Tuesday, 3 November 2020

"महामारी में मदन कश्यप : श्रीप्रकाश शुक्ल" / प्रस्तुति : गोलेन्द्र पटेल {भाग-१}



 

शरद पूर्णिमा के दिन "चिंतन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था : अंशु चौधरी" के फेसबुक पेज पर "महामारी में मदन कश्यप" नामक विषय पर वरिष्ठ कवि , आलोचक व आचार्य श्रीप्रकाश शुक्ल के वक्तव्य निधियों का संक्षेप में प्रस्तुतिकरण :-


गुरुवर श्रीप्रकाश शुक्ल इस महत्वपूर्ण व्यख्यान का श्रीगणेश 'अर्थववेद' के निम्नलिखित सूक्त से करते हैं-


"पश्येम् शरदम् सतम्

 जिवेम् शरदम् सतम्।।"


अर्थात् आप सौ वर्ष तक जीयें और देखें।

निराला ने भी अपनी एक कविता में शरद पूर्णिमा के विदाई में १९२३ ई. में लिखी गई है , जिसकी कुछ पंक्ति निम्न हैं-

"कुछ भी हो तू ठहर

देख लूँ भर नजर

क्या जाने

क्या हो इस जीवन का

तू ठहर....।"


मदन कश्यप : नब्बे का जो दशक है खास कर के जो बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध की कविता का सबसे उर्वर व विविध वर्णनीय दशक रहा है।यह अपने जिन कवियों पर गर्व कर सकता है उसमें मदन कश्यप बहुत ही अग्रणी और आक्रांत कवि हैं।वे कवि रूप में अपनी कविता में वक्रोक्ति गंभीर और स्वभाव में अन्य के दोष दर्शन से परांग विमुख हैं।अर्थात् उनकी कविता की जो विशेषता है वो वक्रता स्वभाव में जैसा की बहुतों के यहाँ दिखाई देता है।वह अन्य दोष दर्शन से बहुत परहेज करते हैं।जिसे परांग विमुख शुक्ल जी कहते हैं।वे गहरे अर्थों में सांस्कारिक व लोकसमत कवि हैं।जिनका पूरा जीवन ही काव्यमय है।


एक ऐसे समय में जहाँ पर सत्ता और व्यवस्था की चाकरी करना हम सबकी अनिवार्यता है।उन्होंने एक पूर्णकालिक कवि के रूप में अपना विगत जीवन जिया है और उस पूर्णकालिकता में कभी भी सम्मान से , स्वाभिमान से समझौता नहीं किया है।इस रूप में आप देखें सत्ता व्यवस्था की चाकरी से सर्वदा मुक्त रहे हैं , खास कर ऐसे लोगों के लिए भी मदन जी उदाहरण हैं जो नौकरी करते हैं । नौकरी में बहुत कुछ पा चूके हैं। बड़े पद पा चूके हैं फिर भी बडे़ पद पाने की लिप्सा आज तक नहीं गई है।इसके बावजूद भी वे कवि होना चाहते हैं और कवि बनने के लिए जीतोड़ मेहनत और कोशिश करते हैं।तो ऐसे लोगों के सम्मुख मदन जी विरल और विलक्षण उदाहरण हैं।


इन्होंने कभी भी सत्ता की चाकरी न तो की , न ऐसे कोई सत्ता के निकट पहुंने की कोशिश की।शुक्ल जी को इस बात का हमेशा गर्व रहता है कि वे कवि रूप में उनके निकटतम पूर्ववर्ती हैं । जिनके माध्यम से हमने न केवल अपने समय को समझा है।बल्कि हमें हिंदी कविता की जो सम्पूर्ण परंपरा है।उसको समझने में भी काफी मदद मिलती है।उनसे बातचीत के माध्यम से हिंदी कविता की जो समुचित परंपरा रही है।उसको समझने का अवसर मिला है।मैं(शुक्ल जी) कुछ लोगों में से हूँ जिनका उन्हें स्नेह मिलता रहा है।जिनसे खुलकर संवाद होता रहा है।यह अवसर हमारे के लिए(खास कर शुक्ल जी के लिए) खास है कि आज अपने निकटतम पूर्ववर्ती कवि पर कुछ बात कहने के लिए आप सबके सम्मुख उपस्थित हूँ।


मदन कश्यप की बायोडाटा बताने की जरूरत नहीं है लेकिन इतना जरूर है कि उनकी छः कविता संग्रह प्रकाशित हैं।जो निम्नलिखित हैं :-


१.लेकिन उदास है पृथ्वी(१९९२ई.)

२.नीम रोशनी में

३.कुरूज

४.दूर तक चुप्पी

५.अपना ही देश

६.पनसोखा है इंद्रधनुष (२०१९ में सेतु प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हो कर के अत्यंत चर्चा में रही है।)


"लेकिन उदास है पृथ्वी" से लेकर"पनसोखा है इंद्रधनुष" तक की मदन कश्यप की कविताओं की कविता/काव्य यात्रा अगर हम देखे तो उनकी कविता यात्रा उर्द्धमुखी यात्रा रही है , मदन जी ने लगातार अपने को परिस्कृत किया है।वे पैसठ (६५) पार हैं , ६५ के पार में जहाँ बहुत सारे कवि चूक जाते हैं।वहीं आज भी वे बहुत डटकर हिंदी काव्य जगत को शानदार रचनाएँ(कविताएँ) दे रहे हैं ।(अर्थात् सृजनात्मकता में निरंतरता बनी है।)


