Friday, 17 April 2020

उत्तर कोरोना : प्रोफेसर श्रीप्रकाश शुक्ल


उत्तर - कोरोना...... (Post-Corona)
(आत्माएं होंगी,आत्मीयता न होगी!)
@श्रीप्रकाश शुक्ल)
मैने तुम्हें फोन किया और तुम मुझसे उत्तर मांग रहे हो
समय सुबह का है
सूरज की चमक थोड़ी गाढ़ी हुई ही थी
कि नदियों के स्वच्छ होते जल और वातावरण में बढती हुई आक्सीजन के बीच 
आसमान में निचाट सन्नाटा  है
और तुम कहते हो
यह उत्तर- कोरोना तो नहीं है!
कितना विकट समय है कि जब दुनिया का सारा विज्ञान एक रोएं के हजारवें भाग से भी छोटे वायरस की काट नहीं खोज पा रहा है
लगभग एक ब्रह्म की सूक्ष्म सत्ता की तरह इधर उधर छिटक रहा है
अपने स्वरूप को लगातार बदलता हुआ हर क्षण धरती का खून पी रहा है
तुम मुझसे उत्तर की अपेक्षा कर रहे हो
अब जबकि वर्तमान से बाहर आने की उम्मीद  कम ही  बची  है
चिडियों की बढ़ती चहचहाहट  के बीच
दुनिया के सारे देवता असहाय व असुरक्षित हो गए हैं
अल्लाह,ईसा ,मूसा और ईश्वर
सबके सब मुंह बांध कर अपने अपने कमरे में कैद हैं
और पुतलियों की जाती हुई गति से दुनिया को आते  हुए देख रहे हैं
तुम कोरोना के उत्तर से उत्तर -कोरोना की बात क्यों कर रहे हो
क्या तुम जानते हो
यह आस्थाओं के फड़फड़ाने का दौर है
जिसमें संत कवियों की एक बार फिर से वापसी हो रही है
जब उन्होंने कहा था कि इस जगत में एक ही ब्रह्म की सत्ता है
बाकी सब मिथ्या  है!
ठीक इसी जगह पर दुनिया बदल रही है
और बदलते हुए कोरोना के चरित्र में
खुद के लिए एक उत्तर खोज रही है
शायद उत्तर कोरोना का उत्तर-----
जहाँ अभिव्यक्तियाँ होंगी
लेकिन आस्वाद न होगा
लोग लौट रहे होंगे
लेकिन लौटने के लिए कुछ न होगा
आत्माएं होंगी आत्मीयता न होगी
एक देह होगी जिसको एक आत्मा ढो रही होगी
यह चिंताओं व शंकाओं  के संघर्ष का दौर होगा
जिसमें हर कुछ एक भय की  तरह समर्पित होगा
जहां स्वीकारने के अलावा और कुछ न होगा
और संघर्ष के मोर्चे पर हर बार विवेक ही मारा जायेगा
आदतें कुछ ऐसी होंगी
एक खास जंग के जैसी होंगी
जीवन निर्वात होगा
संघर्ष हवाओं का होगा
सत्ताएं उदार होंगी
शासन सख्त होगा
देश का हर आदमी लड़ेगा सिपाही की तरह
लेकिन हर बार मारा जाएगा एक नागरिक के मोर्चे पर
शासक बहुत उदार होंगे
लेकिन उनमें सब कुछ को पाने की एक जल्दी होगी
लगभग इस समय की वाचाल मीडिया की तरह
जहाँ ब्रेक के बाद भी
एक पुराना ही चीखता है
अद्भुत होगा यह समय की अद्भुत जैसा कुछ नही होगा
केवल एक पुरातन की स्मृति होगी
और सभ्यता के एक वायरल इफेक्ट जैसा
खोने व पाने का संघर्ष होगा
हर नए विकल्प को  अनचाही आस्थाओं का आदिम स्वर देता हुआ
यह असहाय कथाओं के सर्जन का समय होगा
जिसमें कथाएं तो बहुत होंगी
काव्यत्व उतना ही कम होगा
स्मृति में मनोरंजन की सुविधाएं होंगी
आकांक्षा में ढेर सारी दुविधाओं के बीच
यह एक दूसरे की तारीफ का दौर होगा
जिसमें सराहनाएं भी शातिर होंगी
जहां एक ताकत दूसरे को आजमा  रही होगी
खोए हुए को पाने की जिद में
दुनिया दौड़ रही होगी
जिसकी जद में  आयी हुई सभ्यता
अपनी संपूर्णता में कराह रही होगी
यह एक नई शुरुआत होगी
लेकिन शुरू करने के लिए कोई न होगा
क्या तुम जानते हो
वायरस का कोई पूर्व काल नहीं होता
उसका सिर्फ एक वर्तमान होता है
जो सदा एक उत्तर में बदल रहा होता है
यह विचार नहीं
व्यवहार समझता है
और तुम्हारा व्यवहार है कि इसकी आकंठ उलाहनाओं के बीच
पूंजी  की ताकत के सामने सदा झुका रहता है
एक स्थायी विनम्रता की तरह!
@श्रीप्रकाश शुक्ल-12-4-2020)

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