नंगेली और नीरा की कहानी : गोलेन्द्र पटेल (नोट: लेख/टिप्पणी आभार : सोशल मीडिया के मित्रगण/ ये मेरे लेख/टिप्पणी नहीं हैं। धन्यवाद!)
भाइयो भीमटे अक्सर कहते रहते है कि केरल के ब्राह्मण राजा ने शुद्र कन्यायों पर breast tax लगाया और टीपू सुल्तान ने शुद्रो को इस टैक्स से मुक्ति दिलवाई, पर सवाल ये है जब नंगेली ने अपने स्तन काटे तब राजा था हिन्दू तो टीपू सुल्तान ने मदद कैसे कर दी क्योंकि दूसरे राज्य के राजा टीपू सुल्तान तो मर चुका था उस समय???
आखिर किसने और क्यों लगाया था शुद्र कन्यायों पर ये भयानक टैक्स जाने इस पोस्ट में :-
चित्रदुर्गा किला जो कि "राजा वीर मदकारी नायक वाल्मीकि" के शासन में था
उस किले में ओनेकओबावा(शुद्र) के पति रक्षक थे, उनके पति दोपहर को खाना खाने आये हुए थे घर मे पानी नही था इसलिए ओनेक ओबावा पानी भरने के लिए ऊपर पहाड़ी में स्थित तालाब में गयी।
वहाँ से उन्होंने देखा कुछ सैनिक किले में घुसने का प्रयास कर रहे है।
ओनेक ओबावा ने बिना वक़्त गवाए अपनी मूसल ले कर उन सैनिको पर छिप कर प्रहार करने लगी, एक एक कर उनके हाथों सैनिक मारे जाने लगें, उसी समय हैदर अली के सेनापति को भनक लगी कि कोई पीछे से उन पर वार कर रहा है , और तभी सेनापति की नज़र ओनेक ओबावा पर पड़ी, वो तुरंत वहाँ से भागी इधर चित्रदुर्गा किले के सैनिको को भी हैदर अली के सेना का होने की सूचना मिलते ही बाहर निकल अली की सेंना पर टूट पड़े, परंतु तब तक देर हो चुकी थी ओनेक ओबावा बुरी तरह घायल अवस्था मे अपने पति के पास पहुँची और प्राण त्याग दिये।
इधर हैदर अली के सेना बुरी तरह परास्त हो चुकी थी।
हैदर अली शुद्रो से बहुत क्रोधित था उस ने दोबारा चित्रदुर्गा पर आक्रमण किया और इस बार चित्रदुर्गा को जीतने के बाद उसने शुद्र कन्याओ को दंड देने के लिए BREAST TAX लगा दिया।
हैदर अली के मरते ही पूरे हिन्दू समाज ने ब्राह्मणों के नेतृत्व में शुद्र कन्याओ को इस भयानक tax से मुक्ति दिलाने के लिए विद्रोह कर दिया, हैदर अली के पुत्र टीपू सुल्तान ने इस विद्रोह का बुरी तरह दमन किया, हज़ारो हिन्दुओ को मारा, लूटा गया, ब्राह्मणों की गर्दने कटवा दी गयी, मंदिरो को नष्ट कर दिया गया।
इधर विद्रोह का दमन करने के चक्कर मे टीपू सुल्तान केरल राज्य गवा बैठा।
केरल और अंग्रेज़ो का गठबंधन हो चुका था, उधर टीपू के राज्य में शुद्रो पर breast tax लगता ही था ,इधर केरल में भी अंग्रेज़ो ने राजा पर दबाव बना कर समस्त हिन्दू मुसलमान कन्यायों पर tax जारी रखा,
अमीर घराने के हिन्दू मसलमान तो ये टैक्स भर देते थे पर गरिब यह टैक्स न भर पाते अतः टैक्स से मुक्ति पाने के लिए ईसाई धर्म अपना लेते।
राजा ने कई बार इस कर को हटाने की कोशिश की पर वह किसी हालात में अंग्रेज़ो को दुश्मन नही बनाना चाहता था क्योंकि अंग्रेज़ो से दुश्मनी मतलब टीपू का आक्रमण, अतः विवश हो राजा ने इस कर को जबरदस्ती नही हटवाया परंतु वह दरख्वास्त करता रहता था।
समय बीतता गया, टीपू की मृत्यु(ई० 1799) हो गयी, राजा बूढ़ा हो गया।
एक दिन जब अंग्रेज़ शुद्र कन्यायों से ब्रैस्ट टैक्स वसूलने गांव पहुँचे वहाँ नंगेली नामक गरीब शुद्र कन्या ने दुखी और क्रोधित होकर अपना स्तन काट(ई०1824) लिया इसके बाद पूरे राज्य में समस्त स्त्रीयो ने विद्रोह कर राजा और अंग्रेज़ो पर दबाव बना कर इस टैक्स से मुक्ति पाई(ई०1859)।
नंगेली का नाम केरल के बाहर शायद किसी ने न सुना हो. किसी स्कूल के इतिहास की किताब में उनका ज़िक्र या कोई तस्वीर भी नहीं मिलेगी.
