छिपाने और छल की कला और कोविद-19
इस समय एक लाख बीस हजार के करीब डोमेन हैं। इनसे आम लोग कोरोना संबंधी सूचनाओं के लिए आ-जा रहे हैं। इनमें अनेक पोर्टेल के मालिक ठगई कर रहे हैं, छल कर रहे हैं।अनेक किस्म के घोटाले हो रहे हैं।मसलन्, मास्क,कर्ज,बेकारी,वेक्सीन,क्योर आदि को लेकर जबर्दस्त धंधा चल रहा है।अनेक कंपनियों ने तो कुछ खास पदबंधों की खोज के जरिए उनके पोर्टेल में प्रवेश करने वालों पर पाबंदी लगा दी है।इसके बावजूद सोशलमीडिया में मिस-इन्फॉरेमेशन का प्रवाह जारी है।सारी कंपनियां जानती हैं लेकिन अभी तक मिस इन्फॉर्मेशन का प्रवाह रोकने में वे असमर्थ रहे हैं।
उल्लेखनीय है फेसबक,गूगल,यू ट्यूब,माइक्रोसॉफ्ट, ट्विटर आदि कंपनियों ने मार्च के मध्य में एक साझा बयान जारी किया था जिसमें कोविद-19 से संघर्ष करने वायदा किया गया।यह एक चलताऊ किस्म का साझा बयान था जो इन कंपनियों ने दिया था। इस बयान में मिस इन्फॉर्मेशन से लड़ने और प्रामाणिक सूचनाएं देने का वायदा किया गया था।लेकिन अभी तक ये कंपनियां अपने इस वायदे का पालन नहीं कर पायी हैं।बल्कि इस बीच में उलटा हुआ है।कोरोना से लड़ने के नाम पर अंट-शंट दवाओं के नाम विभिन्न तथाकथित शोधपत्रों में गूगल में प्रकाशित हो रहे हैं। एक ही उदाहरण काफी होगा।
इंटरनेट पर विशेषज्ञों के एकदल ने ‘‘कोरोना वायरस क्योर’’ के तहत गूगल पर सर्च किया तो पाया कि वहां अनेक तथाकथित शोधपत्र भ्रमण कर रहे हैं लोग बड़ी संख्या में पढ़ रहे हैं और उनकी गलत-सलत सूचनाओं का दुरूपयोग कर रहे हैं। ये पत्र ट्विटर पर भी सर्कुलेट किये जा रहे हैं। इसी तरह का एक शोधपत्र तकनीकी व्यवसायी एलॉन मास्क ने गूगल डॉकूमेंटस में साझा किया । कहा गया यह वैज्ञानिक रिसर्च पेपर है।इसे स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय के कैलीफॉर्निया स्थित स्कूल ऑफ मेडीसिन में कार्यरत वैज्ञानिक सलाहकार ने तैयार किया है। इस पेपर के इंटरनेट पर प्रकाशित होते ही दूसरे ही दिन फॉक्स टीवी चैनल ने इस पेपर के आधार फीचर बनाया और कहा कि कोरोना से बचने की दवा है ‘‘हाइड्रोक्सीक्लोरो क्वीन’’। इस दवा से कोरोना 100फीसदी खत्म हो जाएगा।इसी तरह फ्रांस से एक लघु शोधपत्र सामने या जिसमें दावा किया गया कि ‘‘क्वीनाइन’’ और ‘‘ टॉनिक वाटर’’ और ‘‘मलेरिया ड्रग’’को इंटरनेट पर खोजने वालों की बाढ़ आ गयी।देखते ही देखते बाजार में ये दवाएं और प्रोडक्ट हाथों हाथ बिक गए। इसका अर्थ है इंटरनेट पर जो लिखा जा रहा है उसे जनता पढ़ रही है।सुन रही है।
