Friday, 27 March 2020



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**कविता का कर्षित कृषक पुत्र हूँ**
दिल से दिल का दीपक जला रहा हूँ
युवा संदेश साध हाथ हल चला रहा हूँ
सृष्टि संकेत शोषितों का सूत्र हूँ मैं
कविता के खेत का कृषक पुत्र हूँ मैं।

चुप्पी के खिलाफ़ संर्घष का आवाज़ हूँ
आज पूर्वज कविराज कवित्व का अनाज हूँ
स्पर्श से शब्द की सृजन कर्ता कलम हूँ मैं
मृदुल मातृभाषा हिन्दी-हृदय का शम हूँ मैं।

करुणा से उपजा साहित्य का सागर हूँ
महामना मानवता का पुण्य एक घर हूँ
कविता व संगीत के परिवार का सदस्य हूँ मैं
सार्थक शब्द समुच्चय की उठती हुई लय हूँ मैं।

गन्ना धान के पत्तों पर पड़ी ओस मणि हूँ
गौ गाँव गंगा व गुरु से खड़ा जोश हूँ
आज एक आँसू का जनकवि बना हूँ मैं
जगत  जीव  दर्द  की  संवेदना  हूँ  मैं ।

साहित्यकार से पहले विद्यार्थी हूँ
समय और समाज का सारथी हूँ
मनुष्य के मुक्ति का अभिव्यक्ति हूँ मैं
शिष्य-आचार्य परंपरा का शक्ति हूँ मैं।

ऊपर सदैव उठने वाला उमंग हूँ
जीवन के जगमग समुद्र की तरंग हूँ
कवियों के प्रयोगशाला का अंग हूँ मैं
काव्यगुरु *श्रीप्रकाश शुक्ल* के संग हूँ मैं।

हवनकुण्ड का ह्रस्व स्वर मंत्र हूँ
भविष्य-हविष्य-हृदय का लोकतंत्र हूँ
कालजयी काव्यकला का तंत्र हूँ मैं
कविता का कर्षित कृषक पुत्र हूँ मैं।
-18/09/2019

2
**काव्य खेत का खेतिहर हूँ**
काव्य खेत का खेतिहर हूँ
धान गेहूँ बाजरा रहर हूँ
पूज्य पूर्वजों का वंशजचन्द्र हूँ मैं
हिन्दी कविता का हरिश्चन्द्र हूँ मैं।

सरसों  तीसी  चना  मटर  हूँ
ककरी केराव मसूर टमाटर हूँ
नेनुआ केदुआ चढ़ानेवाला घर हूँ मैं
महाकृति  का  मधुर  स्वर  हूँ  मैं ।

मीर्च लेहसुन प्याज़ चुकंदर हूँ
चौराई पालक धनिया क्षर हूँ
आदेश्वर कवि का अक्षर हूँ मैं
आदि  से  ही  अमर  हूँ  मैं।

आलू मूली गोभी गाजर हूँ
तरबूज़ खीरा बेल कटहर हूँ
आम अमरुद बेर का पेड़ हूँ मैं
पके ताड़ खजूर का पेड़ हूँ मैं।

कौमुदी कमल गुलाब गुड़हल हूँ
खाड़ गुड़ चीनी मिश्रित कल हूँ
दिव्य सरिता निर्मल शीतल हूँ मैं
साहित्य का सोमरस जल हूँ मैं।।
-20/10/2019

3
**कविता के क्यारी का कर्षित कली**
नई कविता के क्यारी में घास नेर रहा हूँ
कई कर्षित कलियों का कपार हेर कहा हूँ
सहृदय से साहित्य सोहने वाला खुरपा हूँ मैं
संवेदना और संघर्ष के शब्दों को तुरपा हूँ मैं।

मन! महाकृति के मणिमाला में मंत्र हूँ
सम्पूर्ण ब्रम्हाण्ड में फैला युग-युवा-यंत्र हूँ
कवि के कल्पना का फूल-फल-फ़सल हूँ मैं
गऊ गंगा गाँव व गद्य का महान मसल हूँ मैं।

अद्भुत अमन के कथन का गहन गंध हूँ
काव्य और संवेदना के सुमन का सुगंध हूँ
पूज्य पूर्वजों के इस(काव्य) मिट्टी में निर्भय हूँ मैं
संस्कृति और संस्कार का समन्वय हूँ मैं।

स्वच्छ वृष्टि से सिंचा हुआ सृष्टि का सत्य हूँ
सूखी बंजर भूमि के हाशिए का साहित्य हूँ
पंक्ति-पंक्ति में संवेदना और दृष्टि का संबंध हूँ मैं
कहती कविता काव्यशास्त्र सूत्र से अबंध हूँ मैं।

इसके क्यारी का कुड़ा-करकट हटानेवाला कवि हूँ
इसके प्रत्येक पंक्ति में प्रकाश पहुँचानेवाला रवि हूँ
समाज को सूर्योदय के समान जगानेवाला छवि हूँ मैं
दोहरे दुःख-दर्द के हवन यज्ञ में जानेवाला हवि हूँ मैं।

फटें खतों के दरार और खेतिहरों के दर्द का दर्पण हूँ
शोषितों के सेवा में शोषित माता-पिता का समर्पण हूँ
गाँव के गृहस्थ जीवन के विषमताओं का रेखांकन हूँ मैं
आस-पास के ढहते हुए भीत-भवन का चित्रांकन हूँ मैं।
-15/12/2019
कविता हूँ मैं....
**कविता का कर्षित कृषक पुत्र हूँ** से
-गोलेन्द्र पटेल

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