्यों का निम्नलिखित वक्तव्य निधि :-
◆कबीर के विषय में प्रसिद्ध कथन◆ :-
कबीर संत पहले थे, कवि बाद में - रामकुमार वर्मा
कबीर एक अच्छे संत और समाज सुधारक थे - रामशंकर शुक्ल रसाल
संतमत के समस्त कवियों में कबीर सबसे अधिक प्रभावशाली एवं मौलिक थे - डॉ नगेंद्र
जिनकी जाति नहीं होती, कबीर ऐसे थे - ग्रियर्सन
"कबीर दार्शनिक न होकर आध्यात्मिक पुरुष मात्र हैं - पीतांबर दत्त बड़थ्वाल
"संत कवियों में कबीर के बाद के कवि वैसे ही दिखाई पड़ते हैं जैसे चंद्रोदय के बाद नक्षत्रमालिकाएँ l"- बच्चन सिंह
"हिन्दुओ और मुसलमानो की साम्प्रदायिक सीमा को तोड़कर उन्हें एक ही भावधारा में बहाने की शक्ति कबीर में है"-डॉ रामकुमार वर्मा
कबीर धर्मोपदेशक थे - शुक्ल
प्रतिभा उनमें बड़ी प्रखर थी - शुक्ल
*तार्किकता के क्षेत्र में अत्यंत शुष्क,तीक्ष्ण एवं हृदय हीन प्रतीत होने वाले कबीर भक्ति की भावधारा में बहते समय सबसे आगे दिखाई पड़ते हैं और अपनी निरक्षरता की खुले आम घोषणा करते हुए भी जब आवेश में आते हैं तो रूपको अलंकारों और प्रतीकों की ऐसी झड़ी लगा देते हैं मानो वे सारे काव्य शास्त्र में पारंगत हो । वे युगावतार की विशेष क्षमता लेकर अवतरित हुए थे* - गणपति चन्द्र गुप्त
कबीर प्रधानत :उपदेशक और समाज सुधारक थे - लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय
यह कहना कि वे समाज सुधारक थे ग़लत है l यह कहना कि वे धर्म सुधारक थे और भी गलत है l यदि सुधारक थे तो रैडिकल सुधारक - डॉ बच्चन सिंह
" हिंदी साहित्य के हज़ार वर्षों के इतिहास में कबीर जैसा व्यक्तित्व लेकर कोई उत्पन्न नही हुआ।महिमा में यह व्यक्तित्व केवल एक ही प्रतिद्वंद्वी जानता है - तुलसीदास।"-हजारी प्रसाद (कबीर)
कबीर मस्तमौला थे l जो कुछ कहते थे साफ कहते थे - हजारी प्रसाद द्विवेदी
कबीरदास मुख्य रूप से भक्त थे l वे उन निरर्थक आचारों को व्यर्थ समझते थे जो असली बात को ढँक देते हैं और झूठी बातों को प्राधान्य दे देते हैं - हजारी प्रसाद जी
कबीर अपने युग के सबसे बड़े क्रांतदर्शी थे - हजारी प्रसाद जी
वे मुसलमान होकर भी असल मुसलमान नहीं थे l वे हिंदू होकर भी हिंदू नहीं थे l वे साधु होकर भी साधु नहीं थे l वे वैष्णव होकर भी वैष्णव नहीं थे l वे योगी होकर भी योगी नहीं थे l वे कुछ भगवान् की ओर से ही सबसे न्यारे बनाकर भेजे गए थे - हजारी प्रसाद जी
वे (कबीर) भगवान् के नृसिंहावतार की मानो प्रतिमूर्ति थे - हजारी प्रसाद जी
कबीर में काव्य - कम काव्यानुभूति अधिक है - लक्ष्मी सागर वार्ष्णेय
कबीर रहस्यवादी संत और धर्मगुरू होने के साथ साथ वे भावप्रवण कवि भी थे - डॉ बच्चन सिंह
ये महात्मा बड़ी स्वतंत्र प्रकृति के थे l ये रुढ़िवाद के कट्टर विरोधी थे - बाबू गुलाब राय
कबीर पढ़े लिखे नहीं थे, उन्हें सुनी सुनाई बातों का ज्ञान था, वे मूलतः समाज सुधारक थे - एेसी उक्तियाँ कबीर के विवेचन और मूल्यांकन में अप्रासंगिक बिंदु है - रामस्वरूप चतुर्वेदी
"कबीर के समकक्ष गोस्वामी तुलसीदास है l"-डॉ बच्चन सिंह
कबीर में, कई तरह के रंग है, भाषा के भी और संवेदना के भी l हिंदी की बहुरूपी प्रकृति उनमें खूब खुली है l -रामस्वरूप चतुर्वेदी‘‘
कबीर सच्चे समाज सुधारक थे जिन्होंने दोनो धर्मों हिन्दू - मुस्लिम की भलाई बुराई देखी एवं परखी और केवल कटु आलोचना ही नहीं की अपितु दोनों धर्मावलम्बियों को मार्ग दिखलाया। जिस पर चलकर मानव मात्र ही नहीं समस्त प्राणी जगत का कल्याण हो सकता है।-द्वारिका प्रसाद सक्सेना
वे साधना के क्षेत्र में युग - गुरु थे और साहित्य के क्षेत्र में भविष्य के सृष्टा - हजारी प्रसाद द्विवेदी
"लोकप्रियता में उनके (कबीर) समकक्ष गोस्वामी तुलसीदास है l तुलसी बड़े कवि हैं, उनका सौंदर्यबोध पारम्परिक और आदर्शवादी है l कबीर का सौंदर्यबोध अपारंपरिक और यथार्थवादी है l"- डॉ बच्चन सिंह
कबीर ही हिंदी के सर्वप्रथम रहस्यवादी कवि हुए - श्याम सुंदर दास
" आज तक हिंदी में ऐसा जबर्दस्त व्यंग्य लेखक नहीं हुआ " - हजारीप्रसाद द्विवेदी
कबीर अपने युग के सबसे बड़े क्रांतदर्शी थे - हजारी प्रसाद
"समूचे भक्तिकाल में कबीर की तरह का जाति - पाँति विरोधी आक्रामक और मूर्तिभंजक तेवर किसी का न था l जनता पर तुलसी के बाद सबसे अधिक प्रभाव कबीर का था l"-बच्चन सिंह
कबीर पहुँचे हुए ज्ञानी थे l उनका ज्ञान पोथियों की नकल नहीं था और न वह सुनी सुनाई बातों का बेमेल भंडार ही था -श्याम सुंदर दास
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●नोट :-
इस संकलन में समकालीन साहित्याचार्यों का कबीर पर विशेष सूक्ति या कथन संकलित करना है।कृपया आप अवश्य बताएँ , कामेंट में।
"प्रार्थी"
युवा कवि गोलेन्द्र पटेल
बीएचयू~बीए ,द्वितीय वर्ष
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