Tuesday, 29 August 2023

बहनापा : रक्षाबंधन / माँ-बहन की जीवनगाथा : गोलेन्द्र पटेल

1).

लड़के सिर्फ़ बचपन में रोते हैं
लेकिन लड़कियाँ हमेशा,
लड़कियों को यह कहा जाता है
कि पेड़ों पर मत चढ़ना, उनमें जिन्न होते हैं;
एक लड़के ने एक लड़की से पूछा,
लड़कियों के खाद्य लड़कों से क्यों भिन्न होते हैं?
जबकि अन्य जीवों में ऐसा नहीं है!

2).

हमारे और हमारी बहन के बीच

नारीवादी आलोचना पर बहस जारी है
हमने अपनी बहन से कहा—

स्त्री-विमर्श की दृष्टि से
यह बात सही है 
कि बहनापे में जो आत्मीयता है
वो भाईचारे में नहीं है।

हम शब्दों के दुनिया से परिचित हैं
अभी स्त्रियों की भाषा पुल्लिंग प्रधान है
उन्हें ख़ुद का व्याकरण गढ़ना है
हम पुरुष हैं
पर, हमें उनका दुःख पढ़ना है
ताकि हमारे भीतर की स्त्री ज़िन्दा रहे
जो कहे, ‘वेदना विभूति है
स्त्री पुरुष की अनुभूति है।’ (कवितांश : 'बहनापा' से)

3).

इस दुनिया में 
जीवन से जीवन मसले गये हैं

आधी आबादी
कब तक
अक्स से आँसू का आयतन मापेगी?

अब वक्त आ गया है
अस्मिता को खोजने के लिए
हो सके तो नदी में
ख़ुद डूबें

अगर देह
आत्मा की बेगार की जननी है
अगर आँखें
दिन के दुःख रात में छुपा रही हैं
तो समझना 
सच के मुहावरे क्रांति चाहते हैं

4).

प्रश्न
_____________
आग से प्रश्न :
पानी 
मेरा पति है
पर , हवा पत्नी ।
मैं कौन हूँ ?

5).

माँ-बहन की जीवनगाथा


क्या लिखूँ मैं जननी पर, जन्मभूमि पर, भगिनी पर...


यदि मेरी माँ महाकाव्य है

तो मेरी बहन उपन्यास है

और अभी तक मैंने इन पर एक शब्द भी नहीं लिखा है

जब लिखूँगा, तो निःसंदेह

मैं अमर हो जाऊँगा

लेकिन अमरता का अपना दुःख है न?

उसी से भय लगता है मुझे, माँ शारदे!


माँ शारदे, मैं तुम्हारी आज्ञा की अवहेलना नहीं कर रहा हूँ

सच बता रहा हूँ मैं डरता हूँ अमर होने से

मेरे जो पुरखे आसमान में धरती की कथा लिखकर अमर हुए हैं

उन्होंने मुझे यह सीख दी है कि पानी पर लिखा हुआ सत्य

पत्थर पर लिखा हुआ सत्य से कई गुना अधिक दीर्घजीवी होता है 

बशर्ते पानी स्त्री की आँखों का हो


पर, पानी पर लिखे हुए अक्षर

उन्हें ही नज़र आते हैं जिनकी आँखों में सागर जितना पानी होता है

अभी मेरी आँखों में उतना पानी नहीं है, माँ शारदे!

मैं कैसे लिखूँगा पानी पर अपनी माँ-बहन की कहानी?

क्या एक पत्ते पर उनके बारे में लिखकर तैरा दूँ नदी में?

पर, एक पत्ते पर तो सिर्फ़ पत्र लिखा जाता है

मुझे तो उन पर महाकाव्य और उपन्यास लिखने हैं

जिसके लिए दुनिया के सारे पेड़ के पत्तों की ज़रूरत होगी

यानी पृथ्वी के सभी हरे पेड़ों को नग्न होना होगा

तब जा कर इनकी पूरी कथा पानी पर होगी


इनकी पूरी कथा पूरी पृथ्वी पर भी नहीं लिखी जा सकती है

पत्तों पर लिखने से यह फ़ायदा होगा 

कि वे नदी-सागर में भी तैरेंगे

जो बचेंगे उन्हें धरती पर फैला दिया जाएगा

क्योंकि इनकी जीवनगाथा एक पर एक सरियाने से 

इतनी ऊँची हो जाएगी कि वह आसमान से सट जाएगी

मानो मनुष्य की निगाह में क्षितिज


अभी तुम्हीं बताओ, माँ शारदे!

क्या ब्रह्मदेव मुझे इतने पत्ते, इतनी रोशनाई देंगे

कि मैं लिख सकूँ अपनी माँ-बहन की पूरी जीवनगाथा!

यदि मिलने की संभावना है, तो

मैं उनकी कठोर तपस्या करने को तैयार हूँ

कई हजार वर्षों तक समाधि में लीन रहने को तैयार हूँ

चाहे मेरी हड्डियों को दीमक चाट जाए

या फिर मुझे अजगर निगल जाए

मैं साधनारत रहूँगा

ऐसा मुझे शिव से वरदान मिला है

विष्णु ने अपना शंख दिया है लेखनी के लिए

बस, पत्ते और स्याही चाहिए, माँ शारदे!


माँ शारदे, तुम्हें तो यह ज्ञात है

कि यह अतिशयोक्ति नहीं, परम सत्य है 

इनकी कथाओं को लिपिबद्ध करना कितना चुनौतीपूर्ण कार्य है?

इसे तो विघ्नहर्ता श्रीगणेश भी लिपिबद्ध करने में असमर्थ हैं 

तो फिर मैं यह कैसे कर सकता हूँ?

मैं तो मनुष्य हूँ, मुझे कुछ वरदान मिले हैं तो क्या हुआ

अभी अपनी माँ-बहन की कथा लिखने के लिए

और वरदान चाहिए

अभी और तपस्या करनी है, साधना करनी है मुझे

वह मंत्र दो, माँ शारदे!

जिससे ब्रह्मदेव प्रसन्न होते हैं

ताकि मैं तुम्हारी आज्ञा की अवज्ञा न कर सकूँ


माँ शारदे!

मुझे भी लिखनी है अपनी माँ-बहन की जीवनकथा

आज नहीं, तो कल।


(©गोलेन्द्र पटेल / 29-08-2023)

संपर्क :
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ईमेल : corojivi@gmail.com


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