फॉक्स टीवी चैनल से कार्यक्रम आने के बाद स्टैंनफोर्ड विश्वविद्यालय ने बयान देकर कहा कि फॉक्स ने जिस व्यक्ति को हमसे जोड़कर पेश किया है उसका हमसे कोई संबंध नहीं है और वह व्यक्ति उनके विश्वविद्यालय के किसी रिसर्च कार्यक्रम में शामिल नहीं रहा है।इस घटना के बाद ट्विटर पर भयानक तूफान आ गया,बड़ी संख्या में डाक्टरों और वैज्ञानिकों ने इस तरह के डिस इनफॉर्मेशन कैम्पेन की आलोचना की।लोगों ने यहां तक लिखा कि इस दवा की अचानक कमी हो गयी और इस दवा को डाक्टर की सलाह के बिना लेने से यह शरीर को नुकसान पहुँचा सकती है।इस तूफान के बाद ट्विटर ने निर्णय लिया और ‘‘हाइड्रोक्सीक्लोरो क्वीन’’ दवा से संबंधित सैंकड़ों ट्विट हटा दिए। ये सारे ट्विट दक्षिणपंथियों के थे। वे लोग मिस इनफॉर्मेशन फैलाकर जश्न मना रहे थे। जो जश्न मना रहे थे उनमें फॉक्स चैनल की हॉस्ट लोरा इनग्राहम,डोनाल्ड ट्रंप के एटॉर्नी रूड़ी गुईलियानी और कंजरवेटिव पंडित चार्ली के नाम खासतौर पर उल्लेखनीय हैं। इसके बाद ट्रंप ने इस दवा को लेकर जमकर उत्साह दिखाया.इससे बाजार में केमिस्टों से लेकर पीएम मोदी तक इसका दवाब देखा गया।इससे एक बात पता चलती है कि विज्ञान के बारे में मिस इनफॉर्मेशन फैलाया जाए तो उससे कितने व्यापक स्तर पर नुकसान हो सकता है।इस घटना ने वैज्ञानिकों पर भी दवाब बनाया कि वे कोरोना के लिए दवा न बनाएं।इस तरह के माहौल से राजनेताओं का कोई खास नुकसान नहीं हुआ लेकिन आम जनता और विज्ञान की क्षति जरूर हुई है।
किसी भी खुले और स्वतंत्र समाज पर थोपे गए देश,जनता के दिमाग का मेनीपुलेशऩ और अग्राह्य को ग्राह्य कराने की प्रवृत्ति बेहद खतरनाक है। कोरोना के महासंकट काल में यही सब हो रहा है।बड़े पैमाने पर कोरोना की सच्चाई छिपायी जा रही है।मरीजों की संख्या,नामकरण,मृत्यु,बड़े स्केल पर जनता की निगरानी,असहमति व्यक्त करने पर हमले या पाबंदी,जबरिया कोरेंटाइन या फिर वैक्सीन लगाने की कोशिश आदि चीजें सामने आ रही हैं।यह एक तरह से जनता के नॉर्मल जीवन को नियंत्रित करने की कोशिश है।इस दौर में
उल्लेखनीय है फेसबक,गूगल,यू ट्यूब,माइक्रोसॉफ्ट, ट्विटर आदि कंपनियों ने मार्च के मध्य में एक साझा बयान जारी किया था जिसमें कोविद-19 से संघर्ष करने वायदा किया गया।यह एक चलताऊ किस्म का साझा बयान था जो इन कंपनियों ने दिया था। इस बयान में मिस इन्फॉर्मेशन से लड़ने और प्रामाणिक सूचनाएं देने का वायदा किया गया था।लेकिन अभी तक ये कंपनियां अपने इस वायदे का पालन नहीं कर पायी हैं।बल्कि इस बीच में उलटा हुआ है।कोरोना से लड़ने के नाम पर अंट-शंट दवाओं के नाम विभिन्न तथाकथित शोधपत्रों में गूगल में प्रकाशित हो रहे हैं। एक ही उदाहरण काफी होगा।
इंटरनेट पर विशेषज्ञों के एकदल ने ‘‘कोरोना वायरस क्योर’’ के तहत गूगल पर सर्च किया तो पाया कि वहां अनेक तथाकथित शोधपत्र भ्रमण कर रहे हैं लोग बड़ी संख्या में पढ़ रहे हैं और उनकी गलत-सलत सूचनाओं का दुरूपयोग कर रहे हैं। ये पत्र ट्विटर पर भी सर्कुलेट किये जा रहे हैं। इसी तरह का एक शोधपत्र तकनीकी व्यवसायी एलॉन मास्क ने गूगल डॉकूमेंटस में साझा किया । कहा गया यह वैज्ञानिक रिसर्च पेपर है।