Sunday, 1 November 2020

{©corojivi kavita} "कोरोजीवी" काव्य संकलन : 'कवि , कोविड व काशी' / बीएचयू के आचार्य~श्रीप्रकाश शुक्ल+सदानंद साही+बलिराज पाण्डेय+रामाज्ञा 'शशिधर'+बिपिन कुमार+शशिकला त्रिपाठी+रचना शर्मा+...+अन्य।~गोलेन्द्र पटेल

🙏आत्मिक आदर आभार अभिवादन नमस्कार🙏

संकलन के कवि क्रमशः -

१.श्रीप्रकाश शुक्ल
२.सदानंद साही
३.बलिराज पाण्डेय
४.रामाज्ञा "शशिधर"
५.विपिन कुमार
६.शशिकला त्रिपाठी
७.रचना शर्मा
८.
९.
१०.



कवि परिचय :-

श्रीप्रकाश शुक्ल
{कवि ,आलोचक व आचार्य}

जन्म : १८ मई , १९६५
जन्म स्थान : बरवाँ , सोनभद्र【उत्तर प्रदेश】
शिक्षा : एम.ए. ,पीएचडी।

◆पी.जी. कॉलेज , गाजीपुर में लम्बे समय तक कार्य करने के बाद २९ अक्टूबर ,२००५ से काशी हिंदू विश्वविद्यालय ~ वाराणसी के हिंदी विभाग में कार्यरत।

नब्बे के दशक के महत्वपूर्ण कवि और आलोचक
श्रीप्रकाश शुक्ल इलाहाबाद विश्विद्यालय से  एम. ए(हिन्दी) व पीएचडी हैं. उन्होंने हिन्दी कविता की आंतरिक लय के दायरे में अपनी कविता में लोकधर्मी परंपरा का विस्तार किया है जहां लोक रूढ़ न होकर एक गतिशील अवधारणा है।एक कवि के रूप में वे हिंदी कविता की  प्रतिरोधी परंपरा के  महत्वपूर्ण कवि हैं।शास्त्र से लेकर  लोक तक में उनकी गहरी रुचि है और उनकी कई  कविताओं में अनेक देशज शब्द प्रयुक्त होकर नया अर्थ प्रकट करते हैं।अभी अभी 'वागर्थ' जुलाई,2020 के अंक में प्रकाशित  अपने  एक साक्षात्कार में वे कहते हैं कि 'कवि कविता की संसद का  स्थायी प्रतिपक्ष होता है'।

उत्तर आधुनिकता और पूंजीवाद का यह दौर है।इस दौर में जहां एक तरफ आधुनिकता के नाम पर मानवीय संबंधों में आत्मीयता और नैतिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है वहीं दूसरी तरफ श्रीप्रकाश शुक्ल जी इन संबंधों में जान डाल रहे हैं।।जहां एक तरफ एक नयी पीढ़ी अपनी पुरानी पीढ़ी से अबोला कायम कर रही है वहीं शुक्ल जी अपनी कविताओं के जरिए पीढ़ियों के बीच अपनत्व भरा संवाद कायम करने में प्रयासरत हैं।...

उनकी प्रकाशित  कृतियाँ हैं---

कविता संग्रह:---
”अपनी तरह के लोग”,”जहाँ सब शहर नहीं होता” ,”बोली बात” ,”रेत  में आकृतियाँ”, ”ओरहन और अन्य कवितायेँ ”. "कवि ने कहा" .
'क्षीरसागर में नींद' .

*आलोचना:----
”साठोत्तरी हिंदी कविता में लोक सौन्दर्य “ और “नामवर की धरती “ .

*संपादन:---“परिचय “ नाम से एक साहित्यिक पत्रिका का संपादन.

*पुरस्कार:--- कविता के लिए “बोली बात ” संग्रह पर वर्तमान साहित्य का मलखानसिंह सिसोदिया पुरस्कार , “रेत  में आकृतियाँ” नामक कविता संग्रह पर उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान का नरेश मेहता कविता  पुरस्कार,. "ओरहन और अन्य कवितायेँ" नामक कविता संग्रह के लिए  उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का ‘विजय देव नारायण साही कविता पुरस्कार’ ।


1.

कोविद की मुश्किल//


जब वे कोविड नहीं थे

बहुत संवेदनहीन थे और हर कोविड वाले को ऐसे भगाते थे

जैसे सुबह की सैर पर कुत्ता भगा रहे हों!


