Friday, 6 August 2021

युवा कवि अखिल सिंह की छह कविताएँ

 


नवोदित कवि अखिल सिंह की छह कविताएँ :-

1)

सदियों से है यही कह रहा हिमगिरि का उत्तुंग शिखर,
देश और मानव हित को,रहो हमेशा तुम तत्पर।
किस हेतु गर्भगृह से अपने नदियों को जना हिमालय ने,
किस हेतु चतुर्दिश से सोचो उत्तर ही चुना हिमालय ने।
तुम उद्गम स्थल पर देखो,तनूजा शोर मचाती है,
जैसे-जैसे जल बढ़ता है वह स्वयं धीर हो जाती है।
हे मानव तुच्छ सफलता पर फिर क्यों तूने हुंकार किया?
होकर मदान्ध फिर क्यों तूने आपस में खड़ी दीवार किया?
शिखरों पर जल का अंश लिए था खड़ा हिमालय सदियों से,
नगपति को किस तरह उदधि से मिला दिया नदियों ने।
कैसे शब्दों की परिधि में प्रकृति का सार लिखा जाए,
आपस से बैर मिटाओ अब थोड़ा सा प्यार लिखा जाए ।।


2).
बिकने लगी मानवता ईमान बिक रहा है,
कैसा अजब समय है इंसान बिक रहा है।
सोने-चाँदी के बिस्तर सोने को लग रहे हैं,
बच्चा सड़क पे मुफ़लिस नादान बिक रहा है।
दौलत अमीरों के तो जूते सजा रही है,
दौलत की ख़ातिर ही तो सम्मान बिक रहा है।
दो वक्त की रोटी, भी है नहीं मयस्सर,
बेटी के ब्याहने को,मकान बिक रहा है।
मानव तेरी धरा पर क्यों न हो अँधेरा,
हाथों तिमिर के ही जब अंशुमान बिक रहा है ।।


3).
तालाब में,
मछुआरे ने दाने फेंके....
जठराग्नि से पीड़ित,
प्रज्ञास्वमिनी,
बेचारी मछलियाँ!!
पुनः फँसी ।

यही सियासत है ....


4).
हे राम अयोध्या नगरी में इक बार पुनः तुम वास करो,
इक बार पिता के कहने पर फिर चौदह वर्ष वनवास करो,
आर्यावर्त में पुत्र आज वनवास पिता को देते हैं,
इक बार पुनः पित्रज्ञा हेतु साम्राज्य छोड़ जाना होगा ।
                  हे त्रेता के वीर तुम्हे कलयुग में भी आना होगा ।।
भाई के लिए आज भाई विषधर भुजंग बन बैठा है,
मानव की करतूत देख सर्पों का भी मन बैठा है,
बेकार गया सब त्याग तुम्हारा राम अनुज ये सुन लो तुम,
इक बार पुनः आकर तुमको पर्णकुटी अपनाना होगा ।
           हे त्रेता के वीर तुम्हे कलयुग में भी आना होगा।।
हे निशिचर देव हिन्द भू पर इक बार पुनःआ जाओ तुम,
बिन तपसी वेश बनाये ही मां सीता को ले जाओ तुम,
थोथे प्रेम की सत्ता को समूल मिटाने की खातिर,
हे जनकदुलारी पुनः तुम्हे लंकानगरी जाना होगा ।
         युग-युग के आदर्श तुम्हे इक बार पुनः आना होगा।।
भारत भूमि पर नर पिशाच हर तरफ दिखाई देते हैं,
निर्धन,निर्बल और अबला के चीत्कार सुनाई देते हैं,
इस अधोगति से इस भू की रक्षा करने को रामलला,
लखनलाल के साथ-साथ सारंग धनुष लाना होगा।
          हे त्रेता के वीर तुम्हे कलयुग में भी आना होगा।
       युग-युग के आदर्श तुम्हे इक बार पुनः आना होगा ।।।


5).

मरता है अन्नदाता कैसी अजब खबर है,
देखो निठल्ला देश ये फिर भी बेखबर है।
हर रोज बीच रस्ते करते रहे तमाशा,
कानों पे जूँ न रेंगी चीखें भी बेअसर हैं।
महबूब का दामन ही सबको रास आया,
छाती फुला के खुद को कहते ये सुख़नवर हैं।
तेरी कृति का कैसा ये रंग है विधाता,
मंजिल कहाँ है इसकी?कैसी ये रहगुज़र है?
अमृत भरे जलाशय से देश जल रहा है,
संसद भी बेखबर है,सरकार बेखबर है।।


6).
मयख़ाने में डूबा शहर हमको नहीं मिला,
जाने क्यूँ वो चाहकर हमको नहीं मिला।
चर्चे हैं मुस्करा के सबके ज़ख्म भर दिए,
ऐसा कोई चारागर हमको नहीं मिला।
आंखों में मुकम्मल दरिया मिला हमें,
लेकिन क्यों पारावर हमको नहीं मिला।
हर राह जिसकी जाती हो मैक़दे तक,
ऐसा कोई सफर हमको नहीं मिला।
खुशकिस्मती वे नजरों से पिलाते हैं आज भी,
अफसोस कि ये हुनर हमको नहीं मिला।।

                  संपर्क सूत्र :-
नाम-अखिल सिंह
छात्र - काशी हिन्दू विश्वविद्यालय
पता - ग्राम-इमली महुआ,पो-रामापुर, जिला-आज़मगढ़,पिन-223225
पिता का नाम-मनोज कुमार सिंह
माता का नाम-रीता सिंह
मो. 8052657645

(वर्तमान पता-प्लॉट no 86(ओंकारनाथ मिश्र),गंगा प्रदूषण रोड (निकट-हेरिटेज हाउसिंग)भगवानपुर लंका वाराणसी ..
Pin-221005)

                                                               संपादक

नाम : गोलेन्द्र पटेल

{युवा कवि व लेखक : साहित्यिक एवं सांस्कृतिक चिंतक}

व्हाट्सएप नं. : 8429249326

ईमेल : corojivi@gmail.com


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#अखिल सिंह  #golendrapatel


1 comment:

  1. बहुत बहुत धन्यवाद गोलेन्द्र जी 🙏🙏🙏🙏

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