Wednesday, 27 October 2021

कविता का किसान : गोलेन्द्र पटेल || kavita ka kisaan : Golendra Patel

 कविता का किसान // गोलेन्द्र पटेल



कविता अत्यंत गतिशील विधा होने की वजह से किसी परिधि विशेष की परिभाषा में स्वयं को कैद होने से मुक्त रखती है और इसकी गतिशीलता की बड़ी विशेषता यह है कि इसकी गति कवि के मन की गति की तरह है। यह हमारी मनुष्यता को बचाये रखने वाली समय की शक्ति है जो कि प्रत्येक मनुष्य के जीवन में किसी न किसी रूप में विद्यमान होकर उसकी सौंदर्यमयी सृष्टि की कल्पना को मूर्तरूप देती है। हमारी जिजीविषा को जिंदा रखने में अहम भूमिका अदा करती है और मनुष्य में जीने की ललक पैदा करती है। यह ललक ही लोक को लक्ष्य तक पहुँचती है और लोग को योग तक। यहाँ हम योगत्रयी की बात कर रहे हैं। जिसके अंतर्गत ज्ञानयोग, कर्मयोग व भावयोग आते हैं। भावयोग को अनुभूति की अभिव्यक्ति की भक्ति की तरह देख सकते हैं। यह अपनी यात्रा में आधुनिकता की आँखों और परंपरा की पुतलियों से जिंदगी के जीवद्रव्य को देखती हुई अविचलाविराम आग बढ़ती रहती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि कविता अपने समय और समाज की परिवेशगत उपज होने के साथ-साथ जीवन की यात्रा में जिम्मेदारी की ज्योति है।


संस्कृत साहित्य से लेकर हिन्दी-अंग्रेजी के तमाम विद्वानों ने काव्य के विविध रूपों पर चर्चा-परिचर्चा एवं विचार-विमर्श किये हैं। यहाँ हम काव्य का संदर्भ कविता से ले रहे हैं। आलोचकों ने भी आलोचना की आलोकित दृष्टि से कवियों की कला व कौशल की खुब प्रशंसा की और करते रहेंगे। बस, कविता में वे तत्व व तथ्य मौजूद होने चाहिए जो सृष्टि के जीवन को सौंदर्यता प्रदान करने में सक्षम हों। परंतु आज का दौर कविता की बाढ़ का दौर है। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं कि इस समय हमें सोशल मीडिया पर संवेदना का समुद्र दिखाई दे रहा है। जहाँ सुकवियों का मोती व शंख हैं तो कुकवियों का घोंघा व कंख भी। इस दैन्य दैनिकी दृश्य से हम अच्छी कविता और अच्छे कवि का चुनाव करने में काफी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। नवोदित कवियों की रचनाधर्मिता की प्रतियोगिता में प्रतिष्ठित कवि भी अपने कवि-कर्म से विमुख होते हुए दिखाई देते हैं। कुछ तो अपने समकालीन रचनाकारों के होड़ में जीतोड़ लगे हुए कि वे हमसे अधिक रचना कैसे कर सकते हैं। वे हमसे अधिक पुस्तकें कैसे लिख सकते हैं या सकती हैं? और विडंबना यह है कि इन्हीं प्रतिष्ठितों के चक्कर में प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाएँ नवोदित रचनाकारों की प्रतिष्ठित रचनाओं को छाप भी नहीं रहे हैं। संभवतः आप कुछ के संपादकीय दृष्टि से परिचित भी हैं। ऐसे में यदि कोई संपादक किसी नवोदित रचनाकार से उसकी रचनाओं को माँग कर और अपने मार्गदर्शन के साथ छापता है। तो हमें अत्यंत खुशी होती है और हम उन्हें ही अपने समय का सच्चा संपादक समझते हैं।