जैसे ही वे कोविड हो गए

उनकी संवेदनशीलता बार बार उछाल मारने लगी

और हर संबंध को वे इस तरह पुकारते थे

जैसे बथान पर बैठी गाय 

अपनी समस्त स्मृतियों के साथ 

अपने बछड़े को खूंटे पर  बुलाती है 


यह एक ऐसा बिगूचन  समय है 

जहां विराट संवेदन व विपन्न संवेदन के बीच 

एक विघातक कोविड आकर बैठ गया है


आजकल कोविद  भी मुश्किल में  है कबीर

कि वह किसके पक्ष में अपना बयान दर्ज करें!

(7/9/2020)


2.

आदमी जहां टैग है!


इस पीड़ा को किससे कहें

आदमी जहां टैग है

प्लास्टिक का एक बैग है!


कोरोना ने संबंधों को तार तार कर दिया है।

बीमार कहता है आओ आओ।

तीमार कहता है जाओ जाओ।


जिसे आप भगवान कहते हैं 

वह एक ऐसा दयावान है 

जो केवल संदेश दे सकता है समाधान नहीं।


जो कल तक आला लगाए घूमता था

वह अब ताला लगाए झूमता है।


इतना रौताई रोग नहीं देखा कि हर इंसान एक जिंदा लाश है

जहां कुशल क्षेम के नाम पर 

इंसानियत अब 

महज़ एक काश है!

(©श्रीप्रकाश शुक्ल,27/8/2020)



कवि परिचय :- 

सदानंद साही

परिचय


जन्म : 7 अगस्त 1958, कुशीनगर (उत्तर प्रदेश)

भाषा : हिंदी

विधाएँ : कविता, आलोचना

मुख्य कृतियाँ


कविता संग्रह : असीम कुछ भी नहीं
आलोचना : परंपरा और प्रतिरोध, दलित साहित्य की अवधारणा और प्रेमचंद, स्वयंभू
संपादन : साखी (साहित्यिक पत्रिका)

सम्मान


वर्ष 2003 में हाइडेलबर्ग विश्‍वविद्यालय, जर्मनी में DAAD फेलोशिप

संपर्क


एच ½, वीडीए फ्लैट्स, नरिया, पोस्ट-बी.एच.यू, वाराणसी, उत्तर प्रदेश-221005

फोन


05422322498, 09450091420

ई-मेल


sadanandshahi@gmail.com


1.

हे मेरे ईश्वर!


तुम बूढ़े दिखते अच्छे नहीं लगते

तुम्हें जवान देखने की आदत ठहरी

वह भी 

बिना दाढ़ी बिना मूंछ

तुम्हारा  बूढ़ा रूप देखकर आंखें दुखी होती हैं

हम यह मानने को तैयार नहीं हैं कि

हमारा ईश्वर बूढ़ा हो सकता है

कुछ करो 

मेरे ईश्वर!


और कुछ नहीं 

तो अपने बाल ही डाई करा लो

बाजार में तरह तरह के डाई उपलब्ध हैं

ओरिजनल से ज़्यादा अच्छी लगने वाली

प्लीज इतनी सी बात मान लो....!


वैसे भी हमें ओरिजनल

या डुप्लीकेट से कोई फर्क नहीं पड़ता 

हमें बस अच्छा लगने से मतलब है...

और तुम्हारी यह छवि बिल्कुल अच्छी नहीं लग रही।


2.
लूडो खेलिए

जब महामारी चरम पर थी
देश का सबसे बड़ा डाक्टर लूडो खेल रहा था
जब पुल भर-भराकर गिर रहा था
देश का सबसे बड़ा इंजीनियर लूडो खेल रहा था
जब बच्चे पढ़ने के लिए मचल रहे थे
देश का सबसे बड़ा प्रोफेसर लूडो खेल रहा था
जब बाढ़ ने पूरे बिहार में मचाई थी तबाही
देश का सबसे बड़ा ठेकेदार लूडो खेल रहा था
जब लोग भूख से विकल थे
अंतड़िया ऐंठ रही थीं
देश का भामाशाह लूडो खेल रहा था

और जब  यह सब हो रहा था
देश के बड़े-बड़े पत्रकार 
नीति निर्माता
वित्त विधाता
कवि कलाकार
लूडो खेल रहे थे

हमारे समय का संदेश है
 लूडो खेलिए

बाढ़ हो या महामारी
ग़रीबी हो या भुखमरी
हत्या हो या आगजनी
लूडो खेलिए

आतंकवादी आ रहे हों
काला धन जा रहा हो
दुनिया मंदी से गुजर रही हो
तबाही आ रही हो
लूडो खेलिए

