युवा कवि गोलेन्द्र पटेल
पहाड़ों से पटिया निकालते पिता //
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तोड़ रहे थे पत्थर
निकाल रहे थे पटिया
एक माँ के पिता पहाड़ों से!
खेलने के वक्त
उनके पोते के संग
हाथ में हथौड़ा ले
लालपुर के पहाड़ी में फोड़ रहा था "गिट्टी"
इस माँ का बड़ा बेटा!
क्योंकि छोड़ दिए थे
उसके "पति" उसे नैहर।
आज भी तोड़ रहे हैं उसके भतीजे पत्थर
पलांट पर
निराला के 'तोडती पत्थर' में जो मजदूरनी है
मुझे लगता है उनका स्त्री जन्म।
पत्थर की प्यास बुझी
जब पटिया ने पीया
"रक्ताश्रु"!
उसके बेटे को
कांधे पर बैठा कर पर्वत को देखाने वाले पथिक
आह शोक! उसके बापू नहीं रहे भाई नहीं रहे
बापू "दमा" दानव के साथ ४६ के उम्र में चले गए
"स्वर्ग"!
तब नाती छोटा था बहुत छोटा अबोध।
उसका एक भाई ३० के उम्र में ही छोड़ गए
भौजाई के कर एक नन्ही कली-दो नन्हे फूल
(एक बरस की कली , एक फूल गर्भ में था दूसरा दो बरस का बाहर)
यह माता बिहोश हो गई शव को छू कर
उसकी बहन देखते ही रोते रोते मर गई उसी दिन
उसने भी दो ताज़े कली को छोड़ गई
(एक ४ माह की दूसरी १.५ बरस की)
दोनों चिता जले नरायनपुर के घाट।
इन कलियों के पिता ने बसाया नया घर
नन्ही कली कुम्हला रही हैं
आना चाहती हैं बड़ी बुआ के पास तीनों कली
बुआ के बेटे लाएंगे अवश्य लाएंगे उन्हें
एक दिन अपने पास
क्योंकि अभी पढ़ रहे हैं सब
उक्त करुण कथा से कैसा रिश्ता है रब???
(©गोलेन्द्र पटेल
"रक्ताश्रु" से)
रचना : २१-०२-२०२०
नोट : १.यह तस्वीर उपर्युक्त कविता के लिए नहीं है बस यूहीं लगा दिया हूँ दर्शकों के लिए।
२.तस्वीर : फेसबुक से
३.आत्मबीती करूणकथा
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