1).
2).
3).
4).
-डी.सी.पी. दिनेश
5).
"" प्रेमलता ""
( प्रेममयी माँ )
*************
(1) " प्रे ", प्रेरणापुँज
दिव्यस्वरूपा माँ
करते प्रणाम आपको नमन !
आपसे पाते नित शक्ति ऊर्जा.....,
करते आपका स्मरण हम प्रतिदिन !!
(2) " म ", ममतामयी
प्रेमस्वरूपा माँ
आप बसती हमारे ह्रदय !
नित देख आपकी सुंदर मूरत.....,
बन आए दिवस हमारा आनंदमय !!
(3) " ल ", ललितकांता
प्रेममयी माँ
हमारे संस्कारों की कुँजी !
हो प्रेम वात्सल्य की देवी......,
आप बनी हमारी असली पूँजी !!
(4) " ता ", तादात्म्य
था शिवमय
माँ अद्भुत विलक्षण अप्रतिम !
आपकी वाणी में समायी वाग्देवी.......,
हर शब्द बन आता था निरुपम !!
(5) " प्रेमलता ", प्रेमलता
खिल-खिल आयी है
मेरे मन कानन में हरओर !
नित रोज सवेरे कर लेता दर्शन......,
पाता मधु मकरंद जीवन में चहुँओर !!
¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥¥
"" प्रेमलता""
( माँ )
***************
(1)"प्रे ", प्रेरणा की स्रोत रही सदा "माँ",
जीवनभर कुछ ना कुछ सिखलाया !
"माँ", थी अनुभव की अनंत आसमां...,
जीवन जीने का गुर और पाठ पढ़ाया !!
(2)"म ", ममता स्नेह दया प्रेम की मूरत
था "माँ", का वात्सल्य बड़ा ही अप्रतिम !
जीवन की हरेक कठिन परिस्थितियों में.,
रहा "माँ", का सदा खिलता शुभानन !!
(3)"ल ", लगन धुन की पक्की थी "माँ",
भरा धैर्य संतोष था उनमें अथाह !
सबसे मुस्कुराकर मिलती थी "माँ"..,
कभी करती नहीं थी चिंता परवाह !!
(4)"ता ", ताउम्र बनी रहीं "माँ" सदा सक्रिय
हर काम किया बड़ी मेहनत के संग-साथ !
जीवन के हरेक उतार चढ़ाव को....,
निभाया बड़ी ही सूझ-बूझ के साथ !!
(5)" प्रेमलता ", प्रेम लता सी "माँ", सदा लिपटी रहीं
सभी में रहीं बांटती स्नेह प्यार !
जीवन में हमेशा मुस्कुराती रहीं.....,
और लुटाया जी भरके अपना दुलार !!
(6) माँ " प्रेमलता ", की पावन स्मृति पर
हम सभी विनम्रता से हैं श्रद्धावनत !
चढ़ाकर मधुर स्मृतियों के पुष्प सुमन...,
कर रहे "माँ",को नमन प्रणाम शत-शत वंदन!!
-सुनीलानंद
जयपुर,
राजस्थान
■
6).
माँ के दिल जैसा दुनियाँ में कोई दिल नहीं
यदि हम वात्सल्य भाव की बात करते है तो उसमें माँ का प्रेम सर्वोपरि माना जाता है क्योंकि माँ सारे गुणों की खान होती हैं। बात यदि अपने बच्चों की आती है तो माँ कभी अनदेखा नहीं करती।
उस दौर में मैंने कई माताओं को देखा वो सभी कम संसाधन में काफ़ी व्यवस्थित रूप से बच्चों का लालन-पालन करती थी। पहले मोहल्ले की गली में बैठ कर सारी माताएँ मिल कर बच्चों के लिए क्या सही क्या गलत सब की चर्चा करती थीं। बच्चों के लिए पौष्टिक भोजन जो घर का बना होता था, उस पर बल देती थी, बाहरी सामान से होने वाले नुकसान-फ़ायदे सब बताया करती थी। बच्चों की नज़र उतारना, भाई-बहनों को परिवार के साथ बैठाना, एकता बनायें रखने की काफी सीख देती थी। अब तो मोबाइल उपकरण आने से ये सारी व्यवस्था ही बदल गई है, ना कोई माँ के साथ बैठता है और ना परिवार के साथ सामंजस्य बैठा पाते है बच्चे!
