Tuesday, 12 August 2025

नांगेली का घोषणापत्र : गोलेन्द्र पटेल (Nangeli Ka Ghoshanapatra : Golendra Patel)

 

नांगेली का घोषणापत्र

केरल के तट से उठी थी एक आग,
नाम था — नांगेली।
उसकी देह पर दो गुलाब नहीं,
दो कर-रसीदें माँगता था साम्राज्य।

इतिहास
सिर्फ़ पत्थरों पर खुदी तारीख़ नहीं होता,
कभी-कभी वह
केले के पत्ते पर रखे
काटे हुए स्तनों से भी लिखा जाता है।

इतिहास ने कहा —
"तुम्हारे स्तन हैं,
तो तुम्हारी कीमत है।"
राजा ने फरमान लिखा,
पुजारी ने उंगलियों से नाप लिया,
और कानून ने कहा —
"ढकना चाहो तो टैक्स दो।"

मूलाक्रम —
यह शब्द सिर्फ़ मलयालम का नहीं,
बल्कि हर भाषा का अभिशाप है,
जहाँ औरत की देह
मंदिर में चढ़ावे,
बाज़ार में माल
और राज्य में कर योग्य संपत्ति बन जाती है।

जिसका हिसाब
राजपुरोहित की उंगलियाँ
स्तनों को टटोल कर करती थीं।
जितना बड़ा आकार,
उतना भारी टैक्स —
मानो
स्तन सिर्फ़
दूध देने का अंग नहीं,
बल्कि जाति की कीमत चुकाने का औज़ार हों।

नांगेली की मौत से
कानून तो टूटा,
पर हथियार नहीं टूटे —
बस नाम बदल गए।
ब्रेस्ट टैक्स गया,
लेकिन ब्रेस्ट ऐड आ गए।
राजा चला गया,
लेकिन ब्रांड-राज आ गया।
आज भी देह बिकती है —
कभी जाति की दरों पर,
कभी बाज़ार की डिस्काउंट सेल में।

इतिहास की क्रांतिधर्मी चीख —
नांगेली,
तुम्हारे स्तन अब भी नापे जा रहे हैं —
मॉडलिंग में,
मूवी में
और उस घर के भीतर
जहाँ पितृसत्ता ने टैक्स हटाकर
छूट की कीमत रख दी है।

लेकिन सुन लो,
तुम्हारी आग बुझी नहीं है।
वो हर औरत के भीतर जल रही है
जो कहती है —
"मेरी देह, मेरा हक़
और तुम्हारा कानून,
तुम्हारा बाज़ार —
दोनों को मैं जला दूँगी।"

मैं नांगेली —
एड़वा जाति की बेटी,
तुम्हारे कानून की कटोरी में
अपने स्तन रख चुकी हूँ।

सुन लो —
मेरी देह किसी राजा का खेत नहीं,
जहाँ फसल नापकर कर लिया जाए।
मेरे स्तन
तुम्हारे टैक्स के लिए नहीं,
मेरी संतान और मेरे सपनों के लिए हैं।

मैंने टैक्स नहीं दिया —
अपना जीवन दे दिया।
और यह सौदा
हर बार दोहराऊँगी,
जब भी कोई कानून
मेरे शरीर की कीमत तय करेगा।

अब मेरी आग
हर बहुजन बेटी के भीतर है।
हम ढकेंगे, हम खोलेंगे,
हम पहनेंगे, हम उतारेंगे —
लेकिन फ़ैसला हमारा होगा।

तुम्हारे कानून,
तुम्हारा धर्म,
तुम्हारा बाज़ार —
सबको चिता में झोंक दूँगी।

मेरी देह मेरी है।
तुम्हारा टैक्स,
तुम्हारा नाप-जोख,
तुम्हारा राज —
सब हराम है।

खून बहता गया,
राजा का कानून
उस खून में डूबता गया।
नांगेली गिर पड़ी,
लेकिन खड़ी रही उसकी आग
उसके पति की आँखों में,
जो उसी चिता में कूद पड़ा —
भारतीय इतिहास में
पहला 'सती' पुरुष बनकर।

नांगेली,
तुम्हारे काटे हुए स्तनों की
गवाही आज भी हवा में है।
वे कहते हैं —
कपड़े का अधिकार
सिर्फ़ कपड़े का नहीं,
इंसान होने का अधिकार है
और जो इसके लिए लड़ा,
उसका नाम
तुम्हारे रक्त से लिखा जाएगा —
जब तक
इतिहास के माथे से
यह नंगापन मिट न जाए।

—गोलेन्द्र पटेल 

रचनाकार: गोलेन्द्र पटेल (पूर्व शिक्षार्थी, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी।/बहुजन कवि, जनपक्षधर्मी लेखक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक चिंतक)

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