भोजपुरी अध्ययन केंद्र, बीएचयू और रविशंकर उपाध्याय स्मृति संस्थान,वाराणसी के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित सम्मान समारोह तथा कविता पाठ का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।
इस कार्यक्रम का पहला सत्र सम्मान समारोह का रहा जिसके मुख्य अतिथि प्रसिद्ध कथाकार और तद्भव पत्रिका के संपादक अखिलेश थे जिसकी अध्यक्षता प्रसिद्ध हिन्दी कवि ज्ञानेन्द्रपति ने की।वरिष्ठ कवि सुभाष राय कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि थे।कार्यक्रम में नैनीताल के युवा कवि संदीप तिवारी को छठा रविशंकर उपाध्याय स्मृति युवा कविता पुरस्कार 2020 प्रदान किया गया जिसमें प्रशस्ति पत्र,अंगवस्त्रम के साथ सम्मानित राशि के रूप में पांच हज़ार की पुरस्कार राशि भी प्रदान की गई।
भोजपुरी अध्ययन केंद्र के समन्वयक प्रो श्रीप्रकाश शुक्ल ने अपने स्वागत वक्तव्य में सभी अतिथियों का स्वागत किया व कहा कि उत्सव के इस बाजारू शोर में अंततः कविता ही है ,जो उल्लास की शांति को सुरक्षित करने का माध्यम है।आज के शोर में एक विशिष्ट स्वर को पहचानने की कोशिश है जिसमें हम जुड़ना चाहते हैं औरों को जोड़ना चाहते हैं। हमारे आसपास के शोर को कैसे सार्थक स्वर में बदला जाए यही एक कवि का मुख्य कर्म और धर्म है। बग़ैर सामाजिकता के कविकर्म सम्भव ही नहीं है ।कविता कैसे लिखी व पढ़ी जाए यह सहजात प्रतिभा के ऊपर ही निर्भर करता है। आगे इन्होंने बताया कि नई पीढ़ी को वरिष्ठतम पीढ़ी के साथ मिलजुलकर अपना विकास करना चाहिए। नई पीढ़ी के प्रत्येक कवि की अपनी जमीन होती है वह अपने जमीन को पहचाने और आसमान से आंख मिलाए।शोर के समानांतर स्वर की विशिष्टता को पहचाना जाना चाहिए। इसी के साथ उन्होंने वरिष्ठ पीढ़ी की तरफ से नई पीढ़ी को शुभाशीष प्रदान किया।
युवा आलोचक डॉ विंध्याचल यादव ने अपने वक्तव्य में कहा कि संदीप तिवारी की कविताओं में तीन तरह की विशेषताएं मिलती हैं। पहला सत्ता का सीधे प्रतिरोध करती कविताएं ,दूसरी किसान जीवन के दुख तकलीफों को व्यक्त करती कविताए,तीसरी विस्थापनबोध की कविताएं ।छोटी- छोटी यात्राओं की टीस को संदीप ने अपनी कविताओं में व्यक्त किया है। एक तरह से संदीप की कविताओं में यात्राओं का विशेष प्रसंग है।वे आगे कहते हैं कि हिंदी कविता में जो कवि कविताएं लिख रहे हैं घर से निकलते हुए उसकी टीस को व्यक्त किया है। पर साथ ही ये भी बताया कि घर से निकलना भी कितना जरूरी है इस बात पर भी विशेष जोर दिया है। नई पीढ़ी को इस विषय का ध्यान देना चाहिए कि विस्थापन बहुत बुरी चीज नहीं है। संदीप की कविताएं इस ओर अग्रसर हैं। इस बात पर ध्यान केंद्रित किया कि विस्थापन पर दुख नहीं व्यक्त करना है। इसके साथ यह भी बताया कि यात्राओं और विस्थापन में अंतर होता है। संदीप की कविताओं में नागार्जुन और कैलाश गौतम की अनुगूंज मिलती है और अंत में संदीप की कविता बाल नरेंद्र का काव्यपाठ किया।