लेकिन उनके साहस की मिसाल ऐसी है कि एक बार जानने पर कभी नहीं भूलेंगे, क्योंकि नंगेली ने स्तन ढकने के अधिकार के लिए अपने ही स्तन काट दिए थे.
केरल के इतिहास के पन्नों में छिपी ये लगभग सौ से डेढ़ सौ साल पुरानी कहानी उस समय की है जब केरल के बड़े भाग में ब्राह्मण त्रावणकोर के राजा का शासन था.
जातिवाद की जड़ें बहुत गहरी थीं और निचली जातियों की महिलाओं को उनके स्तन न ढकने का आदेश था. उल्लंघन करने पर उन्हें 'ब्रेस्ट टैक्स' यानी 'स्तन कर' देना पड़ता था.
केरल के श्री शंकराचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय में जेंडर इकॉलॉजी और दलित स्टडीज़ की एसोसिएट प्रोफ़ेसर डॉ. शीबा केएम बताती हैं कि ये वो समय था जब पहनावे के कायदे ऐसे थे कि एक व्यक्ति को देखते ही उसकी जाति की पहचान की जा सकती थी ।
डॉ. शीबा कहती हैं, "ब्रेस्ट टैक्स का मक़सद जातिवाद के ढांचे को बनाए रखना था. ये एक तरह से एक औरत के निचली जाति से होने की कीमत थी. इस कर को बार-बार अदा कर पाना इन ग़रीब समुदायों के लिए मुमकिन नहीं था."
केरल के हिंदुओं में जाति के ढांचे में नायर जाति को शूद्र माना जाता था जिनसे निचले स्तर पर एड़वा और फिर दलित समुदायों को रखा जाता था ।
"कर मांगने आए अधिकारी ने जब नंगेली की बात को नहीं माना तो नंगेली ने अपने स्तन ख़ुद काटकर उसके सामने रख दिए."
लेकिन इस साहस के बाद ख़ून ज़्यादा बहने से नंगेली की मौत हो गई. बताया जाता है कि नंगेली के दाह संस्कार के दौरान उनके पति ने भी अग्नि में कूदकर अपनी जान दे दी ।
"उन्होंने अपने लिए नहीं बल्कि सारी औरतों के लिए ये कदम उठाया था"
नंगेली आपकी अमर गाथा लिखी जाएगी सुनहरे अक्षरो मे मनुवाद और ब्राह्मणवाद का यह ऐसा कर्कश दृश्य था कि एक औरत को उसकी जाती के आधार पर उसके स्तन तक को न ढकने दिया हो । सोचकर ही रोंगटे खड़े हो जाते है ।
यह नागेली नामक उस वीरांगना की तस्वीर (चित्र -2) है जिसने स्तन ढकने के अधिकार के लिए अपना ही स्तन काट दिया था कि न स्तन होगा और न कोई उसका जिस्म देख पायेगा ।।
नांगेली को साउथ के बाहर ज़्यादा लोग नही जानते पर आत्म सम्मान के लिए मर मिटी यह महिला आज तक साउथ में नारी शसक्तीकरण का प्रतीक है और देवी की तरह आत्मसम्मान के उपासक इस देवी की पूजा करते हैं ।
लगभग दो सौ साल पहले केरला में ब्राह्मण के राजा त्रावणकोर का शाशन था ,,
ब्राह्मणों ने वस्त्र नियंत्रण इस तरह से किया था कि वस्त्र से ही जाति का अंदाज़ा लग सके ।।
दलित (उस समय की अछूत जातियों) औऱ निचली जातियों की स्त्रियों को स्तन खुले रखने का शाशन आदेश था और लज़्ज़ा वश या मान सम्मान के चलते अगर औरतें अपने बेटे या ससुर, बाप, जेठ से भी स्तन ढंकती तो ब्रेस्ट टेक्स के तहत उनके नारीत्व को ब्राह्मण काट लेते ।
नाखून गहरा कट जाने पर चीख उठने वाले समाजवादियो, महसूस कीजिये उस पीड़ा को
नांगेली के अदम्य साहस को
आत्म सम्मान के लिए नारीत्व के कटने को ...
ज़रा एक पल के लिए रख कर देखिये नांगेली के किरदार में खुद को ।।............
