Tuesday, 18 April 2023

आलोचक कवि बन रहे हैं / वह कवि होना चाहता है / त्रयी की चाह : गोलेन्द्र पटेल

 

आलोचक कवि बन रहे हैं


अब जब 'खोजो कम खोदो जादा' 

हर विमर्श का नारा है

तब आलोचना, समालोचना, समीक्षा, टीका, टिप्पणी,

नुक्ताचीनी, छिद्रान्वेषण और भाष्य

क्रिटिसिज़म की क्यारी में कविता को कहानी बता रहे हैं

और निबंध को नाटक...

खैर, बिना पैर के संबुद्ध संपादक व प्रबुद्ध पाठक ख़ुश हैं 

कि कोरोना ने आलोचक को कवि बना दिया


किसी भी भाषा में कवि होना, विशेष होना है

काव्य-हेतु पर बात करते हुए 

दण्डी जैसे आचार्यों ने अभ्यास पर ज़ोर दिया है

शायद इसीलिए अब प्रतिभा से अधिक अभ्यास के

कवि जन्म ले रहे हैं

और आलोचक कवि बन रहे हैं

कवि तो खैर आलोचक होता ही है

ऐसे में सवाल यह है कि आज की आलोचना की

स्थिति क्या है?


क्या आलोचक होना 

व्युत्पत्ति के व्याकरण को समझना है?

या सिर्फ़ यश की चाह में कलम का

रोना है?


या उत्तर-कोरोना में करुणा लोक का श्लोक बन रही है

और उनके भीतर वाया वाल्मीकि का उदय हो रहा है

बात जो भी हो, 

उनकी आलोचना पर उनकी कविता हँस रही है

और मुझ जैसे अबोध शोधार्थी भी!


वे शब्द के पथिक हैं

उनके पास अनुभव अधिक है

उनकी उम्र उनकी रचना में बोलती है

उनके विचारों को खोलती है

क्या सच में वे नवोदितों में शामिल होना चाहते हैं?

या फिर ढंग का आलोचक न बन पाने का दुःख है उन्हें

अपनी उम्र के कवि को देखकर


उनके मन की पीड़ा 

उनकी रचना में एक टीस की तरह मौजूद है

अधेड़ या वरिष्ठ होकर कवि होना

समय का सृजनात्मक सूद है


उनसे अन्य आलोचक प्रेरणा ले सकते हैं

कि कवि होना, आलोचक होना है

किन्तु आलोचक होना, कवि होना नहीं है

कविता लिखने से कोई कवि थोड़े होता है

कविता तो पुरखे आलोचक भी लिखे हैं

तो क्या वे कवि हैं?

वह कवि होना चाहता है


लोचन तो उसके पास है ही नहीं

उसकी आलोचना से 'लुच्' धातु गायब है

वह 'लुच्चा' तो नहीं,

लेकिन उसका नायब है

क्योंकि 'लुच' से 'लुच्चा' बना है न?


आजकल वह देखता कम, 

दिखता ज़्यादा है

शायद भाषा में माँदा है!


उस पर कवि बनने का भूत सवार है

अब वह शब्द के अर्थ को उछालने की

कला सीख रहा है और

पद्य की जगह गद्य लिख रहा है


उसे याद है- 'वाक्यं रसात्मकं काव्यम्।'

वह वाक्यों का कवि होना चाहता है

दूसरे कवियों को पढ़कर!


(©गोलेन्द्र पटेल  / 18-04-2023)

त्रयी की चाह


5 अगस्त 2021 के दिन

कवि होता हुआ आलोचक ने फोन पर मुझसे कहा—

मुझे ऐसी संस्था का युवा प्रतिनिधि के रूप में चुना गया है

जिसमें साहित्य अकादमी पुरस्कार से पुरस्कृत 

चार कवि हैं और

दो मेरे कक्षा अध्यापक हैं यानी प्रोफ़ेसर

फिर मुझे बधाई और शुभकामनाएँ दीं!


मैंने बातचीत के क्रम में पूछा कि आप तो आलोचक हैं न?

अभी पाँच-छह महीने से आपकी कविताएँ आ रही हैं

तो मैं आपको वरिष्ठों की लिस्ट में रखूँ, 

या फिर युवाओं की लिस्ट में,

या फिर नवोदितों की लिस्ट में, किसमें रखूँ?

क्योंकि आजकल कवि, आलोचक व आचार्य की त्रयी

पाने की होड़ लगी है

आप दो तो थे ही! बस कवि की कमी थी

उसने भी अभ्यास के आगे घुटने टेक दी


आपकी कविता अच्छी न हो, 

फिर भी आप अच्छे कवि मान लिये जाएंगे


ऊपर से आप इस संस्था के सचिव हैं

क्या आलोचना में आपका पाँव नहीं जमा सर?


खैर, मैं आपकी संस्था से जुड़ नहीं सकता

क्योंकि मेरी क्या औकात है कि इतने बड़े रचनाकारों को

कुछ सलाह दे सकूँ या कि कह सकूँ कि आपने गलत निर्णय लिया है!


सर, मुझे पूँछ पकड़ कर तैरने की आदत नहीं है

मैं स्वयं एक मल्लाह मछुआरा हूँ

नदी-सागर की भाषा में मनुष्यता का मज़दूर हूँ

मुझे बाढ़ से डर नहीं है भले ही मेरे पास

घर नहीं है, मैं गोधूलि में लौटता हूँ

जैसे लौटते हैं चौपाये या पंक्षिगण


मैं लौटता हूँ अतीत से वर्तमान में

और देखता हूँ खुले आसमान में अपने हिस्से का चाँद!


(©गोलेन्द्र पटेल  / 19-04-2023)

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