Saturday, 6 December 2025

माँ विंध्यवासिनी विश्वविद्यालय, मिर्ज़ापुर के साथियों के लिए दो गीत

माँ विंध्यवासिनी विश्वविद्यालय, मिर्ज़ापुर के साथियों के लिए दो गीत:-

1).

विंध्य की गोद में नव प्रज्ञा-दीप

हरित नभों की जोत जगा कर,

ज्ञान-द्युति का दीप जलाता—

हमारा यह विश्वगुरु-आलय,

उषा-सा नवदिन ले आता।

सभ्यता के प्राचीन सुरों में

नव-विज्ञान का स्पंदन हो—

मानव-मूल्य, समता–करुणा का

अविरल, अमृतमय वंदन हो।

हमारा विश्वविद्यालय—

भारत–भाव का शाश्वत परिसर—

नभ से ऊँचा स्वप्न प्रखर।

जहाँ गंगा–यमुना का संगम,

जहाँ हिमगिरि की छाया वंदित,

जहाँ बुद्ध, कबीर, तुलसी के

स्वर की स्मृति अनन्त अखंडित—

वहीं खड़ा यह ज्ञान–निकेतन,

अक्षर–अंजन, तप की वाणी;

शांति, साहस, सत्य, विवेक का

सदियों से रचता अभिराम प्राणी।

हमारा विश्वविद्यालय—

संस्कृति–विज्ञान का पुल निर्मल,

मानव–धर्म का दीप उज्ज्वल।

जनपद–जननी के गौरव-अंचल

में अंकित गौरव-साधन यह;

कृषि, कला, प्रज्ञा, तकनीकि

सबका संतुलित आवाहन यह।

राजर्षियों की संतति इसका

स्वप्न देशनिर्माण बनाता—

चिंतन की गंगा–धार यहाँ से

नवयुग का समुदित मंत्र सुनाता।

हमारा विश्वविद्यालय—

नवोन्मेष का पावन स्थल,

श्रम–सृजन का गान सफल।

राग मिर्ज़ापुरी, वेदध्वनि,

संघर्षों की गाथा संग—

यहाँ धरा और आकाश मिलें,

शिल्प, नृत्य, कला, विज्ञान के रंग।

सद्भावों के पुष्प खिले हैं,

धर्म–समन्वय का सहज स्वरूप;

सत्यशोध के तप–उद्यान में

खिलता मानवीयता का रूप।

हमारा विश्वविद्यालय—

एकता का आलोक धरा पर,

विश्वमानव के स्वप्न-सुमन भर।

अनुसंधान के विस्तृत वन में

उद्भवते नव-विचार अनंत;

योग्यता के मेरु-शिखर को

छू लेता यह उत्साहित अंतःकंत।

कौशल, कर्म, नवाचारों की

प्रज्ञा-धारा निरंतर बहती—

अदृश्य सत्य के अंधकार में

यह दीपक बनकर राह कहती।

हमारा विश्वविद्यालय—

प्रयासों का पावन आयतन,

युगधर्म का उजला स्पंदन।

जहाँ शिक्षक ममता की छाया,

विद्यार्थी साहस का संबल लें;

जहाँ हर आँगन से उठती

‘तेजस्विनावधीतमस्तु’ की वंदना ध्वनि प्रतिदिन खेलें—

वही हमारा भवन सुभग यह,

कर्मभूमि, चिंतन का आश्रम;

ज्ञान-दीपों के संभारों से

दीप्तिमय होता प्रतिमुहूर्रम।

हमारा विश्वविद्यालय—

उत्कर्ष-मार्ग का अमृत-थल,

नव-जीवन का शांति-कुंज कल।

नवयुग के उजले पंखों पर

उड़ता यह शत-शोध धाम;