विश्व युद्ध के मुहाने पर बैठकर
महाप्रलय के सिरहाने उठंग कर
लूडो खेलिए

बहुत आसान है लूडो खेलना
सीधा सा नियम है
दूसरे की गोटी काटना
और 
अपनी गोटी चमकाते रहना

हमारे समय का संदेश है
लूडो खेलिए।
©सदानंद साही


कवि परिचय :-
?
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१.
योर ऑनर
-----------------

छल-प्रपंच से सुशोभित 
इस अविश्वास युग में
जिस महान लोकतंत्र का गुणगान करते
हम कभी नहीं थकते
उसका एक मजबूत खंभा आप भी हैं योर ऑनर
 आप के कुछ अटपटे आदेशों के बावजूद
आमजन का आप में भरोसा
वैसे ही सांस लेता है
जैसे किसी ढही पड़ी इमारत के मलबे में सांस लेता दुधमुंहा बच्चा
बेर-बागर आप फटकारते भी हैं योर ऑनर
सरकार को आप की फटकार वैसी ही लगती है
जैसी किसी प्रेमी को प्रेमिका की फूल गुलाब की मार
आप कुछ मामलों का स्वत: संज्ञान भी लेते हैं योर ऑनर
और हमें यह बहुत अच्छा लगता है
लेकिन किसी सच्चे, नेकदिल इंसान पर
थोपे गये झूठे मुकदमे स्वत: संज्ञान में क्यों नहीं आते योर ऑनर?
 अबोध बच्चियों के बलात्कार की वारदातें स्वत: संज्ञान में क्यों नहीं आतीं योर ऑनर?
तपती दोपहरी में कंधे पर बोझ लादे
बीवी-बच्चों संग भूख-प्यास से बिलबिलाते
हजारों मील पैदल चलते श्रमिक
आप के स्वत: संज्ञान में क्यों नहीं आते योर ऑनर?
आज झुग्गी-झोपड़ियों से झांकतीं
स्त्रियों-बच्चों की भयभीत आंखें
आप से एक ही सवाल करती हैं योर ऑनर
लोगों के घर उजाड़ने का फरमान तो आप तुरत-फुरत जारी करते हैं
किसी का घर बसाने की बात भी आप के दिमाग में कभी आती है योर ऑनर?

२.
दीपिका राजावत
हाल के वर्षों की
सबसे बहादुर स्त्री दीपिका राजावत
तुम एक साधारण-सी वकील हो
देश की हर छोटी-बड़ी कचहरी में
लखटकिया बहस करने वाले
नामी-गिरामी वकीलों में
नहीं है कहीं तुम्हारा नाम
फिर भी, चतुर्दिक विरोध, अपमान और जलालत सहती
तुम लड़ी एक ऐसी लड़की के लिए
जिसके लिए लड़ने वाला कोई नहीं था
तुम्हारा जिक्र आते ही
यादों में बरबस हाजिर हो जाती है आसिफा
कठुआ के किशोर वय की आसिफा
बूढ़े मां-बाप का आसरा आसिफा
पास के जंगल में निधड़क जाती रोज
अपना घोड़ा चराती आसिफा
वह हिन्दू-मुसलमान के भेद-से निर्भेद थी
खुली हवा में सांस लेना अभी सीख रही थी वह
लेकिन हत्यारों से देखा नहीं गया उसका बढ़ना
घोड़े पर चढ़ना और कुछ कमसिन सपने देखना
उसे अल्लाह पर भरोसा था
यकीन था मंदिर के भगवान पर
लेकिन वक्त पर कोई काम नहीं आया
दीपिका राजावत
जब धर्म-धुरंधरों की भारी भीड़
यहां तक कि तुम्हारी समूची वकील बिरादरी भी
हत्यारों के साथ खड़ी
नारे लगा,झंडे फहरा रही थी
तुम अपने दम पर लड़ी
खूंख्वार हत्यारों से लड़ी तुम
पुलिस और हत्या के पैरोकारों से लड़ी
दीपिका राजावत
तुम्हारा नाम
अब सिर्फ व्यक्तिवाचक संज्ञा नहीं
हैवानियत पर इन्सानियत की विजय-गाथा है
न्याय प्रिय लोगों की एक उम्मीद है,आशा है।
©बलिराज पाण्डेय