चेतना का चित्र संकेतधर्मिता के साँचे में प्रस्तुत करने वाली शक्ति है कविता। जो गद्य की सपाटबयानी से परे संवेदनागत सर्जनात्मक संसार का संवेदन है और यहाँ जो गूँज है वह कल्पना और यर्थाथ के संगम पर सुनाई देने वाला समय का स्वर है। कवि के शब्दों में उसके युग का ताप होता है जिसकी वजह से उसकी अभिव्यक्ति में आँच महसूस होती है। जहाँ आँच उसकी शितलता का पूरक है। जिसे मैं जीवन रूपी जल के दर्पण में देख रहा हूँ और मेरे भीतर का कवि मुझसे कह रहा है कि जैसा दौर होता है वैसा दर्पण होता है और इस दर्पण का निर्माण रचनाकार की मानवीय दृष्टि करती है। जिस रचनाकार की दृष्टि जितनी अधिक दीर्घी होगी उसका दर्पण उतना ही अधिक मजबूत और टिकाऊ होगा। यानी किसी भी रचनाकार का दृष्टिकोण ही उसे दीर्घजीवी बनाता है और उसकी रचना को दीर्घजयी। दुनिया की हर चीज रचनात्मक भूमि का बीज है। बसरते उसे बोने से पहले कोई रचनाकार अपनी भूमि को अपने श्रम से कितना उपजाऊ बनाया है और बोने के बाद उसकी कितनी देखभाल करता है। एक बात और कि उस बीज का भावी भविष्य मौसम पर निर्भर करता है। जिसे मैं मानस का मौसम कहता हूँ। दरअसल मनुष्य की अनुभूति की अभिव्यक्ति में परिवर्तन की प्रक्रिया का वह समय जब इसका मानसून मन को विचलित करता है तब कोई बीज अंकुरित हो रहा होता है। जो आगे चलकर उस भूगोल को उम्मीद की उपज देता है। जहाँ उसे उगाया गया है।


इस उगाने की चाहत में चित्त चयन करता है कविता का उर्वर प्रेदश। इस प्रदेश में नये किसानों के लिए बहुत सारी समस्याएं हैं, चुनौतियाँ हैं। लेकिन जो अपने पूर्वजों से कृषि का संस्कार ग्रहण किया है या कि उनके साथ रहा है उसे उतनी दिक्कत नहीं होगी। जितनी परेशानी सामान्य नवोदित कृषक को होती है। खैर, इस मामले में तो मैं सौभाग्यशाली हूँ कि मेरे अनेक अनुभवी मार्गदर्शक हैं जिन्हें आप कविता का किसान कह सकते हैं। जिनके जीवन से मैं सीख रहा हूँ कविता की खेती करना। इसलिए मेरी कविताओं के केंद्र में गाँव की गाथा होती है, मिट्टी की मिठास होती है और खेतों की ख़ुशबू होती है। ऐसा नहीं है कि शहर मेरे यहाँ गायब है। वह भी उतना ही है जितना गाँव है। जब गाँव का धुआँ और धूल शहर जाती है। उस शहर, जहाँ फ़सल का मूल्य तय होता है तो किसान की मृत्यु दर बढ़ जाती है। तब उस शहर के प्रति और शहर के शिक्षितों के प्रति मेरे कवि की दृष्टि थोड़ी रूखी हो जाती है। असल में यहाँ रूखा होना प्रतिरोधी होना है और प्रतिरोधी होना पीड़ा से परिचित होना है। जाहिर सी बात है कि जो पीड़ित है वह प्रतिरोध का स्वर अपनायेगा ही और समाज के नीचले तबके लोगों के प्रति उसकी साहनुभूति होगी। एक तरह से कह लिया जाये तो वह दमित, दलित, शोषित, उपेक्षित, मजदूर, मजबूर गरीब किसान, कोयरी, कुर्मी, कुम्हार, लोहार, चमार, चूड़ीहार, गोड़, नट, मुसहर एवं धोबी-खटिक आदि की आवाज़ है। बहरहाल एक कवि का वक्तव्य उसकी कविताएँ ही होती हैं।


©गोलेन्द्र पटेल

     ■■★■■ संक्षिप्त परिचय :-


नाम : गोलेन्द्र पटेल

उपनाम : गोलेंद्र ज्ञान

जन्म : 5 अगस्त, 1999 ई.

