Monday, 23 December 2024

जीवन राग के कवि हैं विनय बौद्ध

 जीवन का होना

उत्सव होना है

मतलब नया राग बोना है।


बोना है धरती में पीड़ा को

जो वीणा की धुन सुनाती इड़ा को

खुल जाता ज्ञान की इंद्रियाँ

सराबोर हो जाता पंचतत्व

जीवन के इस उत्सव में।

-विनय बौद्ध 

विनय कुमार विश्वकर्मा/विश्वा/बौद्ध जी युवा पीढ़ी के महत्त्वपूर्ण कवि, लेखक, शिक्षक व शोधार्थी हैं। उनकी कविताओं में सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक संवेदनाओं का गहरा प्रभाव देखा जाता है। विनय बौद्ध की संवेदना को समझने के लिए "जीवनोत्सव", "कवि हृदय", "महाभिनिष्क्रमण", "लोकतंत्र के आड़ में", "सबसे बड़ा दुःख", "न्याय के देवता" आदि रचनाओं को देखा जा सकता है। वे अपनी रचनाओं में हमेशा उन लोगों के पक्ष में खड़े नज़र आते हैं, जो समाज में शोषित और उत्पीड़ित हैं। उनकी रचनाओं में एक प्रकार का विद्रोह और संघर्ष का स्वर दिखाई देता है, जिसमें वे समाज के असमानताओं और अन्याय के खिलाफ बोलते हैं। वे कभी-कभी प्रकृति से अपने जीवन के संघर्षों और विचारों को जोड़ते हैं, जिससे उनका साहित्य और भी गहन हो जाता है। प्रकृति से जुड़ने से आत्मा की शांति और संवेदनाओं में गहराई आती है। इस संदर्भ में उनकी आगामी पंक्तियों को पढ़ें, "पहाड़ों में ही क्यों सारी माई भगवती हैं/कहीं ऐसा तो नहीं 

बुद्ध के ताप से/पहाड़ स्त्री हो गई/और पूजी जाने लगी।/

जब नारी जन्म जन्मांतर से पूजनीय हैं/तो तुलसी बाबा भी नारी से लाग कैसा..."

विरोध और विद्रोह की धरती पर विनय बौद्ध जी के धूमिल के करीब हैं, तो करुणा और दर्शन की भावभूमि और मनोभूमि पर बुद्ध और कबीर के करीब हैं। उनमें विद्रोही चेतना है, जो भोजपुरी जनपदी जीवन की असंतुलन और गरीबी के खिलाफ है। उनके रचनाओं में गहरी कड़वाहट और आक्रोश दिखता है, जो वर्तमान समय के भोजपुरी जनपदी जीवन के विद्रूप पहलुओं को सामने लाता है।

विनय बौद्ध जी की कविताओं में भारतीय ग्रामीण जीवन की कठिनाइयाँ और संघर्ष प्रमुखता से दिखाई देती हैं। वे उन किसानों और मजदूरों के जीवन की त्रासदी को प्रस्तुत करते हैं, जो सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े होते हैं। उनकी रचनाओं में साम्राज्यवाद, पूंजीवाद और सामाजिक असमानता के खिलाफ विरोध देखा जा सकता है। बहरहाल, विनय बौद्ध जी की संवेदना में समाज के प्रति एक प्रकार की क्रांति और बदलाव की इच्छा है। 

उनकी संवेदना एक उग्र और सत्य के प्रति निष्ठा से भरी हुई है। मुझे उनकी रचनाधर्मिता से काफ़ी उम्मीद है, क्योंकि उनकी रचनाओं में आत्मा की उन्नति, आत्मसाक्षात्कार और जीवन के गहरे उद्देश्यों के प्रति गहरी संवेदना पाई जाती है।

"मेरा 'पटेल से 'पेरियार' और उनका 'विश्वकर्मा' से 'बौद्ध" होने का एक दिलचस्प किस्सा है, जिस पर कभी चर्चा परिचर्चा होगी। ख़ैर, विनय जी मेरे अग्रज हैं, मैं उन्हें अपना गार्जियन मानता हूँ, लेकिन वे मुझे अपना गुरु मानते हैं। शायद इसलिए कि वे उम्र नहीं, अनुभव को महत्व देते हैं। ख़ैर, मैं ख़ुद अभी सीखने की प्रक्रिया से गुज़र रहा हूँ और शायद यह सीखने और सिखाने की क्रिया-प्रक्रिया उम्रभर बनी रहेंगी! जब वे मुझे काव्यगुरु कहते हैं, तब अच्छा नहीं लगता है। मैं सच कहता हूँ कि मैंने उनको जितना सिखाया नहीं, उससे ज़्यादा सीखा है।... किसी को कुछ सिखाने के लिए बहुत कुछ सीखना पड़ता है!...