मुख्य अतिथि सुभाष राय ने कहा कि इनकी कविताओं को दो तरह से देखा जा सकता है। गांव से विस्थापन की कविता । आगे कहा कि हम गांव तभी लौटे जब गांव वापस उसी समृद्धि को प्राप्त हो । कोई भी कवि एक खूबसूरत दुनिया के निर्माण की बात करता है ।कवि ने पैसेंजर के माध्यम से लोकतंत्र को पकड़ने की कोशिश की है।इन्होंने आगे कहा कि जहां पीड़ा है, दर्द है ,कवि वही रह सकता है इस प्रकार संदीप की कविता भी इसी रूप में दिखाई देती है। हम सबका बोलना ही आज के समाज की जरूरत है ।
विशिष्ट वक्ता तद्भव पत्रिका के सम्पादक अखिलेश ने कहा कि कविताएं समाज के अवसाद और निराशा से बचने के लिए हमारी सहायता करती हैं क्योंकि इन कविताओं में यथार्थ का स्वीकार तो है पर साथ मे उससे जूझने की क्षमता भी है।आगे इन्होंने बताया कि कवि ने फैजाबाद और इलाहाबाद के नामों के परिवर्तन पर भी कविता लिखी है कवि का कहना है कि मैं इनका नाम यही मानूंगा यह कवि का हठ है।इसके माध्यम से कवि को चीजों के नष्ट हो जाने की व्यथा है। वे आगे कहते हैं कि कर्म की दुनिया में सदैव चलने वाली यात्रा यादों की यात्रा है। अपने गहरे परिवेश से बदल जाने की यात्रा है। संदीप तिवारी की कविता अपने परिवेश से जड़ों से गहरे होने की कविता है।इस कवि की बहुत सारी कविताएं लयात्मक हैं औरअन्य प्रयोग भी है । इसके साथ ही युवा कवियों में दमन के स्वीकार की बात कही है।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में वरिष्ठ कवि ज्ञानेन्द्रपति ने कहा कि संदीप की कविता से कवि का बहुरंगीपन जाहिर होता है। ये बहुत आत्मीय कवि हैं। युवा कवि संदीप की कविताएं सम्वेदना सिद्ध कविताएं हैं।इनकी कविताओं में पिछले कवियों का आत्मसातीकरण भी है इसके माध्यम से हम अगले कवियों में पिछले कवियों की झलक देख सकते हैं। इन्होंने आगे कहा कि
नवीनता के योग से सत्य को व्यक्त करने की कोशिश करनी चाहिए कई बार बड़ी बातों की होड़ में छोटी व महत्वपूर्ण बातों को दरकिनार कर दिया जाता है ।इसके साथ ही बताया कि कवि का अतीत और जीवनानुभवो से युक्त यह दिया हुआ यथार्थ नहीं हो सकता,यह यथार्थ कमाया हुआ ,अर्जित किया हुआ तथा इन्द्रीयसम्वेदनाओं के सहारे संवेदित करना यथार्थ है।किसी भी कवि की प्रतिध्वनि वेदना होती है। वेदना को यहाँ केवल पीड़ा से ही नहीं समझना चाहिए।
आत्मवक्तव्य देते हुए सम्मानित कवि संदीप तिवारी ने कहा कि जिस ज़मीन ने मुझे आगे बढ़ाया है, उसका एक कवि के रूप में मैं कर्ज उतार रहा हूँ। उन्होंने अपनी कविताओं को गहरी सामाजिक बेचैनी के बीच रची जाने वाली कविताओं के रूप में याद किया।
कार्यक्रम में उपस्थित प्रो रामकीर्ति शुक्ल ने इस क्रम में प्रशस्ति पत्र का वाचन भी किया।
कार्यक्रम के इस सत्र का संचालन शोध छात्र जगन्नाथ दुबे ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन वंशीधर उपाध्याय ने दिया।
कार्यक्रम के द्वितीय सत्र में काव्य पाठ का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता सुभाष राय ने की।