इसे स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय के कैलीफॉर्निया स्थित स्कूल ऑफ मेडीसिन में कार्यरत वैज्ञानिक सलाहकार ने तैयार किया है। इस पेपर के इंटरनेट पर प्रकाशित होते ही दूसरे ही दिन फॉक्स टीवी चैनल ने इस पेपर के आधार फीचर बनाया और कहा कि कोरोना से बचने की दवा है ‘‘हाइड्रोक्सीक्लोरो क्वीन’’। इस दवा से कोरोना 100फीसदी खत्म हो जाएगा।इसी तरह फ्रांस से एक लघु शोधपत्र सामने या जिसमें दावा किया गया कि ‘‘क्वीनाइन’’ और ‘‘ टॉनिक वाटर’’ और ‘‘मलेरिया ड्रग’’को इंटरनेट पर खोजने वालों की बाढ़ आ गयी।देखते ही देखते बाजार में ये दवाएं और प्रोडक्ट हाथों हाथ बिक गए। इसका अर्थ है इंटरनेट पर जो लिखा जा रहा है उसे जनता पढ़ रही है।सुन रही है।
फॉक्स टीवी चैनल से कार्यक्रम आने के बाद स्टैंनफोर्ड विश्वविद्यालय ने बयान देकर कहा कि फॉक्स ने जिस व्यक्ति को हमसे जोड़कर पेश किया है उसका हमसे कोई संबंध नहीं है और वह व्यक्ति उनके विश्वविद्यालय के किसी रिसर्च कार्यक्रम में शामिल नहीं रहा है।इस घटना के बाद ट्विटर पर भयानक तूफान आ गया,बड़ी संख्या में डाक्टरों और वैज्ञानिकों ने इस तरह के डिस इनफॉर्मेशन कैम्पेन की आलोचना की।लोगों ने यहां तक लिखा कि इस दवा की अचानक कमी हो गयी और इस दवा को डाक्टर की सलाह के बिना लेने से यह शरीर को नुकसान पहुँचा सकती है।इस तूफान के बाद ट्विटर ने निर्णय लिया और ‘‘हाइड्रोक्सीक्लोरो क्वीन’’ दवा से संबंधित सैंकड़ों ट्विट हटा दिए। ये सारे ट्विट दक्षिणपंथियों के थे। वे लोग मिस इनफॉर्मेशन फैलाकर जश्न मना रहे थे। जो जश्न मना रहे थे उनमें फॉक्स चैनल की हॉस्ट लोरा इनग्राहम,डोनाल्ड ट्रंप के एटॉर्नी रूड़ी गुईलियानी और कंजरवेटिव पंडित चार्ली के नाम खासतौर पर उल्लेखनीय हैं। इसके बाद ट्रंप ने इस दवा को लेकर जमकर उत्साह दिखाया.इससे बाजार में केमिस्टों से लेकर पीएम मोदी तक इसका दवाब देखा गया।इससे एक बात पता चलती है कि विज्ञान के बारे में मिस इनफॉर्मेशन फैलाया जाए तो उससे कितने व्यापक स्तर पर नुकसान हो सकता है।इस घटना ने वैज्ञानिकों पर भी दवाब बनाया कि वे कोरोना के लिए दवा न बनाएं।इस तरह के माहौल से राजनेताओं का कोई खास नुकसान नहीं हुआ लेकिन आम जनता और विज्ञान की क्षति जरूर हुई है।
किसी भी खुले और स्वतंत्र समाज पर थोपे गए देश,जनता के दिमाग का मेनीपुलेशऩ और अग्राह्य को ग्राह्य कराने की प्रवृत्ति बेहद खतरनाक है। कोरोना के महासंकट काल में यही सब हो रहा है।बड़े पैमाने पर कोरोना की सच्चाई छिपायी जा रही है।मरीजों की संख्या,नामकरण,मृत्यु,बड़े स्केल पर जनता की निगरानी,असहमति व्यक्त करने पर हमले या पाबंदी,जबरिया कोरेंटाइन या फिर वैक्सीन लगाने की कोशिश आदि चीजें सामने आ रही हैं।यह एक तरह से जनता के नॉर्मल जीवन को नियंत्रित करने की कोशिश है।इस दौर में