इस जीवन में मैंने सबसे अधिक फ़ोन पर विनय जी से ही बातचीत की है, शायद ही कभी एक घंटे से पहले फोन कटा हो! उनकी बातें मुझको जीवन, संघर्ष और आत्मोत्थान के विषय में गहरे विचार करने के लिए प्रेरित करती हैं। विनय जी यह मानते हैं कि भारतीय गाँवों में समाज के सबसे निचले स्तर के लोग, जैसे दलित, आदिवासी और छोटे किसान, अपनी मूलभूत जरूरतों से भी वंचित हैं। उनका कवि इस असमानता को समाप्त करने के लिए जागरूकता पैदा करने की कोशिश करता है। ऐसा उनकी अधिकांश रचनाओं का प्रथम पाठक होने तौर पर नहीं, बल्कि उनकी रचनाओं से गुज़र हुए मैं अक्सर महसूस करता हूँ। बहरहाल, आज उनका जन्मदिन है, उन्हें जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएं, हार्दिक बधाई एवं आत्मिक अभिवादन! वे इसी तरह अपनी कविताओं में गहरी संवेदनाओं और मानवता के प्रति एक उत्कट अनुराग व्यक्त करते रहें और उनकी रचनाएं समाज में परिवर्तन और जागरूकता की दिशा में प्रेरक बनें!...प्रस्तुत हैं उनकी कुछ ताज़ी पंक्तियाँ :-

यह जागने का समय है

अपनी थाती सँभालने का समय है

अपनी जागीर बचानी है

अपनी ज़मीन बनानी है

क्योंकि हर युग में हम शास्त्र - शस्त्र में निपुण हैं

चाहे अश्वघोष

चाहे वाल्मीकि

चाहे रावण

चाहे शंबूक

चाहे व्यास

चाहे एकलव्य

चाहे आंबेडकर

शास्त्र तो हमीं लिखे, पर

अफ़सोस हमारे ही लोग नहीं जगे

क्या आप हमें पढ़ते हैं ?

या सिर्फ़ पूजते हैं

या हमारे सिर्फ़ अनुयायी बन कर रहना चाहते हैं

ऐ मेरे वंशज मैं चाहता हूँ तुम मुझे पढ़ो 

मुझे जियो

जैसे जिया हूँ मैं

तब मेरे तुम्हारे जीवन की संगीत बनेगी

क्योंकि अब तुम्हारे जागने का समय है।


टिप्पणीकार: गोलेन्द्र पटेल (युवा कवि-लेखक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक चिंतक)

संपर्क सूत्र :-

डाक पता - ग्राम-खजूरगाँव, पोस्ट-साहुपुरी, तहसील-मुगलसराय, जिला-चंदौली, उत्तर प्रदेश, भारत।

पिन कोड : 221009

व्हाट्सएप नं. : 8429249326

ईमेल : corojivi@gmail.com


(दृष्टिबाधित विद्यार्थियों के लिए अनमोल ख़ज़ाना)


YouTube :-

https://youtube.com/c/GolendraGyan

Facebook :-

https://www.facebook.com/golendrapatelkavi

Blog :-

https://golendragyan.blogspot.com/?m=1

Twitter (X) :-

https://x.com/GolendraGyan?t=hXADbXNI4Wek9w75xPIWNA&s=09

Instagram :-

https://www.instagram.com/invites/contact/?igsh=1sl9oyumf9hhn&utm_content=3wqw9qu

CONTACT

Email : -   corojivi@gmail.com

Whatsapp : 8429249326


#golendragyan #golendrapatel #golendrapatelkavi #golendra #गोलेन्द्रपटेल #गोलेन्द्र_पटेल #गोलेन्द्र #गोलेंद्र


©इस साहित्यिक ब्लॉग पेज़ के सर्वाधिकार सुरक्षित हैं। संपादक/प्रकाशक/रचनाकार की लिखित अनुमति के बिना इसके किसी भी अंश को, फोटोकापी एवं रिकॉर्डिंग सहित इलेक्ट्रॉनिक अथवा मशीनी, किसी भी माध्यम से, अथवा ज्ञान के संग्रहण एवं पुनः प्रयोग की प्रणाली द्वारा, किसी भी रूप में, पुनरुत्पादित अथवा संचारित-प्रसारित नहीं किया जा सकता।


 



                         

                                              

              

                                



No comments:

Post a Comment

'असहमति' सहमति से अधिक रचनात्मक है (सर्वश्रेष्ठ संपादक कौन हैं?)

  “हमारे समय का संपादक होना, भाषा में ही नहीं, बल्कि भूमि पर भी मनुष्य होना है। अच्छा संपादक होने के लिए किसी लेख, किताब या सामग्री को सुधार...