द्वितीय सत्र का प्रारंभ रविशंकर उपाध्याय स्मृति युवा कविता पुरस्कार 2020 से सम्मानित कवि संदीप तिवारी ने अपनी कविता (विदाई का घर ,कितना कठिन है ,प्रायश्चित , पसिंजरनामा ,लोकतंत्र में कहाँ लोक है )कविताओं का पाठ किया।
इसके पश्चात आदित्य राज ने (मणिकर्णिका की ओर हिंदुस्तान…)
प्रतिभा श्री(स्त्री और मर्द, मर्द, भूख, श्रमिक), आर्य भारत ने(अफीम का बेटा, बिल्किस बानो)
अनुपम सिंह ने ( औरत का अंग, जहरबाज, राष्ट्रीयसूतक), रविशंकर(डर, युवाछद्म),तौसीफ गोया ने मतला सुनाया ,
अरुणाभ सौरभ ने (रागयमन,मर्कतमाता, कथकहि),अमरजीत राम ने ( किसान और उनके बच्चे..), निलाम्बुज ने ( बनारस की गली में..), अदनान ने (याद का शहर..) ,डॉ रचना शर्मा ने (प्रेम में पतझड़, नेपथ्य सम्वाद),अंकिता खत्री ने ( मैं पानी बन जाऊंगी, मैं गांव -गांव तुम शहर -शहर,आसान नहीं बनारस से प्यार करना),सोनी पांडेय ने ( मेरे पास सुंदर कुछ नहीं था, मूर्तियों का सच,कुछ अधूरी बातें, ये जो दिखाई दे रहा है), प्रो श्रीप्रकाश शुक्ल ने (शिव), प्रो.बलराज पांडेय ने (अबकी बार जाड़ा कुछ ज्यादा पड़ा है, घड़ी, लड़की, सबसे बड़ा कलाकार) , वरिष्ठ कवि ज्ञानेन्द्रपति ने( शीघ्रदर्शनम,ट्राम में एक याद), प्रो चंद्रकला त्रिपाठी , कवि सुभाष राय , कुमार मंगलम, आर्यपुत्र दीपक तथा गोलेन्द्र पटेल इन सभी जनों ने काव्यपाठ किया।
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में काव्य पाठ का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता सुभाष राय ने की।
इस कार्यक्रम का पहला सत्र सम्मान समारोह का रहा जिसके मुख्य अतिथि प्रसिद्ध कथाकार और तद्भव पत्रिका के संपादक अखिलेश थे जिसकी अध्यक्षता प्रसिद्ध हिन्दी कवि ज्ञानेन्द्रपति ने की।वरिष्ठ कवि सुभाष राय कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि थे।कार्यक्रम में नैनीताल के युवा कवि संदीप तिवारी को छठा रविशंकर उपाध्याय स्मृति युवा कविता पुरस्कार 2020 प्रदान किया गया जिसमें प्रशस्ति पत्र,अंगवस्त्रम के साथ सम्मानित राशि के रूप में पांच हज़ार की पुरस्कार राशि भी प्रदान की गई।
भोजपुरी अध्ययन केंद्र के समन्वयक प्रो श्रीप्रकाश शुक्ल ने अपने स्वागत वक्तव्य में सभी अतिथियों का स्वागत किया व कहा कि उत्सव के इस बाजारू शोर में अंततः कविता ही है ,जो उल्लास की शांति को सुरक्षित करने का माध्यम है।आज के शोर में एक विशिष्ट स्वर को पहचानने की कोशिश है जिसमें हम जुड़ना चाहते हैं औरों को जोड़ना चाहते हैं। हमारे आसपास के शोर को कैसे सार्थक स्वर में बदला जाए यही एक कवि का मुख्य कर्म और धर्म है। बग़ैर सामाजिकता के कविकर्म सम्भव ही नहीं है ।कविता कैसे लिखी व पढ़ी जाए यह सहजात प्रतिभा के ऊपर ही निर्भर करता है। आगे इन्होंने बताया कि नई पीढ़ी को वरिष्ठतम पीढ़ी के साथ मिलजुलकर अपना विकास करना चाहिए। नई पीढ़ी के प्रत्येक कवि की अपनी जमीन होती है वह अपने जमीन को पहचाने और आसमान से आंख मिलाए।शोर के समानांतर स्वर की विशिष्टता को पहचाना जाना चाहिए। इसी के साथ उन्होंने वरिष्ठ पीढ़ी की तरफ से नई पीढ़ी को शुभाशीष प्रदान किया।
