Sunday, 5 September 2021

शिष्य का शब्द : आत्मकथ्य : गोलेन्द्र पटेल (बीएचयू)


 शिष्य का शब्द : आत्मकथ्य //


वैसे आमतौर पर यही कहा जाता है कि पहला गुरु माँ होती है! लेकिन मेरी माँ कहती है। पहला गुरु भूख होती है। चलिये! मैं आप लोगों को कुछ समय के लिए अपने बचपन में ले चलता हूँ। गदहिया गोल से लेकर पहली कक्षा तक मैं पहाड़ी इलाके के एक प्राथमिक विद्यालय (घासीपुर-बसाढ़ी ,अधवारे ,मिर्जापुर) में शिक्षा ग्रहण किया हूँ। उस समय इस विद्यालय की एक विशेषता, यह थी कि इसका प्रत्येक विद्यार्थी दशरथ मांझी था। क्योंकि सभी के पास भूख थी। सभी सहपाठी पहाड़ों में गिट्टी फोड़ा करते थे। और कुछ मेरे सहपाठी आज भी पहाड़ों में काम रहे हैं। कुछ पत्थर प्लांट पर पत्थर चीर रहे हैं। मैं अक्सर इन लोगों से बातचीत करता रहता हूँ। मैं यहाँ उन सभी सहपाठियों के विषय में चर्चा न करके बल्कि एक ऐसे महात्मा सहपाठी का जिक्र करना चाहता हूँ जिन्होंने सर्वप्रथम अपने हिस्से की रोटी मुझे खाने को दिया है। और मेरी माँ बताती है कि उनकी माता ने मुझे अपना स्तन पान कराया है। बहरहाल, साधु स्वभाव के साथी थे। इसलिए मैं उन्हें महंत कहता था। परंतु वास्तविक नाम है इंद्रजीत सिंह। इनके गाँव के लोग इन्हें सुखु व सुखुआ नाम से संबोधित करते हैं। परंतु अब हमउम्र के लोग महंत ही कहते हैं। उम्र में मुझसे कम से कम डेढ़-दू साल बड़े हैं। इंद्रजीत पहाड़ों में काम करते हुए स्नातक तक की शिक्षा ग्रहण कर लिए हैं। आगे की पढ़ाई इसलिए छूटी है कि हालात ने भयंकर लात मारी है। बातचीत के दौरान वे अक्सर कहते हैं कि हालात ठीक होने पर आगे की पढ़ाई जारी कर दूँगा। आप निश्चिंत रहिये।...आप से माफी चाहुँगा। आज मुझे तो अपने शिक्षकों को याद करना है और मैं अपने सहपाठियों को याद कर रहा हूँ।


अब आई दूसरी से तीसरी कक्षा तक की पढ़ाई मैं अपने गाँव के प्राथमिक विद्यालय से ग्रहण किया हूँ। यहाँ के गुरुजनों में कोई खास बात नहीं थी। न ही इस विद्यालय से जुड़ी कोई दिलचस्प प्रसंग ही है। बस एक घटना याद आ रही है कि 26 जनवरी के कार्यक्रम की तैयारी चल रही थी तभी कुछ लड़कियों ने मुझे अपना पहरेदार बना लिया था। वे सब मिलकर स्काउट गाइड का कमर बेल्ट चुराने के लिए मुझे दरवाजे पर खड़ा कर के करीब 20 बेल्ट गायब कर दीं। दो हप्ते तक सभी की धुलाई होती रही। इस पिटाई की वजह से लगभग एक दर्जन बेल्ट लड़कियों ने लौटाई। पर मुझे जो मिला था मैं तो उसी दिन प्राइवेट स्कूल के एक विद्यार्थी को बेच दिया था। लेकिन मैं बच गया क्योंकि वह बेल्ट उस गुरुजी के निगरानी में नहीं था। वह किसी और अत्यंत संवदेनशील शिक्षक के निगरानी में था जिनका केवल एक खोया था और वही मुझे मिला था पहरेदारी का पुरस्कार।