इन्ही पाखंडी आतंकवादियों से त्राहिमाम इंसानियत को जब आज़ादी दिलाने इस्लाम भारत आया तो कट्टरपंथी हो गया ।
इसी को रोकने के चलते "टीपू सुल्तान" आतंकवादी हो गया ।
ब्राह्मण विमर्श : एक सवाल
देश के सबसे अधिक धनी कहे जाने वाले पद्मनाभस्वामी मंदिर की कमान राज्य सरकार के हाथों से ले कर सुप्रीम कोर्ट ने त्रावणकोर के राजपरिवार को सौंप दी है, दो लाख करोड़ से अधिक सम्पति के मालिक इस मंदिर का संचालन अब राजपरिवार के हाथों आ गया है,
तकरीबन 70-80 साल पहले तक त्रावणकोर के राज परिवार द्वारा वहां की महिलाओं से दुनिया का सबसे घिनौना और अमानवीय टैक्स ' स्तन कर' लिया जाता था, त्रावणकोर रियासत का विस्तार केरल से लेकर तमिलनाडु के कई हिस्सों में था जिसमें कि पद्मनाभस्वामी मंदिर भी इसी विरासत का हिस्सा रही थी,
इस रियासत के नियमों के अनुसार महिलाओं को अपने स्तन ढकने के लिए रियासत को कर देना पड़ता था, ख़ास कर नीची जाति की महिलाओं को यह नियम कड़ाई से पालन करना पड़ता था उन्हें हर समय स्तन खुले रखने पड़ते थे, अन्यथा भारी जुर्माने का विधान था, जुर्माना न दिए जाने पर शारीरिक दंड दिया जाता था,
ऊंची जाति की स्त्रियां जब बाहर बाज़ार आदि के लिए निकलती थीं तो वे अपना शरीर ढंक सकती थीं लेकिन मंदिरों में उन्हें भी ब्राह्मणों और दरबार में राज परिवार वालों के सम्मान में अपने स्तन दिखाने पड़ते थे,
नवभारत टाइम्स लिखता है कि ;
"पुरोहित एक लंबी लाठी के सिरे पर चाकू बांध कर रखते थे, अगर कोई स्त्री पूरे कपड़े पहने होती तो पुरोहित उसके कपड़े फाड़ देते, पिछड़ी जाति की महिला के ऐसा करने पर अक्सर उनके कपड़े फाड़कर पेड़ से लटका दिया जाता था ताकि और महिलाएं दोबारा वैसा करने की हिम्मत न करें, रियासत के महाराज जब कभी रास्तों से गुजरते तो सारी कुंवारी लड़कियां आधे कपड़े उतार कर फूल बरसाती थीं,
कुछ जगहों पर स्त्रियां टैक्स देकर अपने स्तन ढक सकती थीं, इस टैक्स का सबसे शर्मनाक पहलू था कि ये टैक्स महिलाओं के स्तनों के आकार के अनुपात में लिया जाता था, महिलाएं टैक्स से बचने के लिए अपने स्तन तक काट लेने पर मजबूर हो जाती थीं,
यह अपमानजनक और अमानवीय प्रथा अंग्रेजों ने समाप्त करवायी थी,
बड़े दुःख की बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने फिर से उसी परिवार को मंदिर का संचालन सौप दिया है जिसके पूर्वजों ने महिलाओं पर इतने अत्याचार किये थे और 'स्तन कर ' लगा के मंदिर के खज़ाने और अपने निजी धन दौलत में इज़ाफ़ा किया था,
असल में होना यह चाहिये था कि सुप्रीम कोर्ट को राजपरिवार और मंदिर की सारी सम्पति जब्त कर जनता की भलाई में लगा देना चाहिए थी किंतु सुप्रीम कोर्ट में बैठे जजों ने फिर उसी राज परिवार को मंदिर का संचालन सौंप दिया है ..