युवा आलोचक डॉ विंध्याचल यादव ने अपने वक्तव्य में कहा कि संदीप तिवारी की कविताओं में तीन तरह की विशेषताएं मिलती हैं। पहला सत्ता का सीधे प्रतिरोध करती कविताएं ,दूसरी किसान जीवन के दुख तकलीफों को व्यक्त करती कविताए,तीसरी विस्थापनबोध की कविताएं ।छोटी- छोटी यात्राओं की टीस को संदीप ने अपनी कविताओं में व्यक्त किया है। एक तरह से संदीप की कविताओं में यात्राओं का विशेष प्रसंग है।वे आगे कहते हैं कि हिंदी कविता में जो कवि कविताएं लिख रहे हैं घर से निकलते हुए उसकी टीस को व्यक्त किया है। पर साथ ही ये भी बताया कि घर से निकलना भी कितना जरूरी है इस बात पर भी विशेष जोर दिया है। नई पीढ़ी को इस विषय का ध्यान देना चाहिए कि विस्थापन बहुत बुरी चीज नहीं है। संदीप की कविताएं इस ओर अग्रसर हैं। इस बात पर ध्यान केंद्रित किया कि विस्थापन पर दुख नहीं व्यक्त करना है। इसके साथ यह भी बताया कि यात्राओं और विस्थापन में अंतर होता है। संदीप की कविताओं में नागार्जुन और कैलाश गौतम की अनुगूंज मिलती है और अंत में संदीप की कविता बाल नरेंद्र का काव्यपाठ किया।
मुख्य अतिथि सुभाष राय ने कहा कि इनकी कविताओं को दो तरह से देखा जा सकता है। गांव से विस्थापन की कविता । आगे कहा कि हम गांव तभी लौटे जब गांव वापस उसी समृद्धि को प्राप्त हो । कोई भी कवि एक खूबसूरत दुनिया के निर्माण की बात करता है ।कवि ने पैसेंजर के माध्यम से लोकतंत्र को पकड़ने की कोशिश की है।इन्होंने आगे कहा कि जहां पीड़ा है, दर्द है ,कवि वही रह सकता है इस प्रकार संदीप की कविता भी इसी रूप में दिखाई देती है। हम सबका बोलना ही आज के समाज की जरूरत है ।
विशिष्ट वक्ता तद्भव पत्रिका के सम्पादक अखिलेश ने कहा कि कविताएं समाज के अवसाद और निराशा से बचने के लिए हमारी सहायता करती हैं क्योंकि इन कविताओं में यथार्थ का स्वीकार तो है पर साथ मे उससे जूझने की क्षमता भी है।आगे इन्होंने बताया कि कवि ने फैजाबाद और इलाहाबाद के नामों के परिवर्तन पर भी कविता लिखी है कवि का कहना है कि मैं इनका नाम यही मानूंगा यह कवि का हठ है।इसके माध्यम से कवि को चीजों के नष्ट हो जाने की व्यथा है। वे आगे कहते हैं कि कर्म की दुनिया में सदैव चलने वाली यात्रा यादों की यात्रा है। अपने गहरे परिवेश से बदल जाने की यात्रा है। संदीप तिवारी की कविता अपने परिवेश से जड़ों से गहरे होने की कविता है।इस कवि की बहुत सारी कविताएं लयात्मक हैं औरअन्य प्रयोग भी है । इसके साथ ही युवा कवियों में दमन के स्वीकार की बात कही है।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में वरिष्ठ कवि ज्ञानेन्द्रपति ने कहा कि संदीप की कविता से कवि का बहुरंगीपन जाहिर होता है। ये बहुत आत्मीय कवि हैं। युवा कवि संदीप की कविताएं सम्वेदना सिद्ध कविताएं हैं।इनकी कविताओं में पिछले कवियों का आत्मसातीकरण भी है इसके माध्यम से हम अगले कवियों में पिछले कवियों की झलक देख सकते हैं। इन्होंने आगे कहा कि