लेकिन गुरुजी मुझसे बहुत ही खफा थे। स्कूल से सटी एक पोखरी है। उन दिनों मेरे गाँव के विद्यालय में शौचालय नहीं था। शौच के लिए हम सब बाहर, यानी खेतों में और सड़कों पर जाते थे। एक दिन शौच के बहाने मैं और मेरे लंगोटी यार उसी पोखरी में बुल्ली-क-बुल्ला (यानी पानी के अंदर छुपा-छुपाई खेल) खेल रहे थे। बिल्कुल नग्न होकर। इस सुनहरा अवसर को आँसुओं में बदलने के लिए दूसरे गोल के एक विद्यार्थी ने हेड सर को खबर लगाई कि हम लोग मैदान के लिए नहीं बल्कि स्नान के लिए छुट्टी माँगे हैं। फिर क्या वहीं हुआ जो नहीं होना चाहिए था। सारा वस्त्र गुरुजी के हाथ में और हम लोगों बिल्कुल नंगा (निर्वस्त्र) मंदिर में लुका गये थे। हम सभी के गार्जियन आये और पिटाई हुई। फिर मैं तीसरी कक्षा के बाद एक प्राइवेट स्कूल में चला गया। मेरे गाँव में कई टोले हैं उसी में से चमरौटी टोला (हरिजन बस्ती) के एक प्राइवेट गुरुजी थे। उनका नाम राजेश है। पिताजी के मित्र थे। इसलिए मुझे अपने विद्यालय में पढ़ने के लिए ले गये। नाम लिखा गया। दो तीन महीने पढ़ाई हुई फिर स्कूल ही बंद हो गया। सब विद्यार्थी भिन्न भिन्न स्कूलों में नाम लिखवा लिए। कुछ दिन बाद प्राथमिक विद्यालय ऐकौनी (नियमताबाद, चंदौली) मेरे घर से करीब तीन-साढ़े तीन किमी. दूरी पर है। इसी स्कूल के चौथी कक्षा में मेरा दाखिल हुआ। वहाँ मुझे तीन गुरुजन मिलें। मनोज सर , ओझा सर और अजय सर से क्रमशः अंग्रेजी-विज्ञान ,हिंदी और गणित हम पढ़ाते थे। हमारा परिवेश और अन्य विषयों को भी तीनों लोग पारी पारा पढ़ाते थे। 


मैं इनके टेस्ट में प्रथम आता था इसलिए वे मुझे मानते थे। कुछ खाने पीने को भी कभी कभी देते थे। लड़कियों का टोली या लड़कों का टोली जब कुकिंग (खाना वगैरह बनाते थे) करते थे तो गुरुजन मुझे भी शिक्षक की तरह बैठा देते थे। मैं खुद को कभी क्लास का मनीटर नहीं समझता था। क्योंकि दूसरे पोजीशन से लेकर चौथे पोजीशन तक मेरे लंगोटी यार ही थे। यहाँ एक प्रसंग मुझे ओमप्रकाश वाल्मीकि की आत्मकत्था की याद आ रही है कि उनसे उनके गुरुजन झाडू लगवाते थे और पानी छिड़कवाते थे। खैर, मेरे जीवन में भी ऐसा हुआ है। मैं भी झाडू लगाया हूँ और पानी छिड़का हूँ। 


छठवीं कक्षा के लिए मैं अपने पोस्ट के पूर्व माध्यमिक विद्यालय महदेवाँ (साहुपुरी, चंदौली) में दाखिला लिया।  वहाँ कोई खास गुरु नहीं थे। सब खबुआहा थे। एक मैम थी खेत्री मिश्रा। वे दिन भर रसोइयाँ झाँकती रहती थीं। यहाँ का खाना (यानी दोपहर का भोजन) सब जगह से अच्छा था। पर पढ़ाई सबसे घटिया। मैं और मेरे मित्र दोपहर को भागकर, बावन बिगहवा में फुटबॉल खेला करते थे। चमकिल्ला में हम लोग कॉपी-किताब-कलम लेकर जाया करते थे। इसलिए भागने में आसानी भी होती थी। इसी बीच पूर्व माध्यमिक विद्यालय ऐकौनी (नियमताबाद, चंदौली) में दो नये अध्यापक आयें। क्रमशः राम अवध यादव और मुमताज अहमद। इन गुरुओं ने मेरी खोजी की। मेरे मित्रों से मुझे संदेशा भेजवायें कि वे मुझसे मिलना चाहते हैं। फिर क्या इसी का लाभ उठाते हुए। मैं महदेवाँ छोड़ दिया। महदेवाँ के हेड सर से कहा था कि गुरुजी मेरे माता पिता नानी के यहाँ जा रहे हैं मैं वहीं पढ़ूँगा। नाक-नूँक करते हुए उन्होंने एक दिन जुलाई में टीस काट दी। मैं ऐकौनी सातवीं कक्षा में एडमिशन ले लिया। पढ़ाई-लिखाई अच्छे से चलने लगी। एक दिन किसी काम से हेड सर ऐकौनी आये हुए थे और मैं ऑफिस में जा पहुंचा। देखते ही सर ने कहा कि क्या गोलेन्द्र इधर ही तुम्हारा ननिआउर है। मैं झूठ बोल दिया कि हाँ।


