हिन्दी हिन्दुस्तान की माँ है
हिन्दी दिवस पर
जो हिन्दी-हिन्दी चोकर रहे हैं
वे अँग्रेज़ी में हस्ताक्षर करते हैं
उन्हीं की देने है कि हिंदी
अब भ्रम और भ्रष्ट के बीच की भाषा हो चुकी है
और
यह स्थिति तब तक बनी रहेगी
जब तक कि हिन्दी बोलने वाले अँग्रेज़ी का अनुवाद बोलना छोड़ न देंगे
जब तक कि वे लोकधर्मी न होंगे
जब तक कि उनकी हिन्दी लोकोन्मुखी न होगी।
मैं हिन्दी का शिक्षार्थी हूँ
मैं जब भी अपना अंकपत्र देखता हूँ
मुझे लगता है कि मैं हिन्दी में हाशिये पर हूँ
हिन्दी दिवस पर
जो हिन्दीजन हिन्दी के हित की बात करते हैं
उनके बारे में सोचते हुए
मेरे लंठ कंठ से यह फूटता है
कि
अभी भी हिन्दी के नमक चाटने वाले अँग्रेज़ी के गुलाम हैं
उनकी नसों में लहू नहीं, लालच है
उन्हें यह सीख कौन दे
कि लोकोन्मुखी भाषाएँ स्वार्थ को नष्ट करती हैं!
वह हिन्दी ही है जिसके पास एक लिए
अनेक शब्द हैं
वह हिन्दी ही है
जिसके शब्द उलटने पर भी
सार्थक होते हैं
मसलन ‘वाह’ से ‘हवा’
मसलन ‘वायु’ से ‘युवा’
मसलन ‘दीन’ से ‘नदी’
मेरी हिन्दी हृदय की भाषा है
मैं अपने अनुवादकों से कहता हूँ
कि हृदय के संवाद अनुवाद नहीं होते!
मेरे लिए
हिन्दी में लिखना
हिन्दी को सार्वजनिक बनाते जाना है
हिन्दी सर्जक, पाठक और श्रोता का साझा सच है
बहरहाल, मुझे विश्वास है
कि हिन्दी मेरी रीढ़ की हड्डी को मज़बूत बनाये रखेगी
मैंने महसूस किया है कि हिन्दी भाषा का भाषा में गुरु है
हिन्दी का होना मेरे होने की गारंटी है
क्योंकि हिन्दी हिंसा की हिंसा करती है
हिन्दी मेरी संवेदना की परतें उधेड़ती है
जिससे मेरा जीना अधिक जीवंत होता है
शमशान वह जगह है,
जहाँ सारी भाषाएँ मौन हो जाती हैं
पर, हिन्दी में वह शक्ति है कि उसका मौन भी अभिव्यंजना है
इस कविता में हिन्दी के अनेक संस्मरण हैं
हिन्दी मानवता की माँ है
हिंदी हिन्दुस्तान की माँ है!!
(©गोलेन्द्र पटेल / 14-09-2023)
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