भारत की पहली जासूस महिला नीरा आर्या की कहानी :-
जिसने नेताजी को बचाने के लिए अपने बंगाली पति की हत्या कर दी थी
1946 में अंग्रेजो ने सारे कैदी छोड़ दिये थे परंतु इन्हें काले पानी की सजा दी थी।
जिसके आंग्रेजो ने स्तन तक काट दिए थे परंतु फिर भी देशभक्ति के पथ से नहीं डिगी
नीरा आर्य का जन्म 5 मार्च 1902 को बागपत के खेकड़ा नगर में एक सम्पन्न "चौधरी जाट परिवार" में हुआ था। लेकिन इनके माता पिता के बीमार होने बाद घर के हालात बिगड़ गए और कर्ज में डूब गए। छोटी सी उम्र में ही इनके माता पिता चल बसे। इनके घर पर साहूकार ने कब्जा कर लिया। नीरा व उनका भाई बसन्त कुमार भटक रहे थे तो एक दिन हरियाणा के दानवीर "चौधरी सेठ छज्जूमल लाम्बा"(छाजूराम) जी ने उन्हें गोद ले लिया। उनका कलकत्ता में विश्वप्रसिद्ध व्यापार था। नीरा व बसन्त ने सेठ जी को अपना धर्मपिता स्वीकार किया। उनकी पढ़ाई लिखाई कलकत्ता में ही हुई। सेठ जी के प्रभाव से ही आर्य समाजी बन गयी।
एक बार बचपन में समुद्र के किनारे घूमने गयी हुई नीरा लहरों की चपेट में आ गयी और डूबने वाली थी तभी एक दूसरे बच्चे ने उसे बचा लिया वह बच्चा कोई और नहीं बल्कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जी थे। उन्होने नेताजी को अपना भाई स्वीकार किया।
बड़े होकर अपने धर्मपिता सेठ छज्जूमल के आदर्शों के कारण देशभक्ति कूट कूटकर भरी हुई थी इसलिए नेताजी की आजाद हिंद फौज में शामिल हुई और देश की पहली जासूस होने का गौरव प्राप्त किया।
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
इन्होंने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जान बचाने के लिए अंग्रेजी सेना में अफसर अपने पति श्रीकांत जयरंजन दास की हत्या कर दी थी।अवसर पाकर श्रीकांत जयरंजन दास ने नेताजी को मारने के लिए गोलियां दागी तो वे गोलियां नेताजी के ड्राइवर को जा लगी। लेकिन इस दौरान नीरा आर्य ने श्रीकांत जयरंजन दास के पेट में संगीन घोंपकर उसे परलोक पहुंचा दिया था। श्रीकांत जयरंजन दास बंगाली थे व नीरा आर्य के पति थे, इसलिए पति को मारने के कारण ही नेताजी ने उन्हें नागिनी कहा था। आजाद हिन्द फौज के समर्पण के बाद जब दिल्ली के लाल किले में मुकदमा चला तो सभी बंदी सैनिकों को छोड़ दिया गया, लेकिन इन्हें पति की हत्या के आरोप में काले पानी की सजा हुई थी, जहां इन्हें घोर यातनाएं दी गई। आजादी के बाद इन्होंने फूल बेचकर जीवन यापन किया, लेकिन कोई भी सरकारी सहायता या पेंशन स्वीकार नहीं की। इनके भाई बसंत कुमार भी स्वतंत्रता सेनानी थे, जो आजादी के बाद संन्यासी बन गए थे। आजादी के जंग में अपनी भूमिका पर इन्होंने अपनी आत्मकथा भी लिखी है। उर्दू लेखिका फरहाना ताज को भी इन्होंने अपने जीवन के अनेक प्रसंग सुनाए थे। उन्होंने भी इनके जीवन पर एक उपन्यास लिखा है, जिसमें इनके आजादी की जंग में योगदान को रेखांकित किया गया है। इनकी आत्मकथा का एक ह्रदयद्रावक अंश प्रस्तुत है - ‘‘मैं जब कोलकाता जेल से अंडमान पहुंची, तो हमारे रहने का स्थान वे ही कोठरियाँ थीं, जिनमें अन्य महिला राजनैतिक अपराधी रही थी अथवा रहती थी। हमें रात के 10 बजे कोठरियों में बंद कर दिया गया और चटाई, कंबल आदि का नाम भी नहीं सुनाई पड़ा। मन में चिंता होती थी कि इस गहरे समुद्र में अज्ञात द्वीप में रहते स्वतंत्रता कैसे मिलेगी, जहाँ अभी तो ओढ़ने बिछाने का ध्यान छोड़ने की आवश्यकता आ पड़ी है? जैसे-तैसे जमीन पर ही लोट लगाई और नींद भी आ गई। लगभग 12 बजे एक पहरेदार दो कम्बल लेकर आया और बिना बोले-चाले ही ऊपर फेंककर चला गया। कंबलों का गिरना और नींद का टूटना भी एक साथ ही हुआ। बुरा तो लगा, परंतु कंबलों को पाकर संतोष भी आ ही गया। अब केवल वही एक लोहे के बंधन का कष्ट और रह-रहकर भारत माता से जुदा होने का ध्यान साथ में था। ‘‘सूर्य निकलते ही मुझको खिचड़ी मिली और लुहार भी आ गया। हाथ की सांकल काटते समय थोड़ा-सा चमड़ा भी काटा, परंतु पैरों में से आड़ी बेड़ी काटते समय, केवल दो-तीन बार हथौड़ी से पैरों की हड्डी को जाँचा कि कितनी पुष्ट है। मैंने एक बार दुःखी होकर कहा, ‘‘क्याअंधा है, जो पैर में मारता है?’’ ‘‘पैर क्या हम तो दिल में भी मार देंगे, क्या कर लोगी?’’ उसने मुझे कहा था। ‘‘बंधन में हूँ तुम्हारे कर भी क्या सकती हूँ...’’ फिर मैंने उनके ऊपर थूक दिया था, ‘‘औरतों की इज्जत करना सीखो?’’ जेलर भी साथ थे, तो उसने कड़क आवाज में कहा, ‘‘तुम्हें छोड़ दिया जाएगा, यदि तुम बता दोगी कि तुम्हारे नेताजी सुभाष कहाँ हैं?’’ ‘‘वे तो हवाई दुर्घटना में चल बसे, ’’ मैंने जवाब दिया, ‘‘सारी दुनिया जानती है। ’’ ‘‘नेताजी जिंदा हैं....झूठ बोलती हो तुम कि वे हवाई दुर्घटना में मर गए?’’ जेलर ने कहा। ‘‘हाँ नेताजी जिंदा हैं।’’ ‘तो कहाँ हैं...। ’’ ‘मेरे दिल में जिंदा हैं वे। ’’ जैसे ही मैंने कहा तो जेलर को गुस्सा आ गया था और बोले, ‘‘तो तुम्हारे दिल से हम नेताजी को निकाल देंगे। ’’ और फिर उन्होंने मेरे आँचल पर ही हाथ डाल दिया और मेरी आँगी को फाड़ते हुए फिर लुहार की ओर संकेत किया...लुहार ने एक बड़ा सा जंबूड़ औजार जैसा फुलवारी में इधर-उधर बढ़ी हुई पत्तियाँ काटने के काम आता है, उस ब्रेस्ट रिपर को उठा लिया और मेरे दाएँ स्तन को उसमें दबाकर काटने चला था...लेकिन उसमें धार नहीं थी, ठूँठा था और उरोजों (स्तनों) को दबाकर असहनीय पीड़ा देते हुए दूसरी तरफ से जेलर ने मेरी गर्दन पकड़ते हुए कहा, ‘‘अगर फिर जबान लड़ाई तो तुम्हारे ये दोनों गुब्बारे छाती से अलग कर दिए जाएँगे...’’ उसने फिर चिमटानुमा हथियार मेरी नाक पर मारते हुए कहा, ‘‘शुक्र मानो हमारी महारानी विक्टोरिया का कि इसे आग से नहीं तपाया, आग से तपाया होता तो तुम्हारे दोनों स्तन पूरी तरह उखड़ जाते।’’
आजाद हिंद फौज की पहली जासूस
वैसे तो पवित्र मोहन रॉय आजाद हिंद फौज के गुप्तचर विभाग के अध्यक्ष थे, जिसके अंतर्गत महिलाएं एवं पुरुष दोनों ही गुप्तचर विभाग आते थे। लेकिन नीरा आर्य को आजाद हिंद फौज की प्रथम जासूस होने का गौरव प्राप्त है। नीरा को यह जिम्मेदारी इन्हें स्वयं नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने दी थी। अपनी साथी मानवती आर्या, सरस्वती राजामणि और दुर्गा मल्ल गोरखा एवं युवक डेनियल काले[34][35] संग इन्होंने नेताजी के लिए अंग्रेजों की जासूसी भी की। जासूसी से संबंधित इनकी आत्मकथा का एक अंश इस प्रकार है : मेरे साथ एक और लड़की थी, सरस्वती राजामणि। वह उम्र में मुझसे छोटी थी, जो मूलतः बर्मा की रहने वाली थी और वहीं जन्मी थी। उसे और मुझे एक बार अंग्रेजी अफसरों की जासूसी का काम सौंपा गया। हम लड़कियों ने लड़कों की वेशभूषा अपना ली और अंग्रेज अफसरों के घरों और मिलिट्री कैम्पों में काम करना शुरू किया। हमने आजाद हिंद फौज के लिए बहुत सूचनाएँ इकट्ठी की। हमारा काम होता था अपने कान खुले रखना, हासिल जानकारी को साथियों से डिस्कस करना, फिर उसे नेताजी तक पहुँचाना। कभी-कभार हमारे हाथ महत्वपूर्ण दस्तावेज भी लग जाया करते थे। जब सारी लड़कियों को जासूसी के लिए भेजा गया था, तब हमें साफ तौर से बताया गया था कि पकड़े जाने पर हमें खुद को गोली मार लेनी है। एक लड़की ऐसा करने से चूक गई और जिंदा गिरफ्तार हो गई। इससे तमाम साथियों और आर्गेनाइजेशन पर खतरा मंडराने लगा। मैंने और राजामणि ने फैसला किया कि हम अपनी साथी को छुड़ा लाएँगी। हमने हिजड़े नृतकी की वेशभूषा की और पहुँच गई उस जगह जहाँ हमारी साथी दुर्गा को बंदी बना के रखा हुआ था। हमने अफसरों को नशीली दवा खिला दी और अपनी साथी को लेकर भागी। यहां तक तो सब ठीक रहा लेकिन भागते वक्त एक दुर्घटना घट ही गई, जो सिपाही पहरे पर थे, उनमें से एक की बंदूक से निकली गोली राजामणि की दाई टांग में धंस गई, खून का फव्वारा छूटा। किसी तरह लंगडाती हुई वो मेरे और दुर्गा के साथ एक ऊंचे पेड़ पर चढ़ गई। नीचे सर्च आॅपरेशन चलता रहा, जिसकी वजह से तीन दिन तक हमें पेड़ पर ही भूखे-प्यासे रहना पड़ा। तीन दिन बाद ही हमने हिम्मत की और सकुशल अपनी साथी के साथ आजाद हिंद फौज के बेस पर लौट आई। तीन दिन तक टांग में रही गोली ने राजमणि को हमेशा के लिए लंगड़ाहट बख्श दी। राजामणि की इस बहादुरी से नेताजी बहुत खुश हुए और उन्हें आईएनए की रानी झांसी ब्रिगेड में लेफ्टिनेंट का पद दिया और मैं कैप्टन बना दी गई। मैंने एक दिन राजामणि को मजाक में कहा, तू तो लंगडी हो गई, अब तेरे से शादी कौन करेगा? तो बोली, आजाद हिन्द में हजारों छोरे हैं, उनमें से कोई एक जो जंग में सीने पर और दोनों पैरों पर गोलियां खाएगा और दुश्मनों को ढेर करेगा उसी से कर लूंगी, बराबर की जोड़ी हो जाएगी।मेरी बोलती बंद!
