1.
यौवन की दहलीज़ पर
खड़ा मन
कैसे ढ़ो पाया होगा
सूखी लकड़ियों का गठ्ठर अपने सिर पर
जब ओढ़नी चाहिए थी उसे
लाल चुनरिया गोटे वाली ।
उसके उम्र की लड़कियाँ
जब अपने बच्चे को छाती से लगाये
सोती होंगी सर्द रातों में
अपनी ममता को संतुष्ट करती
चैन की नींद ।
उस उम्र में अन्तस के वात्सल्य को
आले में एक कोने में छुपा कर
कैसे रखा होगा उसने गठ्ठर
अपने सिरहाने ।
जब सब कस रहे थे
अपने सपनों को
श्रम की कसौटी पर
जी रहे थे भरपूर जीवन प्रिय की कोमल बाँहों में
वह चल रही थी लगातार
अपने जिस्म की आग को राख करती
गठरी और पगडंडी के बीच सामंजस्य बैठाती
उस रास्ते पर
जो किसी ठौर तक नहीं जाते थे।
बुधनी हो या मीता
दूसरों के लिए जीवन भर गठ्ठर ढोती स्त्री को
नहीं पता होता
वह स्वयं ही दे रही है
स्वयं को मुखाग्नि ।---------रचना।
2.
समय कब रूका है
किसी की मुँडेर ।
वह तो झप्प से उड़ जाता है
जैसे आँख खुलते ही
खट्ट से खो जाता है सपना
गुम हो जाता है तुम्हारा चेहरा ।
मैं फिर से करने लगती हूँ
रात होने की प्रतीक्षा
जी सकूँ
सुकून के दो पल तुम्हारे साथ ।
काश विरह भी होता समय की तरह
आँख खुलते ही
झप्प से उड़ जाता
हमारी मुँडेर से । -------रचना ।
3.
तुम्हारा प्यार
मुझमें असीमित संभावनाओं को जन्म देता है
जैसे मिट्टी जन्म देती है
सुन्दर फूलों और फलों को
बादल के बरसने पर ।
तुम्हारा प्यार
भरता है मुझमें सोंधी गन्ध
एक एहसास से ऊर्जित रहती हूँ
आस पास हरीतिमा भरते तुम्हारे शब्द
मुझमें स्पंदित रखते हैं
स्त्री होने के भाव को ।
प्यार में होना
जीवन की उच्चता में होना है । ------रचना ।
4.
मेघ आये द्वार हमारे
आओ चलें आँचल फैलायें
समेट लायें वर्षा की बूँदें |
तपते - तपते तन को मन को
शीतल - निर्मल करनेवाली
रिमझिम - रिमझिम गिरती झरती
बर्फीली सी , कुछ शर्मीली
मुझको जीवन देती है |
धरती को रंग देने वाली
वृक्षों को धो देने वाली
नदियों में लहरें भर देती
मन में नया उमंग - उल्लास |
छोटी - छोटी पर बलवान
खुद में भर ताकत अपार
सब को जीवन दे जाती हैं |
मत रोको अब खुद को घर में ,
आँगन में आओ सब भींगो
बूंदों से तुम जीना सीखो
सबको जीवन देना सीखो | ..................... रचना |
5.
मेरे लिए तुम्हारे आँखों की घृणा
मेरी उपलब्धियों पर तुम्हारी ख़ामोशी
कुछ भी श्रेष्ठ मेरे पास न हो इसकी कामना
कोई भी मुझसे प्यार न करे इसकी प्रार्थना
और मेरे आस-पास के लोगों में
मेरे प्रति घृणा भरने की कोशिश
मुझे कोई कुछ न दे यह भावना
इन सब ने मुझे योग्य और मजबूत बनाने में
बड़ी भूमिका निभायी है
मैं तुम्हारी घृणा और तुम्हारे असहयोग के लिए
तुम्हारी उतनी ही ऋणी हूँ
जितना कोई सुडौल घड़ा
होता है ऋणी
कुम्हार के प्रति ।
मैं अब तैयार हूँ और भी ज्यादा
आग में तपाये जाने के लिए
मेरी प्रार्थना है
मुझसे मेरा सब कुछ छीन लिया जाये
मुझमें नमी रहेगी तो मैं
नव सृजन करूँगी
कर्मठता होगी तो
अन्तिम साँस तक लड़ूँगी । ---------रचना।
6.