संस्कार आज भी हैं लेकिन सब बदल गया।
आधुनिक युग में फायदे की बात लिखूं तो आज की माँ पहले से ज्यादा शिक्षित हैं और घर-ऑफिस सब संभाल रही है, सुगमता से सारे कार्य घर के मशीन से करने लगी हैं। अपने फैसले लेने में सक्षम है माँ-बहनें। कुरीतियां समाप्त हो चुकी हैं। अच्छी शिक्षा-दीक्षा बच्चों को दे पा रही है, सपने साकार हो रहे है। अब अत्याचार और उत्पीड़न का उत्तर देने में सक्षम हैं। जो सुविधाएं माँ खुद के लिए नही जुटा पाई आज अपने बच्चों की छोटी से छोटी इच्छा पूर्ण करने में सक्षम हैं, वो भी अकेले।
मुझे गर्व हैं हर माँ पर वो अब अबला नहीं सबला बन चुकी है वो सारे कार्य जो पुरुष कर सकते हैं, एक एकल मदर भी कर लेती है।
शादी-विवाह समारोह में एक एकल मदर पूरी ज़िम्मेदारी निभा रही हैं, हर क्षेत्र में नारी शक्ति इज्जत कमा रही है।
लेकिन आजकल पैसे की चकाचौंध और सुनहरे भविष्य की चाह ने भारतीय बच्चों को विदेश में खींच लिया है और उसके पीछे छूट गई है उसकी मां। मां का अकेलापन क्या होता है, उनका यादों में लिपटा हुआ जीवन बहुत तकलीफदेह होता है।
"मेरी आँखे रो पड़ी भीगा मां का आंचल।
मन से मन की बात पढ़ जानी दिल की बात!"
आजकल यह लिखी हुई पंक्तियां भी कहीं धूमिल हो गई है। कितने साल गुजर जाते हैं एक बच्चे को पालने में मां के, उसके बाद पीढ़ी दर पीढ़ी सभी जवान हो जाते हैं और बदल जाता है उनका जीवन और उनकी जीवन शैली। आजकल बात करने के माध्यम, एक दूसरे की जानकारी के लिए भले ही इंटरनेट सेवाएं उपलब्ध हो गई है फोन पर बात करना सरल हो गया हो और कई रिश्तें की भावना ने, संवेदना ने भले ही कई बार सांप की तरह केंचुली उतार ली हो, लेकिन मां-बेटे बेटियों का रिश्ता आज भी इस देश में गर्माहट के साथ मौजूद है। सभी की आकांक्षाएं और कामनाओं की लिस्ट बहुत लंबी है समय बहुत कम है और संघर्ष बहुत बड़ा। जीवन की परिभाषाओं में बहुत फेरबदल हुआ हो पर विदेश में बसा हुआ बेटा मां को बहुत याद करता है और कुछ बेटे अपनी मां को विदेश में बसने के बाद अकेला छोड़ दिए हैं। उनके पास अपनी मां के लिए वक्त ही नहीं। इतनी एडवांस तकनीक आने की वजह से कुछ नई संगत से बच्चों के व्यवहार भी बदल रहे है। बेटा और बेटियां कमाने के लिए बाहर चले जाते हैं अपने सपनों को पूरा करने के लिए, पैसे कमाने में उस मां को छोड़ जाते हैं। कुछ बच्चे वादा करते हैं कि वह लौटकर आएंगे और कुछ बच्चे विदेश में ही रहकर अपना घर बसा लेते हैं फिर वह भारत में रह रही मां के पास आना उचित भी नहीं समझते हैं। मां जिंदा है या मर गई है उन्हें परवाह भी नहीं होती है और बस डाक द्वारा पैसा भेज देते हैं यही बहुत होता है। कुछ बेटा-बेटियां रोजाना अपने मां के कांटेक्ट में रहते हैं और यह विश्वास दिलाते हैं कि अब हम आएंगे जरूर से आएंगे और मां तुम्हारा सपना हम पूरा करेंगे।