जीवन के अंतिम दिन
इन्होंने जीवन के अंतिम दिनों में फूल बेचकर गुजारा किया और फलकनुमा, हैदराबाद में एक झोंपड़ी में रही। अंतिम समय में इनकी झोंपड़ी को भी तोड़ दिया गया था, क्योंकि वह सरकारी जमीन में बनी हुई थी। वृद्धावस्था में बीमारी की हालत में चारमीनार के पास उस्मानिया अस्पताल में इन्होंने रविवार 26 जुलाई, 1998 में एक गरीब, असहाय, निराश्रित, बीमार वृद्धा के रूप में मौत का आलिंगन कर लिया। स्थानीय दैनिक स्वतंत्र वार्ता के बिजनेस रिपोर्टर ने अपने साथियो संग मिलकर इनका अंतिम संस्कार किया।
पंजाब विभाजन : बंटवारे के दंगों में जब इंसान ही औरतों के खून का प्यासा था l
साल 1947 के बंटवारे के दरमियान हमारे पूरे देश खासकर पंजाब के लोगों ने हैवानियत की एक विराट झांकी देखी थी| पंजाबियत इससे पहले कभी भी इतने बड़े पैमाने पर बर्बाद और शर्मसार नहीं हुई थी| लाखों मज़लूमों के कत्ल, रेप, अपहरण, लूटपाट, विश्वासघात और जबरदस्ती धर्मांतरण| उस वक्त आखिर हैवानियत का वो कौन सा ऐसा रूप था, जिसको पंजाब के लोगों ने नहीं सहा| पंजाब के अल्पसंख्यकों का दोष सिर्फ इतना था कि वो रेडक्लिफ लाइन की उस दिशा में मौजूद थे जहां पर उन्हें होना नहीं चाहिए था| इन सभी जगहों पर उनका नस्ली सफाया कर दिया गया और इसके नतीजे दहलाने वाले थे| पश्चिमी पंजाब में हिंदू-सिक्खों की गिनती 30 फीसद से कम होकर 1 फीसद हो गई| 5 से 7 लाख लोग पंजाब के दोनों तरफ मारे गए|
बंटवारे की हैवानियत का सबसे बड़ा शिकार पंजाब की अपनी महिलाओं को होना पड़ा| ऐसी हैवानियत कि लिखते हुए हाथ कांप जाए और बोलते हुए ज़बान लरज़ जाए| इस दौरान बिना कपड़ों की औरतों के जुलुस निकालने और कइयों के स्तन काट देने जैसी अमानवीय घटनाएं हुईं| यह सब कुछ पंजाब की सरज़मी पर हुआ, जहां पर सदियों से सिक्ख गुरुओं और सूफी संतों ने मज़हबी सहनशीलता, इंसानियत और दोस्ती की शिक्षा दी थी|
औरतों पर ऐसी हैवानियत की शुरुआत मार्च 1947 के रावलपिंडी के दंगों से शुरू हो गई थी| थोहा खालसा के गांव में हिंदू सिक्ख औरतें दंगाइंयों से अपनी इज़्जत बचाने के लिए कुएं में छलांग लगाकर मर गई थीं| इसके बाद पंडित नेहरू ने खुद इस इलाके का दौरा किया और संत गुलाब सिंह की हवेली में लाशों से भरे इस कुएं को भी देखा| अगस्त, सितंबर और अक्टूबर में पंजाब के हर गांव, हर शहर में अल्पसंख्यक औरतों पर यह कहर बरपाया गया| औरतों के साथ यह सुलूक मध्यकालीन समय के विदेशी हमलावरों जैसा था, लेकिन इसबार ज़ुल्म करने वाले पंजाब की सरजमीं के अपने बाशिदें थे|
जितना जुल्म इन औरतों ने अपने जिस्म पर बर्दाश्त किया, उससे ज्यादा मानसिक तौर पर इन्होंने जुल्म सहा| बंटवारे के दौरान यह अनुमान लगाया जाता है कि करीब 25,000 से 29,000 हिन्दू और सिख महिलाएं अपहरण, बलात्कार, ज़बरदस्ती धर्मांतरण और हत्या का शिकार हुई|
उस वक़्त हैवानियत इतनी हुई कि उसे एक साधारण प्रवृत्ति मान लिया गया. इंसानियत की गुहार को तो एक समझ न आने वाली चीज़ मानकर दरकिनार कर दिया गया था. ऐसे हालात में भी कुछ ऐसे लोग थे जिनके दिल रहम की भावना से बिल्कुल खाली नहीं हुए थे