मानवता के गौरवगान में

अपना जोड़ रहा अविराम नाम।

वसुधैव-कुटुम्बकम् की ध्वनि

प्रत्येक श्वास में बसी रहे—

राष्ट्र–समृद्धि, विश्व–प्रगति का

सुदृढ़ संकल्प नवीन रहे।

हमारा विश्वविद्यालय—

हम सबके स्वप्नों का आधार,

उज्ज्वल भारत का उजला द्वार।

विंध्याचल की पावन वेला,

ज्ञान-सुमन फिर खिलने लगे,

माँ की छत्र-छाया पाकर,

पथ उजियारे मिलने लगे।

देवरी-कला की पावन धरती,

नव-अंकुरिता नव ज्योति यहाँ,

गंगा-जमुनी संस्कारों से,

गूँजे शिक्षा की प्रीति यहाँ।

माँ विन्ध्यवासिनी के नाम पर,

उठता है नव विश्व-विहार,

जहाँ परंपराएँ मिलकर रचतीं,

नव विज्ञानों का सत्कार।

ग्रामीण अंचल का हर बालक,

स्वप्न यहाँ आकार करे,

ज्ञान-शक्ति के संग-संग अब,

उज्ज्वल अपना संसार करे।

नारी-शक्ति का ध्वज फहराता,

यह शिक्षा-मंदिर क्षितिज तले,

हर बेटी को अधिकार मिले,

ऊँची उड़ानें भरने चले।

सशक्त बने हर गृह-आँगन,

स्वावलंबन की सीख मिले,

माँ अष्टभुजा की महिमा-सा,

साहस-पथ पर दीख मिले।

गाँव-गाँव तक फैल रहा है,

नव विकास का शुभ संवाद,

ज्ञान बने उपजाऊ धरती,

शिक्षा बने जीवन-उत्साद।

कृषि-शोध, उद्यम, लोक-कला—

सबको मिलकर सँवारेंगे,

मिर्ज़ापुर-भदोही-सोनभद्र के

स्वप्न नए अब निखारेंगे।

चुनार-दुर्ग की गाथाएँ हों

या कजरी-धुन की मधुर पुकार,

विश्वविद्यालय का यह कुलगीत,

जोड़ रहा सबको बारंबार।

विंधम दरी की जल-ध्वनि-सा,

सतत बहें अनुसंधान यहाँ,

कालीखोह की तप-गंध-सा,

जागे नित ज्ञान-ध्यान यहाँ।

कालीन-कला, पीतल-शिल्प,

लोकगायन की शालीन लय,

परंपरा संग आधुनिकता का,

यहाँ रच रहा नवीन अभय।

छात्र यहाँ से जाएँ आगे,

संस्कृति का हो मान सदा,

समग्र शिक्षा, सम्यक दृष्टि—

यही कुलगीत की पावन वंदना।

★★★

2).

विन्ध्यगिरि का नव विश्वविद्यालय

विन्ध्यगिरि की छाँह सुहानी, गंगा-धारा की यह भूमि,

ज्ञान-जागरण की पावन बेला, उजली होती आज यहीं।

माँ की महिमा, शक्ति स्वरूपा, देती हमको सत्य-दिशा,

उनके चरण चिह्न पथ-दीपक, बनते हैं शिक्षा की आशा।

देवी के पावन मंदिर से, जब-जब उठती मंत्र-धुनें,

वही स्वर शिक्षा-पथ पर अब, नव उजियारे भरते हैं।

विंध्य क्षेत्र का गौरव बनकर, उगता नव विश्वविद्यालय,

जहाँ पुरातन मर्म सहेजा, मिलता आधुनिकता का साथ।

मिर्ज़ापुर की कजरी-धुन में, बिरहा का उत्साह नया,

लोक-राग से जुड़कर जगता, नव युग का विश्वास नया।

चुनार-दुर्ग की शौर्य परंपराएँ, देती मन में नव संबल,

गंगा-जमुनी संस्कृति का यह, शिक्षा-मंदिर अद्भुत स्थल।

भदोही के कालीनों जैसी, सूक्ष्म शिल्प की स्नेह लय,

सोनभद्र की हरियाली जैसी, पावन आशा की मधुर छटाएँ।

इन तीनों का संगम बनकर, यह शिक्षा का युग मंदिर,

ज्ञान-वृक्ष की इस छाया में, मिले सभी को उजला पथ।

गंगा पवन पवित्र धारा-सा, हमारा लक्ष्य स्वच्छ, सरल,

माँ विन्ध्यवासिनी की वंदना, करती मन को दृढ़, अविकल।

सत्य, सेवा, विज्ञान-शक्ति—तीनों मिलकर दें संदेश,

विद्यार्थी का प्रथम धर्म यही—मानवता का शुद्ध परिवेश।

पर्वत जितनी दृढ़ता लाएँ, सागर जितनी गहराई,

ज्ञान पताका रहे ऊँची, चाहे राह रहे कितनी कठिनाई।

अनुसंधान से नव-सृजन हो, श्रम-संस्कार से शक्ति मिले,

यही विन्ध्य की पावन गोद हमें, कर्म की ऊष्मा देती रहे।

सत्याग्रह की सीख पुरानी, काशी से विंध्य तक आई,

दलित, वंचित, ग्रामीण जनों की, शिक्षा-प्यास बुझाने भाई।

समान अवसर, सम्यक जीवन—यही हमारा दृढ़ संकल्प,

समानता के दीप जलाएँ—नव-विकास का यही विकल्प।

विंध्याचल की पावन वेला, ज्ञान-सुमन फिर खिलने लगे,

माँ की छत्र-छाया पाकर, पथ उजियारे मिलने लगे।

देवरी-कला की पावन धरती, नव-अंकुरिता नव ज्योति यहाँ,

गंगा-जमुनी संस्कारों से, गूँजे शिक्षा की प्रीति यहाँ।

नारी-शक्ति का ध्वज फहराता, यह शिक्षा-मंदिर क्षितिज तले,

हर बेटी को अधिकार मिले, ऊँची उड़ानें भरने चले।

गाँव-गाँव तक फैल रहा है, नव विकास का शुभ संवाद,

ज्ञान बने उपजाऊ धरती, शिक्षा बने जीवन-उत्साद।

चुनार-दुर्ग की गाथाएँ हों या कजरी-धुन की मधुर पुकार,

विश्वविद्यालय का यह कुलगीत, जोड़ रहा सबको बारंबार।

परंपरा संग आधुनिकता का, यहाँ रच रहा नवीन अभय,

समग्र शिक्षा, सम्यक दृष्टि—यही कुलगीत की पावन वंदना।

माँ विन्ध्यवासिनी की कृपा से, जागे मन में दृढ़ विश्वास,

ज्ञान-साधना के उजियारे से, हो विंध्य-भूमि का उत्कर्ष-विकास।

★★★

रचनाकार: गोलेन्द्र पटेल (युवा कवि-लेखक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक चिंतक)

संपर्क सूत्र :-

डाक पता - ग्राम-खजूरगाँव, पोस्ट-साहुपुरी, तहसील-मुगलसराय, जिला-चंदौली, उत्तर प्रदेश, भारत।

पिन कोड : 221009

मोबाइल नं. : 8429249326

ईमेल : corojivi@gmail.com


नोट: उपर्युक्त दोनों गीत “माँ विंध्यवासिनी विश्वविद्यालय, मिर्ज़ापुर” के कुलगीत नहीं हैं, ये मिर्ज़ापुर के साथियों के कहने पर यहाँ प्रस्तुत है। आप इन्हें पढ़कर/ गुनगुनाकर अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें।

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