नए वर्ष पर केंद्रित कविताओं का संकलन : नीरज कुमार मिश्र
(१). नववर्ष - सोहनलाल द्विवेदी
"स्वागत! जीवन के नवल वर्ष
आओ, नूतन-निर्माण लिये,
इस महा जागरण के युग में
जाग्रत जीवन अभिमान लिये;
दीनों दुखियों का त्राण लिये
मानवता का कल्याण लिये,
स्वागत! नवयुग के नवल वर्ष!
तुम आओ स्वर्ण-विहान लिये।
संसार क्षितिज पर महाक्रान्ति
की ज्वालाओं के गान लिये,
मेरे भारत के लिये नई
प्रेरणा नया उत्थान लिये;
मुर्दा शरीर में नये प्राण
प्राणों में नव अरमान लिये,
स्वागत!स्वागत! मेरे आगत!
तुम आओ स्वर्ण विहान लिये!
युग-युग तक पिसते आये
कृषकों को जीवन-दान लिये,
कंकाल-मात्र रह गये शेष
मजदूरों का नव त्राण लिये;
श्रमिकों का नव संगठन लिये,
पददलितों का उत्थान लिये;
स्वागत!स्वागत! मेरे आगत!
तुम आओ स्वर्ण विहान लिये!
सत्ताधारी साम्राज्यवाद के
मद का चिर-अवसान लिये,
दुर्बल को अभयदान,
भूखे को रोटी का सामान लिये;
जीवन में नूतन क्रान्ति
क्रान्ति में नये-नये बलिदान लिये,
स्वागत! जीवन के नवल वर्ष
आओ, तुम स्वर्ण विहान लिये!"
(२).ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं-रामधारीसिंह दिनकर
"ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं
है अपनी ये तो रीत नहीं
है अपना ये व्यवहार नहीं
धरा ठिठुरती है सर्दी से
आकाश में कोहरा गहरा है
बाग़ बाज़ारों की सरहद पर
सर्द हवा का पहरा है
सूना है प्रकृति का आँगन
कुछ रंग नहीं , उमंग नहीं
हर कोई है घर में दुबका हुआ
नव वर्ष का ये कोई ढंग नहीं
चंद मास अभी इंतज़ार करो
निज मन में तनिक विचार करो
नये साल नया कुछ हो तो सही
क्यों नक़ल में सारी अक्ल बही
उल्लास मंद है जन -मन का
आयी है अभी बहार नहीं
ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं
ये धुंध कुहासा छंटने दो
रातों का राज्य सिमटने दो
प्रकृति का रूप निखरने दो
फागुन का रंग बिखरने दो
प्रकृति दुल्हन का रूप धार
जब स्नेह – सुधा बरसायेगी
शस्य – श्यामला धरती माता
घर -घर खुशहाली लायेगी
तब चैत्र शुक्ल की प्रथम तिथि
नव वर्ष मनाया जायेगा
आर्यावर्त की पुण्य भूमि पर
जय गान सुनाया जायेगा
युक्ति – प्रमाण से स्वयंसिद्ध
नव वर्ष हमारा हो प्रसिद्ध
आर्यों की कीर्ति सदा -सदा
नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा
अनमोल विरासत के धनिकों को
चाहिये कोई उधार नहीं
ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं
है अपनी ये तो रीत नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं।"
(३).फिर वर्ष नूतन आ गया -हरिवंशराय बच्चन
"फिर वर्ष नूतन आ गया!
सूने तमोमय पंथ पर,
अभ्यस्त मैं अब तक विचर,
नव वर्ष में मैं खोज करने को चलूँ क्यों पथ नया।
फिर वर्ष नूतन आ गया!
निश्चित अँधेरा तो हुआ,
सुख कम नहीं मुझको हुआ,
दुविधा मिटी, यह भी नियति की है नहीं कुछ कम दया।
फिर वर्ष नूतन आ गया!
दो-चार किरणें प्यार कीं,
मिलती रहें संसार की,
जिनके उजाले में लिखूँ मैं जिंदगी का मर्सिया।
फिर वर्ष नूतन आ गया!"
(४).नवल हर्षमय नवल वर्ष यह-सुमित्रानंदन पंत
"नवल हर्षमय नवल वर्ष यह,
कल की चिन्ता भूलो क्षण भर;
लाला के रँग की हाला भर
प्याला मदिर धरो अधरों पर!
फेन-वलय मृदु बाँह पुलकमय
स्वप्न पाश सी रहे कंठ में,
निष्ठुर गगन हमें जितने क्षण
प्रेयसि, जीवित धरे दया कर!"