उत्तरप्रदेश में योगीराज में केवल जंगलराज ही देखने को मिल रहा है. दो दिन पहले लखीमपुर खीरी में एक किशोरी छेड़छाड़ का विरोध करने पर हाथ काट दिया गया था. फिर से ऐसा ही मामला सामने आया है. पीलीभीत जिले में एक नाली के विवाद को लेकर दबंगों ने एक महिला के दोनों स्तन काट डाले. साथ ही उसका हाथ भी काट दिया. देवर की सूचना के बाद मौके पर पहुंची पुलिस ने तडपती हुई महिला को अस्पताल ले जाने से भी मना कर दिया.
इस दौरान पीड़ितों के परिजनों ने पुलिस के पैर पकड़कर मिन्नतें की कि वे उसे अस्पताल ले चले. लेकिन पुलिस ने ले जाने से मना कर दिया और कहा, गाड़ी की व्यवस्था वो खुद करें. परिजनों ने निजी वाहन से घायल महिला को जिला अस्पताल में भर्ती कराया. रनपुर कोतवाली के क्षेत्राधिकारी अनुराग दर्शन ने कहा कि मामले में मुकदमा दर्ज कर आरोपी को जेल भेज दिया गया है.
इस घटना के चलते इलाके में दहशत है. साथ ही पुलिस की इस शर्मनाक पर भी लानत की जा रही है. सिपाही के पैर पकड़ने वाली तस्वीर मीडिया में वायरल हो गई. कुछ दिन पहले रक्षा-बंधन पर भी एक ऐसी शर्मनाक करतूत सम्म्नें आई थी. यह शर्मनाक दृश्य यूपी के मीरजापुर में देखने को मिली। शिक्षा के उसी मंदिर को डांस बार बना दिया गया।
मीरजापुर के प्राइमरी स्कूल को रक्षाबंधन की छुट्टी पर डांस बार में तब्दील कर दिया गया और डांस बार बालाओं पर पैसे लुटाए गए। यह वीडियो सामने आने के बाद प्रशासन और शिक्षा विभाग पर सवाल उठने लगे हैं कि स्कूल में इस तरह के आयोजन की करने की इजाजत कैसे दी सकती है और इस आयोजन को प्रशासन या पुलिस की तरफ से रोका क्यों नहीं गया।
एक शिक्षा संस्थान को कोई कैसे डांस बार में तब्दील कर सकता है। शिक्षा के मंदिर में जहां बच्चों के भविष्य की नींव डाली जाती है व जहां बच्चे पढ़ लिखकर अपना भविष्य संवारते हैं, उस जगह से अय्याशी का स्थान कोई कैसे बना सकता है।
महत्वपूर्ण तथ्य :-
स्तन कैंसर के सामने भारतीय औरतें-
यह तस्वीर कितनी खूबसूरत औरतों की है। लेकिन अफसोस के इनके स्तन काट दिए गए हैं। उनकी यह तस्वीर फ़िलहाल बेबाकी और बहादुरी पेश कर रही है। लेकिन इस तस्वीर के पीछे वह एक संदेश देना चाहती है कि उन्होंने अपने अतीत में कुछ ग़लतियां की थी। उन्होंने अपने स्तन में होने वाली ज़रा सी तकलीफ को अनदेखा किया था। बाद इसके इन्होंने एक लंबी लड़ाई लड़ी है। वह जीत गई। और दुनिया की बाकी औरतों को एक संदेश दे रही है कि अपने अंगों की तकलीफों के बारे में शर्मिंदा मत रहो। वह कह रही है कि आज की औरत पढ़-लिखकर आगे तो बढ़ चली है लेकिन शर्म का दुपट्टा उसने अबतक नहीं उतारा।
एक औरत हमेंशा अपने परिवार को आगे रखती है और वह खुद सबसे पीछे रहना पसंद करती है। हालांकि किसी भी प्रकार की शारीरिक दिक्कत के चलतें यह उसकी सबसे बड़ी ग़लती होती है। क्योंकि उसी के दम से यह परिवार हँसता रहा होता है।
● स्तन कैंसर होने के कारण -
