Tuesday, 31 January 2023

वेश्या विमर्श : कविताएँ (नगरवधू, तवायफ़ ,रंडी, छिनाल, वेश्या व गणिका)

 

गोलेन्द्र पटेल की वेश्या पर केंद्रित कविताओं में से छह कविताएँ प्रस्तुत हैं :-

तवायफ़


तवायफ़ 

जीभ पर उगी गाली नहीं

बल्कि ज़ख्मी जिस्म के लिए

तगड़ी तोहमत है


उस तबके में ज़ीनत की ज़ोरदार जीत है


जहाँ ज़मीन का दलाल

जाँघ पर लिख दी

अपनी ज़िंदगी!

वेश्यावृत्ति

अबोध बच्ची थी जब मुझे बेचा गया
सच्ची अभिव्यक्ति में
अपनी आबरू की क्या कीमत है?

बढ़ो, बढ़ो, बढ़ो!
मेरे कच-कुच, जल्दी बढ़ो!
मेरे गुलाबी अधरों पर अर्थहीन रस है,
आओ, आओ, आओ!
भोसड़ी के भूखे भक्तों, आओ!
मेरी जाँघों के बीच 
तुम्हारी जन्नत है,
क्या यह वक्त वासनारत है!

मुझे नोचो, मेरी चोथो, भें...चो!
मेरी आँखों में अफ़ीम से अधिक नशा है,
मत पूछो कि इस देह की कैसी दशा है!

तुम्हारे दाँतों और नाख़ूनों के निशान
मेरी पहचान है,
तुम्हारी विलक्षण गाली
सुनने की भयावहता से
अनिद्रा
आर्द्रता सी गीली बात है
मेरे लिए दिन 
रात है!

मैं अपने पेट के लिए
तुम्हें प्यार करती हूँ पाँच मिनट

मेरी साँसें चल रही हैं पर तन-मन निःशब्द हैं,
नगरवधू, तवायफ़ ,रंडी, छिनाल व वेश्या
ये सब सिर्फ़ शब्द हैं!
मेरे पास कोई प्रकाश नहीं है,
कोई आत्मा नहीं है,
कोई दिल नहीं है,
लेकिन वह बिल है,
जिस पर तुम एकाधिकार चाहते है,
जैसे कोई चूहा।

चंद पैसों के लिए
आसान नहीं है ख़ुद को सौपना,
जिस्मों के बाज़ार में रोज़ रौंदाना
मेरी नियति है!
मगर मेरी सुंदरता 
तुम्हारे गंदे विशेषणों पर मुस्कुराती है।
ताकि तुम उसे मेरा प्यार समझो
थोड़ी मेरी इज़्ज़त करो
उसकी भी इज़्ज़त करो, जहाँ से तुम आए हो

मैं तुम्हारी हवस की आग से 
सभ्य स्त्रियों को जलने से बचाती हूँ
मैंने अपने सीने पर 
तुम्हारे खंज़रों को झेलने की कला सीख ली है
दो अंगुल की खाल के ख़रीददारो!
मैं सौदाबाज़ी की वस्तु हूँ?
मेरे गुप्तांगों के आगे दुनिया के सारे धर्म झुक गये हैं!
मैं पाप और पुण्य से ऊपर हूँ,
फिर भी अपनी अस्मिता की खोज में लगी हूँ,
क्योंकि मैं भी एक स्त्री हूँ!

मेरी एक सखी का सवाल है
क्या बिन ब्याहे माँ बन चुकी स्त्री
वेश्या है?

संभोगरत शव

काश कि मैं कर पाता
मर्दाना भीड़ में स्त्रियों के स्वतंत्र अस्तित्व की तलाश! 
मैं उस गली से गुज़र रहा हूँ जिसमें सदियों से अंधेरा है
जो सौंदर्य के संगीत में सना है
वर्जित इच्छाओं की सड़क पर 
वेश्या वृत्तांत बना है यह

ओ वेश्याओ!
मैं बस तुम्हारी पीड़ा को समझ सकता हूँ
लिख सकता हूँ तुम्हारा दर्द
तुम्हारी आवाज़ बन सकता हूँ
लेकिन तुम्हें दिल में जगह नहीं दे सकता
क्योंकि मैं हूँ न सभ्य मर्द! 
मुझे मालूम है कि
तुम्हारे लिए प्रश्न अधिकार का है
मेरे लिए संवेदना का

मैं तुम्हारी देह के गेह में परिवेश करता हूँ
ताकि तुम्हारा क्षणिक स्नेह पा सकूँ
ख़ुद को रेह होने से बचा सकूँ
तुम चंपा, चमेली, रजनीगंधा, गेंदा या गुलाब की नहीं
बल्कि लाचार ज़िंदगी की गदराई गंध हो

मैं तुम्हें कोठे से नीचे उतारना चाहता हूँ
ताकि तुम तवायफ़ से अपनी औरत हो सको
क्या यह संभव है? 
जिस्म के बाज़ार में रूह की मौत पर 
मुहावरा कहना आसान है
मगर मुहावरा है कि वह मरती नहीं है
यह कैसा रव है कि
समय की सेज पर संभोगरत शव है?

मेरी ज़बान पर तुम्हारी कहानी है
तुम कामुकता की कुश्ती में विजयी बनो
मुझे हैवानियत की हँसी उड़ानी है
क्योंकि कोठे पर जो सपनों की रानी है
उसकी आँखों में सागर से अधिक पानी है!