(५).गए साल की - केदारनाथ अग्रवाल
"गए साल की
ठिठकी ठिठकी ठिठुरन
नए साल के
नए सूर्य ने तोड़ी।
देश-काल पर,
धूप-चढ़ गई,
हवा गरम हो फैली,
पौरुष के पेड़ों के पत्ते
चेतन चमके।
दर्पण-देही
दसों दिशाएँ
रंग-रूप की
दुनिया बिम्बित करतीं,
मानव-मन में
ज्योति-तरंगे उठतीं।"
(६).नए साल की शुभकामनाएं ! -सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
"नए साल की शुभकामनाएँ!
खेतों की मेड़ों पर धूल भरे पाँव को
कुहरे में लिपटे उस छोटे से गाँव को
नए साल की शुभकामनाएं!
जाँते के गीतों को बैलों की चाल को
करघे को कोल्हू को मछुओं के जाल को
नए साल की शुभकामनाएँ!
इस पकती रोटी को बच्चों के शोर को
चौंके की गुनगुन को चूल्हे की भोर को
नए साल की शुभकामनाएँ!
वीराने जंगल को तारों को रात को
ठंडी दो बंदूकों में घर की बात को
नए साल की शुभकामनाएँ!
इस चलती आँधी में हर बिखरे बाल को
सिगरेट की लाशों पर फूलों से ख़याल को
नए साल की शुभकामनाएँ!
कोट के गुलाब और जूड़े के फूल को
हर नन्ही याद को हर छोटी भूल को
नए साल की शुभकामनाएँ!
उनको जिनने चुन-चुनकर ग्रीटिंग कार्ड लिखे
उनको जो अपने गमले में चुपचाप दिखे
नए साल की शुभकामनाएँ!"
(७).साल मुबारक! -अमृता प्रीतम
"जैसे सोच की कंघी में से
एक दंदा टूट गया
जैसे समझ के कुर्ते का
एक चीथड़ा उड़ गया
जैसे आस्था की आँखों में
एक तिनका चुभ गया
नींद ने जैसे अपने हाथों में
सपने का जलता कोयला पकड़ लिया
नया साल कुझ ऐसे आया...
जैसे दिल के फ़िक़रे से
एक अक्षर बुझ गया
जैसे विश्वास के काग़ज़ पर
सियाही गिर गयी
जैसे समय के होंटो से
एक गहरी साँस निकल गयी
और आदमज़ात की आँखों में
जैसे एक आँसू भर आया
नया साल कुछ ऐसे आया...
जैसे इश्क़ की ज़बान पर
एक छाला उठ आया
सभ्यता की बाँहों में से
एक चूड़ी टूट गयी
इतिहास की अंगूठी में से
एक नीलम गिर गया
और जैसे धरती ने आसमान का
एक बड़ा उदास-सा ख़त पढ़ा
नया साल कुछ ऐसे आया..."
(८).नए साल का कार्ड -लीलाधर मंडलोई
"कितना अजीब है यह कार्ड कि बोलता नहीं-‘सब खैरियत है’
न केवल पेड़-पौधे
न केवल अरब सागर
गायब है धरती, अंतरिक्ष गायब
भाग रहे हैं तमाम पखेरू नये ठिकानों की फिक्र में
कोई ऐसी जगह नहीं
कि चिलकती हो माकूल जगह
सिर्फ गर्द है, धुआँ है, आग है और
और असंख्य छायाएँ छोड़तीं ठिकाने
वर्दियों से अटा कितना अजीब है यह कार्ड
कि बोलता नहीं-‘सब खैरियत है।"
(९).वर्ष नया -अजित कुमार
"कुछ देर अजब पानी बरसा ।
बिजली तड़पी, कौंधा लपका …
फिर घुटा-घुटा सा, घिरा-घिरा
हो गया गगन का उत्तर-पूरब तरफ़ सिरा ।
बादल जब पानी बरसाये
तो दिखते हैं जो,
वे सारे के सारे दृश्य नज़र आये ।
छप-छप,लप-लप,
टिप-टिप, दिप-दिप,-
ये भी क्या ध्वनियां होती हैं ॥
सड़कों पर जमा हुए पानी में यहां-वहां
बिजली के बल्बों की रोशनियां झांक-झांक
सौ-सौ खंडों में टूट-फूटकर रोती हैं।
यह बहुत देर तक हुआ किया …
फिर चुपके से मौसम बदला
तब धीरे से सबने देखा-
हर चीज़ धुली,
हर बात खुली सी लगती है
जैसे ही पानी निकल गया ।
यह जो आया है वर्ष नया-
वह इसी तरह से खुला हुआ ,
वह इसी तरह का धुला हुआ
बनकर छाये सबके मन में ,
लहराये सबके जीवन में ।
दे सकते हो ?