एक मां बचपन से अपने बच्चों की हर तकलीफ को समझती है। बेटा क्या खाता है? क्या पीता है? उसे बचपन में क्या पसंद था जब रूठ जाया करता था तो वह उसे कैसे मनाती थी और मां दूसरे कामों को निपटा कर अपने बच्चे की परवरिश में लग जाती थी। बच्चे कब बड़े हो गए पता ही नहीं लगा और चले गए अपनी मंजिल पाने। आज भी भारत वर्ष में ऐसी कई माऐं हैं जिनके आंसू थम नहीं रहे। वह अपने बेटे की आने की प्रतीक्षा में रोती रहती है उनकी व्यथा को समझने वाला कोई नहीं होता है। मां परिवार में कितना भी सबके साथ हंस बोल ले, लेकिन एक तन्हाई अपने बच्चों के लिए जरूर से उसके मन में होती है। मां बीमार हो जाती है तब चिट्ठियां भेजी जाती है, तब बच्चों के फोन आते हैं। उसके बाद भी कुछ बच्चे ऐसे होते हैं जो यह कहते हैं कि किसी कारणवश नहीं आ पाएंगे मां। अपना ख्याल रखना। सोचो उस समय उस मां पर क्या बीतती होगी। अकेले रहने वाली मां कितने भी डॉक्टर के चक्कर लगा ले, लेकिन अपने बेटा-बेटियों का विछोह बर्दाश्त नहीं कर पाती है।
कुछ बेटा-बेटी विदेश में अपनी मां को बहुत मिस करते हैं, उनके बनाए हुए खाने की याद उन्हें सताती है जब उन्हें विदेश में मां के जैसे बना हुआ भोजन नहीं मिलता है, तो वह अपनी मां को याद करते हैं और उन्हें हमेशा फोन करते रहते है। दिनभर की आपबीती वह अपनी मां से शेयर करते हैं और वीडियो कॉल करके अपनी मां को रूबरू देखते हैं, उनके लिए समय देते हैं जिससे मां को भी यह तसल्ली रहती है कि हमारे बच्चे जहां भी हैं सुरक्षित है और बेटा-बेटियों को भी तसल्ली हो जाती है कि हमारी मां किस हाल में है। कई बार ऐसा हुआ है कि त्यौहारों में बच्चे अपनी मां के पास नहीं आ पाते हैं, लेकिन जब भी आते हैं तो अपनी मां को गले से लगा लेते हैं, उनके सामने वही छोटे बच्चे बन जाते हैं और मां भी अपने बेटा-बेटियों को उनके मनपसंद का खाना खिलाती है जब तक वह घर में रहते हैं।
एक मां को चिंता रहती है कि जब मेरे बच्चे बाहर रहते हैं तो वह क्या खाते पीते हैं? कैसे रहते होंगें? इसलिए बेटा-बेटियों के आते ही उनकी आवभगत में मां लग जाती है। बस मैं इतना कहना चाहती हूं जो बच्चे बाहर जाकर अपनी मां से अलग रह रहे हैं, वह अपनी मां के संपर्क में सदा रहे। अपने परिवार से कांटेक्ट बनाए रखें ताकि घर में रह रही मां अकेली ना पड़े। मां से अच्छा दोस्त कोई नहीं होता है, यह बात बच्चे समझ ले तो विदेश में भी मां-बेटा बेटियों को एक दूसरे से अलग ना होना पड़े। प्रेम की भाषा सभी समझते है अपनें प्रेम पर आस्था बनाए रखें। भावुकता की नदी में बहती हुई मां हमेशा बच्चों का भला चाहती है और अपना दिल कठोर करके बच्चों को बाहर भेजती है पढ़ने के लिए। बच्चे इसका दुरुपयोग ना करें, अच्छी संगति करें, अच्छे लोगों के बीच में रहे। जितना हो सके मां के लिए विदेश से नई-नई चीजें भेजते रहें ताकि आपके भेजे हुए उपहार में मां आपका प्रेम महसूस कर सके। सभी त्यौहारों में फोन लगाकर मां से हंस बोल कर बात कर लेने से मां को इतनी खुशी मिलेगी इसकी कल्पना जैसे स्वर्ग मिल गया हो एक मां को। बच्चे अपनी भारतीय संस्कृति ना भूले बीच-बीच में आकर अपनी मां की तकलीफ समझ कर उन्हें सुख प्रदान करें। छोटी-छोटी खुशियों में अपनी मां के साथ समय बिता लेना पर अपनी मां को कभी अकेला मत छोड़ना, क्योंकि मां की पीड़ा केवल मां ही जानती है, बस बच्चों को इसका एहसास होना अति आवश्यक है। यदि कार्य के कारण बच्चे व्यस्त हैं तो उससे ज्यादा वक्त अपने परिवार अपनी मां को दीजिए। दूर रहकर प्रेम की डोर को बांधे रखिए, तभी अपनी मां की पीड़ा को आप समझ पाएंगे! उनका प्रेम समझ पाएंगे। बस याद रखिए "सब पराये हो जाए, पर मां पराई कभी ना होए"!