लिखूँगा

मैंने जानबूझकर लिखी है, गंदी भाषा में वेश्याओं की दर्दभरी कहानी
मैंने जानबूझकर लिखी है, कविता में कर्षित किन्नरों की ज़िंदगानी
मैंने जानबूझकर लिखी है, पुस्तकों में दोहरी दलित देह की बानी

मैं अब भी लिखता हूँ आँखों के पानी पर
मैं अब भी लिखता हूँ राजा-रानी पर
मैं अब भी लिखता हूँ राजधानी पर
मैं अब भी लिखता हूँ खींचातानी पर

मैं लिखूँगा तब तक
जब तक चीख सुनाई देगी
जब तक भीख दुहाई देगी
जब तक लीख दिखाई देगी
जब तक सीख मिलेगी पीड़ा से
जब तक शोषण-शक्ति खत्म नहीं होगी इड़ा से

मैं इसी तरह लिखूँगा नदी का सूखना,
जंगल का जलना, पर्वत का टूटना,
सागर का रोना, किसान का बोना
मैं इसी तरह लिखूँगा लहू से लोकतंत्र
सत्ता का षड्यंत्र, ओझा का मंत्र

मुझे मालूम है कि लिखे बग़ैर कुछ नहीं मिलता
लड़े बग़ैर कुछ नहीं मिलता
मैं लिखूँगा अँधेरे के विरुद्ध 
उजाले का युद्ध!

वेश्या व्यथा

दिन हो या रात
मुझे डर नहीं लगता
घर से निकलने पर
आख़िर ऐसा क्यों?

दुख की दलदल में धँसी देह
नहीं सोचती मृत्यु के बारे में
नहीं सोचती मुक्ति की युक्ति
क्या तुम जानते हो
कि ऐसी दशा में दिमाग क्या सोचता है?
क्या तुम जानते हो
कि 
उसकी दो अंगुल की जगह में
समाया है
समूचा ब्रह्मांड?
वह वेश्या से पहले एक स्त्री है न!

उसके हाथों में कंडोम का डब्बा है
मैं कतई नहीं चाहता कि वेश्यावृत्ति बंद हो जाय
क्या उसका धंधा तुम्हारे चेहरे पर
एक अश्लील धब्बा है?

देह व्यापार उद्योग

दुनिया स्त्रियों के समान अधिकारों के लिए
संघर्ष कर रही है
वे शक्ति, शील, सौंदर्य और आकर्षण के प्रतीक हैं
उनकी देह दर्द का गेह है
लेकिन वे देखने में ठीक हैं

वैश्वीकरण के कारण गरीबी बढ़ी है
वस्त्र, भोजन और आश्रय की किल्लत की वजह से
वे वेश्यावृत्ति में उतर जाती हैं
तो कुछ अन्य मजबूरी में भी!

वे अंधेरे कमरों में रहती हैं
वे सदियों से अपनी नींद से वंचित हैं

वे कहती हैं कि
कोई भी पुरुष मेरे साथ सोना नहीं चाहेगा
मेरे पास उन्हें देने के लिए कुछ नहीं है

मुझे सोने से पहले वे ड्रग्स
या कोई नशीली चीज़ ज़बरन देते हैं
या इंजेक्शन देते हैं
मेरी चीख सुनने के लिए
मेरे गुप्तांगों में जलता हुआ सिगरेट ठूँस दिया जाता है

क्या अपना घर सबसे सुरक्षित जगह है?
जहाँ मैं पहली बार बलात्कृत हुई हूँ
खैर, मुझे मालूम है कि
जब मैंने वेश्यालय का दरवाज़ा खोला
मेरे जीवन के सारे दरवाज़े बंद हो गए

वेश्यावृत्ति को वैध बनाने के प्रयास विफल हो गए हैं
पर यह प्राचीनकालीन पेशा है

अब भी सामाजिक और मानवीय स्वीकृति द्वारा
यौन शोषण और बहिष्कार
मुख्य रूप से उनका भाग्य बना हुआ है
सेक्स सर्विस का कारोबार ख़ूब फल-फूल रहा है
उनका उचित सवाल ख़ून में सना हुआ है

मैंने इलाहाबाद में मीरगंज के रेड लाइट एरिया से गुज़रते हुए सोचा कि
वाराणसी में शिवदासपुर है शायद!

मैं अपने अस्तित्व की खोज में भटक रही हूँ
कोलकाता में सोनागाछी की सड़कों पर
और मेरी सहेली मुंबई के कमाठीपुरा में!


©गोलेन्द्र पटेल
वेश्या के पर्यायवाची शब्द हैं – यौनकर्मी, रंडी, तवायफ़, धर्षिता, खंडशीला, पश्यंती, रूपाजीवा, कसबी, इस्मतफ़रोश, कंचनी, अप्सरा, कोठेवाली, गणिका, तवायफ़, तायफ़ा, तवायफ़, पातुर, नटी, झर्झरा, पणांगना, नगरवधू आदि।
कवि : गोलेन्द्र पटेल
संपर्क :
डाक पता - ग्राम-खजूरगाँव, पोस्ट-साहुपुरी, जिला-चंदौली, उत्तर प्रदेश, भारत।
पिन कोड : 221009
व्हाट्सएप नं. : 8429249326
ईमेल : corojivi@gmail.com


2 comments:

  1. बहुत जोरदार सभ्य मुखौटे वाले व्यक्ति समाज के लिए

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