उसकी महफिल में मेरे जाने पर इतनी पाबन्दियाॅ थीं
हमारी मुलाकात भी होती तो किस तरह होती
मिल जाता गर कोई शख्स रस्ते में आता जाता
पूछ लेती हाल उसकी बीमारियों का मैं
रहना फिक्रमंद मेरी आदत तो न थी कभी
वो शख्स ऐसा था कि फिर फिर याद आता था--- रचना
7
वह मेरे भाल पर लिखता रहा अपना नाम
मैं खामोश चुपचाप
उसके कंधे पर सिर टिकाए बैठी रही ।
कई दिनों तक यूं ही ख़ामोश
जैसे कोई शब्द ना हो मेरे पास ।
ऊँनींदी सी उन आंखों को मैं
खोलना भी नहीं चाहती थी
पलकों पर रखे ख्वाब खहीं गिर ना जाए
जबकि मैं कहना चाहती थी बहुत कुछ
बहुत कुछ पूछने और जानने के लिए भी था मेरे पास
पर सच है
कुछ क्षण ख़ामोशी में ही
जिये जाने चाहिए
प्रेम
खामोशी में भी बहुत कुछ कहता है।-------रचना ।
8.
पर्यावरण दिवस पर विशेष।
मुट्ठी भर छावं .................
यहाँ से वहाँ तक
फैली धरती पर
अनगिनत संख्या में लगे हैं
वृक्ष |
पर कोई घना छायादार नहीं
कुछ की ऊँचाई तो
आश्रितों से भी कम
कुछ इतने ऊँचे
कि
आश्रयदाता हो ही नहीं सकते |
शायद
वातावरण में फैली विसंगतियों ने
मनुष्य के साथ ही
छीन लिये हैं
वृक्षों के भी संस्कार |
या फिर
लोगों ने ही
बंद कर दिये हैं लगाने
ऊँचाइयों से
धरती की ओर जानेवाले
जड़ों से युक्त
वटवृक्ष |
आओ
हम सब प्रण करें
और लगायें
मात्र एक ऐसा वृक्ष
जिसकी जड़ें
धरती में गहरा जाएँ
और जो
भविष्य में हमें दे सके
निर्मल निश्छल
मुट्ठी भर छावं |.................रचना |
9.
कुछ अलग सी बस्तियों में
दोस्त अब रहने लगे हैं
जो कभी हमनवा थे
अजनबी लगने लगे हैं |
डरी हुयी आँखें हैं सबकी
मुस्कुराहटें ठहरी हुयी हैं
खोयी खिलखिलाहटें हैं सबकी
मुलाकातें अजनबी हुयी हैं |
मौत के डर से हैं सहमें
चाहतों के सिलसिले
जो गले लगते थीं हरदम
बाहें वो अजनबी हुयी हैं |
कुछ अलग सी बस्तियों में
दोस्त अब रहने लगे हैं
जो कभी हमनवा थे
अजनबी लगने लगे हैं |---------------रचना |
10.
जैसे किसी ने लूट लिया हो
मेरा खजाना
ऐसा था माँ
तुम्हारा जाना ।
***********************
नहीं पहुँच पाता था
कोई आघात
मुझ तक
तुम
कवच थी माँ ।
************************
दुःख
लांघते नहीं थे देहरी
जब
तुम साथ थी माँ ।
***************************
जब-जब
ठण्डी हवा चली
तुम बहुत याद आयी
माँ । -------------------------रचना ।
11.
कभी साथ तेरे
दीप दो
गंगा में प्रवाहित कर सकूँ
कर सकूँ मैं आचमन
संग में तुम्हारे
और मेरे भीगे ललाट पर तुम
रक्तिम चंदन की टिकुली लगा
शेष मेरी माँग में छुआ दो
पूर्ण समझूँगी उसी दिन शिवार्चन को ।-------रचना।
12.
