Friday, 27 March 2020


ज्योहीं पका समय समय से
त्योहीं दाढ़ी पक गया कवि
और महाकवि का ;
पाप चाप चाप ताप
श्राप बन गया भाप
भूख के उबलती अदहन में!
आज
काव्य
धंधा में आँख अंधा
हो
किस कवित्व को कंधा
दे रहा
सत्य के चयन में!
सोशल मीडिया
अनाचार का आचार्य
समाचार का प्राचार्य
बन गया छाप...
बेकार हम-आप
वतन में!
रात रात कई रात
बात बात नई बात
करें
दिन दीन से!
भात भात भई भात
खात खात जई खात
मरें
सिन सीन से!
जिस तरह
   ठीक
उसी तरह
कविता का केश कपास-सा
पतिहीन पद्य-पंक्ति
या विधवा
काव्य-वसन में!
पीड़ा का पूज्य हो
संवेदना का शरीर ढकती
चमचमाती दोपहर में
चौंधियाई चक्षु सहती
सूर्याग्नि जलन
टुटे सुमन
या
डाल से टुटी कली के भाँती
कवि-नयन में!
दाढ़ी का पकना
समाज के कडाही में
कविताओं को कउर
मुक्तिपथ का पाथेय-दाना भुजने जैसा है
दाना सफेद दाढी सफेद
सफेद हैं शांति
और यही शांति
त्रिभुवन में!
परमसुख का पर्याय
परमहर्ष का काव्य
ॐ शांति शांति शांति
शांति ॐ....
अन्तःमन में!
-गोलेन्द्र पटेल
रचना : 13-01-2020

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