कवि परिचय :-
रामाज्ञा शशिधर

जन्म- २ जनवरी, १९७२ को बेगूसराय जि़ले (बिहार) के सिमरिया गाँव में।
शिक्षा- दिनकर उच्च विद्यालय सिमरिया के बाद लनामिवि, दरभंगा से एम.ए. तक की शिक्षा। एम.फिल. जामिया मिल्लिया इस्लामिया एवं पीएच-डी. जेएनयू से। 

कार्यक्षेत्र-
२००५ से हिन्दी विभाग, बीएचयू में सहायक प्रोफेसर के पद पर कार्यरत। गाँव में दिनकर पुस्तकालय के शुरुआती सांस्कृतिक विस्तार में 12 साल का वैचारिक नेतृत्व, कला संस्था 'प्रतिबिंब' की स्थापना एवं संचालन तथा इलाकाई किसान सहकारी समिति के भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष। जनपक्षीय लेखक संगठनों के मंचों पर दो दशकों से सक्रिय। इप्टा के लिए गीत लेखन। लगभग आधा दर्जन पत्र-पत्रिकाओं का संपादन। दिल्ली से प्रकाशित समयांतर (मासिक) में प्रथम अंक से २००६ तक संपादन सहयोगी। ज़ी न्यूज, डीडी भारती, आकाशवाणी एवं सिटी चैनल के लिए छिटपुट कार्य।


प्रकाशित कृतियाँ- 
'आँसू के अंगारे, 'विशाल ब्लेड पर सोई हुयी लड़की' (काव्य संकलन), 'संस्कृति का क्रान्तिकारी पहलू' (इतिहास), 'बाढ़ और कविता' (संपादन)। पत्र-पत्रिकाओं में कविताओं के अलावा आलोचना, रिपोर्ताज और वैचारिक लेखन। 'किसान आंदोलन की साहित्यिक भूमिका' शीघ्र प्रकाश्य।

संप्रति- बनारस के बुनकरों के संकट पर अध्ययन।

ईमेल- assichauraha@gmail.com

१.

//दोहे कमाल के//

भारतेंदु की गली में पिज्जे का व्यापार

नई चाल में फिर ढला हिंदी का बाजार


भूमंडल बाजार में नव विचार की चाल

चलता हिंदी देश में अभी कबीला काल


हिंदी सुरही गाय है कटिया भर भर दूह

सुई जहर की घोंपकर खींचो मज्जा रूह


पहले आया आधुनिक रीति नीति फिर काल

भक्ति शक्ति की बेल फिर वीरकथा भौकाल


फुनगी पर हिंदी चढ़ी विश्व पताका तान

जड़ में दीमक यूं लगा गिरी चित्त चौखान


खेतचोर हीरो बना होरी मरता रोज 

भूमि माफिया कर रहे प्रेमचंद पर शोध


सामंती अवशेष से छिड़ा रहे संग्राम

हाथी से चींटी लड़े यह कमाल का काम

२.

🌿घाव के फूल🌿

      ~~~~~

घाव को फूटने दो

मवाद को बहने दो


जिस्म के लॉकर में

आत्मा को कोरन्टीन दो


उसके होठों पर 

मीन की हड्डियों की बीन दो


लहरों की बात मत कर

ये उठती हैं बहुत सतह पर


अतल में जीवन बेमिसाल

शंख के मुख भरे शैवाल


जहां मृत काई को जीवित काई खा रही है

जहां अपनी आंखों के जल से मछली नहा रही है


जहां सूर्यभेदन के बिना भी जीवन चलता है

जहां चट्टान पर लेटकर घोंघा मोती में ढलता है


जहां दृश्य अदृश्य के सड़ने से बने हैं 

जहां स्वर पानी के अणु इतने घने हैं


जहां 

भाषा ज्वालामुखी के भाप सी हल्की होती है

जहां

इच्छा स्प्रूलिना चाटकर जगी हुई सोती है


ओ मेरे कवि घाव से मत घबड़ाओ

उसे आत्मा पर मरहम की तरह पसरने दो

बहुरूपिए को वायरस की तरह संवरने दो


केवल देह को ही नहीं

आत्मा को भी इम्यून चाहिए

अनगिन इच्छाएं कवच में बंद हैं

नया लड़ाका कम्यून चाहिए

©रामाज्ञा शशिधर


कवि परिचय :- 

विपिन कुमार

जन्म : १जनवरी १९८०

शिक्षा : एम.ए., नेट, डी.फिल.