नवीनता के योग से सत्य को व्यक्त करने की कोशिश करनी चाहिए कई बार बड़ी बातों की होड़ में छोटी व महत्वपूर्ण बातों को दरकिनार कर दिया जाता है ।इसके साथ ही बताया कि कवि का अतीत और जीवनानुभवो से युक्त यह दिया हुआ यथार्थ नहीं हो सकता,यह यथार्थ कमाया हुआ ,अर्जित किया हुआ तथा इन्द्रीयसम्वेदनाओं के सहारे संवेदित करना यथार्थ है।किसी भी कवि की प्रतिध्वनि वेदना होती है। वेदना को यहाँ केवल पीड़ा से ही नहीं समझना चाहिए।
आत्मवक्तव्य देते हुए सम्मानित कवि संदीप तिवारी ने कहा कि जिस ज़मीन ने मुझे आगे बढ़ाया है, उसका एक कवि के रूप में मैं कर्ज उतार रहा हूँ। उन्होंने अपनी कविताओं को गहरी सामाजिक बेचैनी के बीच रची जाने वाली कविताओं के रूप में याद किया।
कार्यक्रम में उपस्थित प्रो रामकीर्ति शुक्ल ने इस क्रम में प्रशस्ति पत्र का वाचन भी किया।
कार्यक्रम के इस सत्र का संचालन शोध छात्र जगन्नाथ दुबे ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन वंशीधर उपाध्याय ने दिया।
कार्यक्रम के द्वितीय सत्र में काव्य पाठ का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता सुभाष राय ने की।
द्वितीय सत्र का प्रारंभ रविशंकर उपाध्याय स्मृति युवा कविता पुरस्कार 2020 से सम्मानित कवि संदीप तिवारी ने अपनी कविता (विदाई का घर ,कितना कठिन है ,प्रायश्चित , पसिंजरनामा ,लोकतंत्र में कहाँ लोक है )कविताओं का पाठ किया।
इसके पश्चात आदित्य राज ने (मणिकर्णिका की ओर हिंदुस्तान…)
प्रतिभा श्री(स्त्री और मर्द, मर्द, भूख, श्रमिक), आर्य भारत ने(अफीम का बेटा, बिल्किस बानो)
अनुपम सिंह ने ( औरत का अंग, जहरबाज, राष्ट्रीयसूतक), रविशंकर(डर, युवाछद्म),तौसीफ गोया ने मतला सुनाया ,
अरुणाभ सौरभ ने (रागयमन,मर्कतमाता, कथकहि),अमरजीत राम ने ( किसान और उनके बच्चे..), निलाम्बुज ने ( बनारस की गली में..), अदनान ने (याद का शहर..) ,डॉ रचना शर्मा ने (प्रेम में पतझड़, नेपथ्य सम्वाद),अंकिता खत्री ने ( मैं पानी बन जाऊंगी, मैं गांव -गांव तुम शहर -शहर,आसान नहीं बनारस से प्यार करना),सोनी पांडेय ने ( मेरे पास सुंदर कुछ नहीं था, मूर्तियों का सच,कुछ अधूरी बातें, ये जो दिखाई दे रहा है), प्रो श्रीप्रकाश शुक्ल ने (शिव), प्रो.बलराज पांडेय ने (अबकी बार जाड़ा कुछ ज्यादा पड़ा है, घड़ी, लड़की, सबसे बड़ा कलाकार) , वरिष्ठ कवि ज्ञानेन्द्रपति ने( शीघ्रदर्शनम,ट्राम में एक याद), प्रो चंद्रकला त्रिपाठी , कवि सुभाष राय , कुमार मंगलम, आर्यपुत्र दीपक तथा गोलेन्द्र पटेल इन सभी जनों ने काव्यपाठ किया।
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में काव्य पाठ का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता सुभाष राय ने की।
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