©पूजा गुप्ता
मिर्जापुर (उत्तर प्रदेश)
■
7).
एक ग़ज़ल
----------------
दूर रहकर भी सदा पास रहा करती है
वो सिवा माँ के भला कौन हुआ करती है
बच गयी जब भी बलाओं से तो मुझको लगा यूँ
माँ ही तो है जो मेरे हक़ में दुआ करती है
उसका जादू है, हुनर है कि कोई शक्ति है जो
बात मन की मेरे माँ जान लिया करती है
उसको धरती कहूँ, नदिया कहूँ या पेड़ कहूँ
देने बस देने का ही काम किया करती है
घर की उठती हुई दीवार में बँटती रही माँ
फिर भी बेटों के लिए ही तो दुआ करती है
उसके कदमों में नवाते रहें हम शीष सदा
ईश का ख़ुद में जो प्रतिमान गढ़ा करती है
हम भी सेवा व समर्पण से रखें ख़ुश उसको
कुछ न कहकर भी यही चाह रखा करती है
--/////------
डाॅ. कविता विकास
धनबाद, झारखंड
■
8).
माँ पर दोहा
========
माता महा यथार्थ है, नहीं कथा या गल्प।
जननी का संसार में, मिलता नहीं विकल्प।।
-रशीद अहमद शेख़ 'रशीद'
■
9).
ऐसी होती है मांँकौन कहता है
मेरी माँ मुझे छोड़कर चली गई
मैं कहता हूंँ
वह मुझे टोले-मुहल्ले से जोड़ कर गई है
मांँ की देन है कि कोई चाची बन जाती है
और वह अपनत्व दिखाती है
अपने खाने से पहले मेरे आगे
रोटी की थाली रख जाती है
कम नहीं होने देती कोई समान
कम नहीं होने देती कोई अरमान
जिससे कहता हूंँ मैं कि
मेरी माँ का वजूद बोलता है और,,,, और
मेरे अंदर से मेरी मांँ का
दूध बोलता है
माँ की बदौलत बढ़ते जा रहा हूंँ मैं
अपने जीवन-पथ में निरंतर
जलाते जा रहा हूंँ अंधियारे में दीप निर्बाध
ऐसी होती है माँ।
●
बीतती है जिंदगी फुटपाथ
मेरी कविता लिखकर तुम नाम कमा लिएलेकिन हमारी जरूरत अभी भी बाकी है
रोटी अभी भी बाकी है कपड़े भी बाकी है
बीतती है जिंदगी फुटपाथ पर घर बाकी है
अच्छे दिन आयेंगे कह कैमरे में समा लिए
लेकिन हमारी जरूरत अभी भी बाकी है।
उड़ाती धूल जाती है मोटर गाड़ियांँ हजार
उसकी होती है गर्मी उसका अपना बाजार
और सभी गलियां की बतियां बुझा दिए
जमीन मिलनी बाकी है बिस्तर बाकी है।
-विद्या शंकर विद्यार्थीC/0- राजेश यादव (खटाल)
बंगाली टोला
रामगढ़, (झारखण्ड)
पिनकोड -829122
■
10).
मां, क्या तुम बीमार हो?
मां तुमने ही दी हमें
ये ज़िन्दगी,ये सांसें
ये स्नेह-प्यार-दुलार
पाला तुमने हमें
संस्कारों से अपने
ममता की घनी छांव में।
मां, मैं जब भी
लिपटता तुमसे
यमदूत सरीखे
आकर भैया
परे धकेल देते मुझे
और कहते
ये मां तो मेरी है
मैं रो पड़ता
और तुम
हम दोनों को भर लेती
अपने स्नेह की बाहुपाश में
पर आज
भैया कहते हैं
मां तेरी है...