प्रकाशित रचनाएँ :-

सर्द हवाओं में, काफी नहीं इतना {कविता संग्रह} ;

कहत कबीर सुनहु रे तुलसी {कहानी संग्रह} ; अंतिम विकल्प {उपन्यास} ; दलित समाज और साहित्य {संपादित}

संपादन :- अनिश {साहित्यिक पत्रिका}

संप्रति :- असिस्टेंट प्रोफेसर{स्टेट-३}, हिन्दी विभाग, बीएचयू-वाराणसी 221005

संपर्क :- एल-12 , तुलसीदास कॉलोनी , बीएचयू-वाराणसी।

ई-मेल :- bipink317@gmail.com

मो. :- 8765625611

१.

सरकार की तरफ से


जरूरी और सराहनीय कदम


आम परिवार की औरतें और बच्चे


चालीस दिनों से


टी वी ड्रामा देखकर ऊब चुके थे


आज से उनको लाइव ड्रामा


देखने का सुअवसर मिलेगा

आज से फिर एक बार


आम आदमी का घर


चीख पुकार से गुंजायमान होगा


साहब ने साहब के लिए


जाम की व्यवस्था कर दी है


साहब तो साहब के सुकरगुजार हैं


पड़ोसी भी साहब के सलामगार


लॉकडाउन में बैठे बिठाये


एक और मनोरंजन होता रहेगा

साहब ने साहब के लिए नहीं


साहब ने साहब के बहाने


अपने साहब के लिए रास्ता बनाया है


चालीस दिन साहब ने


अपने साहब की हरकतों को


इसी वादे के झांसे में झेला है

अपने साहब के वादे


निभाने के लिए


साहब सारे वादे तोड़ आये हैं


आम जनता के सहारे


अपने लिए रास्ता बनाये हैं


गिनती अभी जारी है


कोई उपाय आना अभी बाकी है


फिर भी सबको कतार में


खड़ा कर आये हैं

पिओ और पीते रहो


४ म


२.

निगाहें टिकी हुई हैं


टीवी स्क्रीन पर लगातार


विश्व के सभी देशों में


गिनती जारी है


कौन आगे है और कौन पीछे


यह जानने की


बेताबी लगातार बनी हुई है

कहीं हजार में तो कहीं लाख


जो आगे है वह दुखी है


जो पीछे है वह भी दुखी है


जो दोनों की होड़ में नहीं है


वह होड़ में आना भी नहीं चाहता


जब कोई गिनती


अपने आस-पास आ जाती है


हलक सूख जाता है


चिंता बढ़ जाती है

व्यक्ति खुद को देखता है


परिवार को देखता है


आँखे भर आती हैं


मासूमों को देख


न चाहते हुए भी बार- बार


मन में आ ही जाता


पहले कौन? 


आँखे बंद हो जाती हैं


चेतना शून्य में


विचरण करने लगती हैं

यह पहली गणना है


जिसमें सारे देश


पीछे रहने की जद्दोजहद में हैं


कोई किसी से


आगे नहीं निकलना चाहता


आज का चुनाव 


किसी व्यक्ति के लिए नहीं है


इसमें देश खड़े हैं मैदान में

हार जीत का फैसला


अधिक संख्या पर नहीं है


कम से कम संख्या पर है


विजेता तो वही होगा


जिसकी संख्या शून्य होगी


यह जीवन बचाने का चुनाव है

ताज इंतज़ार कर रहा है


किसी नेता का नहीं


किसी योद्धा का नहीं


उस देश के वैज्ञानिक का


उस देश के डॉक्टर का


जो खोज लायेगा


जीवन की सुरक्षा के लिए वह दवा


जिससे दुनिया में गिनती रूक जाय।

©विपिन कुमार , २७ अप्रैल


कवि परिचय :-【कवयित्री】

शशिकला त्रिपाठी 

{कवि , आलोचक व आचार्य~वसंत महिला कॉलेज , वाराणसी}

जन्म-

जन्म स्थान-

रचनाएँ-

सम्मान-

सम्पर्क सूत्र :-

ईमेल : shashivcr9936@gmail.com

१.

