शिक्षा को समाज की पहली आवश्यकता मानते थे राष्ट्रकवि सुब्रह्मण्यम भारती- प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल
तमिल के प्रख्यात कवि, समाज सुधारक एवं पत्रकार सुब्रह्मण्यम भारती की स्मृति में अंतरराष्ट्रीय काशी घाटवॉक विश्वविद्यालय के तत्वावधान में हनुमान घाट पर ‘प्रतिमा माल्यार्पण सह परिचर्चा' कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अवसर पर सुब्रह्मयम भारती की मूर्ति पर माल्यार्पण के बाद हनुमान घाट स्थित कवि के बनारस प्रवास के दिनों के घर जाकर परिवार से मुलाकात की गई तथा महाकवि की स्मृतियों को संजोते हुए परिवार को सम्मानित किया गया।इस अवसर पर युवा कवि गोलेन्द्र पटेल को "सुब्रह्मण्य भारती युवा कविता सम्मान'' प्रदान किया गया।
चेतसिंह किला परिसर में आयोजित परिचर्चा के क्रम में स्वागत एवं बीज वक्तव्य देते हुए काशी के ख्यात न्यूरोलॉजिस्ट एवं अंतरराष्ट्रीय काशी घाट वॉक विश्विद्यालय के मानद कुलपति प्रो. विजायनाथ मिश्र ने कहा कि सुब्रह्मण्यम भारती की कविताएं आम आदमी की पीड़ा का बयान हैं। महाकवि तुलसीदास की रचनाओं में भी आम आदमी का कष्ट दिखाई पड़ता है। प्रो. विजयनाथ मिश्र ने कार्यक्रम के माध्यम से हनुमान घाट स्थित भारती जी के घर को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की मांग उठाई।
अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए प्रसिद्ध कवि एवं आलोचक, अंतरराष्ट्रीय काशी घाट वॉक विश्वविद्यालय के मानद डीन एवं काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर श्रीप्रकाश शुक्ल ने कहा कि सुब्रह्मण्यम भारती के बहाने हिंदी और तमिल के बीच संस्कृतिक सेतु की चर्चा की जा सकती है। भारती जी 1905 के कांग्रेस अधिवेशन में बनारस आए थे। बाद में 1906 के कलकत्ता अधिवेशन में वे सिस्टर निवेदिता से मिले जहां से उन्हें स्त्री शिक्षा के लिए काम करने की प्रेरणा मिली। भारती जी का मानना था कि एक उन्नत समाज में शिक्षा होनी चाहिए, शिक्षा के लिए स्कूल चाहिए, अखबार और उद्यमी होने चाहिए। सन् 1919 में गांधी से मुलाकात कर उन्होंने हिन्दी भाषा का जोरदार ढंग से समर्थन किया था। वे हमेशा दलितों, उपेक्षितों, स्त्री शिक्षा पर जोर देते थे। महाकवि सुब्रह्मण्यम भारती ने विकसित समाज के लक्ष्य प्राप्ति के लिए तीन बातें आवश्यक मानी इनमें पहली बात शिक्षा है, दूसरी बात शिक्षा और तीसरी बात भी शिक्षा है। वे भारतीय राष्ट्रीय काव्यधारा में दक्षिण भारत के उतने ही बड़े कवि जितने उत्तर भारत में मैथिलीशरण गुप्त एवं रामधारी सिंह दिनकर।
विशिष्ठ अतिथि, बीएचयू के तमिल विभाग में सहायक प्रोफेसर डॉ. जगदीशन टी ने महाकवि को याद करते हुए कहा कि भारती जी पूरी दुनिया को अपना मानते थे। गरीबों और लाचार की मदद करना वे धर्म समझते थे। उनके विचार न सिर्फ तमिलनाडु बल्कि समस्त भारत के विचार हैं, जिसे बनारस में उन्होंने ग्रहण किया था। आज सुब्रह्मण्यम भारती के विचारों को सामने लाए जाने की जरूरत है।
कार्यक्रम के आरंभ में हनुमान घाट पर स्थित सुब्रह्मण्यम भारती की प्रतिमा का माल्यार्पण किया गया। तत्पश्चात युवा कवि गोलेन्द्र पटेल को पहले 'सुब्रह्मण्यम भारती युवा कविता सम्मान 2021' से सम्मानित किया गया जिसमें इन्हें प्रशस्ति पत्र,सम्मान राशि व अंगवस्त्रम भेंट किया गया।उनकी कविताओं पर वक्तव्य देते हुए बीएचयू के हिंदी विभाग में सहायक आचार्य और युवा आलोचक डॉ विंध्याचल यादव ने कहा कि
गोलेन्द्र हिंदी कविता में एक विस्फोट की तरह हैं।वे किसानी व श्रमिक चेतना के कवि हैं।उनकी परंपरा में किसान परंपरा दिखाई देती है जहां लोक के प्रति गहरी संसक्ति है।उन्होंने अपनी भाषा अर्जित की है,यह सुखद है।
इस अवसर पर गोलेन्द्र ने 'उस पार','मल्लू मल्लाह' व 'होनी का होना' नामक कविताओं का पाठ किया।
कार्यक्रम के अंत में संगीत की प्रस्तुति भी हुई जिसमें बीएचयू के कृष्ण कुमार तिवारी ने गणेश वंदना के साथ सुब्रह्मण्यम भारती के जीवन पर आधारित गीत की प्रस्तुति की।तबले पर काशी विद्यापीठ के सुमंत चौधरी ने संगत दी।
कार्यक्रम का संचालन शोध छात्र उदय पाल ने किया।धन्यवाद लोक कलाकार अष्टभुजा मिश्र ने किया।इस अवसर पर अष्टभुजा मिश्र,उदय प्रताप सिंह,अंकित,कविता गोंड,पंकज पटेल,शिव विश्वकर्मा, आस्था वर्मा,जूही त्रिपाठी और कई शोधार्थी ,कलाकार व घाटवाकर उपस्थित थे।
रपट साभार : जूही त्रिपाठी (शोधार्थी, बीएचयू)
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