मां, क्या तुम बीमार हो ?
-रशीद ग़ौरी, सोजत सिटी।
■
11).
खाना बनाने वाली बाई
खाना बनाने वाली बाई
खाने की सुगंध अपनी देह में लपेटे
ले जाती है घर
आवारा हवाओं से बचाते हुए
बच्चे पूछते हैं-
माँ आज क्या बनाई है?
माँ कहती है-शाही पनीर...
बच्चे चुपचाप उसके स्वाद के साथ
खाना खाकर सो जाते हैं।
बच्चे जानते है-
माँ है तो उम्मीद है
माँ है तो सपने ज़िन्दा हैं…
बच्चे खुश हैं कि उनके
गंध,एहसास,स्वाद और....दृष्टि ज़िन्दा है
एक दिन माँ नहीं लौटी
गंध चोरी के आरोप में जेल में बंद है!
भूखे बच्चे ताक रहे हैं आसमान.....।
-रमेश कुमार सोनी
रायपुर, छत्तीसगढ़
■
12).
माँ
न तुलना कभी की है
न करने का इरादा है
हाँ , वो माँ का प्यार ही है
जो दुनिया के किसी भी प्यार से 9 महीनों ज़्यादा है।
दुनिया की सभी माँओं की एक ही परिभाषा है,
सुखी रहें हमारे बच्चे,
बस यही सबसे बडी उनकी आशा है!!
-श्रवण सिंह राव, आहोर और जिला जालौर राजस्थान
■
13).
जब तरल सुबह, तपती बातें, मन उद्वेलित कर जाती हैं।
होठों पर स्मित सजल लिये, माँ मुझे बहुत याद आती है।।
पक्षी कलरव और पत्तों संग,
जब सड़क सजी सुस्ताती
है।
तब बांँट जोहती आँखो संग,
माँ मुझे बहुत याद आती
है।।
कोई शाख फलों का भार लिए, सर झुका नमन करती दिखती।
तब उचक देखती खिड़की से, माँ मुझे बहुत याद आती है।।
रिश्तों के कच्चे धागों संग,
बातें बदरंगी उलझ पड़ें।
तब अश्रु छिपाती, मुस्काती,
माँ मुझे बहुत याद आती
है।।
थकता, बोझिल, हर भाव लगे, कदमों की जब रफ्तार रूके।
लादे अनुभव की गठरी सी, माँ मुझे बहुत याद आती
है।।
अब रच पाऊँगी सपन नहीं,
ये सोच आँख मुँद जाती है।
बाँहें फैलाये जीवन सी..माँ
मुझे बहुत याद आती है।।
-रश्मि 'लहर'
इक्षुपुरी काॅलोनी
लखनऊ उत्तर प्रदेश
14).
जब एक माँ चूल्हा जलाती है
जब एक माँ चूल्हा जलाती है
मानों रोज यज्ञ करती है.
रोज अपने एक सपने की
आहुति देती है वह।
जब एक माँ, आँगन बुहारती है
तो कुछ कुछ बुदबुदाती रहती है
और बुरी बलाओ को ढूँढ
बुहार, बाहर फेंक देती है
जब एक माँ पूजा करती है
अपने दोनों हाथों से आँचल
फैला, बच्चों की सलामती
की दुआ माँगती है
जब एक माँ थककर बैठती है
बच्चों के लिये सपने बुनती रहती है
या फिर अच्छी यादों को सिलती रहती है
-मनोरमापंत, भोपाल
15).