कोरोना महामारी
‐------------------
( 1)
नहीं हुई वार्ताएं
आकाओं के मध्य,
नहीं उठे मुद्दे
इतिहास-भूगोल के
संयुक्त राष्ट्रसंघ
न अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में
युद्ध की घोषणा नहीं
न पहुँचे सैनिक
सरहदों पर मौत बन
कोई बाजीगरी नहीं
तथापि,
प्रारम्भ हुआ है
विश्वयुद्ध
नामालूम तरीके से
जैसे लगती है
जंगल में आग
एक से दूसरे
दूसरे से तीसरे देश ।
आयी है कोरोना
प्लेग, हैजा
स्वाइन फ्लू को पछाड़कर।
मर रहें हैं लोग
लाखों की संख्या में
उच्चतम तकनीकें
तक हैं ध्वस्त
सटीक लक्षण
न टीका उपचार
सब लाचार
पश्चिमी देश
और भी बेहाल
विचित्र गति
लड़ा जा रहा युद्ध
घरों में बंद होकर।
‐‐----------------


(2)
 
कोरोना
की घात से
किंकर्तव्यविमूढ़ 
ठहर गई दुनिया।
विषाणु अस्त्र यह
नहीं महामारी
सबकी जुबान पर
चीन,चमगादड़ और
वुहान की प्रयोगशाला ।
विश्वअर्थशक्ति
बनने की होड़ में
निकल पड़ा
साम्यवाद, तोड़ने
महाबलियों के रीढ़ ।
आकाश में
मंडराते हैं
संशय के बादल
गड़बड़ता है
तंत्र सूचनाओं का
धर्म अधर्म में भी
रहे नहीं फासले।
सहयोग लेता है
रक्षक उपादान
पुन: करता है
उनका व्यापार
उन राष्ट्रों के साथ
खोदे जा रहे हैं
जहाँ, दिन रात कब्र
और बन रहे ताबूत ।
धडाम हुई अर्थव्यवस्था
चूहे की भांति
कुतर देना चाहता है
बड़े बड़े अर्थजाल ।
- - -:: -: - - - - - - - - - -


२.
जाना है गाँव
-----------------
(1)
कमाऊ शहर
दिल्ली, मुम्बई हो
या तेलंगाना,मेंगलुरू,
केरल, कोलकाता हो
या हरियाणा, पंजाब
प्रवासी मजदूर
हताशा में
आते हैं सड़कों पर
कोरोना से बेखौफ
न सुरक्षा के उपकरण
न बना पाते हैं दूरियां
जाना है गाँव ।
भले हजार, बारह सौ
किलोमीटर की हो दूरी
पहुंच ही जाएंगे
पंद्रह बीस दिनों में
प्रबल यह विश्वास।
वामन बनकर
नापना चाहते हैं
महानगरों से
गांव की दूरियां। 
चल पड़ते हैं
झुंड में पैदल
सिर पर गठरी
गठरी में गृहस्थी
ठेले पर परिवार
परिवार में गर्भवती पत्नी
और नन्हें मुन्ने बच्चे।
पक्का इरादा है
बंदी खुले या बढ़े
उसकी अवधि
फर्क नहीं पड़ता
जाना है गाँव ।
सौ किलोमीटर चलते चलते
चक्कर खाती बिटिया
गिरती है भू पर
हांफती पत्नी
कहती है अब
चला नहीँ जाता
फिर भी बेचैनी है
जाना है गाँव ।
महामारी से पहले
मरेंगे भूख से
अंत समय में
न तुलसी-गंगाजल होगा
न होगा अपनों का कंधा
जाना है गाँव
जिंदा या मुर्दा ।
‐------------------



( 2)
जाना है गांव
------------------
स्मृति में
सक्रिय है
चलचित्र
पीपल का छाँव
पुरखों का वास
मां बाप का आशीष
और रहने को
अधबना मकान
जाना है गांव ।
वहां होते नहीं
सिर्फ़ मजदूर
पुकारे जाते हैं
राम घनश्याम
मुरारी हनुमान
जाना है गाँव ।
वहां दद्दा-कक्का
खेत,खलिहान
पोखर, पगडंडियाँ
बचपन की स्मृतियां।
नहीं होंगे घर में बंद
न मरेंगे भूख से
उदरपूर्ति के लिए
कुछ न कुछ
हो जाएगा इंतजाम।
महानगरों में
खटते हैं दिन रात
दुरुस्त करते हैं
अर्थव्यवस्था के चूलों को
फिर भी नहीं होते भारतीय
होते हैं मजदूर
यूपी और बिहार के।
सरकारें बनती, बिगड़ती हैं
लेकिन उनके हिस्से में
नहीं आती समृद्धि
भले गुजर जाए जीवन ।
रुकेगें नहीं अब पांव
'गोदान' के गोबर का
हुआ है मोहभंग
जाना है गाँव ।
--------------------.

©शशिकला त्रिपाठी

    कवि परिचय :-{कवयित्री}

नाम : डॉ. रचना शर्मा  

एसोसिऐट प्रोफेसर, संस्कृत 

राजकीय महिला महाविद्यालय,

डी.एल.डबल्यू,वाराणसी 

इ.मेल : rachanasrachana@gmail.com. 