--दो यही दुआ ।"
(१०).नव वर्ष मंगलमय हो-अनिल करमेले
"यह उठते हुए नए साल की सुबह है
धुंध कोहरे और काँपती धरती की
अजीब स्तब्ध सनसनी में छटपटाती
सूरज भी जैसे मुँह छुपा रहा
बीते साल के रक्तिम सवालों से
चमक रहे हैं मक्कार चेहरे वैसे ही
वैसे ही जुटे हुए हैं
सभी किस्म के हत्यारे
करोड़ों बच्चे काम के रास्ते में हैं
उत्तर आधुनिक नरक में हैं करोड़ों स्त्रियाँ
एक बड़े व्यापारिक घराने
और उस पर लुढ़कते शेयर बाज़ार पर
औंधे मुँह पड़ा है मीडिया
और बिकती गवाहियों की
क्रुर मुस्कराहटों पर
हाय-हाय करता हुआ न्याय
मुआवज़े की कुछ नहीं जैसी राहत से
ज़हरीली साँसों को बमुश्किल थामे हुए
फिर तिनके जुटा रहे हैं
शहर के बाशिंदे
इस देश के सच्चे धार्मिक
फिर रोने-रोने को हैं
अधर्मियों की कारगुज़ारियों पर
फिर शुरू होने जा रही हैं
सियासी कलाबाजियाँ
मधुबालाओं और मीनाकुमारियों
की जूतियों की धूल
कई मल्लिकाएँ
अश्लील चुटकुलों की तरह
हमारे ड्राइंग रूम में
बरस रही हैं लगातार
कल जैसा ही हाहाकार है चहुँ ओर
कल जैसे ही दु:ख हैं और
आँखें हैं आँसू भरी-भरी
कल के असीम जश्न के बाद
यह नया साल है
जीवन है पेड़ हैं बच्चे हैं
उम्मीदें कायम हैं
अब का समय सुख का बीते
नए साल में यही मंगल कामनाएँ हैं।"
(११).नए साल की पहली नज़्म -परवीन शाकिर
"अंदेशों के दरवाज़ों पर
कोई निशान लगाता है
और रातों रात तमाम घरों पर
वही सियाही फिर जाती है
दुःख का शब-खूं रोज़ अधूरा रह जाता है
और शिनाख्त का लम्हा बीतता जाता है
मैं और मेरा शहर-ए-मोहब्बत
तारीकी की चादर ओढ़े
रोशनी की आहट पर कान लगाये कब से बैठे हैं
घोड़ों की टापों को सुनते रहते हैं
हद्द-ए-समाअत से आगे जाने वाली आवाजों के रेशम से
अपनी रिदा-ए-सियाह पे तारे काढ़ते रहते हैं
अन्गुश्ताने इक-इक करके छलनी होने को आए
अब बारी अंगुश्त-ए-शहादत की आने वाली है
सुबह से पहले वो कटने से बच जाए तो।"
(१२).नई सुबह -कुँअर रवीन्द्र
"चलो,
पूरी रात प्रतीक्षा के बाद
फिर एक नई सुबह होगी
होगी न,
नई सुबह?
जब आदमियत नंगी नहीं होगी
नहीं सजेंगीं हथियारों की मंडिया
नहीं खोदी जायेगीं नई कब्रें
नहीं जलेंगीं नई चिताएँ
आदिम सोच, आदिम विचारों से
मिलेगी निजात
होगी न,
नई सुबह?
सब कुछ भूल कर
हम खड़े हैं
हथेलियों में सजाये
फूलों का बगीचा,
पूरी रात जाग कर
फिर एक नई सुबह के लिए
होगी न
नई सुबह?"
(१३).नया वर्ष- अनिल जनविजय
"नया वर्ष
संगीत की बहती नदी हो
गेहूँ की बाली दूध से भरी हो
अमरूद की टहनी फूलों से लदी हो
खेलते हुए बच्चों की किलकारी हो नया वर्ष
नया वर्ष
सुबह का उगता सूरज हो
हर्षोल्लास में चहकता पाखी
नन्हें बच्चों की पाठशाला हो
निराला-नागार्जुन की कविता
नया वर्ष
चकनाचूर होता हिमखण्ड हो
धरती पर जीवन अनन्त हो
रक्तस्नात भीषण दिनों के बाद
हर कोंपल, हर कली पर छाया वसन्त हो।"
(१४).नया साल उन बच्चों के नाम - रंजना भाटिया
"नया साल.....