ऐसी होती है मांँ
कौन कहता है
मेरी माँ मुझे छोड़कर चली गई
मैं कहता हूंँ
वह मुझे टोले-मुहल्ले से जोड़ कर गई है
मांँ की देन है कि कोई चाची बन जाती है
और वह अपनत्व दिखाती है
अपने खाने से पहले मेरे आगे
रोटी की थाली रख जाती है
कम नहीं होने देती कोई समान
कम नहीं होने देती कोई अरमान
जिससे कहता हूंँ मैं कि
मेरी माँ का वजूद बोलता है और,,,, और
मेरे अंदर से मेरी मांँ का
दूध बोलता है
माँ की बदौलत बढ़ते जा रहा हूंँ मैं
अपने जीवन पथ पर निरंतर।
ऐसी होती है माँ।
-विद्या शंकर विद्यार्थी
C/0- राजेश यादव (खटाल)
बंगाली टोला
रामगढ़, (झारखण्ड)
👉माँ से संबंधित अभिव्यक्तियों का सभी विधाओं में आत्मिक अभिनंदन है। माँ से संबंधित आप अपनी अभिव्यक्ति अपनी तस्वीर के साथ मुझे निम्नलिखित पते पर भेज सकते हैं।🙏
माँ पर लिखी गयीं सभी कविताएँ और लेख उत्कृष्ट हैं। आप सभी को बधाई।
ReplyDelete*मेरा दुःख मेरा दीपक है*
ReplyDelete________________________________________________
जब मैं अपने माँ के गर्भ में था
वह ढोती रही ईंट
जब मेरा जन्म हुआ वह ढोती रही ईंट
जब मैं दुधमुंहाँ शिशु था
वह अपनी पीठ पर मुझे
और सर पर ढोती रही ईंट
मेरी माँ, माईपन का महाकाव्य है
यह मेरा सौभाग्य है कि मैं उसका बेटा हूँ
मेरी माँ लोहे की बनी है
मेरी माँ की देह से श्रम-संस्कृति के दोहे फूटे हैं
उसके पसीने और आँसू के संगम पर
ईंट-गारे, गिट्टी-पत्थर,
कोयला-सोयला, लोहा-लक्कड़ व लकड़ी-सकड़ी के स्वर सुनाई देते हैं
मेरी माँ के पैरों की फटी बिवाइयों से पीब नहीं,
प्रगीत बहता है
मेरी माँ की खुरदरी हथेलियों का हुनर गोइंठा-गोहरा
की छपासी कला में देखा जा सकता है
मेरी माँ धूल, धुएँ और कुएँ की पहचान है
मेरी माँ धरती, नदी और गाय का गान है
मेरी माँ भूख की भाषा है
मेरी माँ मनुष्यता की मिट्टी की परिभाषा है
मेरी माँ मेरी उम्मीद है
चढ़ते हुए घाम में चाम जल रहा है उसका
वह ईंट ढो रही है
उसके विरुद्ध झुलसाती हुई लू ही नहीं,
अग्नि की आँधी चल रही है
वह सुबह से शाम अविराम काम कर रही है
उसे अभी खेतों की निराई-गुड़ाई करनी है
वह थक कर चूर है
लेकिन उसे आधी रात तक चौका-बरतन करना है
मेरे लिए रोटी पोनी है, चिरई बनानी है
क्योंकि वह मजदूर है!
अब माँ की जगह मैं ढोता हूँ ईंट
कभी भट्ठे पर, कभी मंडी का मजदूर बन कर शहर में
और कभी-कभी पहाड़ों में पत्थर भी तोड़ता हूँ
काटता हूँ बोल्डर बड़ा-बड़ा
मैं गुरु हथौड़ा ही नहीं
घन चलाता हूँ खड़ा-खड़ा
टाँकी और चकधारे के बीच मुझे मेरा समय नज़र आता है
मैं करनी, बसूली, साहुल, सूता, रूसा व पाटा से संवाद करता हूँ
और अँधेरे में ख़ुद बरता हूँ दुख
मेरा दुख मेरा दीपक है!
मैं मजदूर का बच्चा हूँ
मजदूर के बच्चे बचपन में ही बड़े हो जाते हैं
वे बूढ़ों की तरह सोचते हैं
उनकी बातें
भयानक कष्ट की कोख से जन्म लेती हैं
क्योंकि उनकी माँएँ
उनके मालिक की किताबों के पन्नों पर
उनका मल फेंकती हैं
और उनके बीच की कविता सत्ता का प्रतिपक्ष रचती है।
मेरी माँ अब वही कविता बन गयी है
जो दुनिया की ज़रूरत है!
©गोलेन्द्र पटेल
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कवि व लेखक : गोलेन्द्र पटेल
संपर्क :
डाक पता - ग्राम-खजूरगाँव, पोस्ट-साहुपुरी, जिला-चंदौली, उत्तर प्रदेश, भारत।
पिन कोड : 221009
व्हाट्सएप नं. : 8429249326
ईमेल : corojivi@gmail.com
आप एक सराहनीय कार्य कर रहे हैं ,साधुवाद
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