Friday, 27 March 2020


काशी मृत्यु का प्रतीक्षालय नही है मोक्ष की जन्मभूमि है- राजेश्वर आचार्य

द्वितीय वर्षगाँठ सह घाटवॉक उत्सव समारोह:2020

दिनांक-19/01/2020 को 'अंतर्राष्ट्रीय काशी घाटवॉक विश्वविद्यालय' द्वारा आयोजित यह कार्यक्रम बहुत ही सराहनीय और उत्साहवर्धक रहा।इस कार्यक्रम के आयोजक प्रख्यात न्यूरो चिकित्सक प्रो.विजय नाथ मिश्र ने कार्यक्रम में आये सभी अतिथियों एवं छात्रों का स्वागत करते हुए अपनी प्रसन्नता जाहिर की।

 घाटवाक के सूत्रधार और संयोजक प्रो.विजयनाथ मिश्र ने कहा कि जब व्यक्ति घाटों पर आता है तो एक सामान्य व्यक्ति की तरह आता है यह घाट ईश्वर की सत्ता का बोध कराते हैं।  यह घाट ईश्वर से कम नही है  काशी के घाट डी एन ए की तरह हैं। यह घाट हमारे देश की विरासत है। काशी के 84 घाट एक विशिष्ट परम्परा को साथ रखे हुए हैं। इस तरह के घाट दुनिया में कही नहीं मिलेंगे।

 प्रख्यात समाजशास्त्री प्रो अरविंद जोशी ने अक्कड़, बक्कड़ और फक्कड़ के विषय मे बताते हुए कहा कि अक्कड़ वे हैं जो पहले बार आएं है, बक्कड़ वे हैं जो सालों से साथ हैं और फक्कड़ वो हैं जो शुरू से आजतक बने हुए हैं।इसी के साथ यह भी बताया कि वैश्विक जीवन में घाटवाक की कितनी महत्वपूर्ण भूमिका है। शिक्षण जगत में अंतरराष्ट्रीय घाटवाक विश्वविद्यालय के महत्वपूर्ण मुद्दों से भी अवगत कराया । गहन चिंतन और स्वास्थ्य से लेकर मानसिक परिस्थितियों के विषय मे बताते हुए कहा कि जीवन मे जितनी ज्यादा सरलता होगी जीवन उतना ही आसान  होगा।

वरिष्ठ गीतकार इंदीवर पांडेय ने घाटों से सम्बंधित कविता( लहरों के छंद कही खो गए),दूसरी  (हे काशी कल्याणी) और तीसरी (चेहरा सनातन) का काव्यपाठ किया। इसी के साथ  (घाट है तो ठाठ है),प्रो श्रीप्रकाश शुक्ल ने (घाट वाक के फक्कड़ प्रेमी ) और प्रतिभा श्री ने भी काव्यपाठ  किया।

श्रीप्रकाश शुक्ल ने कहा कि जिसके संरक्षक बाबा विश्वनाथ हो उसे किसी पद की आवश्यकता नहीं ।इसी के साथ अक्कड़ बक्कड़ और फक्कड़ के विषय मे बताते हुए कहा कि यह
घाटवाक पद धारकों का नहीं, पग धारकों का है और जो पगढ
यह घाट तन का नहीं मन की अंतर्यात्रा है। यह पर्यटन का नहीं  प्रेम का विश्वविद्यालय है।यह देह नहीं दर्शन है , बाह्य नहीं आंतरिक है। यह सरल नहीं जटिल है।यह दिनचर्या नहीं लोकचर्या है । इसी के साथ हर घाट की अपना इतिहास लिए हुए है। आगे बताया कि इस घाटवाक को 4 भागों में बांटा है। इस घाटवाक का मुख्यालय तुलसी घाट है।इसका समाप्त राजघाट पर होगा जो अनुभूति और अभिव्यक्ति का केंद्र है । उन्होंने आगे कहा उदात्तता जीवन की गति है और गति है तो जीवन है।इसके पश्चात काव्यपाठ किया और  साथ ही रेत में आकृतियों की भी चर्चा के साथ इस पार घाट और उस पर रेत है इस विषय मे भी बताया।

द्वितीय सत्र बबुआ घाट  पर प्रारंभ हुआ जिसमें प्रो श्रीप्रकाश शुक्ल ने बताया कि इस घाट के सर्वेक्षण की जिम्मेदारी इनको मिली थी अतः इन्होंने बबुआ घाट के इतिहास के विषय मे बताते हुए कहा कि बबुआ पांडेय छपरा के रहने वाले थे जो पहलवानी करते थे जो घर से नाराज होकर बनारस चले आये और यहाँ पर उन्होंने लोककक्षा जैसे  कार्य जैसे अखाड़ा चलाते थे अतः बबुआ महिलाओं के सशक्तिकरण करने के लिये इस घाट से बेहतर और कोई घाट नहीं  हो सकता।