जन्मस्थान : खजूरगाँव, साहुपुरी, चंदौली, उत्तर प्रदेश।

शिक्षा : बी.ए. (हिंदी प्रतिष्ठा) , बी.एच.यू.।

भाषा : हिंदी

विधा : कविता, कहानी व निबंध।

माता : उत्तम देवी

पिता : नन्दलाल

पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन :

कविताएँ और आलेख -  'प्राची', 'बहुमत', 'आजकल', 'व्यंग्य कथा', 'साखी', 'वागर्थ', 'काव्य प्रहर', 'प्रेरणा अंशु', 'नव निकष', 'सद्भावना', 'जनसंदेश टाइम्स', 'विजय दर्पण टाइम्स', 'रणभेरी', 'पदचिह्न', 'अग्निधर्मा', 'नेशनल एक्सप्रेस', 'अमर उजाला', 'पुरवाई', 'सुवासित' आदि प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रमुखता से प्रकाशित।


विशेष : कोरोनाकालीन कविताओं का संचयन "तिमिर में ज्योति जैसे" (सं. प्रो. अरुण होता) में मेरी दो कविताएँ हैं।


ब्लॉग्स, वेबसाइट और ई-पत्रिकाओं में प्रकाशन :-

गूगल के 100+ पॉपुलर साइट्स पर - 'हिन्दी कविता', 'साहित्य कुञ्ज', 'साहित्यिकी', 'जनता की आवाज़', 'पोषम पा', 'अपनी माटी', 'द लल्लनटॉप', 'अमर उजाला', 'समकालीन जनमत', 'लोकसाक्ष्य', 'अद्यतन कालक्रम', 'द साहित्यग्राम', 'लोकमंच', 'साहित्य रचना ई-पत्रिका', 'राष्ट्र चेतना पत्रिका', 'डुगडुगी', 'साहित्य सार', 'हस्तक्षेप', 'जन ज्वार', 'जखीरा डॉट कॉम', 'संवेदन स्पर्श - अभिप्राय', 'मीडिया स्वराज', 'अक्षरङ्ग', 'जानकी पुल', 'द पुरवाई', 'उम्मीदें', 'बोलती जिंदगी', 'फ्यूजबल्ब्स', 'गढ़निनाद', 'कविता बहार', 'हमारा मोर्चा', 'इंद्रधनुष जर्नल' , 'साहित्य सिनेमा सेतु' इत्यादि एवं कुछ लोगों के व्यक्तिगत साहित्यिक ब्लॉग्स पर कविताएँ प्रकाशित हैं।


प्रसारण : राजस्थानी रेडियो, द लल्लनटॉप , वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार एवं अन्य यूट्यूब चैनल पर (पाठक : स्वयं संस्थापक)

अनुवाद : नेपाली में कविता अनूदित


काव्यपाठ : मैं भोजपुरी अध्ययन केंद्र (बीएचयू) में तीन-चार बार अपनी कविताओं का पाठ किया हूँ और 'क कला दीर्घा' से 'साखी' के फेसबुक पेज़ पर दो बार लाइव कविता पाठ। अनेक राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय काव्यगोष्ठी में।


सम्मान : अंतरराष्ट्रीय काशी घाटवॉक विश्वविद्यालय की ओर से "प्रथम सुब्रह्मण्यम भारती युवा कविता सम्मान - 2021" और अनेक साहित्यिक संस्थाओं से प्रेरणा प्रशस्तिपत्र।


संपर्क :

डाक पता - ग्राम-खजूरगाँव, पोस्ट-साहुपुरी, जिला-चंदौली, उत्तर प्रदेश, भारत।

पिन कोड : 221009

व्हाट्सएप नं. : 8429249326

ईमेल : corojivi@gmail.com

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