यह जो उनकी सक्रियता है।यह भी हम सबको बहुत आकर्षित करती है।और सक्रियता ही नहीं , कि केवल कविता लिखने के लिए लिख रहे हैं बल्कि वे अपने समय से मुठभेड़ करने वाले कवियों में अग्रणी हैं।इतने ही तरोताजा और इतने ही समकालीन हैं कि तय कर पाना ये मुश्किल होता है कि मदन जी का जो काव्य बोध है । उसका स्त्रोत उनका समकालीन समाज है , उनकी स्मृति है या वे सब लोग हैं जो किसी न किसी रूप में उनके कवि के निर्माण में अपना योगदान देते रहे हैं।


लेकिन यह भी निश्चित है कि इनके सभी संग्रह इनके पक्षधरता के प्रमाण हैं और इनकी पक्षधरता संस्कृतनिष्ठ पक्षधरता है।केवल न नारेबाजी है , न राजनैतिक है , न लोक सम्मति है।...संस्कृतनिष्ठ पक्षधरता का मतलब यह होता है कि वे यह कहने की कोशिश करते हैं जो आज तक अनकहा है या जो कहने की अभूतपूर्व संभावना है।वे उनके काव्य खनिज होते हैं।जहाँ से वे अपनी कविताओं का निर्माण करते हैं।आज हमारे लिए यह बात बहुत महत्वपूर्ण है कि हिंदी कविता की जो विरासत इन्हें मिली है।उससे जुड़ते हुए।ये वर्तमान को समझने वाले सर्वथा मौलिक कवियों में सामिल हैं।इधर कोरोनाकाल में मैंने(शुक्ल जी ने) देखा कि इन्होंने अपने कविता के स्वदेश को ठीक से संवारा है जिसपर मैं आगे चर्चा करूंगा।



इनके ठीक पूर्ववर्ती कवियों में यदि आप देखें , थोड़ा परंपरा को देखें तो मदन कश्यप के ठीक पूर्ववर्ती जो कवि हैं ।उसमें प्रमुख हैं :-

राजेश जोशी / ज्ञानेन्द्रपति / अरुण कमल / मंगलेश डबराल / विरेंद्र अग्रवाल एवं अन्य।


उक्त पाँचों कवियों के साथ रहकर मदन जी संवाद किया है , साथ रहकर के सीखा है , साथ रहकर के कविता के बारे में समझा है और उनको समझते हुए अपने मार्ग की तलाश की है। समय थोड़ा आगे पीछे हो सकता है।ये कवि अस्सी (८०) के दशक के महत्वपूर्ण कवि हैं।जिन्हें शुक्ल जी असी के दशक की हिंदी कविता की *पञ्चवाणी* कहते हैं।और आप सब जानते हैं कि भक्तिकाल की परंपरा में पंचवाणीयों का बड़ा महत्व रहा है।पंचवाणी का प्रसंग केवल इतना है कि यह मदन जी के निकटतम पूर्ववर्ती भी हैं और समकालीन भी।


इन पंचवाणी कवियों के पूर्ववर्ती कवियों में मुक्तिबोध / रघुवीर सहाय / केदारनाथ सिंह की *त्रयी* है।जिनके खुद के मूल में निराला है।और निराला का एकल स्वर है।उनका "काव्यबीज" है , इन सब कवियों के बीच में नागार्जुन , त्रिलोचन , शमशेर की त्रयी भी है।जो स्वयं एक तरफ निराला से सीखते हैं तो दूसरी तरफ अस्सी के दशक के कवियों के प्रेरणा स्त्रोत भी रहे हैं।


तो यह 'नब्बे(९०) की दशक' जिसका जिक्र कवि मित्र बद्रीनारायण ने बहुत पहले ही "तद्भव" के एक लेख में किया था।तो मदन कश्यप के अर्लीनाइंटिन के पूर्व जो परंपरा थी।खास कर स्वाधीन भारत और अस्सी के बीच की , उसके बारे में संक्षेप में पृष्ठभूमि तैयार करते हुए शुक्ल जी आगे कहते हैं कि नब्बे की दशक की बदलती स्थितियों में आधुनिक हिंदी कविता के परंपरा पर जो दबाव रहता है उसमें अपने वर्तमान से जुड़ने की गहरी बेचैनी दिखाई देती है।


क्यों???


क्योंकि उदारीकरण , विश्व बाजार और तकनीक के बढते दबाव में ये सब जो स्थितियां आई ९० के दशक में स्थानीकता की वैश्विकता जो विकसित हो रही थी।नब्बे के दशक में स्थानीकता के दबाव में जो वैश्विकता आ रही थी।इन कवियों को उसे समझना भी था और उसे रोमांटिक आग्रहों से मुक्त भी होना था।और बहुत बड़ी चुनौती थी।

"वर्णहाउस" का जिक्र मांटिन क्यूँ जूनियर ने किया था।....

वीडियो का केवल 17 मिनट का प्रस्तुति : गोलेन्द्र पटेल {बीएचयू - बीए , तृतीया वर्ष}

 

शेष अगले दिन


संपादक परिचय :-

नाम : गोलेन्द्र पटेल

【काशी हिंदू विश्वविद्यालय में बीए तृतीय वर्ष ,पञ्चम सत्र का छात्र {हिंदी ऑनर्स}

सम्पर्क सूत्र :-

ग्राम-खजूरगाँव , पोस्ट-साहुपुरी , जिला-चंदौली , उत्तर प्रदेश , भारत। 221009

ह्वाट्सएप नं. : 8429249326

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