मुमताज सर और राम अवध सर कभी कभी टेस्ट लेते थे और पुरस्कृत करते थे। इनके पुरस्कारों को पाने में मैं गुरुवर विकास चौहान (एम.ए.पास एक मजदूर पर मेरे गुरु) का सहायता लेता था। वे अक्सर सुबह पाँच बजे मुझे अपने पास बुला लेते थे। और मेरा मार्गदर्शन करते थे। जो भी सवाल होता था उसका उत्तर अति सहजता से देते थे। शिघ्र ही समझ में आ जाता था क्योंकि मैं मजदूर का भाषा जानता हूँ। यह मेरे डीएनए में ही है। मैं नरेगा/मनरेगा वगैरह में काम करता था। वे यह बात जानते थे। उनके साथ भी मजदूरी किया हूँ। तब तक मैं कवि के रूप में आस पास के गाँवों में प्रसिद्ध हो चुका था। विकास सर के साथ गीत वगैरह भी लिखा। इसी दौर में भोजपुरी के कई दिग्गज कलाकारों से मेरा परिचय हुआ। पर वे जैसा गाना/गीत मुझसे लिखवाना चाहते थे। मेरी आत्मा को मंजूर नहीं था। वैसा लिखने के लिए। पर हालात कुछ ऐसी थी कि मैंने लिखा।


आठवीं के बाद मैं रामनगर के सरकारी कॉलेज यानी प्रभु नारायण राजकीय इंटर कॉलेज में पढ़ना चाहता था। जो घर से लगभग दस किमी. दूरी पर है। इसके लिए मुझे एक साइकिल की जरुरत थी। पैसा तो मेरे पास था नहीं। फिर सहपाठी साथियों के साथ लेबरई (यानी मकान का काम) किया। लेबर मंडी में हम सब खड़े थे। वहाँ से सब इधर-उधर, कहीं और चले गए। मैं बस हल्का काम चाहता था क्योंकि उस समय तो मुझे यह भी नहीं पता था कि क-एक-क मलासा बनता है जुड़ाई या ढ़लाई के लिए। बहरहाल, दस बजे के आपपास एक रिटायर्ड कर्नल आये। और पूछा कि छूटू मेरे यहाँ काम करोगे? उत्तर में मैंने प्रश्न किया 'सर' काम क्या है? उन्होंने आश्चर्य से मेरे ओर ताका जैसे मैं उनसे कोई बहुत ही जटिल प्रश्न किया हूँ। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं था। उन्होंने कहा कि बाबू अब तक सब लेबर 'चाचा' वगैरह से मुझे संबोधित किये हैं पर तुम 'सर'। मुझे नहीं लगता है कि तुम मजदूर हो। तब मैंने कहा कि सर! 'मैं कलम का मजदूर नहीं बल्कि कमल के लिए मजदूर हूँ। फिलहाल एक विद्यार्थी हूँ। और लेबरई का मुझे कोई अनुभव नहीं है। नरेगा/मनरेगा से भली भांति परिचित हूँ।' उनसे कुछ ऐसा ही कहा था। 17 दिन उनके यहाँ काम किया। संयोग से वे भी पटेल थे। मकान का डिजाइन किया जा रहा था। मिस्त्री भी पटेल थे और वे भी बनारस के ही थे। एक लेबर और थे जो गाजीपुर के थे और यादव थे। उन्हीं से मैं अपने हिस्से का भारी काम करता था। वैसे , दिन भर में मिस्त्री दादा 51 ईंटें ही जोड़ते थे। बस, सुबह में थोड़ा कठिन काम होता था। लेबरई आखिर लेबरई ही है। जब जादा भारी काम आया तो मैं धीरे से निकल लिया। तब तक काम भर पैसे हो चुके थे।


