युवा कवि हरिओम कुमार सिंह की चार कविताएँ
1.
पत्तियाँ आज धरने पर
रात भर गिर कर,
सड़क किनारे पत्तियां ,
आज घरने पर बैठीं हैं।
शाखाओं से गिरकर ,
हो शरीर से दुर्बल ,
कुछ पीली कुछ भूरी सी ,
एक दूसरे से
चिपकी पड़ी हैं ,
बसंत के सिपाही
(अच्छे दिन लाने वाले )
खदेड़ते उन्हें बयार से
झोंकतें हैं अपनी पूरी ताकत ,
उठा दें फिर आज
उन्हें धरने से ।
खड़खड़ाता शोर उनका
इधर उधर उड़ कर ,
कि जीवन के इस अंतिम पड़ाव में
या की जला मुझे या दफ़न कर ।
【हाशियाकरण के शिकार तमाम सामाजिक आर्थिक वर्ग जिनकी पहुंच राजनीतिक सत्त्ता तक कम है , उनकी
जायज़ माँगों को सरकारें किस प्रकार दबा देती हैं। और शेष पूरा समाज चुपचाप मौन खड़ा तमाशा देखाता है।
कारण सिर्फ इतना मात्र है कि वह समाज अभी हरा है ।
लेकिन पतझड़ के मौसम में भला कितने दिनों तक ?
इसी बात को केंद्रित करती हुई यह कविता ...हैं।】
2.
सेवा का पुण्य
गगन चूमती
इमारतों के आधार के
समानान्तर
सड़क के उस पार
धरा पर लोटती
बैनर की छत
वाली वो झुग्गी,
जिसमें मंगरुआ आज
तेज ज्वार से पीड़ित है ,
उसी में सर छुपाने की
फ़िराक़ में ,
भवनों से निष्काषित
विधवा...…..... ठंड
उसकी सेवा का
पुण्य कामाना चाहती है।
3.
ये सफेद कुर्ते वाले बगुले
जब चींटियों (श्रमिक वर्ग) की बांबियों में
ढेरों पानी भर जाता है ,
जब केंचुओं (किसान वर्ग) की सांसें
उनके ही बिल में टंग सी जाती हैं ।
जब सभी असहाय कीट पतंगे (पूरा समाज)
पानी में बह जाते हैं ।
और जब जब खेतों में एक महाप्रलय सी आती है ।
तब रात रात भर घने अंधेरों में छिपकर
दम-भर झींगुर चिल्लाते हैं।
(सब शोक मनाते हैं )
और तब ही ये बरसाती मेंढक (अवसरवादी) ऊंचे टीलों पर चढ़ कर टर्राते हैं ।
हमेशा से उसी जल बीच तब तब आकर ,
टाँग उठाकर ...........!
ये सफ़ेद कुर्ते वाले बगुले (नेता )
तप करते हैं और पुण्य कमाते हैं।
【ये राजनेता , प्रलय की स्थिति में हमारे साथ खड़े होकर , यह दिखावा करते हैं कि उनकी भी एक टांग पानी मे डूबी हुई है , अर्थात उन्हें भी कष्ट होता है समाज के दुखों को देखकर, परन्तु यथार्थ कुछ और ही होता है , उन्हें अपनी सियासी रोटियां भुनानी होती हैं , वोट प्राप्त करना उनकी मंशा है , जैसे बगुला उसी एक टांग के तप के फल में अपनी पतली हलक में बड़ी बड़ी मछलियां निगल जाता है , ठीक वैसे ही ये राजनेता जनता के साथ आकर खड़े होकर जनता के ही पैसे गटक जाते हैं @भ्रष्टाचार।】
4.
योजना
लोकतंत्र के एम्बुलेंस में
दहाड़े मार -मार कर चिल्लाती
जनता ,
प्रसव पीड़ा में ,
चीत्कार कर रही अपने पेट के दर्द से आज ,
संभोग के नौ महीने बाद रोती गिड़गिड़ाती
कत्ल कर देना चाहती उस बदहवास शख्श का
जिसने तमाम झूठे वादे समझाए
मुंह नोच ले उसका वह अभी इसी क्षण
तत्काल उठ कर हालातों के स्ट्रेचर से
जिसने सुख के सारे चाँद दिखाए ।
और इसी बीच जन देती है
वह एक अवैध बच्चा ," योजना"
जिसकी वह अभागिन कुलटा मां है ।
और संकल्प लेती है
मजबूत करने का
उसके खोखले दुर्बल नाजुक कंधे को
जिस पर अब उसके पिता की अर्थी,
चार साल बाद उठनी है।
【चुनावी वादों से बनी सरकारें ,जब जनता के लिए उन तमाम वादों पर खड़ी नही हो पाती है तब यह जनता उसी स्त्री की भांति स्वयं को ठगी सी महसूस करती है, जिसे उसके प्रेमी ने शादी का झांसा देकर बालात्कार कर डाला हो । और सरकार की यही हितकारी योजनाएं ,जो नाम भर की हैं ।और जिनकी पहुंच जनता से कोसों दूर हैं। जो जनता तक चल कर आते आते थक कर पुनः सरकारों या अफसरों के पास से लौट जाती हैं। या फाइलों में अक्सर सो जाती है। उन्ही की बदौलत इस शासन सत्ता के परिवर्तन की मांग उठती है ।पर यह जनता भी उसी कुलटा नारी की भांति है, जिसे केवल बलात्कार में ही आनंद मिलता है ।और बार बार वह उसी मीठे झांसे में पड़ जाती है।】
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हरिओम कुमार सिंह
संपादक
नाम : गोलेन्द्र पटेल
{युवा कवि व लेखक : साहित्यिक एवं सांस्कृतिक चिंतक}
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