Friday, 27 March 2020





जब मैं आँखों को बंद करता हूँ
तो सृष्टि का अद्भुत अजूबा दिखाई देता है
जिसे देख रहे हैं : *गंगातट* में ज्ञानेन्द्रपति जी
तथा *रेत में आकृतियाँ* में श्रीप्रकाश शुक्ल जी
केदारनाथ सिंह का काशी जनपद दृश्य दर्शन को
कविता-भविता-सविता-सरिता-सिता-सीता से
वेद-वेदांत-वेदांग-पुराण-महाभारत-गीता से
रामायण और रामचरितमानस परमपिता से
जिस प्रकार संबंध रखते हैं ठीक उसी प्रकार
मैं भी काव्याचार्यों के काशी जनपद-जन को
काव्यादर्श मानकर कवि जीवन में जीता हूँ।।
महादेव के नयन नीर नदी वरुणा-अस्सी-गंगा
हम मान सकते हैं क्योंकि तीनों में त्रिनेत्र-जल
बहा था माता पार्वती के अभिनन्दन पर्व पर
माँ ने गंगा को बहन मानकर उसमें केश धोई
वरुणा-अस्सी की हाल देख आज पुनः रोई
इस रुदन दर्द ध्वनि को सुन रहा है घाट वाक्
और कुछ युवा कवि जो बनारस की भूमि पर
रच रहे हैं : कबीर-तुलसी-रैदास की आँक
जो वर्तमान में वाराणसी वाणी हैं वक्त के मार
से हार ,वटवृक्ष-पुल आदि के नीचे बसे बीमार-
जन के महामर्ज़ का कागज़ पर रेखांकन हैं
काशी का कविता में वास्तविक चित्रांकन हैं
उपयुर्क्त पंक्ति के कवियों द्वारा : गोलेन्द्र!
रचना : ०७-०१-२०२०
कवि  : गोलेन्द्र पटेल
जन्म : ०५-०८-१९९९

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