फिर मैं एक साइकिल खरीदा। उसके बाद रामनगर के राजकीय कॉलेज में एडमिशन लिया। वहाँ मैं चार साल पढ़ा। इस कॉलेज का कोई भी अध्यापक मुझे प्रभावित नहीं किया। हाँ, फिजिक्स जब फँसता था तो गंगा सर से पूछ लेता था तो वे बता देते थे। इसी क्रम में में इंद्रजीत सर और आर.पी. सर से हिन्दी , डॉ. कृपानाथ यादव सर से अंग्रेजी और फिरोज सर से कमेस्ट्री। और अन्य अध्यापकों ने भी कभी कभी मेरी कक्षाएं ली। यहाँ विद्यार्थीगण फेल बहुत जादा होते थे। इसलिए मैं गुरुवर विनोद पटेल सर (सैदपुर, साहुपुरी के निवासी) से सहायता ली। विनोद सर गणित और फिजिक्स पढ़ते हैं। वैसे हैं तो प्राइमरी के शिक्षक। ज्ञान इतना है कि इनसे पढ़कर कोई भी विद्यार्थी आई.आई.टी. आसानी से क्लियर कर सकता है। मुझे तो इनसे बहुत ही कम पढ़ने का अवसर मिला है। बहुत सारे बीटेक की परीक्षाओं को इन्हीं के आशीर्वाद से क्वालिफाई किया हूँ। वैसे विनोद सर दिलेर मनुष्य हैं। बस एक दोष यह है कि कभी भी टाइम पर नहीं आते थे। इनका मार्गदर्शन पाने का अर्थ है आपके पास धैर्य है। आप इंतजार करने में सक्षम हैं। बहुत इंतजार करवाते हैं। इन्हीं के एक मित्र हैं कल्लू गुरुजी। वे भी ऐसे ही हैं। सहज सरल हसमुख प्रकृति के धनी व्यक्ति।


इतना कुछ आप लोगों को बता दिया।  अब मैं बीएचयू  के गुरुजन की ओर बढ़ रहा हूँ। इस यूनिवर्सिटी में मेरा एडमिशन एक अजीब घटना है। मैं बीटेक, बीएससी, बीए की परीक्षाएं दिया था। सभी में क्वालीफाई हुआ था। बीएचयू में भी हो गया था। अब चिंता यह थी कि मैं क्या पढूं? मैं साइंस वर्ग का विद्यार्थी था। तो साइंस लेने में मुझे कोई दिक्कत नहीं थी। पर मैंने महसूस किया कि सांइस में नहीं बल्कि साहित्य में मेरी रुचि है वास्तव में। साइंस तो समाज की वजह से जबरी पढ़ रहा हूँ।  क्योंकि हाईस्कूल के अधिकतर टॉपर समाज के भय से साइंस ले लेते हैं। उस वक्ता वे अपना नहीं, दूसरों का सुनते हैं। खैर, अंतिम तिथि 31 जुलाई को मैं एडमिशन ले लिया। मेरा फिस विकास साइबर रामनगर से जमा किया गया था। 


जैसा कि आप सभी कल के पोस्ट द्वारा यह बात जाने गये हैं कि मेरी पहली मार्गदर्शिका डॉ. शिल्पा सिंह मैम हैं। जिनसे मुझे मूलरामायण पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। अब तक जितनी शिक्षिकाओं ने मुझे पढ़ाया है उसमें सबसे अधिक शिल्पा मैम ने मेरी कक्षाएँ ली हैं। और इस शिक्षक दिवस पर मेरी यही कामना है कि आगे भी शिल्पा मैम की तरह मार्गदर्शिकाएँ मुझे मिलें। बीएचयू में तमाम शिक्षक हैं पर गुरुवर श्रीप्रकाश शुक्ल सर और गुरुवर सदानंद शाही सर बहुत ही जादा मुझे प्रभावित किये हैं। इन दोनों गुरुओ से मुझे साहित्यिक संस्कार प्राप्त हुआ है। इन गुरुओ पर यदि बातचीत करने लगूंगा तो दिन बीत जाएगा। बहरहाल, बस यह जान लीजिए कि "सद्गुरु के मुख का शब्द अनमोल/जो देता है लक्ष्य के द्वार को खोल।" साथियों! इसी क्रम में बतौर शिक्षक सुभाष राय सर भी मेरे लिए एक गुरु हैं। ठीक है। परीक्षा के बाद अपने शेष मार्गदर्शकों के विषय में चर्चा करूँगा। और उसी समय मैं आप लोगों को गुरुवर श्रीप्रकाश शुक्ल सर और गुरुवर सदानंद शाही सर के विषय में विस्तार से सुनाउंगा। आप सभी को शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!

©गोलेन्द्र पटेल

                                                           {संपादक : गोलेन्द्र पटेल}

नाम : गोलेन्द्र पटेल

{युवा कवि व लेखक : साहित्यिक एवं सांस्कृतिक चिंतक}

व्हाट्सएप नं. : 8429249326

ईमेल : corojivi@gmail.com


नोट :- मैं इस संस्मरण को पुनः संशोधित कर के प्रस्तुत करूंगा।



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