लॉक डाउन में मनुष्य तो किसी तरह अपना इलाज आपात काल में करा ले रहे हैं, लेकिन पशुओं के पास ऐसी सुविधा कहां है। ऐसे में वो मरने को विवश हैं। इसका सबसे बुरा असर पशुपालकों पर पड़ रहा है। वो अपने पशुओं को बीमार अवस्था में देख कर दुखित है, लेकिन कुछ नहीं कर पा रहे हैं। गांवों की स्थिति यह हो गई है कि झोला छाप डाक्टर भी लॉक डाउन में नहीं मिल रहे हैं।
कोई पशुओं के लिए मोबाइल अस्पताल की सुविधा नहीं होने से पशुपालकों काफी परेशान हैं। वो अपना दुखड़ा बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय के प्रसार विभाग के वैज्ञानिकों और डॉक्टरों को सूना रहे हैं, लेकिन यहां के डॉक्टर भी कुछ करने में असमर्थ हो रहे हैं। फोन पर ही पशुपालक अपने पशु की समस्या को बताते हैं और डाक्टर उन्हें फोन पर ही दवा का नाम बताते हैं। यदि वो दवा मिल जाती है तो ठीक है अन्यथा अपने पशुओं को परेशान होते देखते रहते हैं पशुपालक।
गर्भधारण कराने में भी आ रही है दिक्कत
सिर्फ इलाज कराने में ही पशुपालकों को समस्या का सामना नहीं करना पड़ रहा है, बल्कि अपने पशुओं को गर्भधारण कराने में भी दिक्कत आ रही है। लॉक डाउन की वजह से कृत्रिम गर्भधारण कराने वाले गांव में नहीं आ रहे हैं।
श्रीराम तिवारी
माननीय ,
सिर्फ इलाज कराने में ही पशुपालकों को समस्या का सामना नहीं करना पड़ रहा है, बल्कि अपने पशुओं को गर्भधारण कराने में भी दिक्कत आ रही है। लॉक डाउन की वजह से कृत्रिम गर्भधारण कराने वाले गांव में नहीं आ रहे हैं।
श्रीराम तिवारी
माननीय ,
श्री नरेंद्र मोदीजी,प्रधानमंत्री
भारत सरकार, नई दिल्ली !
मान्यवर,
'अत्र कुशलं तत्रास्तु'
श्रीमानजी टीवी पर आज आपका कोरोना संबंधित भाषण सुना,अच्छा भाषण था!लगा कि आप बाकई देश की आवाम के लिये बहुत फिक्रमंद हैं!आपने लॉकडाऊन का समय बढ़ाया तो तमाम जनता आपके इस निवेदन को कठोर इलाज समझकर स्वीकार कर लेगी!किंतु यथार्थ के धरातल पर इसके विपरीत परिणाम भी हो सकते हैं! जिन की ओर आपका ध्यानाकर्षण बहुत जरूरी है!
उदाहरण के लिये,मैं एक रिटायर सीनियर सिटीजन(पेंशनर) हूँ!हमारे टेलीकाम विभाग में वेतन समझौता 2017 में हो जाना चाहिये था!तब आप ही प्रधानमंत्री थे!किंतु अब तक नही हुआ! इस बाबत संसद में माननीय संचार मंत्री श्री रविशंकरप्रसाद ने बताया है कि घाटे के कारण वेतन वृद्धि नही की जा रही है! यूनियनों ने घाटे की वजह भी आप को बताई थी,किंतु मदद करने के बजाय आपने BSNLको 4G से बंचित रखा! इसके विपरीत जियो (अंबानी) को आपका आशीर्वाद मिला! इससे हमारा सरकारी उपक्रम घाटे में आ गया और वेतन समझौता नही हो पाया!इस वजह से हम पेंसनर्स को बहुत नुकसान हो रहा है!मेडीकल सुविधा लगभग बंद है!मामूली पेंशन सिर्फ दवाई में खत्म हो जाती है! जबकि लाकडाऊन के कारण बाजार में हर चीज की कालाबाजारी और मेंहगाई का जोर है! जब केंद्र सरकार के रिटायर कर्मचारियों की यह हालत है,तब दैनिक वेतन भोगी मजदूरों का हाल क्या होगा? और ठेका मजदूरों की बदहाली का अनुमान आप खुद लगा सकते हैं!
