Friday, 27 March 2020




**भाषा का दर्द**
भाषा का दर्द
पालि भाषा से जाना
जो त्रिपिटकाचार्य हैं
स्वयं है यही ठाना
कि पालि अब लंगड़ी ही रहे
उसकी बैसाखी विद्यार्थीगण
उसके हाथ न लगे।
नहीं तो वह कुछ दूर टहल लेगी
बुद्धवचन को गाते गाते
गाँव के पगडंडियों पर
संघाटी व चीवर के संग
सर सर सर बहती समीर के सहारे
सुबह शाम स्वस्थ होने के लिए।
हिन्दी मुझसे कही वत्स
पालि के साथ संस्कृत पढ़ो
तभी **हिन्दी साहित्य में बुद्ध**
शीर्षक से तुम शोध कर पाओगे
अन्यथा आज के भिक्षु के भांति
भटकते रहो एक घर से दूसरे घर।
वैसे मैं बीएचयू बी.ए. कोर में पालि
डिप्लोमा कोर्स में संस्कृत पढ़ रहा हूँ
पर लगता है मुझे भी बुद्ध ही बनना होगा
जैसे वे *सिद्धार्थ से बुद्ध* बने बीन गुरु के
क्या मैं उनका उपदेश समझ सकता हूँ
तत्कालीन समाज में बीन पालिगुरु के
उत्तर खोजते खोजते न जाने कब
पहूँच गया तुलसी बाबा के पास
तुलसी बाबा से बाबा नागार्जुन तक
और मीरा से आधुनिक मीरा तक
यहाँ तक की अज्ञेय से आधुनिक शुक्ल तक
उत्तर में उलझने से अच्छा है पुनः विषय पर आता हूँ।
पालि अध्ययन में समस्या अनेक
जैसे पुस्तक का कम होना
सही मार्गदर्शन न होना
स्नातक स्तर से नीचे नगण्य होना
इस भाषा के संदर्भ में संगोष्ठी न होना
विद्यार्थियों से बौद्धाचार्य का संवाद न होना इत्यादि।
बुद्ध पर चर्चा अन्य भाषी जादा करते हैं
इसलिए उनका साहित्य समाज का दर्पण हैं
और अपना पालि-साहित्य चुपचाप
किसी आलमारी में बैठ रोता है
यह कितनी शर्मिंदगी की बात है
इसे पढ़ने-पढ़ाने वालों के लिए!
हे तथागत! हे अवतार पुरुष बुद्ध!
राग-द्वेष-लोभ-दोष अन्य अकुशल से
शुद्ध करो चित्त को! हे युगप्रवर्तक!
हे सत्यसाधक महाश्रमिक महाभिक्षु!
पालि का ज्ञान दो! पालि का गुरु दो!
हे पालि-संरक्षक पालि का ध्यान दो!!
*-गोलेन्द्र पटेल*
कक्षा रोल नं. 217
परीक्षा रोल नं. 18214HIN041
मो.न. 8429249326
बी.ए. द्वितीय वर्ष(चतुर्थ सेमेस्टर)
बीएचयू, वाराणसी।

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