कभी-कभी कुछ बीमारियां जिनेटिक व कुदरती होती है। फिर भी अधिकतर बीमारी हमारी लापरवाही का नतीज़ा होता है। स्तन कैंसर का प्रमाण पुरुषों में भी पाया जाता है। लेकिन इसकी मात्रा बहुत कम है। और यह बीमारी होने के प्रमुख कारण यह है।
◆ 12-13 साल की उम्र से पीरियड्स होने लगें है।
[ यदि ऐसा है तो स्तनों में या आर्मपिट (बग़ल) में ज़रा भी कुछ तकलीफ दिखें तो चेकअप करवाएं ]
◆ 50 के बाद भी लगातार पीरियड्स शुरू रहते है।
[ स्तनों या आर्मपिट ( बग़ल) में ज़रा सी भी तकलीफ पर चेकअप करवाएं ]
◆ कभी-कभी महिलाएं अपना सेलफोन टेम्पररी या आदतन अपनी ब्रा में रखती है।
[ सेलफोन का रेडिएशन बेहद घातक होता है। यह एक करीबी और गंभीर कारण बन सकता है।]
◆ अनकम्फर्टेबल ब्रा। जिस ब्रा के कपड़े से कलर उतर रहा है। जिस ब्रा को एम्ब्रॉयडरी की हुई है। या तो वह आपकी साइज़ से ज्यादा टाइड है। या किसी अन्य तरीके से वह आपको कंफर्टेबल नहीं है।
[ जब तक आवश्यकता ना हों तब तक ब्रा पहने ही नहीं। अन्यथा रात को सोते वक़्त तो हरगिज़ नहीं ]
◆ 30 के बाद माँ बनना
[ औलाद का देर से होना कुदरती है। लेकिन ऐसे हालात हो तो! फिर 2-4 महीने पर चेकअप करवा लें। ब्रेस्ट चेकअप एक्सपेंसिव नहीं है। ]
◆ बच्चे को स्तनपान ना करवाना।
[ काफी औरतें ग़लतफहमी पालती है कि बच्चे को ज्यादा फीडिंग करवाने से उसका फिगर खराब हो जाएगा। हालांकि ऐसा नहीं है। कम से कम 2 साल तक बच्चे को फीडिंग करवाएं यह आपके और बच्चे दोनों के लिए सेहतमंद रहेगा। ]
◆ सोने में कंफर्टेबल ना हो पाने के कारण सिर्फ एक ही स्तन से बच्चे को दूध पिलाना।
[ माँ बनने के बाद स्तनों में दूध का प्रवाह अधिकतर बढ़ता है। ऐसे हालत में वह दूध का निकाल नहीं होता तो अंदर की कोशिकाओं को डिस्टर्ब करता है। और यह भी एक कारण बनता है। ]
◆ बर्थ कंट्रोल पिल्स का उपयोग करना।
[ यह सिर्फ एक स्तन कैंसर को नहीं बल्कि अनेक प्रकार के कैंसर को न्योता देता है ]
◆ पीरियड्स को रोकने व डिले करने के लिए पिल्स खाना।
[ शादी-ब्याह या किसी पिकनिक जॉइन करने के लिए हम पिल्स लेते हैं। वह केवल स्तन कैंसर नहीं बल्कि अनेक रोगों को न्योता देती है ]
◆ स्तन पर किसी भी प्रकार की हानि होने के बाद वहां पर दर्द होना या खुजली का निरन्तर रहना। या किसी अन्य प्रकार की बेचैनी पर होना।
◆ एक कारण जेनेटिक भी हो सकता है। अपने परिवार के अतीत में किसी को यह तकलीफ थी। तो कहीं ना कहीं भविष्य में अपने बच्चों में यह तकलीफ के चांसिस ज्यादा रहते हैं।
◆ शराब और सिगरेट का सेवन करने वाली महिलाओं में यह प्रमुख कारण बनता है।
◆ हैवी वेइट महिलाओं में यह सबसे ज्यादा पाया जाता है। उनके ब्रेस्ट की साइज़ बड़ी होने के कारण उसमें हो रही गतिविधि आसानी से नहीं पता चलती। उसमें खुजली के अधिक होने पर चेकअप करवाए।
यदि आपको इनमें से कोई भी लक्षण है! तो यह वहम नहीं डाल देना की तुम्हें स्तन कैंसर ही है। यह मात्र उसके प्रमुख कारण है। दूसरा यह कि स्तन कैंसर हो भी जाए तो हिंमत से काम लेकर उसे हराया जा सकता है। निरन्तर व्यायाम ही हर बीमारी का रामबाण इलाज है।
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