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अर्चनीयात्मा आदरणीय आचार्य वरिष्ठ कवि आलोचक श्रीप्रकाश शुक्ल【मेरे काव्यगुरु】 आज शाम 5 बजे...LIVE ON Social Media : FACEBOOK , YOUTUBE , INSTAGRAM , TWITTER , Whatsapp etc.आप सभी के लिए यह सुनहरा अवसर है "कविता : दृष्टि एवं पाठ" को समझने के लिए।इस अनमोल ख़ज़ाने {साहित्य निधि} को लेना ना भूलें।समय ५ बजे।।....
Shri Prakash Shukla हमारे समय के सुपरिचित कवि हैं | SHODH RANG【 बाबा साहब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय लखनऊ के फेसबुक पेज https://www.facebook.com/shodhrangbbau/】पर 2 जुलाई, शाम 5 बजे वे कविता सम्बन्धी अपनी दृष्टि का बयान करेगें, साथ ही पाठ भी करेगें |
आजादी के बाद हिंदी कविता में झमेले बहुतेरे हैं | एक खास तरह की विचारधारात्मक प्रवृत्ति का ग्रहण जैसे अब तक उस पर लगा हुआ है | भावक,पाठक दूर जा रहे कविता से | उम्मीद है कि इस ग्रहण से निराकरण का कोई मार्ग वे सुझायेगें | क्योंकि बाएं रहकर कविता रचने, आलोचने की इतिश्री तो बहुतेरे कर ही रहे हैं |
-जगन्नाथ दुबे ,Kumar Mangalam ,डॉक्टर सर्वेश्वर सिंह , Golendra Gyan ,etc.
आजादी के बाद हिंदी कविता में झमेले बहुतेरे हैं | एक खास तरह की विचारधारात्मक प्रवृत्ति का ग्रहण जैसे अब तक उस पर लगा हुआ है | भावक,पाठक दूर जा रहे कविता से | उम्मीद है कि इस ग्रहण से निराकरण का कोई मार्ग वे सुझायेगें | क्योंकि बाएं रहकर कविता रचने, आलोचने की इतिश्री तो बहुतेरे कर ही रहे हैं |
-जगन्नाथ दुबे ,Kumar Mangalam ,डॉक्टर सर्वेश्वर सिंह , Golendra Gyan ,etc.
"कविता : दृष्टि एवं पाठ"
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-श्रीप्रकाश शुक्ल
कवि एवं आचार्य
हिंदी विभाग, बीएचयू, वाराणसी
02 जुलाई 2020, शाम 5 बजे
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-श्रीप्रकाश शुक्ल
कवि एवं आचार्य
हिंदी विभाग, बीएचयू, वाराणसी
02 जुलाई 2020, शाम 5 बजे
नब्बे के दशक के महत्वपूर्ण कवि और आलोचक
श्रीप्रकाश शुक्ल इलाहाबाद विश्विद्यालय से एम. ए(हिन्दी) व पीएचडी हैं. उन्होंने हिन्दी कविता की आंतरिक लय के दायरे में अपनी कविता में लोकधर्मी परंपरा का विस्तार किया है जहां लोक रूढ़ न होकर एक गतिशील अवधारणा है।एक कवि के रूप में वे हिंदी कविता की प्रतिरोधी परंपरा के महत्वपूर्ण कवि हैं।शास्त्र से लेकर लोक तक में उनकी गहरी रुचि है और उनकी कई कविताओं में अनेक देशज शब्द प्रयुक्त होकर नया अर्थ प्रकट करते हैं।अभी अभी 'वागर्थ' जुलाई,2020 के अंक में प्रकाशित अपने एक साक्षात्कार में वे कहते हैं कि 'कवि कविता की संसद का स्थायी प्रतिपक्ष होता है'।
श्रीप्रकाश शुक्ल इलाहाबाद विश्विद्यालय से एम. ए(हिन्दी) व पीएचडी हैं. उन्होंने हिन्दी कविता की आंतरिक लय के दायरे में अपनी कविता में लोकधर्मी परंपरा का विस्तार किया है जहां लोक रूढ़ न होकर एक गतिशील अवधारणा है।एक कवि के रूप में वे हिंदी कविता की प्रतिरोधी परंपरा के महत्वपूर्ण कवि हैं।शास्त्र से लेकर लोक तक में उनकी गहरी रुचि है और उनकी कई कविताओं में अनेक देशज शब्द प्रयुक्त होकर नया अर्थ प्रकट करते हैं।अभी अभी 'वागर्थ' जुलाई,2020 के अंक में प्रकाशित अपने एक साक्षात्कार में वे कहते हैं कि 'कवि कविता की संसद का स्थायी प्रतिपक्ष होता है'।
उनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं---
कविता संग्रह:---
”अपनी तरह के लोग”,”जहाँ सब शहर नहीं होता” ,”बोली बात” ,”रेत में आकृतियाँ”, ”ओरहन और अन्य कवितायेँ ”. "कवि ने कहा" .
'क्षीरसागर में नींद' .
”अपनी तरह के लोग”,”जहाँ सब शहर नहीं होता” ,”बोली बात” ,”रेत में आकृतियाँ”, ”ओरहन और अन्य कवितायेँ ”. "कवि ने कहा" .
'क्षीरसागर में नींद' .
*आलोचना:----
”साठोत्तरी हिंदी कविता में लोक सौन्दर्य “ और “नामवर की धरती “ .
”साठोत्तरी हिंदी कविता में लोक सौन्दर्य “ और “नामवर की धरती “ .
*संपादन:---“परिचय “ नाम से एक साहित्यिक पत्रिका का संपादन.
*पुरस्कार:--- कविता के लिए “बोली बात ” संग्रह पर वर्तमान साहित्य का मलखानसिंह सिसोदिया पुरस्कार , “रेत में आकृतियाँ” नामक कविता संग्रह पर उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान का नरेश मेहता कविता पुरस्कार,. "ओरहन और अन्य कवितायेँ" नामक कविता संग्रह के लिए उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का ‘विजय देव नारायण साही कविता पुरस्कार’ ।
---*वर्तमान में बी०एच०यू० के हिंदी विभाग में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं तथा भोजपुरी अध्ययन केंद्र,बी. एच. यू. के समन्वयक(Coordinator) हैं।
नोट : यहाँ भी सुन सकते हैं...निम्न लिंक http://www.youtube.com/golendragyan/
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दिव्यांग सेवक : युवा कवि गोलेन्द्र पटेल , बीएचयू
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