नीरज कुमार मिश्र
{युवा कवि व आलोचक}
नीरज कुमार मिश्र की कुछ कविताएँ :-
1.
वायरस
"पनपते हैं वायरस
प्रकृति और मानव मस्तिष्क में
वर्षों से
प्रकृति के ये वायरस सदियों में
आते हैं एक बार
और भरभरा जाती हैं
विकास की इमारतें
चरमरा जाती हैं अर्थव्यवस्थाएं
धरे के धरे रह जाते हैं
अत्याधुनिक हथियार
जिन्हें युद्ध की विभीषिका में
जलते हुए विश्व ने
आपसी होड़ में विकसित किये थे
उन्होंने नहीं विकसित किये
चिकित्सा के उन्नत साधन
नहीं खड़े किये ऐसे अस्पताल
जो लड़ सकें इन वायरसों से
उन्होंने परमाणु बम बनाये
पर नहीं बनाये बहुत सारे वेंटिलेटर
जो टूटती साँसें थाम सकें
न उन्होंने बनाये ऐसे हथियार
जो मार सकें इन मृत्यु बीजों को
विश्व की विकसित ताकतों को
चिढ़ा रहे हैं ये वायरस
हमें आगाह करते हैं
हमसे भी ज्यादा खतरनाक है
मानव- मस्तिष्क में
पनप रहा वायरस
जो किसी दवा से नहीं मरता।"
2.
कोई हाथ भी न मिलाएगा,
क्यों गले मिलो तपाक से,
ये नए कोरोना का शहर है
एक मीटर के फ़ासले से मिला करो।
रखो तन और मन की सफाई,
घर से निकलते हुए
मुँह में मास्क कसा करो।।
मत रखो चेहरे पे हाथ बार बार
अपने हाथ पर ही रखो ध्यान
हर जगह हर बार उसे धुला करो।
न आयेगा फिर कोरोना पास कभी
इसकी हो रही जाँच में
सभी खुलकर मदद किया करो।।
न हो निकलना बहुत जरूरी
अपने काम घर में रहकर किया करो।
घर में रहना ही इससे बड़ा बचाव है
ये मंत्र सभी को दिया करो।।
6.
रास्ते
"रास्तों पर चलने वाले
संसद में पहुँचते ही
भूल जाते हैं रास्तों पर
चलने वालों की पीड़ा
कौन चाहता है रास्तों पर
मीलों मील चलना
अपने देश ने जिनके
पेट पर जड़ दिए हैं
सुरक्षा के नाम पर ताले
ऐसे मुश्किल समय में
साथ नहीं देता कोई अपना
साथ देते हैं वो रास्ते
जिन पर सपनों के पंख लगा
उड़ आये थे हम
उम्मीदों का झोला टाँगे
कितनी दूर इस शहर में
ये वही शहर है
जिसकी विकसित इमारत
की एक एक ईंट
हमने उठाई है
अपने वृषभ कंधों पर
आज उसी विकसित शहर ने
हमें घरों से निकाल
भूख और बेबसी के चौराहे पर छोड़ दिया
ऐसे संकट के समय में
रास्ते थाम लेते हैं हाथ
रास्ते वही होते हैं
बस बदल लेते हैं
अपनी दिशाएँ
मुश्किल समय में।"
7.
