काशी में गंगातट पर
घाटवाक् कर हर नर
गंगाधर-भक्त बन घर
आते जाते अंतःअंदर
परमसुख शांति पाते हैं।
उर उमंग उमड़ घुमड़
तरंग तरणी बीच चढ़
चली आ रही अड़
सत्य अहिंसा अमृत गढ़
फक्कड़प्रेमी कवि गाते हैं
अक्कड़-बक्कड़ बाबाविश्वनाथ
घाटों पर अनाथों के नाथ
दोनों कृपानाथ एकसाथ
प्रोफेसर शुक्ल व विजयनाथ
स्नेह दीप जलाते हैं।
-गोलेन्द्र पटेल
घाटवाक् कर हर नर
गंगाधर-भक्त बन घर
आते जाते अंतःअंदर
परमसुख शांति पाते हैं।
उर उमंग उमड़ घुमड़
तरंग तरणी बीच चढ़
चली आ रही अड़
सत्य अहिंसा अमृत गढ़
फक्कड़प्रेमी कवि गाते हैं
अक्कड़-बक्कड़ बाबाविश्वनाथ
घाटों पर अनाथों के नाथ
दोनों कृपानाथ एकसाथ
प्रोफेसर शुक्ल व विजयनाथ
स्नेह दीप जलाते हैं।
-गोलेन्द्र पटेल
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