मैं एक धनुष हूँ
मैं किसी के हाथों में पिनाक कहलाया
तो किसी के हाथों में कोदंड
तो किसी के हाथों में शार्ङ्ग
तो किसी के हाथों में पौलत्स्य
तो किसी के हाथों में गाण्डीव
तो किसी के हाथों में विजय
तो किसी के हाथों में पुष्पक
तो किसी के हाथों में गांधरी
तो किसी के हाथों में वायव्य
मैं एक धनुष हूँ।
—गोलेन्द्र पटेल
कविता: मैं एक धनुष हूँ
कवि: गोलेन्द्र पटेल
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🌿 सप्रसंग व्याख्या:
यह कविता समकालीन कवि गोलेन्द्र पटेल की एक अत्यंत बोधगम्य और प्रतीकात्मक रचना है, जिसमें ‘धनुष’ को केंद्रबिंदु बनाकर इतिहास, पौराणिकता और मानवीय भूमिका का विश्लेषण किया गया है। इस कविता में कवि ने विभिन्न योद्धाओं और देवताओं के हाथों में आए धनुषों के नाम के माध्यम से यह दर्शाने की कोशिश की है कि कोई भी अस्त्र या शक्ति अपने आप में न तो शुभ है न अशुभ — उसका स्वरूप उसके प्रयोगकर्ता के संकल्प, दृष्टिकोण और लक्ष्य से तय होता है।
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🔱 प्रसंग:
मानव इतिहास और पुराणों में धनुष न केवल युद्ध का उपकरण रहा है, बल्कि न्याय, धर्म, अहंकार, ज्ञान और कर्तव्य का प्रतीक भी बना है। शिव, राम, कृष्ण, रावण, कर्ण, अर्जुन, भीष्म, लक्ष्मण, मेघनाद जैसे महापुरुषों के हाथों में यह धनुष भिन्न-भिन्न नामों से जाना गया। कवि इसी ऐतिहासिक एवं प्रतीकात्मक विविधता को एक सूत्र में बांधता है — "मैं एक धनुष हूँ।"
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🧠 पंक्ति-दर-पंक्ति व्याख्या:
> "मैं किसी के हाथों में पिनाक कहलाया"
— जब मैं शिव के हाथ में था, मेरा नाम पिनाक पड़ा। मैं संहार और समाधि का प्रतीक बना। मेरे द्वारा त्रिपुरासुर का विनाश हुआ।
> "तो किसी के हाथों में कोदंड"
— जब मैं राम के हाथ में था, मैं कोदंड कहलाया। मैं धर्म की रक्षा और अधर्म के विनाश का माध्यम बना। राम ने मेरे सहारे अहंकारी रावण को हराया।
> "तो किसी के हाथों में शार्ङ्ग"
— जब मैं विष्णु या कृष्ण के हाथ में था, मैं शार्ङ्ग कहलाया। यह सृष्टि के पालन और संतुलन का प्रतीक बना। कृष्ण ने अधर्म के खिलाफ अर्जुन को इसी भाव से प्रेरित किया।
> "तो किसी के हाथों में पौलत्स्य"
— रावण के हाथ में जब मैं था, मेरा नाम पौलत्स्य पड़ा। मैं शक्ति, अहंकार और भोग के साथ जुड़ा और अंततः विनाश का कारण बना।
> "तो किसी के हाथों में गाण्डीव"
— अर्जुन के हाथ में मैं गाण्डीव था। मैंने धर्मयुद्ध में न्याय की स्थापना के लिए बाण छोड़े। मैं युद्ध में नैतिकता का प्रतीक बना।
> "तो किसी के हाथों में विजय"
— जब मैं कर्ण, परशुराम या शत्रुघ्न के पास गया, तो मैं विजय बना। मैं वीरता, तपस्या और संघर्ष का प्रतिनिधि बना।
> "तो किसी के हाथों में पुष्पक"
— मेघनाद के हाथों में मैं पुष्पक था। यहाँ मैं रावण की संतति में युद्ध कौशल और दिव्यता का उदाहरण बना, किंतु अंततः पराजय का साक्षी भी।
> "तो किसी के हाथों में गांधरी"
— लक्ष्मण के हाथ में मैं गांधरी था। मैं राम की छाया बनकर धर्म की रक्षा के लिए समर्पित रहा।
> "तो किसी के हाथों में वायव्य"
— जब भीष्म पितामह ने मुझे उठाया, तो मैं वायव्य कहलाया। मैं संयम, त्याग और शौर्य का प्रतीक बन गया।
> "मैं एक धनुष हूँ।"
— यह अंतिम पंक्ति आत्मचिंतन है। मैं एक साधन हूँ, जो केवल अपने प्रयोगकर्ता के इरादों और मूल्य-बोध से परिभाषित होता हूँ। न मैं स्वयं शुभ हूँ, न अशुभ — मैं हूँ एक माध्यम, एक साक्षी।
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🪶 मुख्य संदेश:
शक्ति तटस्थ होती है।
कर्म और संकल्प उसे दिशा देते हैं।
एक ही वस्तु (धनुष) जब-जब भिन्न हाथों में गई, उसका स्वरूप और उद्देश्य बदल गया।
कवि आत्मबिंब की तरह स्वयं को भी 'धनुष' मानता है, यह दर्शाते हुए कि हम सब समाज और समय के हाथों में एक माध्यम हैं।
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🧭 निष्कर्ष:
यह कविता केवल पौराणिक नामों की सूची नहीं है, बल्कि यह सभ्यता की चेतना, कर्तव्य और नैतिकता पर आधारित गहन आत्मचिंतन है। गोलेन्द्र पटेल की यह रचना मानवता और शक्ति के उपयोग के प्रश्न को अत्यंत संवेदनशीलता से उठाती है।
कविता की यह व्याख्या न केवल साहित्यिक दृष्टि से, बल्कि नैतिक दृष्टि से भी अत्यंत प्रासंगिक और प्रेरणात्मक है।
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रेडियो पर पाठ्य रूपांतरण (एक):-
मैं एक धनुष हूँ...
