Monday, 16 August 2021

बाढ़ में बनारस और श्रीप्रकाश शुक्ल : गोलेन्द्र पटेल || Golendra Patel

 बाढ़ और श्रीप्रकाश शुक्ल पर केंद्रित युवा कवि गोलेन्द्र पटेल की चार कविताएँ :-

                                  {तस्वीर साभार : अमन आलम , 
हिंदुस्तान : पत्रकार}
                           (अपने काव्यगुरु श्रीप्रकाश शुक्ल को समर्पित चार कविताएँ)

1.
इस गोधूलि बेला में //

गंगा से बीहड़ गुरु के उर में उठ रही है तरंग 
उलझन, द्वंद्व और रहस्य तीनों बैठे हैं घाट पर  
काशी के कोरोजयी कवि के संग

इस पार
मनोभूमि से मणिभूमि तक फैल गयी है गंगधार
सांत्वना का सार सिद्ध हुआ निराधार
छिन्न भिन्न हुआ सुख का आधार
सब आश्वासन हुआ बेकार
जनता पड़ी  है लाचार
उधार का आटा सान रही है भूख
दुख! दुख! दु...ख...दु...ख
बूढ़ी आँखें उन सीढ़ियों पर गयी हैं झुक
जो डूब चुकी हैं आँसुओं के बाढ़ में
रुक रुक रु...क...रु...क
रो रही है केदारनाथ सिंह की आत्मा

मानसरोवर पर है रोष की रदी
आह! झोपड़ी उजाड़कर 
खुश है नदी?

लाशों की गंध गोधूलि बेला में
मणिकर्णिका से आयी है
पक्का महाल में महसूस कर रहे हैं श्रीप्रकाश शुक्ल
यानी मेरे गुरु गा रहे हैं वह गान
जो कभी तुलसी, तो कभी निराला की रही है तान

नूतन धुन और सरसराहटी स्वर में
यह तान सुन रहा है जहान
उनकी कविताओं में

चिहुँक रही है शोक में डूबी हुई सोनचिरई
और बारिश में भींगी उसकी सखी सिरोइल
समय के शीत से काँप रही है
भाँप रही है कि
धर्म की नगरी में धर्मराज का भिक्षुक रूप
आखिर क्यों है?

रचना : 13/08/2021

                                              {तस्वीर : गुरुवर श्रीप्रकाश शुक्ल}

2.

प्रस्ताव //

अगस्त के महीने में हिमालय ने
अपनी बेटी नदी को 
अपना वर चुनने को कहा 
तो वह बहुत ख़ुश हुई
इतनी ख़ुश कि
उसकी हर्षित हिलोरें हवा से हँसी ठिठोली करती 
पहुँच ही गईं  सागर के पास!

सागर ने प्रस्ताव रखा कि
मैं मई में करूँगा शादी
क्या तुम आओगी?

नदी चुप है आज तक!

रचना-14/08/2021

                                         {कुएँ से पानी खींच रहे हैं गोलेन्द्र पटेल}
3.

कुएं का दुःख //

बरसात में सरोवर ख़ुद को समुद्र समझता है
गड़ही अपने को गंगा
पर बेचारा कुआँ दुखी है
कि उसके जलीय ज़हर को क्यों पी रही है जनता!

मुझे मेंड़ पर याद आते हैं मेरे मार्गदशक
और उनके  लिखे हुए  वाक्य
जो वे लिखे हैं 
मचान पर बैठकर
मेरे लिए
रो रोकर!

रचना-14/08/2021

4.

बाढ़ में बनारस //

नदियाँ नाराज हैं उन नगरों से
जिनके सीवरों का झाग 
उन्हें चिता की आग की तरह झौंस रहा है
जैसे वे हैं कोई लाश

खास बात यह है कि किनारों पर
अवैध कब्जा जमाये विकास कर रही है सत्ता
जहां कंपनियाँ उसमें फेंक रही हैं 
कूड़ा कचरा 
और लत्ता...

हताश जनता देख रही है कि
उसके जल और चीनी से बना रस
अब हो चुका है जहर
ठीक वैसे ही है
जैसे बाढ़ में है अपना प्यारा शहर-
बनारस

पर  विकास के कचरे के विरुद्ध 
पर पीड़ा के पहरेदार 
अभी भी खड़े हैं कुछ लोग
कवि ,कोविद और हल योग

दीन-दुखियों के साथ खड़ी है हिंदी की कविता भी 
जहां दोहरी विस्थापित जिंदगी की गीता
लिख रहा हूँ मैं
अपने गुरु की आँखों में देखकर

रो रोकर!

रचना : 16-08-2021

                                                            {संपादक : गोलेन्द्र पटेल}

नाम : गोलेन्द्र पटेल

{युवा कवि व लेखक : साहित्यिक एवं सांस्कृतिक चिंतक}

व्हाट्सएप नं. : 8429249326

ईमेल : corojivi@gmail.com



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