यही तो जीवन है
" हर तरफ छाई है खामोशी
बाग में खाली पड़े झूले
बच्चों के इंतजार में
खुद ही झूल रहे हैं
अपने दुःखों की रस्सी में
बाग के बीचों बीच रक्खा
सकोरा
पानी के इंतज़ार में
अंदर ही अंदर सूख रहा है
एक कवि गाहेबगाहे
उसमें डाल जाता है पानी
बाग की नीरसता को देख
सकोरा
अपने आँसुओं को
छिपाता है
अपने ही पानी में
उसके दुःख से दुःखी
पेड़ से झड़ने को
बेताब हैं हरी पत्तियाँ
पीली पत्तियों को गिरते देख
वे भी झड़ जाती हैं उसी में
उसके दुःख में शामिल होने
पत्तियाँ जानती हैं
पेड़ों से बिछड़ने का दर्द
दूसरों के दुःख को
अपना दुःख समझना
उन्होंने सीखा है पेड़ से
पेड़ लड़ता है मुश्किल समय से
और देता है हमें खुशियाँ
सकोरा फिर भी उदास है
कुछ दिनों से
नहीं आई श्यामा चिरइया
न आई गबद्दो गिलहरी
जो खेलते थे पकड़म पकड़ाई
उसके चारों ओर
और वह मचल जाता था
एक बच्चे की तरह
बाग में खिले फूल
सूख गए हैं
उड़ गए हैं उनके रंग
जिनमें बैठ
मधुमक्खियों गपसप करती हुईं
लेती थीं जीवन के लिए
रंग,गंध और रस
जीवन रस लिए
औरों को सुखी बनाने
की चाह में
निकली ये मधुमक्खियाँ
थक-हार बैठ गई हैं
सकोरे के ऊपर
उसके उदास पानी को देख
उड़ेल दिए उन्होंने
अपने जीवन के लिए
सहेजे सारे रंग और रस
सकोरा इस उदारता से
अंदर तक भीग गया
और मुस्कराकर बोला
यही तो जीवन है।"
8.
फूल का एकांत
" एकांत ने घरों में
डाल लिया है डेरा
कबूतर बालकनी में बैठ
झाँकते हैं घरों के अंदर
घरों के अंदर पसरा सन्नाटा
उन्हें बेचैन करता है
और वो उड़ जाते हैं कहीं दूर
बाग के कोने में खड़ा फूल
बगल से गुजरती
स्कूल जाती उस लड़की
का रास्ता देख रहा है
जो साझा करती थी
हर रोज़ उससे
अपना सुख-दुःख
उसके कोमल छुवन से
झूम जाता था उसका
अंतर्मन
और खिल जाते थे अनंत
फूल वहाँ
आज उसके पास तितलियाँ
भी नहीं आतीं रस लेने
एकांत में खड़ा फूल
आज बहुत उदास है
उदास है वहाँ की हवा
जिसमें जहर घुल गया है
अनायास
लोग उसे ही कोस रहें
कि इसी ने फैलाया है
उस वायरस को सब जगह
जिसने बढ़ा दी हैं दूरियाँ
आपसी संबंधों के बीच
हवा जाना चाहती है
सृष्टि के किसी दूर
एकांत कोने में
उस फूल को भी
ले जाना चाहती
अपने साथ
जो उस बाग के एकांत में
खड़ा है चुपचाप। "
9.
पलाश
"केन की कगार पर
उसके कर्मठ पानी को निहारता
उन्नत सर किये खड़ा है पलाश
अपनी बाहें फैलाये
पक्षियों को न्यौतता
कि आओ अपना घरौंदा बनाओ
मुझ में बस जाओ
पलाश की जड़ें
बुंदेलखण्ड की भूमि में धसीं
पी रही हैं केन का ऊर्वर पानी
जिससे संचित हुआ ये पलाश
उगल रहा है लाल-लाल फूल
जो क्रांति के गीत गाते
झूल रहे हैं
बसंती हवा में
विषम-परिस्थिति में भी
अपने अस्त्तित्व की लड़ाई
लड़ता हुआ ये पलाश
हमें इस विकट समय में
लड़ने का साहस देता है।"
नाम : गोलेन्द्र पटेल
【काशी हिंदू विश्वविद्यालय में बीए तृतीय वर्ष का छात्र {हिंदी ऑनर्स 】
सम्पर्क सूत्र :-
ग्राम-खजूरगाँव , पोस्ट-साहुपुरी , जिला-चंदौली , उत्तर प्रदेश , भारत। 221009
ह्वाट्सएप नं. : 8429249326
ईमेल : corojivi@gmail.com
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