मैं 10 साल से ब्रांकल अस्थमा का मरीज हूँ, पत्नी को भी सुगर,फेंफड़े थाइराइड की बीमारी है! जिस डॉक्टर से मेरा इलाज चल रहा है,वह खुद क्वारेंटाईन में है!अधिकांस अस्पतालों में स्टाफ के न आने से सन्नाटा पसरा है!यदि कोरोना वायरस से हम बच भी गये तो दवा के अभाव में क्रानिक बीमारी से कौन कैसे बचाएगा?
मान्यवर,
कोरोना की भयानक मारक क्षमता का मुकाबला करने के लिये 3 मई तक तो क्या हम बुजुर्ग लोग 3 जून तक लॉकडाऊन में रह लेंगे!लेकिन सरकार कोई ऐंसी व्यवस्था तो करे कि फल सब्जियां और किराना सामान खरीद सकें! अभी तो ये हाल है कि मेडीकल स्टोर्स पर दवाईयां खत्म! उधर खेतों में सब्जियां सड़ रही हैं, क्योंकि शहर ले जानी संभव नहीं! इधर शहर में सड़ी गली सब्जी भी चोरी छुपे 100 रुपया किलो बिक रही है!सरकार को चाहिये कि बाजिब दामों पर खाद्यान्न और सब्जियां उपलब्ध कराए!लॉकडाऊन का समय बढ़ाना तभी सफल होगा,जब घरों में बंद लोगों को जिंदा रहने के लिये न्यूनतम संसाधन उपलब्ध हों! हर एक को दवाइयां, राशन पानी,सब्जी और भोजन मिले!यदि कदाचित कोई भूख से या अन्य बीमारी से घर में मर गया तो कोरोना से बचाव की कुर्बानी बेकार जाएगी!
मान्यवर,
कोरोना की भयानक मारक क्षमता का मुकाबला करने के लिये 3 मई तक तो क्या हम बुजुर्ग लोग 3 जून तक लॉकडाऊन में रह लेंगे!लेकिन सरकार कोई ऐंसी व्यवस्था तो करे कि फल सब्जियां और किराना सामान खरीद सकें! अभी तो ये हाल है कि मेडीकल स्टोर्स पर दवाईयां खत्म! उधर खेतों में सब्जियां सड़ रही हैं, क्योंकि शहर ले जानी संभव नहीं! इधर शहर में सड़ी गली सब्जी भी चोरी छुपे 100 रुपया किलो बिक रही है!सरकार को चाहिये कि बाजिब दामों पर खाद्यान्न और सब्जियां उपलब्ध कराए!लॉकडाऊन का समय बढ़ाना तभी सफल होगा,जब घरों में बंद लोगों को जिंदा रहने के लिये न्यूनतम संसाधन उपलब्ध हों! हर एक को दवाइयां, राशन पानी,सब्जी और भोजन मिले!यदि कदाचित कोई भूख से या अन्य बीमारी से घर में मर गया तो कोरोना से बचाव की कुर्बानी बेकार जाएगी!
प्रधानमंत्री जी को मालूम हो कि कुछ जमातियें-तब्लीगियों को छोड़ अधिकांस जनता केंद्र सरकार,राज्य सरकार,स्थानीय प्रशासन के निर्देशानुसार कोरोना से बचने के लिये कष्ट उठाने को तैयार है, किंतु सरकार की ओर से उचित सहयोग अपेक्षित है!
जय हिंद
जय हिंद
भवदीय :श्रीराम तिवारी,इंदौर मध्यप्रदेश.
-Golendra Patel
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