            बनारस में जन्मी,पली बढी और वर्तमान में बनारस के  ही राजकीय महिला महाविधालय में बतौर एसोसिऐट प्रोफेसर अध्यापन कर रही कवयित्री रचना शर्मा ने स्नातकोत्तर डिग्री करने के बाद पी-एच डी की। बनारस में जन्मी,पली बढी हैं, जाहिर है साहित्य और संस्कृति से लगाव पैदाइशी है। रचना शर्मा की कविताएं और लेख हिन्दुस्तान, कादम्बिनी,सोच विचार, गर्भनाल,क‍विताम्भरा,प्रज्ञा पथ,उत्तर प्रदेश आदि पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके है ।अभी तक उनके तीन कविता संग्रह अंतर पथ(2012), नींद के हिस्से में कुछ रात भी आने दो (2015) तथा नदी अब मौन है(2019)  प्रकाशित हो चुके है। इसके अलावा एक निबन्ध  संग्रह पुरातन संस्कृ्ति अधुनातन दृष्टि (2019) तथा काशी के पौराणिक इतिहास पर आधारित पुस्तक काशीखण्ड और काशी प्रकाशित (2010)हो चुकी है । रचना शर्मा 70 राष्ट्रीय  एवं 20 अर्न्तराष्ट्रीय स्तर की संगोष्टियों में प्रतिभाग कर चुकी है तथा उनके तीस से अधिक शोध पत्र प्रकाशित हो चुके है। रचना शर्मा को 

साहित्य श्री सम्मान 2014

मातृ शक्ति सम्मान 2015 भारतीय भाषा सम्मान 2015 शब्द साधना सम्मान 2016 (इनाल्को यूनिवर्सिटी पेरिस में प्रदत्त )

उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान द्वारा शब्द शिल्पी सम्मान 2018 से नवाजा जा चुका है ।

रचना शर्मा की रचना धर्मिता के बारे में ख्यात समीक्षक ओम निश्चल कहते है कि कवयित्री रचना शर्मा के तीन संग्रह अंतर पथ, नींद के हिस्से में कुछ रात भी आने दो तथा नदी अब मौन है प्रकाशित हो चुके है । अंतर पथ उनके सहृदय‍ चित्त की बानगी देने वाला संग्रह था तो नींद के हिस्से  में कुछ रात भी आने दो स्त्री मन की भावनाओं का ज्ञापन,जिसमें छोटी छोटी रचनाओं में प्रश्नानकुलता के साथ वे जीवन जगत के अपने अनुभवों को संवेदना की शीतल पाटी पर उकेरती है। नदी अब मौन है संग्रह में कवयित्री का मन पर्यावरण और प्रकृति के साहचर्य में अपनी कल्पना के ताने बाने बुनता है तो जीवन में सहज ही आयत्त प्रेम की कल्पनाओं में डूबता भी है । जीवन जितना कुदरत से दूर होता जा रहा है उतना ही प्रेम से रिक्त। रचना शर्मा की कविताएं जीवन को प्रेम और कुदरत के साहचर्य से संवलित करने का उपक्रम है। उनकी कविताओं में स्त्री की तमाम कोमल अभिलाषाएं है तो प्रीत की डोर में बंधने से लेकर नदियों के कूल किनारे ,प्रकृति के मंडप तले परिणय रचाने की उत्कंठा भी ।


प्रकाशित  पस्तकें 05

1. काशीखण्ड और काशी ( काशी के पौराणिक इतिहास  पर आधारित  पुस्तक )

 2. अन्तर-पथ (कविता  संग्रह  )

 3. नींद के हिस्से में कुछ रात भी आने दो (कविता संग्रह  )

4.पुरातन संस्कृति अधुनातन  दृष्टि ।( निबन्ध संग्रह )

5. नदी अब मौन है ( कविता संग्रह )


प्रकाशित शोध –पत्रों की संख्या - 30


क्रियेटिव राइटिंग ---- हिन्दुस्तान, कादम्बिनी  ,सोच-विचार,गर्भनाल,कविताम्बरा ,प्रज्ञा-पथ,

 उत्तर प्रदेश ,आदि पत्र पत्रिकाओं में कवितायेेँ एव॔ लेख  प्रकाशित ।


अंतर-राष्ट्रीय तथा राष्ट्रीय संगोष्ठीयों में प्रतिभाग और प्रस्तुत शोध पत्र ।

कुल 90 संगोष्ठियों में प्रतिभाग ।

अंतर-राष्ट्रीय संगोष्ठियों में प्रस्तुति----------------20

राष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रस्तुति ---------------------70

राज्य स्तरीय संगोष्ठी में प्रस्तुति  -----------------09

पुरस्कार एवं सम्मान  

1.तमिलनाडु हिन्दी अकादमी द्वारा सम्मान 2014.