बबुआ घाट पर नेशनल एथिलीट डॉ नीलू मिश्रा ने कहा कि अगर हम फिट हैं तभी हिट हैं।डेली रूटीन में भी घाट वाक को शामिल करना चाहिए इसके साथ ही परिवार को भी इससे जोड़ें।जब परिवार फिट है तो समाज और देश की संस्कृति का वहन भी सुचारू होगा।  काशी की संस्कृति और काशी को स्वस्थ बनाने के लिए घटवाक बेहद जरूरी है। महिलाओं को प्रेरित करते हुए परिवार,समाज और देश को फिट और हिट बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं। इसके साथ ही महिलाओं को ब्रेस्ट कैंसर जैसी बीमारियों से निज़ात पाने के लिए डेली 3 किलोमीटर दौड़ या वाक करना बेहतर उपाय बताया।

डॉ विधि नागर ने अपने पूर्व के घाटवाक अनुभवों को साझा किया।

प्रो मंजुला चतुर्वेदी ने कहा कि अपने शहर की पहचान गंगा और घाट है उनसे जुड़ने का मौका मिला। गंगा और गंगा की लहरें हमारी आंतरिक चेतना का प्रवाह हैं।इसी के साथ घाटवाक विश्वविद्यालय के उद्देश्य  को बताया कि हम सब इससे जुड़े इस शहर से प्यार करें और काशी की जीवन्त नगरी को और उन्नत बनाएं।

मशहूर अदाकारा तनु शुक्ला ने कहा कि  घाट और गंगा को किस तरह से स्वच्छ रखे इस विषय मे बात की और बताया कि विशेषकर महिलाएं जो पूजा सामग्री को नदी में प्रवाहित करना श्रेष्ठ मानती हैं उन चीजो को प्रवाहित न कर किसी पेड़ के नीचे या अन्य जगहों पर भी रखा जा सकता है।

डॉ शारदा सिंह ने कहा कि इस घाटवाक के माध्यम से हमें बहुत सारी अनभिज्ञ चीजों की जानकारी मिली और एकदूसरे से जुड़ने का मौका मिला।इसी के साथ फिट और हिट होने की बात कही।

 सभी महिला सशक्तिकरण की प्रमुख महिलाओं प्रो मंजुला चतुर्वेदी, डॉ विधि नागर, अदाकारा तनु शुक्ला, डॉ शारदा सिंह, नेशनल एथिलीट डॉ नीलू मिश्र को अंग वस्त्र और पुष्प गुच्छ से सम्मानित किया गया।

तृतीय सत्र में दुर्गा घाट पर  अमित समीर जो गरीबों की मदद और महिलाओं को कराटो में निपुण  बनाते हैं और साकेत जो जरूरतमंदों के सहायक हैं उनको अंगवस्त्र से सम्मानित किया गया और यहाँ पर विदेश से आये इंस्ट्रूमेंट वादकों द्वारा सुमधुर धुनों का वादन हुआ।

इसके साथ ही अष्टभुजा सिंह द्वारा लिखे घाटवाक गीत के साथ तमाम घाटों का परिचय करवाते हुए चतुर्थ सत्र राजघाट के समीप रानीघाट पर पहुंचे जहां पर पद्म भूषण से सम्मानित राजेश्वर आचार्य ,प्रो अरविंद जोशी, सुदामा त्रिपाठी,चंद्रभूषण मिश्र, सुरेंद्र मिश्र आदि आदरणीय जनों को सम्मानित किया गया।

प्रो अरविंद जोशी ने बताया कि आजकल समाज मे
वरिष्ठ नागरिकों वृद्धों के साथ हो रहे  दुर्व्यवहार की बात को बताया किस प्रकार से वृद्धों के बोझ से बचने के लिए उनके मारने की घृणित कर्म समाज मे लोग करतें हैं। वैश्विक दौर में स्वार्थवाद के हावी होने की बात कही।आगे कहा कि सभी वृद्ध समाज मे समरूप व्यवस्था के नहीं है कोई भी व्यक्ति  चाहें कितना भी सम्पन्न हो उन्हें बायलोजिकल स्थिति का सामना करना ही पड़ता ही है अतः हमें इस स्थिति को सुधारना होगा।भारतीय संस्कृति में माता-पिता से दुर्व्यवहार निदनीय कार्य है। संस्कृति को खंडित करने का कार्य है।

सुदामा त्रिपाठी ने कहा कि गांधी जी ने 10 वर्ष की उम्र में किये कार्यो की चर्चा की और साथ ही अपने द्वारा अंग्रेजों के खिलाफ लगाए नारों के विषय मे भी बताया-
ए अंग्रेजों भारत छोड़ों बोरिया बन्दा जल्दी बिटोरो
दूर हटो ए लन्दन वालों यह तो क्षेत्र हमारा है।

समापन सत्र की अध्यक्षता कर रहे राजेश्वर आचार्य जी ने कहा कि यह मात्र जमीन पर चलना नहीं है भूगोल को लेकर चलना है। इतिहास और भूगोल की संस्कृतिक धारा है घाट वाक ।यह हमें आनंद और समाधि की ओर ले जाता है।आगे कहा कि
काशी मृत्यु का प्रतीक्षालय नही है मोक्ष की जन्मभूमि है।

इस घाट वाक का संचालन शोधछात्र उदयपाल ने किया ।
इसके साथ ही इस उत्सव की वापसी नौका विहार करते हुए हुई जिसमें ताना बाना ग्रुप ने कबीर के पदों का सुंदर गायन किया और दिव्यांग विक्रांत शर्मा ने अद्भुत मिमिक्री की । इसके साथ ही घाटवाक उत्सव को सफल बनाया गया।
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