उन बच्चो के नाम
जिनके पास
न ही है रोटी
न ही है ,
कोई खेल खिलोने
न ही कोई बुलाए
उन्हें प्यार से
न कोई सुनाये कहानी
पर बसे हैं ,
उनकी आंखों में कई सपने
माना कि अभी है
अभावों का बिछोना
और सिर्फ़ बातो का ओढ़ना
आसमन की छ्त है
और घर है धरती का एक कोना
पर ....
उनके नाम से बनेगी
अभी कागज पर
कुछ योजनायें
और साल के अंत में
वही कहेंगी
जल्द ही पूरी होंगी यह आशाएं ...
इसलिए ,उम्मीद की एक किरण पर .
नया साल उन बच्चो के नाम ........"
संकलन- नीरज कुमार मिश्र
नाम : गोलेन्द्र पटेल
उपनाम/उपाधि : 'गोलेंद्र ज्ञान' , 'युवा किसान कवि', 'हिंदी कविता का गोल्डेनबॉय', 'काशी में हिंदी का हीरा', 'आँसू के आशुकवि', 'आर्द्रता की आँच के कवि', 'अग्निधर्मा कवि', 'निराशा में निराकरण के कवि', 'दूसरे धूमिल', 'काव्यानुप्रासाधिराज', 'रूपकराज', 'ऋषि कवि', 'कोरोजयी कवि', 'आलोचना के कवि' एवं 'दिव्यांगसेवी'।
जन्म : 5 अगस्त, 1999 ई.
जन्मस्थान : खजूरगाँव, साहुपुरी, चंदौली, उत्तर प्रदेश।
शिक्षा : बी.ए. (हिंदी प्रतिष्ठा) व एम.ए., बी.एच.यू., हिंदी से नेट।
भाषा : हिंदी व भोजपुरी।
विधा : कविता, नवगीत, कहानी, निबंध, नाटक, उपन्यास व आलोचना।
माता : उत्तम देवी
पिता : नन्दलाल
पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन :
कविताएँ और आलेख - 'प्राची', 'बहुमत', 'आजकल', 'व्यंग्य कथा', 'साखी', 'वागर्थ', 'काव्य प्रहर', 'प्रेरणा अंशु', 'नव निकष', 'सद्भावना', 'जनसंदेश टाइम्स', 'विजय दर्पण टाइम्स', 'रणभेरी', 'पदचिह्न', 'अग्निधर्मा', 'नेशनल एक्सप्रेस', 'अमर उजाला', 'पुरवाई', 'सुवासित' ,'गौरवशाली भारत' ,'सत्राची' ,'रेवान्त' ,'साहित्य बीकानेर' ,'उदिता' ,'विश्व गाथा' , 'कविता-कानन उ.प्र.' , 'रचनावली', 'जन-आकांक्षा', 'समकालीन त्रिवेणी', 'पाखी', 'सबलोग', 'रचना उत्सव', 'आईडियासिटी', 'नव किरण', 'मानस', 'विश्वरंग संवाद', 'पूर्वांगन', 'हिंदी कौस्तुभ', 'गाथांतर', 'कथाक्रम', 'कथारंग' आदि प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रमुखता से प्रकाशित।
विशेष : कोरोनाकालीन कविताओं का संचयन "तिमिर में ज्योति जैसे" (सं. प्रो. अरुण होता) में मेरी दो कविताएँ हैं और "कविता में किसान" (सं. नीरज कुमार मिश्र एवं अमरजीत कौंके) में कविता।
लम्बी कविता : 'तुम्हारी संतानें सुखी रहें सदैव' एवं 'दुःख दर्शन'
अनुवाद : नेपाली में कविता अनूदित
काव्यपाठ : अनेक राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय काव्यगोष्ठियों में कविता पाठ।
सम्मान : अंतरराष्ट्रीय काशी घाटवॉक विश्वविद्यालय की ओर से "प्रथम सुब्रह्मण्यम भारती युवा कविता सम्मान - 2021" , "रविशंकर उपाध्याय स्मृति युवा कविता पुरस्कार-2022", हिंदी विभाग, काशी हिंदू विश्वविद्यालय की ओर से "शंकर दयाल सिंह प्रतिभा सम्मान-2023", "मानस काव्य श्री सम्मान 2023" और अनेकानेक साहित्यिक संस्थाओं से प्रेरणा प्रशस्तिपत्र प्राप्त हुए हैं।
मॉडरेटर : 'गोलेन्द्र ज्ञान' , 'ई-पत्र' एवं 'कोरोजीवी कविता' ब्लॉग के मॉडरेटर और 'दिव्यांग सेवा संस्थान गोलेन्द्र ज्ञान' के संस्थापक हैं।
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पिन कोड : 221009
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🙏
इससे जुड़ें और अपने साथियों को जोड़ने की कृपा करें।
ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं' कविता दिनकरजी की कब की है और किस पुस्तक में है?
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