एक शाम
आँख में रुका सपना ढलक गया
सिन्दूरी रंग बिखर गया
शाम के धुँधलके में
एक साया जो अलग हुआ
अपनी सुगन्ध छोड गया
भटकती रह गयी मैं
जैसे मृग ।--------रचना ।
साहित्यिक परिचय :-
बनारस में जन्मी,पली बढी और वर्तमान में बनारस के ही राजकीय महिला महाविधालय में बतौर एसोसिऐट प्रोफेसर अध्यापन कर रही कवयित्री रचना शर्मा ने स्नातकोत्तर डिग्री करने के बाद पी-एच डी की। बनारस में जन्मी,पली बढी हैं, जाहिर है साहित्य और संस्कृति से लगाव पैदाइशी है। रचना शर्मा की कविताएं और लेख हिन्दुस्तान, कादम्बिनी,सोच विचार, गर्भनाल,कविताम्भरा,प्रज्ञा पथ,उत्तर प्रदेश आदि पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके है ।अभी तक उनके तीन कविता संग्रह अंतर पथ(2012), नींद के हिस्से में कुछ रात भी आने दो (2015) तथा नदी अब मौन है(2019) प्रकाशित हो चुके है। इसके अलावा एक निबन्ध संग्रह पुरातन संस्कृ्ति अधुनातन दृष्टि (2019) तथा काशी के पौराणिक इतिहास पर आधारित पुस्तक काशीखण्ड और काशी प्रकाशित (2010)हो चुकी है । रचना शर्मा 70 राष्ट्रीय एवं 20 अर्न्तराष्ट्रीय स्तर की संगोष्टियों में प्रतिभाग कर चुकी है तथा उनके तीस से अधिक शोध पत्र प्रकाशित हो चुके है। रचना शर्मा को
साहित्य श्री सम्मान 2014
मातृ शक्ति सम्मान 2015 भारतीय भाषा सम्मान 2015 शब्द साधना सम्मान 2016 (इनाल्को यूनिवर्सिटी पेरिस में प्रदत्त )
उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान द्वारा शब्द शिल्पी सम्मान 2018 से नवाजा जा चुका है ।
रचना शर्मा की रचना धर्मिता के बारे में ख्यात समीक्षक ओम निश्चल कहते है कि कवयित्री रचना शर्मा के तीन संग्रह अंतर पथ, नींद के हिस्से में कुछ रात भी आने दो तथा नदी अब मौन है प्रकाशित हो चुके है । अंतर पथ उनके सहृदय चित्त की बानगी देने वाला संग्रह था तो नींद के हिस्से में कुछ रात भी आने दो स्त्री मन की भावनाओं का ज्ञापन,जिसमें छोटी छोटी रचनाओं में प्रश्नानकुलता के साथ वे जीवन जगत के अपने अनुभवों को संवेदना की शीतल पाटी पर उकेरती है। नदी अब मौन है संग्रह में कवयित्री का मन पर्यावरण और प्रकृति के साहचर्य में अपनी कल्पना के ताने बाने बुनता है तो जीवन में सहज ही आयत्त प्रेम की कल्पनाओं में डूबता भी है । जीवन जितना कुदरत से दूर होता जा रहा है उतना ही प्रेम से रिक्त। रचना शर्मा की कविताएं जीवन को प्रेम और कुदरत के साहचर्य से संवलित करने का उपक्रम है। उनकी कविताओं में स्त्री की तमाम कोमल अभिलाषाएं है तो प्रीत की डोर में बंधने से लेकर नदियों के कूल किनारे ,प्रकृति के मंडप तले परिणय रचाने की उत्कंठा भी ।
👆👇
एसोसिऐट प्रोफेसर, संस्कृत
राजकीय महिला महाविद्यालय,
डी.एल.डबल्यू,वाराणसी
इ.मेल : rachanasrachana@gmail.com.
प्रकाशित पस्तकें 05
1. काशीखण्ड और काशी ( काशी के पौराणिक इतिहास पर आधारित पुस्तक )
2. अन्तर-पथ (कविता संग्रह )
3. नींद के हिस्से में कुछ रात भी आने दो (कविता संग्रह )
4.पुरातन संस्कृति अधुनातन दृष्टि ।( निबन्ध संग्रह )
5. नदी अब मौन है ( कविता संग्रह )
प्रकाशित शोध –पत्रों की संख्या - 30
क्रियेटिव राइटिंग ---- हिन्दुस्तान, कादम्बिनी ,सोच-विचार,गर्भनाल,कविताम्बरा ,प्रज्ञा-पथ,
उत्तर प्रदेश ,आदि पत्र पत्रिकाओं में कवितायेेँ एव॔ लेख प्रकाशित ।
अंतर-राष्ट्रीय तथा राष्ट्रीय संगोष्ठीयों में प्रतिभाग और प्रस्तुत शोध पत्र ।
कुल 90 संगोष्ठियों में प्रतिभाग ।
अंतर-राष्ट्रीय संगोष्ठियों में प्रस्तुति----------------20
राष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रस्तुति ---------------------70
राज्य स्तरीय संगोष्ठी में प्रस्तुति -----------------09
पुरस्कार एवं सम्मान
1.तमिलनाडु हिन्दी अकादमी द्वारा सम्मान 2014.
2. साहित्य श्री सम्मान 2014
3. मातृ शक्ति सम्मान 2015
4. भारतीय भाषा सम्मान 2015
6. शब्द साधना सम्मान 2016 शुलभ इंटरनेनल द्वारा इनालको यूनिवर्सिटी पेरिस, फ्रांस में प्रदत्त ।
7. शब्द शिल्पी सम्मान 2018 उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान ,लखनऊ ।
9450183026
सम्पर्क सूत्र :-
corojivi@gmail.com
मो.नं. : 🇮🇳 8429249326
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