मैं किसी के हाथों में पिनाक कहलाया...
शिव के संहार में मेरे डोर से ब्रह्मांड कांप उठता था...
मैं किसी के हाथों में कोदंड था...
राम के हाथों धर्म की लकीर बन गया...
मैं शार्ङ्ग बना, जब विष्णु ने मुझे थामा...
सृष्टि के संतुलन की एक मौन रेखा बन गया मैं...
मैं पौलत्स्य कहलाया...
जब रावण ने मुझे उठाया — मैं शक्ति का अहंकार बन गया...
मैं गाण्डीव था अर्जुन के हाथों में...
धर्मयुद्ध की नैतिकता का अनमोल साक्ष्य...
मैं विजय बना —
कभी कर्ण के हाथों, कभी परशुराम के,
तो कभी शत्रुघ्न के...
मैं वीरता, क्रोध और तपस्या का मिश्रण था...
मैं पुष्पक बना, जब मेघनाद ने मुझे थामा...
मैं देवास्त्रों की गरिमा और राक्षसी जिद का संगम बन गया...
मैं गांधरी था —
लक्ष्मण के कंधे पर
मर्यादा की दूसरी परछाई...
मैं वायव्य बना भीष्म के करों में...
त्याग, प्रतिज्ञा और अनुशासन की तेज धार...
[थोड़ी देर ठहराव के साथ...]
मैं एक धनुष हूँ...
न मैं शिव हूँ,
न राम...
न रावण...
न अर्जुन...
मैं तो बस एक साधन हूँ...
जिसके हाथ गया...
उसके इरादों का प्रतिबिंब बन गया...
मैं एक धनुष हूँ...
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रेडियो पर पाठ्य रूपांतरण (दो):-
मैं एक धनुष हूँ...
मैं किसी के हाथों में पिनाक कहलाया...
शिव के संहार में मेरे डोर से ब्रह्मांड कांप उठता था...
मैं किसी के हाथों में कोदंड था...
राम के हाथों धर्म की लकीर बन गया...
मैं शार्ङ्ग बना, जब विष्णु ने मुझे थामा...
सृष्टि के संतुलन की एक मौन रेखा बन गया मैं...
मैं पौलत्स्य कहलाया...
जब रावण ने मुझे उठाया — मैं शक्ति का अहंकार बन गया...
मैं गाण्डीव था अर्जुन के हाथों में...
धर्मयुद्ध की नैतिकता का अनमोल साक्ष्य...
मैं विजय बना — कभी कर्ण के हाथों, कभी परशुराम के, तो कभी शत्रुघ्न के...
मैं वीरता, क्रोध और तपस्या का मिश्रण था...
मैं पुष्पक बना, जब मेघनाद ने मुझे थामा...
मैं देवास्त्रों की गरिमा और राक्षसी जिद का संगम बन गया...
मैं गांधरी था — लक्ष्मण के कंधे पर मर्यादा की दूसरी परछाई...
मैं वायव्य बना भीष्म के करों में...
त्याग, प्रतिज्ञा और अनुशासन की तेज धार...
मैं एक धनुष हूँ...
न मैं शिव हूँ, न राम... न रावण... न अर्जुन...
मैं तो बस एक साधन हूँ...
जिसके हाथ गया...
उसके इरादों का प्रतिबिंब बन गया...
मैं एक धनुष हूँ...
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विशेष:-1. शिव के धनुष का नाम है - पिनाक
2. विष्णु के धनुष का नाम है - शार्ङ्ग
3. राम के धनुष का नाम है - कोदंड
4. रावण के धनुष का नाम है - पौलत्स्य
5. कर्ण के धनुष का नाम है - विजय
6. अर्जुन के धनुष का नाम है - गाण्डीव
7. भीष्म पितामह के धनुष का नाम है - वायव्य
8. मेघनाद के धनुष का नाम है - पुष्पक
9. लक्ष्मण के धनुष का नाम है - गांधरी
10. द्रोणाचार्य के धनुष का नाम है - अंगिरस
11. भरत के धनुष का नाम है - पिनाक
12. शत्रुघ्न के धनुष का नाम है - विजय
13. एकलव्य के धनुष का नाम है - गोलेन्द्र
14. परशुराम के धनुष का नाम है - विजय
15. कृष्ण के धनुष का नाम है - शारंग
नोट: धनुष शोषित वर्ग की सामूहिक शक्ति का प्रतीक है। इस संदर्भार्थ में ‘मैं एक धनुष हूँ’ कविता की दूसरी व्याख्या की जा सकती है।
संपर्क: गोलेन्द्र पटेल (पूर्व शिक्षार्थी, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी।/जनपक्षधर्मी कवि-लेखक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक चिंतक)
डाक पता - ग्राम-खजूरगाँव, पोस्ट-साहुपुरी, तहसील-मुगलसराय, जिला-चंदौली, उत्तर प्रदेश, भारत।
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