 2. साहित्य श्री सम्मान  2014 

 3. मातृ शक्ति सम्मान  2015 

 4. भारतीय भाषा सम्मान  2015

 6. शब्द साधना सम्मान  2016 शुलभ इंटरनेनल द्वारा इनालको यूनिवर्सिटी  पेरिस, फ्रांस में प्रदत्त ।

7. शब्द शिल्पी सम्मान 2018 उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान ,लखनऊ ।


कविताएं :-

१. 

"गुनगुनाना है प्रेम गीत"


बहुत दिनों बाद 

ख़ुद में लौटी हूँ 

कर लिया है खुद को 

क्वारंटीन ।


नहीं-नहीं 

कोरोना नहीं है मुझे 

बस रहना है कुछ दिन 

ख़ुद के साथ ।


झाड़ -पोंछ कर निकालनी है 

अपनी वह पुरानी तस्वीर 

जो दब गई है कहीं 

जीवन की आपाधापी में ।


अभ्यास करना है 

मुस्कुराने का 

और अपनी मुस्कान को मिलाना है 

अपने बचपन की तस्वीर में कैद 

मुस्कान के साथ ।


खोजनी है 

पुरानी डायरी 

निकालने हैं उसमें से दोस्तों के पते 

लिखना चाहती हूँ उन्हें 

ढ़ेर सारे खत 

उल्लसित आँखों से 

उत्तर की प्रतीक्षा में 

एक बार फिर डाकिये का इंतज़ार करती

खड़ी रहना चाहती हूँ 

बरामदे में ।


मुझे 

माँ के संदूक से निकालनी है 

गीतों वाली कॉपी 

गुनगुनाने हैं 

उसमें लिखे गीत 

जिसे वह अक्सर गाया करती थीं 

बन्नो तेरी अँखियां सुरमेदानी 

बन्नो तेरा टीका लाख का रे 

बन्नो तेरी बिंदी है हज़ारी 

बन्नो तेरी अँखियां सुरमेदानी ।


इन सब के बीच 

अपनी संस्कृति की सोंधी गंध पाने के लिए सहेजना है 

माँ की उस पवित्र चूंदड़ी का स्पर्श 

ओढ़ा करती थी जिसे वह 

पूजते समय गणगौर 


सोचा है इस बार 

इन सब को अपने अंदर सहेज कर 

ख़ुद को हमेशा के लिए रखूँगी 

लॉकडाउन में ।


नहीं आना है मुझे अब 

संवेदना और सपनों को 

संक्रमित कर समाप्त कर देने वाले 

किसी वायरस के संपर्क में 

मुझे तो गुनगुनाने हैं 

मानवता को पोषित करते 

प्रेम गीत। 


२.

"कोरोना इम्पैक्ट"

कुछ अलग से बस्तियों में 

दोस्त अब रहने लगे हैं 

जो कभी हमनवा थे 

अजनबी लगने लगे हैं l


डरी हुई आंखें हैं सबकी 

मुस्कुराहटें सहमी हुई हैं 

खोई खिलखिलाहटें हैं सबकी 

मुलाकातें अजनबी हुई हैं l



मौत के डर से हैं सहमे 

चाहतों के सिलसिले 

जो गले लगती थीं हरदम 

बाहें वह अजनबी हुई हैं l


कुछ अलग से बस्तियों में 

दोस्त अब रहने लगे हैं 

जो कभी हमनवा थे 

अजनबी लगने लगे हैं ।

©रचना शर्मा




संपादक परिचय :-

नाम : गोलेन्द्र पटेल

【काशी हिंदू विश्वविद्यालय में बीए तृतीय वर्ष ,पञ्चम सत्र का छात्र{हिंदी ऑनर्स , रोल नं. : 18214HIN041}】

सम्पर्क सूत्र :-

ग्राम-खजूरगाँव , पोस्ट-साहुपुरी , जिला-चंदौली , उत्तर प्रदेश , भारत। 221009

ह्वाट्सएप नं. : 8429249326

ईमेल : corojivi@gmail.com

नोट :-

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